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संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में 

संत पापाः नम्रता में की गई प्रार्थना ईश्वर को ग्रह्या

संत पापा फ्रांसिस ने अपने आमदर्शन समारोह के अवसर पर प्रार्थना नहीं सुने जाने पर चिंतन करते हुए नम्रता में प्रार्थना करने का आग्रह किया।

दिलीप संजय एक्का-विटाकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 26 मई 2021 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन के संत दमासुस प्रांगण में उपस्थित सभों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

हमारी प्रार्थना में एक मौलिक अड़चन है जिसे हम अपने अवलोकन में पाते हैं। हम सभी प्रार्थना विनय करते, हैं लेकिन हमारी प्रार्थना कभी-कभी नहीं सुनी जाती है, हमने अपने लिए, दूसरों के लिए जो मांगा है वह पूरी नहीं होती है। हमने इसका अनुभव कई बार किया है। यदि हमारी प्रार्थना किसी नेक बातों के लिए होती जैसे कि किसी बीमार व्यक्ति की चंगाई या युद्ध विराम हेतु और वह नहीं सुनी जाती तो हमें धक्का लगता है। उदाहरण के लिए, हम युद्धों की समाप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं, दुनिया के कई हिस्सों में युद्ध हैं हम यमन, सीरिया के बारे में सोचते हैं, जो वर्षों से युद्धग्रस्त हैं, हम प्रार्थना करते हैं लेकिन वे समाप्त नहीं होते हैं। यह कैसे हो सकता है? ऐसी स्थिति में कुछ लोग प्रार्थना करना भी छोड़े देते हैं क्योंकि वे सोचते हैं कि उनकी प्रार्थना नहीं सुन गई है (सीसीसी2734)। यदि ईश्वर पिता हैं तो वे क्यों हमारी प्रार्थना को नहीं सुनते हैं? वे जो अपने बच्चों को मांगने पर अच्छी चीजें देने का वचन देते हैं, हमारी मांगों को पूरा क्यों नहीं करते हैं? हम सभों ने इसका अनुभव किया है, हमने अपने मित्र, माता-पिता की बीमारी से चंगाई हेतु प्रार्थना की और फिर भी वे मर गये। ईश्वर ने हमारी नहीं सुनी! यह हम सभों का अनुभव रहा है।

प्रार्थना, ईश्वर को नहीं स्वयं को बदलना है

कलीसिया की धर्मशिक्षा इस संदर्भ में हमें एक अच्छा संक्षेपण प्रस्तुत करती है। यह हमें अपने सच्चे विश्वास का परित्याग करने हेतु नहीं अपितु उसे एक चमत्कारिक संबंध में परिणत करने को प्रेरित करती है। प्रार्थना कोई जादूई छड़ी नहीं है, यह प्रभु के साथ एक वार्ता है। वास्तव में, जब हम प्रार्थना करने हैं तो हम आशा भरे जोखिम में पड़ जाते हैं हमें उनकी सेवा करने की आवश्यकता है न वे हमारी सेवा करें (2735)। ऐसा नहीं होता तो प्रार्थना सदैव मांग भरी होती है जो सारी चीजों को हमारी इच्छा अनुसार संचालित करना चाहती है जहाँ हम अपनी योजना के अलावे दूसरी बातों को स्वीकार नहीं करते हैं। येसु वहीं दूसरी ओर “हे पिता की प्रार्थना” में हमें एक बड़ी शिक्षा देते हैं। यह प्रश्नों की प्रार्थना है जिसे हम ईश्वरीय मनोभावों में उद्घोषित करते हैं। उनमें हम हमारी योजना की पूर्ति नहीं लेकिन दुनिया में ईश्वरीय योजना पूरा होने की चाह रखते हैं। हम सारी चीजों को उनके ऊपर छोड़े देते हैं,“तेरा नाम पवित्र किया जावे, तेरा राज्य आवे, तेरी इच्छा पूरी होवे” (मत्ती. 6.9-10)।

