संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में 

संत पापाः हम विश्वास को कैसे जीते हैं

संत पापा फ्रांसिस ने गलातियों के नाम संत पौलुस के पत्र पर धर्मशिक्षा देते हुए विश्वास के जीवन पर चिंतन करने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात।

हम गलातियों के नाम संत पौलुस के पत्र पर अपनी चर्चा जारी रखते हैं। मेरे द्वारा इस पत्र पर दी जा रही व्याख्या जो गलाती समुदाय की उत्पन्न हुई गंभीर समस्या पर जिक्र है अपने में कोई नई चीज नहीं है। यह ईश वचन है क्योंकि यह धर्मग्रंथ में अंकित किया गया है। ये सारी चीजें किसी के द्वारा खोज की गई, ऐसा नहीं है। यह उस समय घटित हुई और इसकी पुनरावृति कहीं भी हो सकती है। और इतिहास में ऐसा हुआ भी है। संत पापा ने कहा कि यह ईशवचन, गलातियों के नाम संत पौलुस के पत्र पर एक धर्मशिक्षा है कोई दूसरी चीज नहीं हमें सदैव इसे याद रखने की जरुरत है।

औपचारिकतावाद से पाखंडता का भय

हमने अपने विगत धर्मशिक्षामाला में इस बात को देखा कि गलातियों के प्रथम ख्रीस्तीय समुदाय जिन्होंने सुसमाचार के मार्ग पर चलना शुरू किया था उसका परित्याग करना उनके लिए कितना खतरनाक था। वास्तव में, औपचारिकतावाद का शिकार होने का खतरा हमें पाखंडता की ओर ले चलती है जिसके बारे में हमने पिछली बार जिक्र किया। वे औपचारिकता का शिकार होते और येसु ख्रीस्त में प्राप्त अपने नये सम्मान को अस्वीकार करते हैं कि वे येसु ख्रीस्त में मुक्त किये गये हैं। पाठ जिसे हमने शुरू में सुना पत्र का दूसरा भाग है। संत पौलुस अपने जीवन और बुलाहट की चर्चा करते हैं कि कैसे ईश्वर की कृपा ने उसके जीवन को बदल डाला और वह अपने को सुसमाचार प्रसार के लिए पूर्णरुपेण समर्पित करते हैं। इस परिवेश में वे गलातियों को सीधे तौर पर चुनाव करने की चुनौती देते हैं।

संत पापा ने कहा कि संत पौलुस गलातियों को जिन तरह से संबोधित करते वह अपने निश्चित तौर पर अपने में विन्रम नहीं है। दूसरे पत्रों में हम संबोधन जैसे की “भाइयो” या “अतिप्रिय मित्रों” को पाते हैं लेकिन यहाँ वैसे नहीं है, क्योंकि वे क्रोधित हैं। वे उन्हें साधारण रुप में “गलातियों” कहकर संबोधित करते हैं और दो परिस्थितियो में तो वे उन्हें “मूर्ख” भी कहते हैं, जो विन्रता व्यक्त नहीं करती जिसका अर्थ हम कई रुपों में लगा सकते हैं। वे ऐसा इसलिए नहीं करते क्योंकि वे ज्ञानी नहीं हैं बल्कि इसलिए कि वे उत्साह में मिले ईश्वर पर विश्वास की कृपा को वे खोने का तनिक भी एहसास नहीं करते हैं। वे मूर्ख हैं क्योंकि वे अनमोल निधि, ईश्वर में मिले नवीन विश्वास को खोने की जोखिम में हैं। प्रेरित का आश्चर्य और दुःख अपने में स्पष्ट है। कटुता के बिना वे ख्रीस्तियों को अपने प्रथम प्रवचन की याद करने को कहते हैं जिसके द्वारा उन्होंने उन्हें एक नई अप्रत्याशित स्वतंत्रता प्राप्त करने की संभावना पेश की।

संत पौलुस, क्रूस मरण और पुनरूत्थान

प्रेरित गलातियों के अंतःकारण को झकझोरने हेतु सवाल पूछते हैं। वे अलंकारिक प्रश्न हैं क्योंकि गलातियों का समुदाय इस बात से वाकिफ है कि ख्रीस्त पर उनका विश्वास सुसमाचार घोषणा के फलस्वरुप मिली कृपा का प्रतिफल है। हम यहाँ उनकी ख्रीस्तीय बुलाहट की शुरूआत को देखते हैं। संत पौलुस के द्वारा सुनाये गये वचनों का केन्द्रविन्दु ईश्वर का प्रेम था जो पूर्णरुपेण येसु के मृत्यु और पुनरूत्थान में व्यक्त होता है। पौलुस को उससे अधिक और कोई ठोस अभिव्यक्ति नहीं मिल सकती थी जिसे उन्होंने शायद अपने प्रवचन में कई बार दोहराया था,“मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझ में जीवित हैं। अब मैं अपने शरीर में जो जीवन जीता हूँ, उसका एकमात्र प्रेरणा-स्रोत है- ईश्वर के पुत्र में विश्वास है, जिसने मुझे प्यार किया और मेरे लिए अपने को अर्पित किया” (गला.2.20)। संत पौलुस येसु ख्रीस्त के क्रूस मरण को छोड़कर और किसी दूसरी बातों को जानने की चाह नहीं रखते हैं (1कुरू.2.2)। गलातियों को दूसरी अन्य बातों पर विचलित होने के बदले इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता थी। संक्षेप में संत पौलुस ख्रीस्तियों को इस बात के लिए बाध्य करते हैं कि वे उन बातों पर ध्यान दें जो खतरे में हैं जिससे वे संहिता के अनुपालन करने की दुविधा में न पड़ें। क्योंकि नए प्रचारकों ने, जो गलातिया आये थे, उन्हें विश्वास दिलाया कि उन्हें वापस जाते हुए शिक्षाओं का भी पालन करना होगा जो मसीह से पहले पूर्णता की ओर ले जाती है, जो कि मुक्ति हेतु आवश्यकता है।

