संत पापा फ्रांसिस, येसु के शरीर और रक्त महोत्सव के मिस्सा बलिदान उपरांत आराधना में. संत पापा फ्रांसिस, येसु के शरीर और रक्त महोत्सव के मिस्सा बलिदान उपरांत आराधना में. 

संत पापाः कलीसिया एक विशाल निवास, सभों के लिए स्थान

येसु के शरीर और रक्त के महोत्सव मिस्सा बलिदान में संत पापा फ्रांसिस ने विश्वासियों को ईश्वर के लिए अपना हृदय बड़ा करने का आहृवान करते हुए कहा कि कलीसिया में सभों के लिए स्थान है क्योंकि यह ईश्वर का एक विशाल निवास स्थल है।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 07 जून 2021 (रेई) संत पापा फाँसिस ने येसु के शरीर और रक्त का महोत्सव के उपलक्ष्य में वाटिकन के संत पेत्रुस महागिरजाघर में यूखारिस्तीय बलिदान अर्पित किया।

संत पापा ने अपने प्रवचन में कहा कि येसु अपने चेलों को भेजते हैं जिससे वे पास्का भोज हेतु एक स्थान तैयार कर सकें। शिष्य स्वयं उन्हें पूछते हैं, “आप क्या चाहते हैं हम कहाँ जाकर पास्का भोज की तैयारी करें (मरकुस. 14.12) हम येसु यूखारिस्त की रोटी में येसु की उपस्थिति पर चिंतन करते हैं हम भी अपने में पूछें कि हम कहाँ, किस स्थान पर येसु के पास्का भोज की तैयारी करें। हमारे जीवन में वे कौन से स्थान हैं जहाँ येसु अतिथि के रुप में आने की चाह रखते हैं। संत पापा ने कहा कि मैं तीन प्रतिरुपों के आधार पर इन सवालों का उत्तर देना चाहूँगा जिसे हमने सुसमाचार में सुना (मर.14.12-16,22-26)।

हमारी प्यास

प्रथम चिन्ह को हम घड़े में पानी लिया व्यक्ति स्वरुप पाते हैं। यह हमारे लिए अतिश्योक्ति लगती है। यद्यपि वह गुमनाम व्यक्ति शिष्यों को उस स्थान तक ले जाता जो अंतिम ब्यारी कहलाती है। शिष्य उसे घड़े में पानी  लिये हुए व्यक्ति के रुप में पहचानते हैं। यह हमारे लिए वह निशानी है जो मानवता की प्यास को हमारे लिए व्यक्त करती है जहाँ हम सदैव अपनी प्यास बुझाने और ताजगी हेतु पानी की खोज करते हैं। हम सभी अपने हाथ में घड़ा लिए जीवन की राह में चलते हैं हम प्रेम, खुशी, एक संवेदनशील विश्व में एक सम्पूर्ण मानव जीवन की आशा करते हैं। हमारी इस चाह को दुनिया की चीजें तृप्त नहीं कर सकती हैं क्योंकि यह एक गहरी प्यास है जिसे केवल ईश्वर तृप्त कर सकते हैं।

