संत पापाः मातृभाषा में सुसमाचार की उद्घोषणा सरल
वाटिकन सिटी
संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।
सुसमाचार प्रचार के संबंध में उत्साह पर चिंतन करते हुए कि कैसे यह कलीसियाई जीवन के इतिहास में विकसित हुआ, आज हम ग्वादलुपे, अमेरीका की ओर यात्रा करेंगे। यहाँ हम सुसमाचार प्रचार को सदैव सजीव रुप में पाते हैं। यह एक जीवित झरने की तरह है। सुसमाचार निश्चित रुप में वहाँ दर्शनों से पहले पहुँचा, लेकिन दुर्भाग्यवश यह दुनियावी चीजों की चाह से भी भरा था। संस्कृतिकरण के मार्ग का चुनाव करने के बदले, बहुत बार हम वहाँ प्रत्यारोपण और पूर्व-गठित स्वरुपों को थोपने की जल्दबाजी पाते हैं, जिसमें मूलवासियों के प्रति सम्मान की कमी थी। ग्वादलुपे की कुंवारी मरियम, वहीं दूसरी ओर, अपने को स्थानीय लोगों की वेशभूषा में प्रकट करती हैं, वे उनकी भाषा बोलती हैं, वे स्थानीय संस्कृति का स्वागत करती और उसे प्रेम करती हैं। वो माता हैं जिनकी आंचल तले हर संतान को एक स्थान मिलता है। मरियम में, ईश्वर शरीरधारण करते हैं, मरियम के माध्यम वे हम सभों के जीवन में निरंतर अपने को प्रकट करना जारी रखते हैं।
मातृभाषा सुसमाचार हेतु सुलभ
हमारी माता, वास्तव में, ईश्वर की घोषणा, अति सुयोग्य भाषा में, हमारी मातृभाषा में हमारे लिए करती हैं। हम सुसमाचार को अपनी मातृ भाषा में सरल पाते हैं। संत पापा ने माताओं और नानियों के प्रति अपने कृतज्ञता के भाव प्रकट करते हुए कहा, “आप अपनी संतान और नाती-पोतों को सुसमाचार सुनाते, विश्वास को जीवन के द्वारा साझा करते हैं। यही कारण है माताएं और नानियाँ प्रथम सुसमाचार प्रचारक हैं।” यह अपनी सरलता में घोषित किया जाता है जैसे कि मरियम इसे हमें दिखलाती हैं। हमारी माता सदैव उन लोगों का चुनाव करती हैं जो साधारण हैं जिसे हम मैक्सिको के ताईपेक की पहाड़ी, फातिमा और लुर्द में देखते हैं। वे सभों के द्वारा समझी जाने वाली भाषा में बातें करती हैं जैसे कि येसु करते हैं।
संत पापा ने कहा कि आइए हम संत जुआन दियेगो के साक्ष्य पर चिंतन करें, जो एक युवा और मूलवासी हैं जिन्हें ग्वादलुपे की कुंवारी मरियम का संदेश प्राप्त हुआ, वे उनके संदेशवाहक हैं। वे एक नम्र व्यक्ति थे, ईश्वर की नजर उन पर थी, वे उस युवक के द्वारा अपने चमत्कारों को दिखलाना की चाह रखते हैं। जुआन दियेगो एक विवाहित व्यस्क थे जब उन्होंने विश्वास का आलिंगन किया था। सन् 1531 दिसम्बर को उनकी आयु करीबन 55 साल की हो गई थी। जब वे राह चल रहे थे तो उन्होंने पहाड़ी में ईश्वर की माता को देखा। उन्होंने बड़ी कोमलाता से उन्हें पुकार, “मेरे अति प्रिय बच्चे जुनितो”। तब मरियम ने उन्हें धर्माध्यक्ष के पास भेजते हुए उस स्थान पर एक गिरजाघर निर्माण करने का आग्रह किया जहाँ उन्होंने दर्शन दिया था।
अच्छाई का साक्ष्य, बुराई का सामना करें
जुआन दियेगो, सधारण और स्वेच्छा से, शुद्ध हृदय की उदारता से जाते हैं, लेकिन उन्हें लम्बे समय तक प्रतीक्षा करना होता है। अंततः वे धर्माध्यक्ष से बातें करते हैं जो उनकी बातों पर विश्वास नहीं करते हैं। उनकी मुलाकात पुनः माता मरियम से होती है जो उन्हें सांत्वना देती है और पुनः प्रयास करने को कहती है। मूलवासी पुनः धर्माध्यक्ष के पास लौटता और बहुत मुश्किल से उनसे मिलता है, लेकिन धर्माध्यक्ष उनकी बातों के सुनने के बाद व्यक्तियों को छानबीन करने हेतु उनके पीछे भेजते हैं। संत पापा ने कहा कि हम यहाँ कठिनाई को पाते हैं, सुसमाचार घोषणा की परीक्षा को, उत्साह होने के बावजूद, हम कभी-कभी कलीसिया के द्वारा आशाहीन बातों को अपने लिए पाते हैं। सुसमाचार की घोषणा करने हेतु वास्तव में, अच्छाई का साक्ष्य देना काफी नहीं है बल्कि हमारे लिए यह जरूरी है कि हम बुराई का सामना कैसे करते हैं। एक ख्रीस्तीय इन दोनों कार्यो को उचित रुप में करता है। ये दोनों साथ चलते हैं, यही जीवन है।