पवित्रता से हमारा न्याय  

संत पापा ने कहा कि इसके अलावे गलाती इस बात को समझते थे कि प्रेरित किन बातों की ओर उनका ध्यान खींच रहें हैं। उन्होंने निश्चित तौर पर अपने समुदायों में पवित्र आत्मा के कार्यों का अनुभव किया था जैसे कि दूसरी कलीसियाओं के साथ हुआ था, करूणा और अन्य दूसरी कृपाओं की अभिव्यक्ति उनके बीच भी हुई थी। जब उन पर दबाव डाला गया तो उन्होंने पवित्र आत्मा के नवीन फलों का जिक्र करते हुए उत्तर दिया जिसका अनुभव उन्होंने किया था। उनके विश्वास की शुरूआत ईश्वर से हुई थी न कि मनुष्यों से। पवित्र आत्मा उनके अनुभवों के स्रोत थे। ईश्वर के कार्यो की अवहेलना करते हुए अपने को प्रस्तुत करना उनकी मूर्खता थी। पवित्रता हमारे लिए पवित्र आत्मा से आती है जो येसु ख्रीस्त में हमें मुफ्त में मिलता है जिसके द्वारा हमारा न्याय होता है।

हमारे जीवन का केन्द्र-विन्दु क्या है?

संत पापा ने कहा कि इस तरह संत पौलुस हमें विश्वास पर चिंतन करने का निमंत्रण देते हैं कि हम इसे कैसे जीते हैं। क्या ईश्वर का प्रेम, जो क्रूसित हुआ और जी उठा हमारे जीवन का केन्द्र-विंदु है जहाँ से हमारे लिए मुक्ति आती है या हमारी अंतरआत्मा धार्मिकता के कर्मकंडों की गुलाम है? हम अपने विश्वास को कैसे जीते हैं? क्या हम येसु में मिली नवीनता रुपी सुन्दर निधि से संयुक्त है या हम कुछ क्षणिक चीजों की कामना करते हैं जो आंतरिक रुप में हमें खालीपन का एहसास दिलाती है? दैनिक जीवन की क्षणिक चीजें हमारे द्वार पर दस्तक देती हैं लेकिन यह एक दुखदायी मोह माया है जो हमारे जीवन को छिछला बनाती और हमें सच्ची चीजों पर चिंतन करने में बाधा उत्पन्न करती है। संत पापा ने कहा कि हम इस बात को निश्चित रुप में जान लें यद्यपि हम ईश्वर के दूर चले जाते फिर भी ईश्वर हमें निरंतर अपने उपहारों से भरते रहते हैं। इतिहास में और आज भी गलातियों के साथ हुए घटनाएं घटित होती हैं। आज भी कुछ लोग हमारे कानों को यह कहते हुए गर्म करते हैं, “धार्मिकता इन नियमों में है, इन सारी चीजों में, आप को यह करना, ऐसा करना है”, और वे हमें कठोर धार्मिकता प्रदान करते हैं, वह कठोरता जो हमारे बीच से पवित्र आत्मा की स्वतंत्रता को दूर कर देती है जिसे येसु मुक्ति के रुप में हमें देते हैं। आप ऐसी कठोर बातों के प्रति सचेत रहें क्योंकि हर कठोरता के पीछे कुछ खराब चीज है, वहाँ हम ईश्वर की आत्मा को नहीं पाते हैं। और यही कारण है, यह पत्र हमें कट्टरपंथी प्रस्तावों को नहीं सुनने में मदद करेगा जो हमारे आध्यात्मिक जीवन को पीछे की ओर ले जाते हैं, वहीं यह हमें येसु के पुनरूत्थान की बुलाहट में आगे ले चलता है। प्रेरित गलातियों को इसी बात को दुहराते हुए याद दिलाते हैं कि पिता, “ईश्वर आपलो गों को आत्मा प्रदान करते और चमत्कार करते हैं”(3.5)। संत पौलुस इसे वर्तमान काल में व्यक्त करते हैं, वे यह नहीं कहते कि पिता ने आत्मा को बहुतायत में “दिया है” या “कार्य किया” वरन “देते हैं, कार्य करते हैं”, क्योंकि कठिनाईयों के बावजूद हम उनके कार्यों को कर सकें यहाँ तक कि अपने पापों के बावजूद। ईश्वर हमें नहीं छोड़ते हैं बल्कि वे अपने करूणामय प्रेम में हमारे साथ रहते हैं। वे अपने भले कार्यो के माध्यम सदैव हमारे साथ रहते हैं। वे उस पिता की भांति हैं जो रोज दिन छत पर चढ़कर अपने बेटे के लौटने की बांट जोहते हैं, पिता का प्रेम हमारे लिए कभी खत्म नहीं होता है। हम इस विवेक हेतु निवेदन करें कि हम इस सच्चाई को जान पायें और उन कट्टरपंथियों को दूर करें जो हमारे लिए कृत्रिम त्यागमय जीवन को लाते हैं जिसके फलस्वरुप हम मसीह के पुनरुत्थान से दूर हो जाते हैं। तपस्या जरूरी है, लेकिन यह विवेकी है है, बनावटी नहीं।

 

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01 September 2021, 17:34