संत पापाः मैं एशिया के केन्द्र में रहा
वाटिकन सिटी
संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।
संत पापा ने कहा कि मैं रोमवार को मंगोलिया से वापस आया। उन्होंने मंगोलिया के राजनायिकों भूतपूर्व और वर्तमान राष्ट्रपति जिन्होंने इस प्रेरितिक यात्रा हेतु उन्हें आधिकारिक निमंत्रण दिया, कृतज्ञता के भाव प्रकट किये साथ ही उन्होंने उन सभों का शुक्रिया अदा किया जिन्होंने इस यात्रा की सफलता हेतु उनके लिए प्रार्थना अर्पित की। उन्होंने कहा कि मैं आनंद भरे हृदय से मंगोलिया की स्थानीय कलीसिया और मंगोलियाई लोगों की याद करता हूँ, जो अपने में नेक और विवेकी हैं, जिन्होंने मुझे आपार उत्साह में अपना स्नेह दिखलाया। मैं आप सभों को इस प्रेरितिक यात्रा के केन्द्र-बिन्दु में ले जाना चाहता हूँ।
ईश्वर की शैली
संत पापा ने कहा कि कोई यह पूछ सकता है कि क्यों संत पापा इतनी दूर एक छोटे विश्वासी समुदाय के पास गयेॽ क्योंकि हम विशेष रूप से वहाँ, जो सुर्खियों से दूर हैं, बहुधा ईश्वरीय उपस्थित की निशानियों को पाते हैं, जो हमारे शारीरिक रुपों को नहीं बल्कि हृदय को देखते हैं (1 समुएल 16.7)। ईश्वर मुख्य-मंच को नहीं देखते लेकिन उन साधारण लोगों के हृदय को देखते हैं जो उनकी चाह रखते और दूसरों पर हावी हुए बिना उन्हें प्रेम करते हैं। और मुझे मंगोलिया में, एक नम्रता, लेकिन एक आनंदमयी कलीसिया से मिलन का एक सौभाग्य प्राप्त हुआ जो ईश्वर के हृदय में निवास करते हैं। उन्होंने कहा कि मैं उनकी खुशी का साक्ष्य दे सकता हूँ जिसे उन्होंने कुछ दिनों कलीसिया के केन्द्र में रहने के अनुरूप अनुभव किया।
ख्रीस्तीयता का अर्थ
उस समुदाय का इतिहास अपने में वशीभूत करने वाला है। इसकी शुरूआत, प्रेरितिक उत्साह के अनुरूप ईश्वर की कृपा में हुआ, जिसके बारे में इन दिनों चिंतन कर रहे हैं- कुछ प्रेरित जो सुसमाचार की उत्साह से पूर्ण तीस वर्षों तक उस देश का भ्रमण किया जिसके बारे में वे कुछ नहीं जानते थे। उन्होंने वहाँ की भाषा सीखी, जो सहज नहीं है, वे विभिन्न देशों से थे इसके बावजूद उन्होंने अपने को एक सच्चे ख्रीस्तीय समुदाय के रुप में संयुक्त किया। वास्तव में, संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तीय होने का अर्थ यही है, “ख्रीस्तीयता” अर्थात “सार्वभौमिकता”। लेकिन यह वह सार्वभौमिकता नहीं है जो एकरूपता लाती है, बल्कि वह सार्वभौमिकता है जो संस्कारित करती है। यह ख्रीस्तीयता है जिसमें हम एक सन्निहित सार्वभौमिकता को पाते हैं, यह अच्छाई का आलिंगन करती और अपने संग रहने वालों की सेवा करती है। कलीसिया का जीवन इसी प्रकार का है जहाँ वह ईश्वर के प्रेम का साक्ष्य नम्रता में, अपने शब्दों के बदले कार्यों में देती है, वह अपनी समृद्ध में आनंदित होती और ईश्वर तथा अपने भाई-बहनों की सेवा करती है।
करूणा निवास
युवा कलीसिया का जन्म इसी प्रकार हुआ था, जहाँ हम करूणा के कार्य को पाते हैं जो विश्वास का सर्वोतम साक्ष्य है। संत पापा ने कहा कि अपनी प्रेरितिक यात्रा के अंतिम पड़ाव में मुझे “करूणा निवास” के उद्घाटन का सौभाग्य प्राप्त हुआ, यह मंगोलिया की स्थानीय कलीसिया में सेवाकार्य हेतु स्थापित पहली संस्थान बनी। यह सभी ख्रीस्तीयों के लिए निमंत्रण कार्ड की तरह बना, जो हमारे हरएक समुदाय को करूण का निवास होने का आहृवान करता है- एक खुश और स्वागत का स्थल जहाँ हर व्यक्ति की पीड़ा बिना शर्म के ईश्वर की दया से भेंट कर सकता है, जो हमें उठाते और चंगाई प्रदान करते हैं। यह मंगोलियाई कलीसिया का