ईश्वर के लिए लालसा

हम संक्षिप्त रुप में इस प्रतिरूप पर चिंतन करें इसका अर्थ हमारे लिए क्या है। येसु अपने शिष्यों से कहते हैं कि पास्का का भोज उस स्थान पर खाया जा सकता है जहाँ घड़ा में पानी लिया हुए व्यक्ति उन्हें ले जाता है। य़ूखारिस्त के अनुष्ठान हेतु हमें सर्वप्रथम ईश्वर हेतु अपनी प्यास, उनकी जरुरत को अनुभव करने की आवश्यकता है। हमें उनकी उपस्थिति और उनके प्रेम हेतु लालायित रहने की जरुरत है, हमें इस बात को अनुभव करने की आवश्यकता है कि हम आनंत जीवन का भोजन और पानी के बिना नहीं रह सकते हैं। वर्तमान समय की समस्या यह है कि हम इस भूख और प्यास को बहुत कम अनुभव करते हैं। ईश्वर के बारे में अब कोई सवाल नहीं पूछे जाते, उनकी चाह हमारे लिए धूमिल हो गई है, ईश्वर की खोज करने वालों की संख्या में अति कमी आई है। ईश्वर हमें मोहित नहीं करते क्योंकि हम उनकी गहरी प्यास को अपने लिए अनुभव नहीं करते हैं। फिर भी जहाँ कहीं भी नर और नारी घड़े के साथ हैं, उस समारी नारी की तरह, तो उस स्थिति में ईश्वर अपने को हमारे लिए व्यक्त करते हैं जो नया जीवन देते, हमारे सपनों को पोषित करते और हमारी आशा जगाते हुए इस पृथ्वी पर हमारी यात्रा को अपनी उपस्थिति से अर्थपूर्ण बनाते हैं। घड़ा में पानी लिया हुआ व्यक्ति शिष्यों को उस स्थान में ले चलता है जहाँ येसु यूखारिस्त की स्थापना करेंगे। ईश्वर के लिए हमारी प्यास हमें उनकी वेदी तक लेकर आती है। जहाँ उस प्यास की कमी होती वहाँ यूखारिस्त का अनुष्ठान सूखा और निर्जीव होता है। कलीसिया के रुप एक छोटे समुदाय में यूखारिस्तीय बलिदान का अनुष्ठान अपने में प्रार्य़ाप्त नहीं है, हमें बाहर शहर में जाने की जरुरत है जहाँ हम लोगों से मिलते और उनके बीच ईश्वर की प्यास और सुसमाचार की चाह को पाते हैं।

अंतिम व्यारी का स्थल

सुसमाचार में दूसरा प्रतिरुप अंतिम व्यारी की कोटरी है। यह वह स्थल है जहाँ येसु अपने शिष्यों के संग पास्का का भोज करेंगे। यह वह स्थल था जिसे किसी अज्ञात व्यक्ति ने उन्हें अतिथियों के रुप में स्वागत करते हुए उन्हें प्रदान किया था। पुरोहित प्रीमो माज्जोलारी ने उस व्यक्ति के बारे में कहा, “वह अज्ञात व्यक्ति था, एक गृहस्वामी जिसने येसु के लिए अपने सबसे उत्तम कमरे को दिया... उसने येसु को सर्वोतम दिया क्योंकि महान संस्कार के चारो ओर महान चीजें घिरी हैं, एक बृहृद कमरा, एक महान हृदय, बड़ी आज्ञाएं और बड़े कार्य” (ला पास्का)।

ईश्वर के लिए हृदय बड़ा करें

एक छोड़ी-सी रोटी हेतु एक बड़ा-सा कमरा। ईश्वर अपने को छोटा बनाते हैं। इस तथ्य को पहचनाने, उनका आदर करने और उन्हें स्वीकारने हेतु एक बड़े हृदय की जरुरत है। ईश्वर की उपस्थिति अपने में दीन-हीन, गुप्त और बहुधा अदृश्य है उसे पहचाने के लिए हमें एक हृदय की जरुरत है जो अपने में सदा तैयार, सजग और स्वागत करता हो। हम हृदय एक बड़ा कमरा होने के बदले अपने में छोटा है जहां मुठठी भर चीजें समाती हैं .... तो हम ईश्वर की शांतिमय उपस्थिति को कभी नहीं पहचान सकेंगे। हमें अपने हृदय के कमरे को बड़ा करने की जरुरत है। हमें अपने छोटे बंद कमरे को तोड़कर बड़े कमरे में प्रवेश करने की जरूरत है, हमें अपने आश्चर्य और आराधना को बड़ा करने की आवश्यकता है। यूखारिस्त की उपस्थिति में हमारे मनोभाव आराधना के होने हैं। कलीसिया को भी एक बड़ा स्थल होने की जरुरत है। एक बंद चारदीवारी नहीं बल्कि एक समुदाय जो अपनी बाहों को पूरी तरह खुली रखती हो, जहाँ सभों का स्वागत होता हो। हम अपने में यह सवाल पूछें, “जब कोई व्यक्ति जिसने हमें चोट पहुँचाया है, जिसने हमारे विरूद्ध गलती की है, जो अपने जीवन से भटक गया है हमारे पास आता तो क्या हम कलीसिया में उस व्यक्ति का स्वागत करते और उसे ख्रीस्त से मिलन हेतु आगे ले चलते हैंॽ हम इस बात को न भूलें कि यूखारिस्त का अर्थ राह में उन लोगों का पोषण करना है जो अपने में थके-मांदे और भूखे हैं। कलीसिया अपने में एक शुद्ध और सर्वोतम कमरा होती तो वहाँ किसी को जगह नहीं मिलता है। वहीं दूसरी ओर एक कलीसिया अपने खुले द्वार के कारण लोगों को जमा करती और येसु ख्रीस्त में आनंद मनाती है, यह अपने में एक बड़ा स्थल है जहाँ हर कोई प्रवेश कर सकता है।

