तिमोर लेस्ते के राष्ट्रपति : पोप की यात्रा ‘अविश्वसनीय’ क्षण था
वाटिकन न्यूज
तिमोर लेस्ते, मंगलवार, 4 फरवरी 2025 (रेई) : 4 फरवरी 2019 को पोप फ्राँसिस और अल अजहर के ग्रैंड इमाम शेख अहमद अल तायेब ने मानव बंधुत्व पर दस्तावेज पर हस्ताक्षर किया, धर्म के नाम पर हो रही हिंसा की निंदा की तथा “सहिष्णुता की संस्कृति को व्यापक रूप से बढ़ावा देने” का आह्वान किया।
दस्तावेज पर हस्ताक्षर अबुधाबी में पोप फ्राँसिस के एमीरात की ऐतिहासिक यात्रा के दौरान हुई थी जो इस तरह की पहली घटना है। दस्तावेज पर हस्ताक्षर होने के बाद से, यूएई हर साल 4 फरवरी को मानव बंधुत्व के लिए अंतर्राष्ट्रीय जायद पुरस्कार प्रदान करता है।
कार्यक्रम पुरस्कार विजेताओं और वैश्विक राजनीतिक नेताओं एवं धर्मगुरूओं को एक साथ लाता है। इस वर्ष इनमें तिमोर-लेस्ते के राष्ट्रपति जोस मैनुअल रामोस-होर्ता भी शामिल हैं।
उन्होंने वाटिकन न्यूज से मानव बंधुत्व की अवधारणा, पोप फ्राँसिस की अपने छोटे से दक्षिण-पूर्व एशियाई देश की हालिया यात्रा, तथा इंडोनेशिया के साथ मेल-मिलाप से सीखे जानेवाले सबक के बारे में बात की।
वाटिकन न्यूज : राष्ट्रपति महोदय, आपके समय के लिए धन्यवाद। 2022 में, तिमोर-लेस्ते दुनिया का पहला देश बन गया जिसने आधिकारिक तौर पर मानव बंधुत्व पर अबू धाबी घोषणा को अपनाया। मानव बंधुत्व क्या है और यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
राष्ट्रपति रमोस होर्ता : साधारण तथ्य कि इसे पोप फ्राँसिस ने अल-अजहर के ग्रैंड इमाम तैयब के साथ मिलकर तैयार किया था - अपने आप में रुचि और जिज्ञासा जगानेवाला है। इसको पढ़कर मैंने पाया कि यह एक असाधारण दस्तावेज़ है जो हम सभी की आस्था को बहुत गहराई से समाहित करता है। इसमें वे तत्व हैं जो तिमोर-लेस्ते के संविधान में हैं, वे तत्व जो मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में हैं, और बहुत सारी धार्मिक और आध्यात्मिक शिक्षाओं में हैं।
शेष रूप से पोप और अल-अजहर के ग्रैंड इमाम के हस्ताक्षरों को देखते हुए, मैंने सोचा कि यह दस्तावेज तिमोर-लेस्ते के लिए हमारे द्वारा चुने गए मार्ग को जारी रखने में अत्यधिक मूल्यवान होगा। हम एक छोटे, नये देश में रहते हैं, और हमने अतीत में हिंसा पर काबू पाया है। हम बदला लेने के लिए नहीं, बल्कि मेल-मिलाप करने का प्रयास करते हैं। हमारा मार्ग क्रोध, बदला, हिंसा न करने का है, आत्मा और शरीर के घावों को ठीक करना और एक शांतिपूर्ण, समावेशी, सहिष्णु समाज का निर्माण करना है।
इसलिए राष्ट्रपति के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ लेने से पहले ही, जैसे ही मैं निर्वाचित हुआ, मैं हमारी राष्ट्रीय संसद में गया और अध्यक्ष से मिला। मैंने उनसे कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि हमारी संसद अबू धाबी घोषणा को राष्ट्रीय दस्तावेज घोषित करनेवाला प्रस्ताव पारित करे। उन्होंने सहमति जताई। मैंने विभिन्न पार्टी नेताओं से मुलाकात की, और वे सभी सहमत थे। और इसलिए, मेरे शपथ लेने से पहले ही, दस्तावेज को सर्वसम्मति से अपना लिया गया।
लेकिन यह सिर्फ एक दस्तावेज नहीं रहना चाहिए। इसका हमारी भाषाओं में अनुवाद किया जाना और हमारे स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। जो हो रहा है। यह एक सतत प्रक्रिया है, लेकिन दस्तावेज़ को अलग-अलग उम्र के बच्चों के लिए अनुकूलित करने का काम शुरू हो गया है। फिर, जब वे विश्वविद्यालय की उम्र तक पहुँचेंगे, तो वे पूरे दस्तावेज़ को पढ़ और समझ सकेंगे।
वाटिकन न्यूज: पोप फ्राँसिस ने हाल में तिमोर लेस्ते का दौरा किया, वह कैसा रहा?