जुआन दियेगो की निराशा
यहाँ तक की आज भी, बहुत से स्थानों में, सुसमाचार का संस्कृतिकरण और संस्कृतियों में सुसमाचार की घोषणा करना निरतंरता औऱ धैर्य की मांग करती है, जिसे हम भयभीत और निराश हुए बिना करते हैं। संत पापा ने उन ख्रीस्तीयों की याद की जो अपने में प्रताड़ित किये जाते हैं जिन्हें अपने धर्म का अनुसरण शांति में करने नहीं दिया जाता है। जुआन दियेगो, निराश, माता मरियम से आग्रह करते हैं कि वे अपने कार्यों के निष्पादन हेतु और किसी का चुनाव करें जो उनके अधिक सम्मानजनक और योग्य हो लेकिन उन्हें धैर्यवान बने रहने का आहृवान किया जाता है। सुसमाचार की घोषणा में हम सदैव एक तरह से समझौता करने की जोखिम को पाते हैं- कुछ चीजें ठीक नहीं चलती हैं और व्यक्ति टूट जाता है, वह निराश हो जाता और अपनी निश्चितताओं में शरण लेता है, छोटे समुदायों और कुछ व्यक्तिगत भक्तियों में सीमित हो जाता है। माता मरियम, वहीं दूसरी ओर, हमें सांत्वना प्रदान करती हैं, हमें दुनिया की चुनौतियों के सामने रखती और आगे बढ़ने में मदद करती हैं, एक अच्छी माता कि भांति अपने बेटे के कदमों का अनुसरण करते हुए वे हमें विकास करने में मदद करती हैं।
माता मरियम का सहचर्य
इस भांति जुआन दियेगो धर्माध्यक्ष के पास पुनः लौटता है जो उनसे एक निशानी की मांग करते हैं। माता मरियम उन्हें एक निशानी देने की प्रतिज्ञा करती और इन वचनों के द्वारा सांत्वना प्रदान करती हैं, “तुम्हारे हृदय को कुछ भी चीज भयभीत या विचलित न करे। क्या मैं यहाँ नहीं हूँ, क्या मैं तुम्हारी माँ नहीं हूँॽ” संत पापा ने कहा कि यह कितना सुन्दर है। माता मरियम बहुधा हमारे दुःख, कठिनाइयों में ऐसा हमारे हृदय में कहती हैं। वे हमें सदैव सांत्वना प्रदान करती और अपनी शक्ति से आगे बढ़ने हेतु भर देती हैं। तब वह जुआन को पहाड़ के ऊपर फूल तोड़ने जाने को कहती हैं। यह सर्दी का मौसम था लेकिन इसके बावजूद जुआन दियेगो को कुछ सुन्दर फूल मिलते हैं। वह उसे अपनी कपड़े में रखता और ईश्वर की माता को अर्पित करता है जो उन्हें धर्मध्यक्ष के पास साक्ष्य स्वरुप ले जाने का निर्देश देती हैं। वे जानते हैं और धैर्य में अपनी बारी का इंतजार करते हैं अतंतः धर्माध्यक्ष के सम्मुख अपने अंगोछे को खोलने और फूलों के दिखाने के क्रम में उनके लबादे पर माता मरियम की एक सजीव अद्वितीय आकृति प्रकट होती है जिसे हम सभी वाकिफ हैं, जिनकी आंखों में हम उस समय के नायक को छपा पाते हैं। यह हमारे लिए ईश्वर का आश्चर्य है-जब हम अपने में चाहत और आज्ञाकारिता को पाते हैं तो वे हमारे लिए आशातीत चीजों को पूरा करते हैं जिसे हम उस समय और विभिन्न समय में शायद नहीं देख पाते हैं।
माता मरियम की ओर अभिमुख हों
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि जुआन दियेगो ने सभी चीजों का परित्याग कर, धर्माध्यक्ष की अनुमति से अपने जीवन को मरियम तीर्थ के लिए समर्पित किया। उन्होंने तीर्थयात्रियों का स्वागत किया और उन्हें सुसमाचार सुनाया। हम मरियम तीर्थ में इन बातों को पाते हैं, वहाँ तीर्थयात्री आते, सुसमाचार की घोषणा होती, जहाँ हर कोई सहज महसूस करता, अपने निवास में रहने की अनुभूति करता और स्वर्ग का सुकून पाता है। उन स्थानों में हम विश्वास को सरल और सच्चे, प्रसिद्ध रुप में पाते हैं। और जिस तरह मरियम ने जुआन दियेगो से कहा वे हमारी पुकार सुनते और हमें दुःख से निजात दिलाते हैं। संत पापा ने दुःख और सुख दोनों ही परिस्थितियों में माता मरियम की ओर अभिमुख होने का आहृवान किया। हमें सांत्वना और करूणा रुपी उन मरूधानों में जाने की जरुरत है जहाँ विश्वास मातृ भाषा में अभिव्यक्त किया जाता है जहाँ हम अपने जीवन की मेहनत को मरियम की बाहों में रखते और अपने हृदय में शांति का अनुभव करते हैं मानो अबोध अपने में शांति का एहसास करते हों।
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