संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  

साहसी बनें और अपने पूरे हृदय से ईश्वर की ओर मुड़ें

संत पापा फ्रांसिस ने रविवार को देवदूत प्रार्थना के दौरान अपने संदेश में विश्वासियों को सुसमाचार पाठ के बरतिमेउस के समान प्रभु से प्रार्थना करने हेतु प्रोत्साहित किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, रविवार, 24 अक्तूबर 2021 (रेई)- वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में मिशन रविवार के दिन 24 अकटूबर को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया, जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आज की धर्मविधि का सुसमाचार पाठ येसु के बारे बतलाता है जो येरीखो से निकलते हुए बरतिमेउस, एक अंधा व्यक्ति को पुनः दृष्टि दान प्रदान करते हैं जो सड़क किनारे भीख मांग रहा था। (मार. 10,46-52) संत पापा ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण मुलाकात है जो येरूसालेम में पास्का भोज हेतु प्रवेश करने के पहले अंतिम बार है। बरतिमेउस ने दृष्टि खो दी थी, आवाज नहीं। वास्तव में, जब उसने सुना कि येसु पार हो रहे हैं, तब पुकार-पुकार कर कहने लगा, "ईसा, दाऊद के पुत्र, मुझपर दया कीजिए।"(47) उसके पुकारने से परेशान होकर शिष्य और भीड़ के लोग उसे चुप करने के लिए डांटने लगे। किन्तु वह और जोर-जोर से पुकारता रहा, "दाऊद के पुत्र मुझपर दया कीजिए।"(पद 48) येसु उसे सुनते हैं और तुरन्त रूकते हैं। ईश्वर हमेशा गरीबों की पुकार सुनते हैं और वे बरतिमेउस की आवाज से जरा भी परेशान नहीं हुए बल्कि महसूस किया कि वह विश्वास से भरा हुआ है, एक ऐसा विश्वास जो जोर लगाने से नहीं डरता, जो नहीं समझे जाने और तिरस्कृत होने पर भी ईश्वर के हदय के द्वार पर दस्तक देता है। संत पापा ने कहा कि यहीं चमत्कार की जड़ है। वास्तव में येसु कहते हैं, "तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया।" (52)  

ईश्वर से दया की याचना करना

बरतिमेउस का विश्वास उसकी प्रार्थना से स्पष्ट होता है। यह एक शर्मीली और पारंपरिक प्रार्थना नहीं है। सबसे बढ़कर वह प्रभु को पुकारता है, "दाऊद के पुत्र" अर्थात् उन्हें मसीह स्वीकार करता, एक राजा मानता है जो दुनिया में आनेवाले थे। तब उन्हें दृढ़ता के साथ नाम से पुकारता है, "ईसा"। उनसे भयभीत नहीं होता, दूरी नहीं रखता। इस तरह वह पूरे दिल से ईश्वर को मित्र पुकारता है, "मुझ पर दया कीजिए।" वह केवल यही प्रार्थना करता है, "मुझपर दया कीजिए"। वह उनसे थोड़ा पैसा नहीं मांगता जैसा कि वह राहगीरों से करता था। बल्कि जो सब कुछ दे सकते हैं उनसे वह पूरा मांगता है। लोगों से थोड़े पैसे मांगता किन्तु येसु जो सब कुछ कर सकते हैं उनसे सब कुछ मांगता है। मुझपर दया कीजिये, मैं जैसा हूँ वैसा ही मुझपर दया कीजिए। एक कृपा की याचना नहीं करता परन्तु अपने आपको प्रस्तुत करता है ˸ खुद के लिए, अपने जीवन के लिए दया की याचना करता है। संत पापा ने कहा कि यह छोटी मांग नहीं है किन्तु अति सुन्दर है क्योंकि दया अर्थात् करुणा की मांग है। ईश्वर की करुणा उनकी कोमलता है।  

ईश्वर सब कुछ संभव कर सकते हैं

बरतिमेउस बहुत सारे शब्दों का प्रयोग नहीं करता। केवल आवश्यक बातें कहता और उसे ईश्वर के प्रेम को अर्पित करता है जो मनुष्यों के लिए असंभव बात को संभव बना कर, उसके जीवन को पुनः प्रस्फूटित कर सकते हैं। यही कारण है कि वे प्रभु से भिक्षा दान नहीं मांगते बल्कि उन्हें अपना सब कुछ दिखाते हैं, अपने अंधेपन और पीड़ा को प्रकट करते हैं जिसके लिए वे नहीं देख पाने के परे गये। अंधापन एक विशाल हिमशैल का उपरी हिस्सा था किन्तु उसके हृदय में घाव, अपमान, टूटे सपने, गलतियाँ और आत्म ग्लानि थी। और उन्होंने अपने हृदय से प्रार्थना की। जब हम ईश्वर से कृपा की याचना करते हैं तब हम भी प्रार्थना में अपनी कहानी सुनाते हैं ˸ अपने घाव, अपमान, टूटे सपने, गलतियों और आत्मग्लानि को प्रकट करते हैं।

