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स्वर्ग की रानी प्रार्थना का पाठ करते संत पापा फ्रांसिस स्वर्ग की रानी प्रार्थना का पाठ करते संत पापा फ्रांसिस 

स्वर्ग की रानी : सच्चा ख्रीस्तीय जीवन ख्रीस्त का साक्ष्य प्रस्तुत करता है

संत पापा फ्रांसिस ने पास्का के पाँचवें रविवार को विश्वासियों के साथ स्वर्ग की रानी प्रार्थना का पाठ किया जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि ख्रीस्त का साक्ष्य देने के लिए हमें किस तरह उनके साथ संयुक्त होने की आवश्यकता है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, रविवार, 2 मई 2021 (रेई)- वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 2 मई को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ स्वर्ग की रानी प्रार्थना का पाठ किया जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, अति प्यारे भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

पास्का के इस 5वें रविवार के सुसमाचार पाठ (यो.15,1-8) में प्रभु अपने आपको एक सच्ची दाखलता के रूप में प्रस्तुत करते हैं और हमें डालियाँ कहते हैं जो उनसे संयुक्त रहे बिना जीवित नहीं रह सकते। और कहते हैं, “मैं एक दाखलता हूँ और तुम डालियाँ हो।” (5) कोई भी दाखलता डाली के बिना नहीं होती और उसी तरह दाखलता भी बिना डाली के नहीं होती है। सिर्फ डालियाँ अपने आप में आत्मनिर्भर नहीं हो सकतीं, बल्कि वे पूरी तरह दाखलता पर निर्भर करती हैं जो उनके अस्तित्व के स्रोत हैं।

आदान-प्रदान पूर्ण आवश्यकता

येसु “संयुक्त रहने” की क्रिया पर जोर देते हैं। आज के सुसमाचार पाठ में वे इसे सात बार दुहराते हैं।” इस दुनिया को छड़ने एवं पिता के पास जाने से पहले येसु अपने शिष्यों को इस बात को अच्छी तरह बतलाना चाहते हैं कि वे उनके साथ संयुक्त रह सकते हैं। वे कहते हैं, “तुम मुझमें रहो और मैं तुम में रहूँगा।(4) ये “रहना” उनके साथ चुपचाप रहना, प्रभु में सो जाना अथवा जीवन में सुस्त बने रहना नहीं है।” संत पापा ने कहा कि ऐसा नहीं है। येसु के साथ रहने का प्रस्ताव वे एक सक्रिय संयुक्ति के रूप में एवं आपसी आदान-प्रदान के रूप में रखते हैं। क्यों?  क्योंकि दाखलता के बिना डालियाँ कुछ नहीं कर सकती हैं, जबकि दाखलता के लिए भी डालियों की जरूरत है क्योंकि धड़ में फल नहीं लग सकता। यह एक आपसी आदान-प्रदान पूर्ण आवश्यकता है यह एक-दूसरे के साथ लेन-देन करना है ताकि फल लाया जा सके। हम येसु में रहते हैं और येसु हममें रहते हैं।

सबसे पहले हमें उनकी जरूरत है। प्रभु कहना चाहते हैं कि उनकी आज्ञापालन करने से पहले, धन्यताओं से पहले, करुणा के कार्यों को करने से पहले, उनके साथ रहना जरूरी है, उनसे संयुक्त होना है। हम तब तक अच्छे ख्रीस्तीय नहीं हो सकते जब तक कि उनके साथ संयुक्त न रहें। और वास्तव में, उनके साथ संयुक्त रहकर ही हम सब कुछ कर सकते हैं।(फिल. 4,13) उनके साथ हम सब कुछ कर सकते हैं।

एक दुस्साहसी अवधारणा?

येसु को भी, दाखलता के लिए डालियों के समान हमारी आवश्यकता है। भले ही यह दुस्साहस के समान लगे, इसलिए हम अपने आप से पूछें : किस अर्थ में येसु को हमारी जरूरत है? संत पापा ने कहा कि उन्हें हमारे साक्ष्य की जरूरत है। डाली के समान हमें भी फल के रूप में अपने ख्रीस्तीय जीवन से साक्ष्य देना है। येसु के पिता के पास चले जाने के बाद भी शिष्यों ने दुनिया में स्वर्ग राज्य के सुसमाचार की घोषणा की एवं उनके वचनों और कार्यों को जारी रखा। यही हमारा काम है- सुसमाचार की घोषणा वचनों और कार्यों से करना। उनके शिष्यों, हम येसु के शिष्यों को उनके प्रेम का साक्ष्य देना है : जो फल हमें लाना है वह है प्रेम। ख्रीस्त के साथ संयुक्त रहकर हम पवित्र आत्मा के वरदानों को प्राप्त करते हैं, इस तरह हम पड़ोसियों, समाज एवं कलीसिया की भलाई कर सकते हैं। फल से पेड़ की पहचान होती है। एक सच्चा ख्रीस्तीय जीवन ख्रीस्त का साक्ष्य देता है।  

