संत पापाः “करूणा निवास” सबों का घर हो
वाटकिन सिटी
संत पापा फ्रांसिस ने मंगोलिया की प्रेरितिक यात्रा के अंतिम पड़ाव पर सेवा कार्यों में संलग्न संघों के सदस्यों से भेंट की और ऊलानबतार में “करूणा निवास” का उद्घाटन किया।
संत पापा ने कहा, “जब मैं भूखा था तुमने मुझे खिलाया, जब मैं प्यास था तुमने मुझे पिलाया” (मत्ती. 25. 35) इन शब्दों के द्वारा आपके आतिथ्य और साक्ष्य को संक्षेपित किया जा सकता है। ये वचन हमें ईश्वर की उपस्थिति को दुनिया में देखने और उनके संग अनंत निवास और खुशी में प्रवेश करने में मददगार सिद्ध होते हैं।
कलीसिया का आधार
कलीसिया ने शुरू से ही इन वचनों को गंभीरता से लिया है और अपने कार्यों के माध्यम अपनी मूलभूत छवि को व्यक्त किया है। कलीसिया की नींव को हम चार स्तम्भों में पाते जिसे प्रारम्भिक कलीसिया प्रेरित चरित की पुस्तिका में हमारे लिए व्यक्त करती है- एकता, धर्मविधि, सेवा औऱ साक्ष्य। सदियों बीतने के बाद भी मंगोलिया की छोटी कलीसिया में इन गुणों को देखना हमें आश्चर्यचकित करता है। ये “गेर” के चार संतम्भों की भांति हैं जो संरचना को खड़ा रखती और हमें अंदर आने हेतु स्थान प्रदान करती है।
संत पापा ने उद्घाटन किये गये “करूणा निवास” का जिक्र करते हुए कहा कि यह हमारे लिए ख्रीस्तीय समुदाय की मुख्य निशानी है क्योंकि हम यहाँ दूसरों को खुले रुप में स्वागत करते हुए अतिथि सत्कार करते हैं जहाँ से ख्रीस्त की खुशबू फैलती है। हमारे पड़ोसियों की उदारतापूर्ण सेवा, उनके स्वास्थ्य, जरूरतों की चिंता, शिक्षा और संस्कृति हमें ईश्वरीय प्रजा के रुप में विशेष बनाता है। सन् 1990 में प्रथम प्रेरितिक का ऊलानबतार में आना उन्हें करूणा के कार्यों का एहसास दिलाया जिसके फलस्वरुप उन्होंने परित्यक्त बच्चों, आश्रयहीन भाई-बहनों, बीमारों, असक्षम लोगों, कैदियों और अन्यों की देख-रेख की, जिन्हें सेवा की आवश्यकता थी।
कलीसिया एक विकसित वृक्ष
संत पापा ने कहा कि आज हम एक पेड़ को विकसित पाते हैं जिसकी टहनियाँ फैली हुई हैं जिसके फलों को हम विभिन्न तरह के करूणामय कार्यों में देख सकते हैं। यह कार्य विभिन्न तरह के प्रेरितिक संस्थानों द्वारा संचालित किया जाता जो लोगों के बीच ख्याति प्राप्त है। वास्तव में, मंगोलिया की सरकार ने ख्रीस्तीय प्रेरितिक संस्थानों की सेवा की आवश्यकता को महसूस किया है। उन्होंने सेवा के कार्य में शामिल सभी लोगों के प्रति अपनी कृतज्ञता के भाव प्रकट करते हुए कहा कि यह परियोजना लगातार प्रेरितिक कार्यों में जुड़े समर्पित लोगों को विभिन्न देशों से आकर्षित करती है जो अपने ज्ञान, अनुभव, संपदाओं और विशेष कर प्रेम को सेवा के रुप में मंगोलिया समाज संग साझा करने आते हैं।
करूणा निवास सबों का निवास
संत पापा ने करूणा के निवास की प्रंशसा करते हुए कहा कि यह विविध करूणा के कार्यों का संदर्भ स्थल है। उन्होंने इसके नाम की सर्थकता पर प्रकाश डालते हुए कहा,“ये दो शब्द कलीसिया को परिभाषित करते हैं जो सभों का निवास स्थल है जहाँ लोग ईश्वर के गहरे प्रेम का अनुभव, भाई-बहनों के रुप में कर सकते हैं जो हृदयों को उद्वेलित और प्रभावित करता है।” संत पापा ने कहा कि मैं आशा करता हूँ कि आप सभी इस परियोजना में सहयोग करते हुए निष्ठापूर्ण ढ़ंग से इसकी व्यक्तिगत और संसाधनों की देख-रेख करेंगे।
स्वयंसेवी समाज हेतु जरूरी