येसु का रोटी तोड़ना

येसु का रोटी तोड़ना सुसमाचार में अंतिम प्रतीक है। यह अपने में यूखारिस्त की निशानी है। यह हमारे विश्वास की एक निश्चित निशानी है जहाँ हम येसु से मुलाकात करते हैं जो हमें अपने को देते जिससे हम नया जीवन प्राप्त कर सकें। यह निशानी हमें चुनौती भी देती है। ईश्वर का मेमना अपने को बलि अर्पित करता है। येसु ख्रीस्त वे मेमने हैं जो हमें जीवन प्रदान करने हेतु अपने को बलि अर्पित करते हैं। यूखारिस्त में हम ईश्वर के प्रेम पर चिंतन करते और उनकी पूजा करते हैं। ईश्वर किसी को नहीं तोड़ते बल्कि स्वयं अपने को तोड़ने देते हैं। वे हमसे बलिदान की मांग नहीं करते परन्तु स्वयं अपने को बलि अर्पित करते हैं। ईश्वर हमसे किसी चीज की मांग नहीं करते वरन वे हमें सब कुछ देते हैं। यूखरिस्तीय बलिदान का अनुष्ठान करते हुए हम भी उसी प्रेम को साझा करने हेतु बुलाये जाते हैं, क्योंकि हम रविवार को रोटी नहीं तोड़ सकते यदि हमारा हृदय हमारे भाई-बहनों के लिए बंद है। हम भूखों के संग रोटी नहीं बांटते तो हम इसमें सहभागी नहीं हो सकते हैं। हम अपनी रोटी नहीं बांट सकते जबतक हम जरूरत में प़ड़े अपने भाई-बहनों की तकलीफों में सहभागी नहीं होते हैं। यूखारिस्तीय समारोह का अंत इस रुप में होता है जहाँ हम इस बात को पाते हैं कि केवल प्रेम ही रह जायेगा। अभी भी हमारा यह यूखारिस्तीय समारोह दुनिया को परिवर्तित कर रहा है जब हम अपने को दूसरों के लिए तोड़ते हुए अपने में परिवर्तन लाते हैं।

प्यास जागृत करने वाली कलीसिया

संत पापा ने कहा कि हम प्रभु भोज की तैयारी हेतु कहाँ जायेंॽ पवित्र संस्कार की शोभायात्रा येसु ख्रीस्त के शरीर और रक्त के महोत्वस एक विशेष भाग है जो हमें इस बात की याद दिलाती है कि हमें बाहर जाते हुए दूसरों के लिए येसु को ले जाना है। हमें उत्साह के साथ येसु को लेकर उनके पास जाने की जरुरत है जिनसे हम अपने दैनिक जीवन में मिलते हैं। हम अपने हाथों में घड़ा लिये वह कलीसिया बनने की जरुरत है जो प्यास जागृत करती और पानी देती है। हम प्रेम में अपने हृदयों को विस्तृत करें जिससे हम एक बृहृद कमरा बन सकें जो दूसरों का स्वागत करती, जहाँ सभी प्रवेश करते और ईश्वर से भेंट करते हैं। हम अपने जीवन की रोटी को करूणा और एकता में तोड़ें जिससे हमारे द्वारा दुनिया ईश्वर के वैभव प्रेम का दीदार करे। तब येसु हमारे बीच आकर हमें पुनः आश्चकित करेंगे, वे पुनः दुनिया के लिए जीवन की रोटी बनेंगे। वे हमें सदैव तृप्त करेंगे उस दिन तक जब हम स्वर्गीय भोज में उनके मुखमंडल के दर्शन करते हुए उस खुशी का एहसास न करें जो कभी खत्म नहीं होती है।

 

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07 June 2021, 11:08