नम्रता के भाव में प्रार्थना करें

संत पापा ने कहा कि संत पौलुस हमें इस बात की याद दिलाते हैं कि हम यह नहीं जानते कि किन चीजों की मांग हमारे लिए उचित है (रोमि.8.26)। हम अपनी इच्छाओं, जरुरतों और केवल अपनी आवश्यकताओं की मांग करते हैं। लेकिन यह उचित है? संत पौलुस हमें कहते हैं कि हम नहीं जानते कि हमारे लिए क्या उचित है। जब हम प्रार्थना करते हैं तो हमें नम्र होने की जरुरत है क्योंकि यह प्रार्थना का प्रथम मनोभाव है। हमें प्रार्थना के पहले यह पूछने की जरुरत है कि हमारे मनोभव क्या हैं। जब हम प्रार्थना करें तो नम्रता के भाव में प्रार्थना करें जिससे हमारे शब्द सही में प्रार्थना बने न कि व्यर्थ की बात जिसे ईश्वर अस्वीकार करते हैं। एक बैनर में यह लिखना सहज है कि “ईश्वर हमारे साथ हैं” बहुत से हैं जो इस बात का ख्याल करते हैं कि ईश्वर उनके साथ हैं, लेकिन कुछ हैं जो इस बात का ध्यान नहीं देते कि क्या वे ईश्वर के साथ हैं। प्रार्थना में ईश्वर हमें बदलते हैं न कि हम ईश्वर के विचारों को बदलते। मैं प्रार्थना करने जाता हूँ लेकिन तू, हे प्रभु मेरे हृदय को परिवर्तित कर जिससे मैं जो उचित है उसकी कामना कर सकूं, मेरी आध्यात्मिकता हेतु क्या उत्तम है मझे वही प्रदान कर, यही हमारे लिए नम्रता है।

धर्मग्रंथ पर चिंतन, प्रार्थना में देरी का उत्तर

संत पापा ने कहा यद्यपि प्रार्थना में ठोकर बना रहता है क्योंकि लोग निष्ठावान हृदय से प्रार्थना करते हैं, वे ईश्वरीय राज्य को ध्यान में रखकर चीजों की मांग करते, एक माता अपने बीमार बच्चे के लिए प्रार्थना करती है, फिर भी, क्यों ऐसा लगता है कि ईश्वर हमारी प्रार्थना नहीं सुनते हैं। इस सवाल का उत्तर पाने हेतु हमें शांतिमय तरीके से धर्मग्रंथ के वचनों पर चिंतन करने की जरुरत है। हम येसु के प्रार्थनामय जीवन का वृंतात पाते हैं, बहुत से लोग जो शारीरिक और आध्यात्मिक रुप में बीमार थे चंगाई हेतु प्रार्थना की। बहुत से हैं जो अपने एक मित्र जो चल नहीं सकता उसके लिए प्रार्थना करते हैं, माता-पिता अपने बीमार संतानों की चंगाई हेतु निवेदन करते हैं। ये सभी प्रार्थनाएँ दुःखों से भरे हैं। इनमें हम करूणा की पुकार, “प्रभु हम पर दया कर” को पाते हैं।

प्रार्थना में साहसिक बने रहें

संत पापा ने कहा कि कभी-कभी हम येसु को तुरंत उत्तर देता पाते हैं वहीं कुछ परिस्थितियों में वे देर करते हैं। ऐसा लगता है कि ईश्वर जवाब नहीं देते हैं। हम उस कनानी नारी के बारे में सोचें जो अपनी बेटी के लिए विनय की भीख मांगती है (मत्ती.15.21-28)। उसने अपनी प्रार्थना को निरंतर जारी रखा। उसे येसु की खरी-खोटी सुननी पड़ी। बच्चों की रोटी को पिल्लों के लिए फेंकना उचित नहीं है। लेकिन उस नारी को इन शब्दों से कोई फर्क नहीं पड़ा उसे केवल अपनी बेटी के स्वास्थ्य की चिंता थी। वह दृढ़ बनी रहती और कहती है, “हां, पिल्ले भी मेज से गिरी चीजों को खाते हैं...यह येसु को पंसद आया। हम अपनी प्रार्थना में साहसिक बने रहें। संत पापा ने कहा कि हम उस कोढ़ग्रस्त व्यक्ति के बारे में सोच सकते हैं जो अपने चार मित्रों के द्वारा येसु के पास लाया गया। येसु पहले उसके पापों को क्षमा करते और उसे शारीरिक चंगाई प्रदान करते हैं (मर.2.1-12)। कभी-कभी मुसीबतों का सामधान एकदम तुरंत नहीं होता है। हमारे जीवन में भी हम प्रत्येक इस बात को अनुभव करते हैं। कितनी बार हमने एक कृपा, एक चंगाई की मांग की और कुछ नहीं हुआ। लेकिन समय के अनुसार हमारी योजना के मुताबिक नहीं अपितु ईश्वरीय योजना में चीजें ठीक हो जाती हैं। ईश्वर का समय हमारा समय नहीं है।