तिमोर-लेस्ते में 96% काथलिक और श्रद्धालु हैं। रविवार को, पूरे प्रांत में गिरजाघर, (सैकड़ों की संख्या में, महागिरजाघर से लेकर छोटे, गरीब गांवों में सबसे छोटे प्रार्थनालय तक) भरे होते हैं। तो आप पोप के व्यक्तित्व, आकृति, मिथक, उनके जबरदस्त अधिकार की कल्पना कर सकते हैं।
हमने अनुमान लगाया था कि करीब 700,000 लोग आएंगे, और हमारा अनुमान सही था। और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हमने 700,000 को अधिकतम सीमा के रूप में रखा था! राष्ट्रपति के रूप में, मैं इतने सारे लोगों को समायोजित करने की अपनी क्षमता के बारे में चिंतित था। हम दिनभर सैकड़ों हज़ारों लोगों को पीने का पानी कैसे उपलब्ध कराएँगे? बहुत गर्मी थी। लोग सुबह से ही वहाँ थे, कुछ तो एक दिन पहले से ही डेरा डाले हुए थे। सफाई और सुरक्षा का क्या? इसलिए नहीं कि कोई दुश्मनी थी, लेकिन अगर भगदड़ मच गई तो क्या होगा? बस कुछ लोगों को घबराना था और फिर अराजकता फैल जाती।
लेकिन सबकुछ अच्छा रहा। कोई भी हिंसक घटना नहीं हुई, कोई अराजकता, भगदड़ नहीं लेकिन लोगों की प्रतिक्रिया और जोश दिखाई दे रही थी। मैं पोप के नजदीक था और लोगों की प्रतिक्रिया देख रहा था। लोग सचमुच भावुक थे और रो रहे थे। लोग पोप के हाथों का स्पर्श करने के लिए तरस रहे थे। मैं उन्हें पोप के पास ले गया। मैंने कुछ बच्चों को रोते हुए देखा - वे पोप से मिलना चाहते थे। और मैं खुद भी भावुक हो गया, यह देखकर कि हमारे लोगों ने किस तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त की। यह कितना असाधारण अनुभव था।
वाटिकन न्यूज: चार महीने बाद पीछे मुड़कर देखें तो पोप की यात्रा का क्या प्रभाव पड़ा है?
दिलचस्प बात यह है कि मैं 2024 में देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकट करने के लिए मीडिया विशेषज्ञों और कार्यक्रम विशेषज्ञों को नियुक्त करके बड़ी गतिविधियाँ शुरू करने की योजना बना रहा था। फिर पोप ने अपनी यात्रा की पुष्टि की। हम जानते थे कि कम से कम 100 पत्रकार उनके साथ आएंगे। मैंने व्यक्तिगत रूप से अन्य पत्रकारों को संदेश और निमंत्रण भेजे, इसलिए कुल मिलाकर 200 से ज़्यादा पत्रकार आए। राष्ट्रपति के तौर पर मैंने अपने देश को बढ़ावा देने के लिए जो योजना बनाई थी, वह अब ज़रूरी नहीं थी! वास्तव में, पोप की यात्रा मेरे द्वारा बनाई गई किसी भी बड़ी योजना से कहीं ज़्यादा प्रभावी थी।
तो क्या हुआ? इस यात्रा ने लोगों के विश्वास को मजबूत किया, लोगों को ख्रीस्तीय, काथलिक, तिमोरवासी होने पर बहुत गर्व महसूस कराया और उन्हें पोप और कलीसिया के संदेश के प्रति अधिक जागरूकस बनाया। मानवीय भाईचारा, एक-दूसरे की देखभाल करना, बच्चों की देखभाल करना सिखाया। पोप हमेशा बच्चों के महत्व पर जोर देते हैं। वे आम लोगों का ख्याल रखने के लिए कहते हैं। और फिर जब पोप जाने की तैयारी कर रहे थे, तो उन्होंने मुझसे कहा: "इन अद्भुत लोगों का अच्छे से ख्याल रखना। वह भावुक थे; पोप भावुक थे।”
