प्रावसियों का स्वागत ख्रीस्तीय कर्तव्य
दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी
धर्माध्यक्षीय धर्मसभा में दस्तावेज ईन्त्रेमेन्तुम लाबोरिस के तीसरे भाग में बहुत से हस्तक्षेप किये गये। वाटिकन संचार विभाग के अधिकारी पॉलो रुफीनी ने बुधवारीय प्रेस विज्ञाप्ति के शुरू में सभा को इस बात से अवगत कराया कि धर्मसभा ने युवाओं ने नाम पत्र लिखने का निर्णय लिया है जिसके लिए एक समिति का गठन किया जा चुका है।
उन्होंने ने कई मुद्दों के बारे में जिक्र किया जो धर्मसभा में चर्चा के विषय रहे हैं, इसमें मुख्य रुप से युवाओं को पवित्र धर्मग्रंथ का अध्यायन करने में मदद करना जिससे वे उसके महत्व को अपने जीवन में समझ सकें। विश्वास पर जोर देना और उसे कार्यों में परिलक्षित करना, सामुदायिक जीवन पर जोर देना इसके अलावे पश्चिमी देशों को उपवास की आश्वयकता जैसी बातें उभर कर आयी। कलीसिया में महिलाओं की भूमिका पुनः उभर कर आई। महिलाओं की भूमिका से संबंध में इस बात पर बल दिया गया कि कलीसिया को सांस्कृतिक रुप में परिवर्तन की जरूरत है। उन्हें कलीसिया और समाज में बराबर स्थान देने की आश्वयकता है। उन्होंने कहा कि धर्मसभा में इस बात को भी प्रस्तावित किया गया कि महिलाओं की धर्मसभा आयोजित की जाये।
डा. रुफीनी ने कहा कि धर्मसभा में युवाओं हेतु परमधर्मपीठ या विभाग की स्थापना की प्रस्तावना आई। इसके मुख्य अधिकारी के अधिकार अन्य धर्मपीठीय विभाग की तरह हो। इस संबंध में यह भी कहा गया कि एक महिला अधिकारिणी स्वरुप इस क्षेत्र में एक नई शुरूआत कर सकती है।
अफ्रीकी देशों को प्रभावित करने वाले कई मुद्दों पर जिक्र किया गया जिसमें सतत विकास के प्रश्न उठाये गये। यह सतत विकास की कमी है जो अफ्रीकी देशों में अप्रवास का कारण बनती है। कलीसिया को चाहिए कि वह विकास के प्ररूप की खोज करते हुए उसे उचित रुप में लागू करे यदि ऐसा नहीं होता तो हम सदैव प्रवास के परिमाणों को हल करने का प्रयास करेंगे लेकिन प्रणालीगत समस्याओं से निपट नहीं हो पायेगा। गुलामी की समस्या जो विभिन्न देशों की सहभागी है विचार एवं वाद-विवाद की विषय वस्तु रही है।
पुरोहित अलेक्साद्रे आवी मेल्लो लोकधर्मियों, परिवार और जीवन हेतु गठित विभागीय अध्यक्ष ने कहा कि वे धर्मसभा की प्रक्रिया और क्रार्यविधि के फलस्वरुप जो कार्य हुए हैं, उनसे वे बहुत ही प्रभावित हैं। विश्व के विभिन्न देशों का धर्मसभा में सहभागी होना अपने में अद्वितीय है।
यूरोप की अंतरआत्मा कहाँ है
इथोपिया के कार्डिलन बरहानेयेसस डेमेर्यू सूराफिल ने कहा कि अफ्रीका के अन्दर प्रवासऩ मुख्य रुप से युवाओं को प्रभावित करता है। उन्होंने कहा कि धर्मसभा में हथियारों के व्यपार पर कोई चर्चा नहीं की गई है। यह दुःख की बात है कि युद्ध असंख्य लोगों को पलायन के लिए बाध्य करता है। बच्चों को बहुधा हथियारों की बिक्री हेतु उपयोग किया जाता है। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि अफ्रीकी देशों में तकनीकी और अन्य चीजें की अपेक्षा जिसे धर्मसभा ने अपने विचार-मंथन में लाया है यदि स्पष्ट रुप में कहा जाये, तो उन बातों से अधिक महत्वपूर्ण मुद्दा युवाओं की जीविका का सवाल है।
