संत पापा : तीर्थालयों में पापस्वीकार सुनने वाले पुरोहितों को सावधानी से चुनें
वाटिकन न्यूज़
वाटिकन सिटी, शनिवार 11 नवम्बर 2023 (रेई,वाटिकन न्यूज) : संत पापा फ्राँसिस ने संत पापा पॉल षष्टम सभागार में 43 देशों से आये तीर्थालयों के रेक्टरों और संचालकों की द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय बैठक के 700 प्रतिभागियों से मुलाकात की। संत पापा ने सहृदय स्वागत करते हुए इस पहल के लिए और तीर्थालय की प्रेरितिक देखभाल के लिए बने विभाग की प्रतिबद्धता के लिए मोनसिन्योर फिसिकेला को धन्यवाद दिया।
संत पापा ने कहा कि तीर्थालय वे विशेष स्थान हैं, जहां विश्वासी प्रार्थना करने, सांत्वना पाने और भविष्य को अधिक आत्मविश्वास के साथ देखने के लिए आते हैं। हमारी ओर से, यह आवश्यक है कि हमारे तीर्थालय जो वास्तव में प्रार्थना के विशेषाधिकार प्राप्त स्थान हैं, हमेशा जीवित रहें।
पाप स्वीकार सुनने वाले पुरोहितों के चयन में अच्छी समझ
संत पापा ने कहा, “मैं जानता हूँ कि वहां पवित्र मिस्सा समारोह को कितनी सावधानी से मनाया जाता है और पापस्वीकार संस्कार के लिए कितना प्रयास किया जाता है। मेरा सुझाव है कि, पापस्वीकार पीठिका पर बैठने के लिए के लिए पुरोहतों के चयन में, अच्छी समझ होनी चाहिए, ताकि जो लोग पिता की दया से आकर्षित होकर पीठिका में उपस्थित हों, उन्हें सच्चे और पूर्ण मेल-मिलाप का अनुभव करने में बाधा न हो। मेल-मिलाप का संस्कार सदैव क्षमा करना है। क्योंकि उनमें ईश्वर की दया उनके स्वभाव से ही प्रचुर मात्रा में व्यक्त होने को कहती है। पिता जिस तरह माफ करता है, उसी तरह वे हमेशा माफ करें, क्षमा करें।”
आराधना की भावना पुनः प्राप्त करें
संत पापा ने रेखांकित किया कि यह भी महत्वपूर्ण है कि तीर्थालयों में आराधना पर विशेष ध्यान दिया जाता है, यह देखते हुए कि "हमारे गिरजाघरों का वातावरण और माहौल हमें हमेशा इकट्ठा होने और आराधना करने के लिए आमंत्रित नहीं करता है।" “हमने आराधना की भावना को थोड़ा खो दिया है। हमें इसे फिर से अपनाना चाहिए।" संत पापा ने कहा, "तीर्थयात्रियों को चिंतनशील मौन के अनुभव को बढ़ावा देना और मौन आराधना करने के लिए विश्वासियों को प्रेरित करना" यह आसान नहीं है। इसका "मतलब उन्हें विश्वास की अनिवार्यताओं पर अपना ध्यान केंद्रित करने में मदद करना" है।
आराधना जीवन से विमुख होना नहीं है; बल्कि यह हर चीज़ को अर्थ देने, ईश्वर के प्रेम का उपहार प्राप्त करने और भाईचारे के दान में इसकी गवाही देने में सक्षम होने का स्थान है।
तीर्थालय सांत्वना का स्थान
संत पापा ने कहा कि बहुत से लोग तीर्थालयों में सांत्वना पाने के लिए जाते हैं। वे अपनी आत्मा और शरीर पर एक बोझ, एक दर्द, एक चिंता लेकर चलते हैं! किसी प्रियजन की बीमारी, परिवार के किसी सदस्य की हानि, कई जीवन स्थितियाँ अक्सर अकेलेपन और उदासी का कारण होती हैं, जिन्हें वे वेदी पर रखते हैं और प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करते हैं। उनहोंने कहा कि सांत्वना एक अमूर्त विचार नहीं है और सबसे पहले शब्दों से नहीं बनी है, बल्कि एक दयालु और कोमल निकटता से बनी है, जिसमें दर्द और पीड़ा शामिल है। दयालु और कोमल निकटता, यह ईश्वर की शैली है। सांत्वना देना ईश्वर की दया को मूर्त बनाने के समान है और इस कारण से सांत्वना की सेवा हमारे तीरथालयों से गायब नहीं हो सकती।
तीर्थयात्रियों का अच्छा से स्वागत करें
अंत में संत पापा आशा के बारे में बात की, जिसकी हर तीर्थयात्री को आवश्यकता होती है क्योंकि "वह भविष्य को अधिक आत्मविश्वास के साथ देखने के लिए तीर्थालय में जाता है। अपनी प्रार्थना में आशा की कृपा मांगता है, क्योंकि वह जानता है कि केवल एक सरल और विनम्र विश्वास ही वह अनुग्रह प्राप्त कर सकता है जिसकी उसे आवश्यकता है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि, घर लौटने पर, वह पूर्ण और शांति से भरा महसूस करे क्योंकि उसने ईश्वर पर अपना भरोसा रखा है। संत पापा ने कहा कि हमारे अभयारण्यों में आतिथ्य सत्कार पर बहुत ध्यान दिया जाता है और यह सही भी है। कृपया यह न भूलें: तीर्थयात्रियों का अच्छा से स्वागत करें। साथ ही, जब तीर्थयात्री अपने सामान्य जीवन में लौटने के लिए तीर्थालय छोड़ते हैं तो उन्हें उतनी ही प्रेरितिक देखभाल दी जानी चाहिए: ताकि उन्हें आशा के शब्द और संकेत मिलती रहे, ताकि पूरी की गई तीर्थयात्रा अपने पूर्ण लक्ष्य तक पहुंच सके।
जयंती के मद्देनजर प्रार्थना के लिए समर्पित वर्ष 2024
अपने संबोधन के समापन पर, संत पापा ने याद दिलाया कि अगला वर्ष, 2025 की जयंती की तैयारी में, पूरी तरह से प्रार्थना के लिए समर्पित वर्ष होगा। उन्होंने घोषणा की कि कुछ सहायताएँ जल्द ही प्रकाशित की जाएंगी जो "प्रार्थना की केंद्रीयता को फिर से खोजने में मदद कर सकती हैं"। वे कहते हैं, ''वे पढ़ने में अच्छे होंगे, जो हमें सादगी से प्रार्थना करने के लिए प्रेरित करते हैं।'' इसलिए अंतिम निमंत्रण: “आइए, हम कार्य करने के लिए खुद को तैयार करें और प्रार्थना करने वाले पुरुष और महिला होने के आनंद और प्रतिबद्धता को हर दिन नवीनीकृत करें। दिल से प्रार्थना करें, तोते की तरह नहीं और आइए, हम ईश्वर की माँ से मध्यस्थता की याचना करें ताकि, इस अत्यंत पीड़ादायक समय में, हमारे कई भाई-बहन जो पीड़ित हैं, उन्हें फिर से शांति और आशा मिल सके।”
अत में संत पापा ने तीर्थालयों में उन्हें भी प्रार्थना में याद करने का अनुरोध करते हुए, अपना आशीर्वाद दिया और उनसे विदा लिये।
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