जो मुझे सबसे अधिक प्रभावित की वह थी उनकी सहनशक्ति। मैं चिंतित था, हालाँकि मैंने किसी को नहीं बताया, लेकिन अंदर ही अंदर मैं उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित था। इसलिए पहले दिन से ही जब हमने पोप की यात्रा के बारे में बात करना शुरू किया, मैंने कहा, "जितना संभव हो सके उतना हल्का कार्यक्रम। हम उन्हें थका नहीं सकते।" और फिर भी कार्यक्रम पूरा था। लेकिन मैंने पोप को देखा, और वे हमेशा मुस्कुराते रहते थे। मैं शायद घंटेभर कर पाता और फिर कहता "बस, बस, मैं घर जा रहा हूँ!"।
यह अद्भुत था। तिमोर-लेस्ते की यात्रा के उन दो पूरे दिनों को प्रबंधित करने में उनकी सहनशक्ति और हमेशा अच्छे मूड में रहना, हमेशा मुस्कुराते रहना।
वाटिकन न्यूज: आप यहाँ अबू धाबी में मानव बंधुत्व पर एक परिषद के लिए और जायद पुरस्कार के लिए आए हैं। उन दो घटनाओं का क्या महत्व है?
बहुत सारे पीड़ित हैं जो बच्चे, महिलाएँ, माताएँ हैं। गज़ा या यूक्रेन में, अफ़गानिस्तान में, लीबिया में, म्यांमार में, कांगो में अभी, सूडान में क्या हुआ है, इसे देख सकते हैं। दुनिया का सबसे बुरा मानवीय संकट वास्तव में सूडान में है।
हमें दृढ़ रहना चाहिए। हमें पूरा प्रयास करना चाहिए। एक बात जो मैंने पोप फ्रांसिस के साथ साझा की है, वह यह है कि हमें संघर्ष के रोकथाम में और अधिक निवेश करना चाहिए। हम 7 अक्टूबर और गज़ा की घटनाओं को रोक सकते थे। हम रूस और नाटो के बीच तनाव को बढ़ने से रोक सकते थे।
पोप एकमात्र ऐसे नेता हैं जिनका हर कोई सम्मान करता है, क्योंकि अन्य वैश्विक नेता सभी तनावों या वास्तविक संघर्षों में शामिल हैं।
वाटिकन न्यूज: क्या आपको लगता है कि तिमोर-लेस्ते और इंडोनेशिया के बीच मेल-मिलाप प्रक्रिया में दुनिया के लिए कोई सबक है? पोप ने अपनी यात्रा के दौरान इस बारे में बात की थी ...
हाँ। यह नेतृत्व पर निर्भर करता है। नेता ही होते हैं जो लोगों को युद्ध की ओर ले जाते हैं, नेता ही होते हैं जो युद्ध को रोकते हैं, और नेता ही लोगों को शांति की ओर ले जाते हैं।
हमारे मामले में, हमारे नेता श्री सनाना गुस्माओ थे, जो एक गुरिल्ला लड़ाकू, एक कैदी थे। उन्होंने ही कहा था: हमें आगे बढ़ना चाहिए, कोई बदला नहीं, कोई नफरत नहीं; हमें पहले तिमोरियों के बीच और फिर इंडोनेशिया के साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए।
इंडोनेशिया ने भी राजनेतापन, परिपक्वता दिखाई, और तिमोर-लेस्ते को अस्वीकार करने के बजाय, क्योंकि हमने उन्हें जनमत संग्रह में अस्वीकार कर दिया था, उन्होंने हमारी दोस्ती का हाथ स्वीकार कर लिया। इसके लिए दोनों पक्षों से नेतृत्व की आवश्यकता थी, हमारी ओर से और इंडोनेशियाई पक्ष से।
काश, ऐसा दुनिया में कहीं और भी हो पाता, फिलिस्तीनियों और इस्राएलियों के बीच, म्यांमार में, अफगानिस्तान में, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में, सूडान में... हमें शांति की ओर ले जानेवाले नेताओं की आवश्यकता है।
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