प्रार्थना की मजबूत विश्वास में

इस संदर्भ में जैरुस की बेटी की चंगाई हमारा विशेष ध्यान आकर्षित कराती है (मर,5. 21-33) एक पिता की बेटी मृत्युशाय्या में पड़ी है और वह येसु से सहायता की मांग करता है। स्वामी तुरंत स्वीकार करते हैं लेकिन राह में एक दूसरी चंगाई होती है और तब यह खबर आती है, वह लड़की मर गई है। ऐसा प्रतीत होता है मानो सारी चीजें खत्म हो गई हों परंतु येसु उस पिता से कहते हैं,“डरिये नहीं, केवल विश्वास कीजिए” (मर.5.36) “विश्वास करना जारी रखिए”, क्योंकि यह विश्वास है जो प्रार्थना को मजबूत बनाये रखता है। वास्तव में, येसु मरी हुई बच्ची को जीवन प्रदान करते हैं लेकिन एक समय ऐसा था जब जैरुस को अंधकार में सिर्फ विश्वास के लौ से चलना था। संत पापा ने कहा, “प्रभु मुझे विश्वास दीजिए। मेरे विश्वास को बढ़ाईये”। हम इस कृपा हेतु निवेदन करें। येसु सुसमाचार में कहते हैं कि विश्वास पर्वत को हटा सकता है। हमें इसे गम्भीरता से लेने की जरुरत है। येसु दीन-हीनों, गरीबों के विश्वास के कारण उनके लिए कोमलता का एहसास करते और उनकी सुनते हैं।

बुराई परीक्षा की घड़ी 

संत पापा ने कहा कि स्वयं येसु की प्रार्थना जिसे वे गेतसेमानी बारी में अपने पिता के पास की, अनसुनी दिखाई पड़ती है। “पिता, यदि हो सके तो यह प्याला मुझसे टल जाये।” ऐसा लगता है मानो पिता उनकी बातों को नहीं सुनते हैं। बेटे को दुःख का प्याला पूरी तरह पीना पड़ा। लेकिन शनिवार अध्याय की समाप्ति नहीं रही क्योंकि तीसरे दिन, रविवार को वे मृतको में से जी उठे। हम इस बात की याद करें कि बुराई अंतिम दिन का स्वामी नहीं है जहाँ भोर के पहले हम रात्रि का अनुभव करते हैं। उस अंतिम दिन में शत्रु हमारी परीक्षा लेता और हमें इस बात का एहसास दिलाता है कि उनकी विजय हुई है। बुराई अंतिम दिन का स्वामी नहीं है बल्कि अंतिम दिन का स्वामी ईश्वर है क्योंकि वह ईश्वर का है, उस दिन मानव पुनरूत्थान की प्रतीक्षा करते हैं और उनकी चाह पूरी होगी। हम मानवीय धैर्य में ईश्वर की उस कृपा, अंतिम दिन का इंतजार करते हैं। बहुत बार अंतिम समय बुरा होता है क्योंकि मानव का दुःख खराब है। लेकिन ईश्वर वहाँ हैं और अंतिम दिन में वे सारी चीजों का समाधान करेंगे।

 

 

 

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26 May 2021, 15:33

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