रिमिनी सभा 2020 रिमिनी सभा 2020 

संत पापा फ्राँसिस ने रिमनी मैत्री सभा के प्रतिभागियों को प्रोत्साहन दिया

संत पापा फ्राँसिस ने रिमिनी मैत्री सभा के प्रतिभागियों को संदेश भेजा है तथा आह्वान किया है कि वे महामारी के बाद फिर से शुरू करने के लिए ख्रीस्त से भरे रास्तों की तलाश में साहसी बनें।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 19 अगस्त 21 (रेई)- वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पीयेत्रो परोलिन ने संत पापा फ्राँसिस की ओर से बृहस्पतिवार को 2021 रिमिनी मैत्री सभा को एक संदेश भेजा।

संत पापा ने इटली के रिमिनी शहर में 20-25 अगस्त को "लोगों के बीच मित्रता के लिए बैठक" में भाग लेनेवालों को बधाई दी।

उन्होंने अपनी खुशी व्यक्त की कि पिछले साल कोविड-19 के कारण ऑनलाईन सभा के बाद, इसे फिर एक बार व्यक्तिगत रूप से आयोजित किया जा रहा है।

"मैं" कहने का साहस

संत पापा फ्रांसिस ने संदेश में 42वीं सभा की विषयवस्तु पर प्रकाश डाला है, जिसको डेनिश दार्शनिक सोरेन कीर्केगार्ड की एक कहावत से लिया गया है, "मैं कहने का साहस"।

उन्होंने कहा कि कहावत ऐसे समय में मददगार है जब दुनिया सही कदम बढ़ाने की शुरूआत कर रही है ताकि वह महामारी द्वारा उत्पन्न संकट द्वारा प्रदान किये गये अवसर को व्यर्थ न जाने दे। उन्होंने कहा कि फिर से शुरू करते हुए, सभी को जोखिम लेने के लिए साहस की आवश्यकता है, जो स्वतंत्रता का कार्य है।

संदेश में संत पापा ने कहा, "जब शारीरिक दूरी रखने का दबाव डाला जा रहा है महामारी ने व्यक्ति को केंद्र में रखा है- हरेक व्यक्ति "मैं" कह सकता है। कई मामलों में अस्तित्व के अर्थ और जीवन की उपयोगिता पर मौलिक प्रश्नों को फिर से जागृत किया जा रहा है, जिसे बहुत लंबे समय तक अनदेखा किया या दबाया गया था।

समाज के केंद्र में व्यक्ति

संत पापा ने कहा है कि महामारी ने जरूरतमंद लोगों के प्रति व्यक्तिगत जिम्मेदारी की याद दिलायी है जिसका विभिन्न परिस्थितियों में कई लोगों ने साक्ष्य दिया है।  

उन्होंने कहा, "बीमारी और दर्द का सामना करते हुए, आवश्यकता के सामने, कई लोगों ने मुंह नहीं मोड़ा बल्कि कहा: 'मैं प्रस्तुत हूँ।'"

उन्होंने कहा कि लोग समाज के केंद्र में हैं और व्यक्ति के बिना समाज केवल प्राणियों का एक आकस्मिक समूह होगा और इस स्थिति का अंतिम परिणाम केवल आत्मकेन्द्रितता और लोभ पर आधारित समाज होगा।

अहंकार नहीं जिम्मेदारी

संत पापा ने कहा कि महामारी के बाद सभी लोगों को अपनी जिम्मेदारियों को दूसरों की सेवा के मकसद से लाना चाहिए, खासकर, सार्वजनिक अधिकारियों को।

उन्होंने कहा, "सबसे बढ़कर हमें चाहिए कि हम सभी जिम्मेदारी में 'मैं' कहने का साहस कर सकें न कि अहंकार करें, अपने स्वयं के जीवन से संवाद करें ताकि प्रत्येक दिन को एक भरोसेमंद आशा के साथ शुरू कर सकें।"

ख्रीस्त में साहस

हालांकि उन्होंने गौर किया कि मैं कहकर जिम्मेदारी लेने के लिए साहस की जरूरत है और केवल पवित्र आत्मा की शक्ति से हम हमारे सच्चे मार्गदर्शक को पा सकते हैं।

स्वर्गीय पिता के साथ पुत्र तुल्य हमारे संबंध, जिसको ख्रीस्त ने लोगों के बीच प्रकट किया है हममें बदलाव लाता और 'मैं' कहने की शक्ति देता, हमें भय से मुक्त करता और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ हमें दुनिया के लिए खोलता है।"  

संत पेत्रुस इसके उत्तम उदाहरण हैं वे एक डरपोक व्यक्ति थे, फिर भी जब वे पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हुए तब साहस के साथ येसु का प्रचार करना सीखा।

एक ख्रीस्तीय के रूप में हमारे साहस का सबसे मुख्य कारण हैं ख्रीस्त। पुनर्जीवित ख्रीस्त हमारी सुरक्षा हैं जो हमें जीवन की आंधी के बीच भी गहरी शांति प्रदान करते हैं।

सुसमाचार का आनन्द

संत पापा ने अपने संदेश के अंत में सभा के प्रतिभागियों को प्रोत्साहन दिया कि वे सुसमाचार के आनन्द से भर जाएँ।

उन्होंने उनका आह्वान किया कि वे विश्वास को जीने हेतु नये रास्तों की खोज करने में साहसी बनें, साथ ही सभी को शामिल कर सकें क्योंकि पूरे विश्व में विश्वास के क्षितिज हैं ख्रीस्त।

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19 August 2021, 15:46