इस परियोजना की सफलता हेतु स्वयंसेवी लोगों की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि आज भी बहुत से उदार हृदयी लोग हैं जो जरूरतमंद लोगों की सेवा हेतु स्वेछा से अपने को समर्पित करते हैं, यह पड़ोसियों के प्रति उनके प्रेम को प्रकट करता है। “यह वह सेवा है जिसे येसु ने अपने शिष्यों को सिखलाया, “तुम्हें मुफ्त में मिला है, मुफ्त में दो” (मत्ती.10.8)। इस तरह का कार्य अपने में व्यर्थ प्रतीत होता है लेकिन जब हम त्याग में अपने समय और प्रयास को बिना किसी चीज की आशा किये देते हैं, तो वह अपने में कभी व्यर्थ नहीं जाता है, वह एक मूल्यवान निधि बन जाता है। वास्तव में, उदारता हमारे हृदयों को बोझहीन बनता, हमारे हृदयों के घावों की चंगाई करता, ईश्वर को हमारे निकट लाता, हमारे लिए खुशी कारण बना और हमें आंतरिक रुप में युवा बनाये रखता है।
सेवा प्रेम से प्रेरित हो
संत पापा ने तकनीकी, जीवन स्तर में विकास और सामाजिक कल्याण के साधनों को सभी सेवाओं के लिए अप्रर्याप्त बतलाते हुए कहा कि इसके लिए हमें स्वयंसेवियों की जरुरत है जो प्रेम से प्रेरित होकर दूसरों की सेवा हेतु अपने को समर्पित करते हैं। उन्होंने कहा कि किसी देश का विकास अर्थव्यवस्था और हथियारों की मायावी शक्ति के आधार पर नहीं आंकी जाती है अपितु यह स्वास्थ्य, शिक्षा और देशवासियों के सम्पूर्ण विकास पर होता है। इस आधार पर संत पापा ने मंगोलियावासियों की उदारता की प्रशंसा करते हुए उन्हें स्वयंसेवी कार्यों में निरंतर हाथ बांटने को प्रोत्साहित किया। इसके लिए उन्होंने “करूणा निवास” को उत्तम स्थल की संज्ञा दी जहाँ नेक कार्यों को ठोस रुप देते हुए हृदयों को प्रशिक्षित किया जा सकता है।
हमारे जीवन की मिथकें
अपने संबोधन में संत पापा ने कुछ मिथकों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि केवल धन के द्वारा ही स्वयंसेवी कार्य संभव है, वास्तव में, यह एक भ्रम है। इसके विपरीत लोग जो साधारण जीवन व्यतीत करते वे अपने समय, गुण को उदारता में दूसरों की सेवा हेतु अर्पित करते हैं।
धर्म-परिवर्तन
दूसरा कलीसिया के सेवा कार्य धर्म-परिवर्तन को बढ़ावा देते हैं जो सही नहीं है। “कलीसिया धर्म-परिवर्तन से नहीं अपितु अपने आकर्षण से आगे बढ़ती है”। उन्होंने इस बात पर बल दिया की ख्रीस्तीय सेवा कार्य पीड़ितों और जरुरतमंदों को आलिंगन करना है क्योंकि यह उनमें येसु को स्वीकारना है, जो हर मानव की भलाई और सम्मान की चाह रखते हैं। करूणा निवास के बारे में उन्होंने कहा कि यह सभी धर्म, जाति के लोगों के लिए मानवता में करूणा की अनुभूति का एक स्थल बनें। उन्होंने इस सपने को साकार होने हेतु राज्य और राजकीय नेता के सहयोग पर बल दिया।
धन
केवल धन महत्वपूर्ण है, इस विचार को उन्होंने तीसरी मिथक सोच बतलाया। अतः हम केवल वेतनधारियों को ही अपने कार्यों का अंग न बनायें। निश्चित रुप में करूणा के कार्य व्यवसायिकता की मांग करती है, लेकिन सेवा के कार्य व्यवसाय न बनें।
संत पापा ने कहा कि सच्चे अर्थ में भलाई करने हेतु हृदय से अच्छा होना जरुरी है, जिसके फलस्वरुप हम दूसरों की भलाई हेतु अपने को समर्पित करते हैं। वेतन के लिए समर्पण सच्चा प्रेम नहीं है, हम केवल प्रेम के माध्यम अपने स्वार्थ से ऊपर उठ सकते और दुनिया को आगे ले सकते हैं।
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