कार्डिनल ने खनिज पद्धार्थों के दोहन की बातें को रखते हुए कहा, विशेष कर कांगो में कोल्टन, जिसके कारण कितने ही गावों और परिवारों को विस्थापित होना पड़ा रहा है। खनन ने कितने ही युवाओं को प्रभावित किया है।
कार्डिनल सूराफिल ने यूरोप में अफ्रीकी देशों के नागरिकों के प्रति हो रहे व्यवहार पर शोक व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि जब यूरोपीय अफ्रीकी देशों में आये तो यह उनके लिए सहज रहा लकिन अफ्रीका के लोगों के साथ वैसा बर्ताव नहीं किया जाता जैसा उनके साथ किया गया। उऩ्होंने प्रश्न किया, “यूरोपवासियों के ख्रीस्त मूल्य कहाँ हैंॽ हम ख्रीस्तीयता को कहाँ जीते हैंॽ कर्डिनल ने कहा कि यह ख्रीस्तीय मूल्य, ख्रीस्तीय कर्तव्य है कि हम एक अजनबी का स्वागत करें। आप्रवासियों के संबंध में सरकारी नीतियों को ले कर उन्होंने कहा कि यह बात ख्रीस्तीय अंतःकरण को स्पर्श करने वाली बात है।
समुदाय
इटली के महाधर्माध्यक्ष मात्तेओ मरिया जुप्पी ने कहा कि धर्मसभा में हम सामुदायिकता का एहसास करते हैं जिसके फलस्वरुप सुनने के कार्य हो रहे हैं। यह हमें एकमत होने में मदद करता और हम अपने विचारों पर ध्यान दे सकते हैं। कलीसिया को आगे बढ़ने हेतु समुदाय की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि संत पापा फ्रांसिस पहले व्यक्ति है जो समुदाय की बात करते हैं। यदि हम अपने याजकीयवाद और राष्ट्रवाद से बाहर निकला चाहते हैं तो यही हमारे लिए एक उपाय है। कलीसिया सभों की आवाज बनती और सभों के साथ खड़ी होती है क्योंकि वह सभों के पास पहुँचना चाहती है। उन्होंने कहा कि सामुदायिकता हमारी असल पहचान है।
एक प्रेरितिक कलीसिया
धर्मबहन अलेस्द्रा स्मेरेली, अर्थशास्त्र की प्रध्यापिका ने प्रेस विज्ञाप्ति के दौरान कहा कि धर्माध्यक्षगण सचमुच में एक दूसरे की बातों को सुन रहे हैं जो छिछला नहीं है। वह उनके हृदय में युवाओं के लिए व्याप्त सच्चे स्नेह का अऩुभव कर सकती है। उन्होंने कहा कि वह एक प्रेरितिक कलीसिया का सपना देखती है। अर्थशास्त्र और पारिस्थितिकी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और पृथ्वी की रुदन को सुने बिना हम युवाओं और गरीबों की कराह को नहीं सुन सकते हैं। उन्होंने कहा कि यदि हम प्रर्यावण की चिंता नहीं करते तो हम अपने में एक नयी दरिद्रता को जन्म दे रहे हैं और यह युवा पीढ़ी है जो इसका शिकार होने वाली है।
उन्होंने संत पापा फ्रांसिस के विश्व पत्र की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि यदि कलीसिया “लौदातो सी” को कार्यान्वित करती तो यह सही अर्थ में विश्व के लिए एक अंतर लायेगा क्योंकि यह गरीबी और मनाव पीड़ा जैसे कई मुद्दों से जुड़ी है।
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