देवदूत प्रार्थना में पोप : आइये हम ईश्वर के प्रेम से प्रेम करना सीखें
वाटिकन न्यूज
वाटिकन सिटी, रविवार, 28 अक्टूबर 2023 (रेई): वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित किया।
आज का सुसमाचार पाठ सबसे बड़ी आज्ञा के बारे बोलता है। (मती. 22:34-40) शास्त्री येसु से इसपर सवाल करते हैं और येसु “प्रेम की महान आज्ञा” से जवाब देते हैं: “अपने प्रभु ईश्वर को अपने ससारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो।” (...) और (...) अपने पड़ोसियों को अपने समान प्यार करो।” (पद.37.39)
संत पापा ने कहा, “ईश्वर का प्रेम और पड़ोसी का प्रेम एक-दूसरे से अविभाज्य हैं।”
तो, आइए हम इस वास्तविकता के दो पहलुओं पर विचार करें।
प्रेम करने सीखना
पहला, वास्तव में, ईश्वर के प्रति प्रेम पहले आता है जो हमें याद दिलाता है कि ईश्वर हमेशा हमसे पहले प्रेम करते हैं, वे अपनी असीम कोमलता से हमारा इंतजार करते हैं। (यो. 4:19) उसकी निकटता, उसकी दयालुता, कोमलता और करुणा से हम सीखते हैं क्योंकि वे सदैव हमारे निकट हैं। एक बच्चा अपनी माँ और अपने पिताजी के घुटनों पर प्रेम करना सीखता है और हम इसे ईश्वर की बाहों में सीखते हैं: स्तोत्र कहता है, "अपनी माँ की गोद में एक दूध छुड़ाए हुए बच्चे की तरह।" (स्तोत्र131:2) वहाँ, उनकी बाँहों में जो हमें ऊपर उठाते हैं, हम ईश्वर के स्नेह को महसूस करते हैं। जो हमें अपने भाइयों और बहनों को उदारतापूर्वक देने के लिए प्रेरित करता है। संत पौलुस इसे याद करते हैं जब वे कहते हैं कि मसीह की दानशीलता में एक शक्ति है जो प्रेम की ओर प्रेरित करती है।(2 कोर 5:14)
सब कुछ उनसे उत्पन्न होता है। हम सचमुच प्यार करने योग्य तभी बनते हैं जब हम उनसे मुलाकात करते हैं, उसके प्रेम के प्रति समर्पण के द्वारा, आइए हम विरोध न करें: आइए हम हर दिन प्रभु के लिए अपना दिल खोलें।
ईश्वर के प्रेम को प्रतिबिम्बित करना
प्रेम की आज्ञा का दूसरा आयाम है, पड़ोसी प्रेम। यह ईश्वर के प्रति प्रेम को पड़ोसी के प्रति प्रेम से जोड़ता है। इसका मतलब यह है कि अपने भाइयों और बहनों से प्यार करके, हम दर्पण की तरह पिता के प्यार को प्रतिबिंबित करते हैं।
ईश्वर के प्रेम को प्रतिबिंबित करना जिन्हें हम नहीं देख सकते उन्हें उन भाइयों/बहनों के माध्यम से प्यार करना जिन्हें हम देखते हैं (1 यो. 4:20)।
एक दिन, कलकत्ता की संत तेरेसा ने एक पत्रकार को जवाब दिया, जिसने उनसे पूछा था कि वे जो कुछ कर रही हैं उससे क्या वे दुनिया को बदलने का ख्वाब देखती हैं, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं दुनिया को बदल सकती हूँ! मैं सिर्फ शुद्ध जल की एक बूँद बनना चाहती हूँ। जिसके माध्यम से ईश्वर का प्रेम चमक सके।(नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस, 1979)।
संत पापा ने कहा कि “इस तरह वह, जो इतनी छोटी थी, एक बूंद की तरह ईश्वर के प्यार को प्रतिबिंबित करके इतना अच्छा करने में सक्षम हो गई।” यदि हम कभी-कभी, उन्हें और अन्य संतों को देखकर, यह सोचने के लिए प्रेरित होते हैं कि वे ऐसे नायक हैं जिनका अनुकरण नहीं किया जा सकता, तो आइए हम उस छोटी सी बूंद के बारे में फिर से सोचें और खुद को याद दिलाएँ कि हमें भी दुनिया में ईश्वर के प्यार को प्रतिबिंबित करने के लिए बुलाया गया है।” प्यार एक बूंद है जो बहुत कुछ बदल सकती है। पर हम उनके प्यार को कैसे प्रतिबिम्बित कर सकते हैं? उन्होंने कहा, “हमेशा पहला कदम लेते हुए। कभी-कभी पहला कदम उठाना आसान नहीं होता, चीजों को भूलना, पहला कदम उठाना – आइये हम इसे अपनायें। यह एक बूँद है: पहला कदम उठाना।”
चिंतन
संत पापा ने विश्वासियों को चिंतन हेतु प्रेरित करते हुए कहा, "ईश्वर के प्रेम के बारे में सोचते हुए जो हमेशा हमारे सामने रहते हैं, आइए, हम अपने आप से पूछें: क्या मैं प्रभु का आभारी हूँ जो पहले मुझसे प्रेम करते हैं? क्या मैं हर दिन उनसे मिलता हूँ ताकि खुद को उनके द्वारा परिवर्तित होने का मौका दे सकूँ? क्या मैं ईश्वर के प्रेम को महसूस करता हूँ और उसका आभारी हूँ? और फिर: क्या मैं उसके प्रेम को प्रतिबिंबित करने का प्रयास करता हूँ? क्या मैं अपने भाइयों एवं बहनों की मदद हेतु आगे आता हूँ?
तब माता मरियम से प्रार्थना करते हुए संत पापा ने कहा, “कुँवारी मरियम हमें अपने दैनिक जीवन में प्रेम की महान आज्ञा को जीने में मदद करें: प्रेम करना और स्वयं को ईश्वर से प्रेम करने देना और अपने भाइयों से प्रेम करना।।”
इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।
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