संत पापाः येसु हमारे लिए प्रार्थना करते हैं
दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, बुधवार, 02 जून 2021 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन के संत दमासुस प्रांगण में उपस्थित सभों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।
सुसमाचार में हम पाते हैं कि प्रार्थना कैसे येसु और शिष्यों के बीच संबंधों की एक आधारभूत कड़ी है। यह हमारे लिए इस बात में झलकती है कि कैसे उन्होंने अपने शिष्यों का चुनाव किया। संत लुकस इस संदर्भ में प्रार्थना की विशेषता को प्रस्तुत करते हैं, “उन दिनों ईसा प्रार्थना करने एक पहाड़ी पर चढ़े और वे रात भर ईश्वर की प्रार्थना में लीन रहे। दिन होने पर उन्होंने अपने शिष्यों को पास बुलाया और उनमें से बारह को चुनकर उनका नाम “प्रेरित” रखा (6.12-13)। येसु सारी रात प्रार्थना करने के बाद उन्हें चुनते हैं। प्रार्थना में अपने पिता से वार्ता करने के सिवाय हम यहां और कुछ दूसरा विकल्प को नहीं देखते हैं। यह चुनाव अपने में सर्वोतम नहीं लगता है क्योंकि उनके दुःखभोग की घड़ी सभी शिष्य उन्हें छोड़कर भाग गये, और खास कर यूदस का चुनाव जो भविष्य में विश्वासघात करेगा, यह हमें यही दिखलाता है कि वे नाम ईश्वर की योजना में अंकित थे।
ईश्वर का धैर्य
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि अपने शिष्यों के लिए प्रार्थना को हम सदैव येसु के जीवन में पाते हैं। प्रेरितों का जीवन उन्हें कभी-कभी चिंतित करता है लेकिन येसु, उनकी गलती करने पर और उनके भटक जाने पर भी उन्हें अपने हृदय के करीब रखते हैं। इन सारी चीजों में हम यह अनुभव करते हैं कि कैसे येसु शिक्षक और मित्र की भांति पेश आते हैं, जो धैर्य में सदैव अपने शिष्यों के परिवर्तन की चाह रखते हैं। इस धैर्य की चरम को हम पेत्रुस के लिए येसु ख्रीस्त के प्रेम में पाते हैं। अंतिम व्यारी के भोज में येसु पेत्रुस से कहते हैं,“सिमोन, सिमोन, शौतान को, तुम लोगों को गेहूँ की तरह फटकने की अनुमति मिली है। परन्तु मैंने तुम्हारे लिए प्रार्थना की है, जिससे तुम्हारा विश्वास नष्ट न हो। जब तुम फिर सही रास्ते पर आ जाओगे, तो अपने भाइयों को भी संभालोगे” (22.31-32)। इस बात का अनुभव कि कमजोरी के उस क्षण में येसु का प्रेम अपने शिष्यों के लिए कम नहीं होता बल्कि वह और भी गहरा हो जाता है। संत पापा ने हमारे पापों के क्षणों की स्थिति को व्यक्त करते हुए कहा कि जब हम आत्मामारू पाप की स्थिति में रहते तो क्या येसु हमें प्रेम करते हैं, हाँ, उस परिस्थिति में भी वे हमारे लिए निरंतर प्रार्थना करते हैं। यदि मैंने अपने जीवन में सबसे कुरूप चीजों और पापों को किया है तो क्या ईश्वर हमें प्रेम करते हैं। हां, उनका प्रेम हमारे लिए खत्म नहीं होता है बल्कि वे हमारे लिए और भी गरहाई से प्रार्थना करते, हम उनकी प्रार्थना के केन्द्र-बिन्दु होते हैं। हमें इस बात को सदैव याद करने की जरुरत है येसु मेरे लिए प्रार्थना करते हैं, वे अभी भी हमारे लिए प्रार्थना कर रहें हैं और अपने घावों को पिता को दिखलाते हैं जो उन्हें हमारी मुक्ति में मिली है। येसु सदैव हमारे लिए प्रार्थना करते हैं।
तुम क्या करते हो, मैं कौन हूँ?