साक्ष्य है, जहाँ प्रेरिताई कार्य में संलग्न विभिन्न देशों के प्रेरित लोगों के साथ एकता का अनुभव करते, खुशी में उनकी सेवा करते और पहले से वहाँ व्याप्त सुन्दरता की खोज करते हैं। संत पापा ने कहा कि ये प्रेरित वहाँ धर्मपरिवर्तन हेतु नहीं गये हैं, न ही सुसमाचार प्रचार हेतु बल्कि वे मंगोलियावासियों की तरह ही जीवनयापन करने की चाह रखते हैं, वे उनकी भाषा बोलते और वहाँ के मूल्यों के अनुसार सुसमाचार की घोषणा करते हैं। उन्होंने मंगोलियाई संस्कृति के अनुरूप अपने को ढ़ाल लिया और उसके अनुरूप सुसमाचार की घोषणा की।
मंगोलियाइयों का जुनून
मैंने इस सुन्दरता को कुछ लोगों से मिलते हुए, उनकी कहानियों को सुनते हुए उनसे वार्ता करने और धार्मिकता की खोज हेतु उनकी जिज्ञासा में अनुभव किया, संत पापा ने कहा। इस संदर्भ में रविवार को समपन हुई एकतावर्धक मिलन के लिए मैं कृतज्ञता के भाव व्यक्त करता हूँ। मंगोलिया में एक बृहृद बौधिक परंपरा है, वहाँ रहने वाले निष्ठापूर्वक और मूलरूप से अपनी धार्मिकता को, शांति में, दूसरों की सेवा और अपने जुनून में महारत हासिल करने के लिए जीते हैं। उन्होंने कहा कि हम इस बात पर विचार करें कि अच्छाई के कितने ही बीज हैं जो गुप्त रुप में विश्व की वाटिका में विकसित होते हैं, जबकि हम साधारणतः केवल पड़ों के गिरने की आवाज को सुनते हैं। यह हम सबों में भी होता है, “कितना बुरा हुआ, वह पेड़ गिर गया, इसके द्वारा कितना विनाश हुआ, वहीं जंगल जो रोज विकसित होता है उसे हम नहीं देखते हैं, क्योंकि बह चुपचाप बढ़ता है” चीजों की परख और अच्छाई को पहचानना हमारे लिए निर्णयक होता है। “बहुधा, यद्यपि, हम लोगों को उस हद स्थिति में पहचानते और प्रंशसा करते हैं जब वे अपने विचारों को प्रकट करते हैं।” अतः यह महत्वपूर्ण है कि हम अपनी निगाहें ऊपर, अच्छाई की ओर बनाये रखें। केवल ऐसा करने के द्वारा, अच्छी चीजों की पहचान के माध्यम, हम सभों के लिए भविष्य का निर्माण कर सकते हैं, केवल दूसरों को महत्व देते हुए हम उन्हें प्रगति करने में मदद कर सकते हैं।
मंगोलिया प्रेरणा का स्रोत बनें
संत पापा फ्रांसिस ने कहा,“मैं एशिया के केन्द्र में था और यह मेरे लिए अच्छा रहा।” इस विस्तृत महादेश से वार्ता में प्रवेश करना, इसके संदेशों को इकट्ठा करना, इसके ज्ञान से वाकिफ होना, चीजों को देखने के तरीके, समय और पृथ्वी का आलिंगन करना अपने में अच्छा रहा। मंगोलिया वासियों से मिलना मेरे लिए अच्छा रहा जो अपनी जड़ों और परंपराओं को संजोकर रखते हैं, जो अपने बुजुर्गों का सम्मान करते और पर्यावरण से एकता में बने रहते हैं। “वे आसमान पर चिंतन करते और सृष्टि को सांसों की तरह अनुभव करते हैं।” मंगोलिया के असीम और शांति में उसके विस्तार पर विचार करते हुए, आइए हम अपने दृष्टिकोण को बढ़ाने की आवश्यकता से प्रेरित हों। संत पापा ने कहा कि हम अपनी सीमाओं का विस्तृत करें, अपने नजरिये को बड़ा करें, छोटी चीजों के गुलाम न रहें, जिससे हम दूसरों में अच्छाई देख सकें और अपनी क्षितिज को व्यापक बना सकें क्योंकि ईश्वर हमें विस्तृत होने, हृदयों में हरएक के लिए समझदारी रखने और हर देश के निकट रहने का निमंत्रण देते हैं। इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने मंगोलिया की प्रेरितिक यात्रा का लघु विवरण समाप्त किया और सबों के संग हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सबों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।
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