पोप : ख्रीस्त में, कष्ट प्रेम में बदल जाता है
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
दुःख और पीड़ा के सामने व्यक्ति अपने आपमें बंद होकर निराशा या विद्रोह की ओर बढ़ सकता है अथवा जीवन के लिए सचमुच महत्वपूर्ण, ईश्वर के साथ संबंध में बढ़ने एवं आत्मपरख करने के एक अवसर के रूप में स्वीकार कर सकता है।”
संत पापा फ्राँसिस ने परमधर्मपीठीय बाईबिल आयोग के जिन सदस्यों से मुलाकात की वे “बाईबिल में बीमारी और पीड़ा” विषयवस्तु पर अध्ययन कर रहे हैं।
येसु की चंगाई ईश्वर के सामीप्य का चिन्ह
संत पापा ने गौर किया कि पुराने व्यवस्थान में, दुःख सहनेवाले लोग अपनी भावनाओं के साथ लगातार ईश्वर की ओर मुड़ते थे, जबकि नये व्यवस्थान में खुद येसु बीमार और पीड़ित लोगों की विशेष चिंता करते थे जो ईश्वर के प्रेम, क्षमाशीलता; तथा पापी और भटके हुए घायल मानव जाति को खोजने में प्रकट होती है।
येसु ने कई चमत्कार किये जो एक चिन्ह है कि “ईश्वर ने अपनी प्रजा की सुधि ली है और कि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है, "ताकि ख्रीस्त का क्रूस हमारे साथ ईश्वर की संगति का प्रमुख चिन्ह बन जाए और हमारे लिए मुक्ति के कार्य में उनके साथ शामिल होने की संभावना बन जाए।"
न कल्पनिक और न ही भाग्यवादी
संत पापा ने कहा कि पीड़ा के बारे में बाइबिल का दृष्टिकोण न तो "कल्पनिक है और न ही भाग्यवादी" है। इसके बजाय, "बाइबिल का व्यक्ति, ईश्वर, भले पिता की निकटता और करुणा के साथ उनसे मुलाकात की जगह के रूप में दर्द की सार्वभौमिक स्थिति का सामना करने के लिए आमंत्रित महसूस करता है, जो असीम दया के साथ, घायल व्यक्तियों को चंगा करने, उन्हें ऊपर उठाने और बचाने की जिम्मेदारी लेते हैं।” उन्होंने कहा, “ख्रीस्त में पीड़ा भी प्रेम में बदल जाता है, अंतिम पुनरूत्थान और मुक्ति की आशा में परिवर्तित हो जाता है।
मानवीय एवं ख्रीस्तीय एकात्मकता
अंततः संत पापा ने कहा कि दुःख हमें मानवीय और ख्रीस्तीय एकात्मकता को ईश्वर के तरीके से जीना सिखाता है, जो सामीप्य, सहानुभूति एवं कोमलता है। भले समारी के दृष्टांत की याद दिलाते हुए उन्होंने कहा कि दुःख में दूसरों की चिंता करना मनुष्य के लिए कोई वैकल्पिक चुनाव नहीं है लेकिन एक अपरिहार्य स्थिति है, न केवल व्यक्ति के रूप में उसके विकास के लिए बल्कि "एक समावेशी समाज के निर्माण के लिए भी जो सही मायने में सार्वजनिक भलाई की ओर उन्मुख है।"
संत पापा ने अपने संदेश के अंत में बाईबिल आयोग के सदस्यों को उनके कार्यों के लिए धन्यवाद एवं प्रोत्साहन दिया तथा कहा कि उनका कार्य उतना ही बढ़ेगा, जितना अधिक वे अपने विश्वास के जीवन में देहधारण के रहस्य को व्यक्तिगत रूप से अपनाने के बारे में जानेंगे।
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