प्रार्थना में विश्वास की आवश्यकता  

"दाऊद के पुत्र येसु, मुझपर दया कर!” संत पापा ने कहा, "आज हम भी यही प्रार्थना करें।" अपने आपसे पूछे, "मेरा जीवन कैसा है?" हम प्रत्येक अपने आपसे यही सवाल करें, मेरा जीवन कैसा चल रहा है?” क्या बरतिमेउस की प्रार्थना एक साहसी प्रार्थना है, एक दृढ़ता है जिससे वह पार होते प्रभु को समझ लेता है अथवा क्या वह उन्हें औपचारिक रूप से प्रणाम करने में संतोष पाता है? गुनगुनी प्रार्थना कुछ भी मदद नहीं करती। क्या मेरी प्रार्थना पूरे रूप से मुझे प्रभु के सामने अपने हृदय को खोलने देती है? क्या मैं उनके सामने अपनी कहानी और अपने जीवन के चेहरे को लाता हूँ? अथवा क्या यह सतही, बिना स्नेह और बिना हृदय के रीतियों से बनी हुई है। यदि विश्वास का जीवन है जो प्रार्थना दिल से निकलती है। यह छोटे परिवर्तन की मांग नहीं करती, यह क्षणभर की आवश्यकता तक सीमित नहीं होती। येसु जो सब कुछ दे सकते हैं, उनसे पूरी दृढ़ता के साथ सब कुछ मांगा जाना चाहिए। वे हमारे हृदय में कृपा और आनन्द प्रदान करने के लिए समय पर ध्यान नहीं देते बल्कि दुर्भाग्य से हम ही दूर रहते हैं शायद शर्म से या आलस्य से अथवा अविश्वास से। हम में से कई जब प्रार्थना करते हैं तो विश्वास नहीं करते कि प्रभु चमत्कार कर सकते हैं।

विश्वास से की गई प्रार्थना में चंगाई की शक्ति

तब संत पापा ने प्रार्थना की शक्ति को बतलाने के लिए एक घटना का जिक्र करते हुए कहा, "मैं एक घटना की याद करता हूँ जिसको मैंने खुद देखा है- एक पिता को डॉक्टरों ने कह दिया था कि उसकी 9 साल की बेटी रात में नहीं बचेगी, जब वह अस्पताल में था। वह तुरन्त बस पकड़ा और कई किलोमीटर दूर यात्रा कर माता मरियम के ग्रोटो के पास पहुँचा। रात होने के कारण सबकुछ बंद हो चुका था और वह फाटक के पास ही प्रार्थना करते हुए बिताया, "प्रभु उसे बचा लीजिए", "उसे जीवन दीजिए"। उसने माता मरियम से प्रार्थना की, ईश्वर से रो-रोकर पूरी रात याचना की, हृदय से अर्जी की। तब सुबह वह अस्पताल वापस लौटा। उसने अपनी पत्नी को रोते हुए पाया, तब सोचा कि वह मर चुकी है। लेकिन उसकी पत्नी ने कहा, "तुम नहीं समझते।" डॉक्टरों ने कहा कि यह एक आश्चर्यजनक बात है वह चंगी होती दिख रही है। उस व्यक्ति की पुकार जिसने प्रभु से सब कुछ मांगा उसकी प्रार्थना को प्रभु ने सुन लिया। संत पापा ने कहा, "यह कोई कहानी नहीं है मैंने इसे धर्मप्रांत में देखा है।" क्या हमारी प्रार्थना में ऐसा साहस है? जो हमें सब कुछ दे सकते हैं, हम उनसे बरतिमेउस के समान सब कुछ मांगें। वे एक महान गुरू हैं, वे इसमें प्रार्थना के एक महान शिक्षक हैं। बरतिमेउस अपने ठोस, आग्रहपूर्ण और साहसी विश्वास के साथ हमारे लिए एक उदाहरण बनें।

हमारी माता मरियम, प्रार्थना करनेवाली कुँवारी, हमें अपने पूरे दिल से ईश्वर की ओर मुड़ना सिखायें, यह भरोसा करते हुए कि वे हमारी हर प्रार्थना को ध्यानपूर्वक सुनते हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

देवदूत प्रार्थना में संत पापा का संदेश

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24 October 2021, 15:46