येसु की प्रार्थना ठीक एक गंम्भीर परिस्थिति में लौट कर आती है जो शिष्यों के विश्वास को सत्यापित करती है। हम सुसमाचार रचियता संत लूकस की बातों को सुने, “ईसा किसी दिन एकांत में प्रार्थना कर रहे थे। ईसा ने उनसे पूछा,“मैं कौन हूँ, इस विषय में लोग क्या कहते हैं? उन्होंने उत्तर दिया,“योहन बपतिस्ता, कुछ लोग कहते हैं एलियस और कुछ लोग कहते हैं प्राचीन नबियों में से कोई पुनर्जीवित हो गया है? और ईसा उनसे कहते हैं,“और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?” और पेत्रुस ने सभों की ओर उत्तर दिया, “ईश्वर के मसीह”। उन्होंने अपने शिष्यों को कड़ी चेतावनी दी कि वे यह बात किसी को भी नहीं बतायें” (9.18-21)। येसु की प्रेरिताई की चरमसीमा गहरी, लम्बी प्रार्थना में सदैव आगे बढ़ती है। विश्वास की परीक्षा हमारे लिए एक लक्ष्य लगती है लेकिन यह शिष्यों के लिए एक नवीन शुरूआत का क्षण होता है क्योंकि उस परिस्थिति से हम येसु ख्रीस्त की प्रेरिताई में एक बदलाव को देखते हैं, वे खुले रुप में शिष्यों से अपने दुःखभोग, मृत्यु और पुनरूत्थान की चर्चा करते हैं।
इस संदर्भ में हम प्रार्थना को हमारे लिए ज्योति और शक्ति के स्रोत स्वरुप पाते हैं। हमारे लिए यह जरुरी है कि हम अपने जीवन के तीक्ष्ण मोड़ पर और अधिक निष्ठा और जोश-रखोश से प्रार्थना करें।
प्रार्थना की शक्ति अपूर्व
और वास्तव में, अपने शिष्यों को यह बतलाने के बाद की येरुसलेम में उनके साथ क्या होगा हम येसु के रुपांतरण की घटना को पाते हैं। येसु अपने साथ पेत्रुस, योहन और याकूब को लेकर प्रार्थना करने हेतु पहाड़ की चोटी पर जाते हैं। और जैसे वे प्रार्थना कर रहे होते हैं उनके रुप में परिवर्तन हो जाता और उनके वस्त्र चमकीले हो जाते हैं। दो पुरूष, मूसा और एलियस उनके साथ बातें करते हुए दिखाई देते हैं, वे उनका येरुसलेम जाने और वहाँ पूरी होने वाली घटनाओं के बारे में कहते हैं (9: 28-31)। येसु की माहिमामय घटनाओं की यह प्रत्याशित अभिव्यक्ति को हम उनके प्रार्थना में पाते हैं, जहाँ पुत्र अपने को पिता के संग पूर्ण एकता में बने रहते हैं, वे पिता की प्रेममय इच्छा के अनुरूप मानव मुक्ति हेतु अपने को समर्पित करते हैं। उस प्रार्थनामय स्थिति में तीनों चेलों के लिए एक स्पष्ट वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी, “यह मेरा प्रिय पुत्र है जिसे मैंने चुना है, उसकी सुनो” (लूका. 9.35)।
येसु की प्रार्थना पर भरोसा करें
सुसमाचार के द्वारा इस त्वरित यात्रा से हम जानते हैं कि येसु केवल यह नहीं चाहते कि हम उनके समान प्रार्थना करें बल्कि आश्वासन देते हैं कि यद्यपि हमारी प्रार्थना बिल्कुल अनसुनी लगे तो हम सदैव उनकी प्रार्थना पर भरोसा रखें। हमें सचेत रहें, येसु मेरे लिए प्रार्थना करते हैं।
संत पापा ने कहा, "एक बार एक अच्छे धर्माध्यक्ष ने मुझे बतलाया कि उन्होंने अपने जीवन के सबसे खराब समय और एक परीक्षा की घड़ी में, अंधकार के क्षण में, महागिरजाघर को देखा और इस वाक्य को पढ़ा, "मैं पेत्रुस तुम्हारे लिए प्रार्थना करूँगा।" इससे उन्हें बल और दिलासा मिला। यह हम सब के साथ होता है हम जानते हैं कि येसु हमारे लिए प्रार्थना करते हैं। संत पापा ने कहा कि जब कभी कोई कठिनाई हो, जब आप परेशान हों, तो वैसे समय में येसु हमारे लिए प्रार्थना करते हैं। हमारे मन में सवाल उठ सकता है, क्या यह सच है? संत पापा ने कहा कि यह सच है क्योंकि उन्होंने स्वयं ऐसा कहा है। हम इसे न भूलें, हमारे जीवन को मजबूत करने वाला है, येसु की प्रार्थना। वे हमारे नाम और गोत्र के साथ पिता के सामने, अपने घावों को दिखाते हुए अर्जी करते हैं जो हमारी मुक्ति की कीमत है।
हम हकलाकर ही प्रार्थना क्यों न करें, उसे डगमगाते विश्वास के साथ ही क्यों न करें, हमें उनपर भरोसा कभी नहीं छोड़ना चाहिए, "मैं नहीं जानता कि किस तरह प्रार्थना करना है किन्तु वे मेरे लिए प्रार्थना करते हैं। येसु की प्रार्थना से बल पाकर हमारी कमजोर प्रार्थना उक़ाब के पंखों पर स्वर्ग की ओर उठती है। हम इसे न भूलें ˸ येसु मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं – क्या अभी भी? – अभी भी। परीक्षा की घड़ी में, पाप के क्षणों में भी येसु बड़े प्यार से मेरे लिए प्रार्थना करते हैं।
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