फलदायक होना हमारी प्रार्थना पर निर्भर करता है

संत पापा ने कहा, "हम कैसे ऐसा कर सकते हैं?" येसु कहते हैं : "यदि तुम मुझमें रहो और तुम में मेरी शिक्षा बनी रहती है तो चाहे जो मांगो, वह तुम्हें दिया जाएगा।” (7) यह भी साहस का काम है : हम जो मांगेंगे, वह हमें दिया जाएगा। हमारे जीवन का फलदायक होना प्रार्थना पर निर्भर करता है। हम उनसे, उनके समान सोचने, कार्य करने, दुनिया को देखने और दुनिया की चीजों को येसु की नजर से देख पाने की कृपा मांगे। इस तरह अपने भाई-बहनों को प्यार करते हुए एवं सबसे गरीब लोगों एवं सबसे अधिक पीड़ित लोगों पर ध्यान देते हुए जैसा कि उन्होंने कहा है, उनके हृदय से प्यार करने के द्वारा, हम दुनिया में अच्छाई के फल, उदारता के फल एवं शांति के फल ला सकते हैं।   

आइये, हम अपने आपको धन्य कुँवारी मरियम की मध्यस्थता को सौंप दें। वे येसु के साथ पूर्ण रूप से संयुक्त रहे और बहुत अधिक फल लाया। वे हमें भी ख्रीस्त के साथ उनके प्रेम, उनके वचन में संयुक्त रहने में मदद दे ताकि हम दुनिया में पुनर्जीवित प्रभु का साक्ष्य दे सकें।  

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ स्वर्ग की रानी प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

स्वर्ग की रानी प्रार्थना के पूर्व संत पापा का संदेश

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02 May 2021, 13:03

स्वर्ग की रानी क्या है?

स्वर्ग की रानी गीत (अथवा स्वर्ग की रानी) मरियम के चार गीतों में से एक है (अन्य तीन गीत हैं- अल्मा रेदेनतोरिस मातेर, आवे रेजिना चेलोरूम, प्रणाम हे रानी)।

संत पापा बेनेडिक्ट 15वें ने सन् 1742 में, पास्का काल अर्थात् पास्का रविवार से लेकर पेंतेकोस्त तक, देवदूत प्रार्थना के स्थान पर इसे खड़े होकर गाने का निर्देश दिया था जो मृत्यु पर विजय का प्रतीक है।

देवदूत प्रार्थना की तरह इसे भी दिन में तीन बार किया जाता है, प्रातः, मध्याह्न एवं संध्या ताकि पूरे दिन को ख्रीस्त एवं माता मरियम को समर्पित किया जा सके।

एक धार्मिक परम्परा के रूप में यह पुरानी गीत छटवीं से दसवीं शताब्दी की हो सकती है, जबकि इसके प्रसार को 13वीं शताब्दी में दस्तावेज के रूप पाया गया है जब इसे फ्राँसिसकन दैनिक प्रार्थना में शामिल किया था। यह चार छोटे पदों से बना है जिनमें हरेक का अंत अल्लेलूया से होता है। इस प्रार्थना में विश्वासी मरियम को स्वर्ग की रानी सम्बोधित करते हैं कि वे पुनर्जीवित ख्रीस्त के साथ आनन्द मनायें।   

संत पापा फ्राँसिस ने 6 अप्रैल 2015 को ठीक स्वर्ग की रानी प्रार्थना के दौरान पास्का के दूसरे दिन बतलाया था कि इस प्रार्थना को करते समय हमारे हृदय में किस तरह का मनोभाव होना चाहिए।

...हम मरियम की ओर निहारें और उन्हें आनन्द मनाने का निमंत्रण दें क्योंकि वे ही हैं जिन्होंने उन्हें गर्भ में धारण किया था वे अब जी उठे हैं जैसा कि उन्होंने प्रतिज्ञा की थी और हम उनकी मध्यस्थता द्वारा प्रार्थना करें। वास्तव में, हमारा आनन्द माता मरियम के आनन्द का प्रतिबिम्ब है क्योंकि वे ही हैं जिन्होंने विश्वास के साथ येसु की देखभाल की और उनका लालन-पालन किया। अतः आइये, हम भी इस प्रार्थना को बाल-सुलभ मनोभाव से करें जो इसलिए प्रफूल्लित होते हैं क्योंकि उनकी माताएँ आनन्दित होते।"   

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