संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  

ख्रीस्त से मुलाकात करने का अर्थ हृदय में शांति प्राप्त करना

पास्का सोमवार को स्वर्ग की रानी प्रार्थना के पूर्व संत पापा फ्राँसिस ने स्वर्गदूत द्वारा प्रभु के जी उठने की घोषणा पर प्रकाश डाला और गौर किया कि पुनर्जीवित ख्रीस्त को प्राप्त करन के द्वारा हम हृदय की शांति प्राप्त करते हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार 5 अप्रैल 2021 (रेई)- संत पापा फ्राँसिस ने वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास की लाईब्रेरी से पास्का महापर्व के दूसरे दिन सोमवार को स्वर्ग की रानी प्रार्थना का पाठ किया, जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

पास्का के बादवाले सोमवार, जिसको स्वर्गदूत का सोमवार भी कहा जाता है क्योंकि हम स्वर्गदूत का नारियों के साथ मुलाकात की याद करते हैं जो येसु की कब्र के पास आयीं थीं। (मती. 28˸1-15) उनसे स्वर्गदूत कहता है ˸ "मैं जानता हूँ कि आप लोग ईसा को ढूँढ़ रही हैं, जो क्रूस पर चढ़ाये गये थे। वे यहाँ नहीं हैं। वे जी उठे हैं जैसा कि उन्होंने कहा था।"(पद. 5-6) यह अभिव्यक्ति "वे जी उठे हैं" मानवीय समझ के परे हैं। महिलाएँ जो कब्र के पास गयीं और इसे खुला एवं खाली पाया, वे भी नहीं कह सकती थीं कि वे जी उठे हैं, बल्कि सिर्फ कह सकती थीं कि कब्र खाली था। "वे जी उठे हैं एक संदेश है..." जिसको सिर्फ एक स्वर्गदूत, स्वर्ग के उदघोषक के हैसियत से जिसको ईश्वर ने सामर्थ्य प्रदान किया था, कह सका, ठीक उसी तरह जिस तरह उसने मरियम से कहा था ˸ "आप गर्भवती होंगी [...] और वे सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे।" (लूक.1˸31) यही कारण है कि इसे स्वर्गदूत का सोमवार कहा जाता है क्योंकि केवल एक दूत ईश्वर की शक्ति से कह सकता है, येसु जी उठे हैं।

प्रभु का हस्ताक्षेप

सुसमाचार लेखक मती बतलाते हैं कि पास्का के दिन पौ फटते ही, एकाएक भारी भूकम्प हुआ। वास्तव में, प्रभु का एक दूत स्वर्ग से उतरा, कब्र के पास आया और पत्थर लुढकाकर उसपर बैठ गया।"(पद. 2) वह विशाल पत्थर, जो बुराई एवं मौत की मूहर था, पैर के नीचे आ गया। वह अब प्रभु के दूत का आसन बन चुका है। शत्रुओं एवं येसु के अत्याचारियों की सभी योजनाएँ और बचाव बेकार हो चुके हैं। सभी मूहर गिर चुके हैं। दूत के कब्र के पत्थर पर बैठने की छवि, बुराई पर ईश्वर की विजय, दुनिया के राजकुमार पर जीत एवं अंधकार पर प्रकाश की जय का ठोस और दृश्यमान प्रदर्शन है। येसु की कब्र भौतिक कारणों से नहीं खुली थी बल्कि उसमें ईश्वर का हाथ था। मती लिखते हैं कि स्वर्गदूत का "मुखमंडल बिजली की तरह चमक रहा था और उनके वस्त्र हिम की तरह उज्ज्वल थे।" ( 3) इस तरह विस्तार से जानकारी देना एक चिन्ह है जो ईश्वर के हस्तक्षेप की पुष्टि करता है, जो नये युग, इतिहास के अंतिम समय के वाहक हैं क्योंकि येसु के पुनरूत्थान से इतिहास का अंतिम समय शुरू होता है जो हजारों साल चल सकता है किन्तु यह अंतिम समय है।

ईश्वर के हस्तक्षेप की प्रतिक्रयाएँ

ईश्वर के इस हस्तक्षेप के साथ दो प्रतिक्रयाएँ हुईं। पहरेदार जो ईश्वर के सामर्थ्य के सामने टिक नहीं पा रहे थे। वे एक आंतरिक भुकम्प से कांप रहे थे और मृतक जैसे हो गये थे। (पद. 4) पुनरूत्थान की शक्ति ने उन लोगों को उखाड़ दिया था जो मौत के विजय की गारांटी दे रहे थे। उन पहरेदारों को क्या करना चाहिए था? उन्हें उनके पास जाना था जिन्होंने उन्हें पहरे पर लगाया था और सच्चाई बतलानी थी। उनके पास विकल्प था ˸ सच्चाई बतलाना अथवा पहरा का आदेशदेने वालों से राजी होना। वहाँ राजी कराने का एक ही उपाय था रूपया, वे बेचारे गरीब लोगों ने सच्चाई को रूपयों में बेच दिया और कहने चले गये, " नहीं, शिष्य आये थे और वे शरीर को चुरा ले गये।" साहब "रूपये" की शक्ति यहाँ भी दिखाई देती है जो ख्रीस्त के पुनरूत्थान से इंकार करता है। महिलाओं की प्रतिक्रिया अलग थी क्योंकि प्रभु के दूत ने उन से कहा, डरिये नहीं। (5) येसु को कब्र में मत ढूँढ़िये।

देवदूत से शिक्षा

स्वर्गदूत के शब्दों से हम बहुमूल्य शिक्षा ले सकते हैं ˸ हम पुनर्जीवित प्रभु को खोजने से कभी न थकें, जो उन लोगों को प्रचुर मात्रा में जीवन देते हैं जो उनसे मुलाकात करते हैं। ख्रीस्त को पाने का अर्थ है हृदय की शांति प्राप्त करना। सुसमाचार में महिलाएँ, शुरू में परेशान रहने के बाद, स्वामी को जीवित पाकर अत्यधिक खुशी महसूस करती हैं। ( 8-9). संत पापा ने कहा, "इस पास्का काल में, मैं कामना करता हूँ कि सभी लोग वही आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करें, पास्का के सुसमाचार ˸ "ख्रीस्त जी उठे हैं वे फिर नहीं मरेंगे, उनके ऊपर मौत की शक्ति नहीं रह गई है", का स्वागत अपने हृदय, घरों और परिवारों में कर सकें।" पास्का की घोषणा, ख्रीस्त जीवित हैं, ख्रीस्त मेरे जीवन में साथ देते हैं, ख्रीस्त मेरी बगल में हैं, वे मेरे हृदय के द्वार को खटखटाते हैं यदि उन्हें प्रवेश करने दिया जाए तो वे वहाँ निवास करते हैं। यह निश्चितता हमें आज और पूरे पास्का काल में "स्वर्ग की रानी आनन्द कर" प्रार्थना को करने के लिए प्रेरित करता है। गाब्रिएल दूत ने इन्हीं शब्दों "प्रणाम, प्रभु की कृपापात्री" के साथ पहली बार मरियम का अभिवादन किया था। (लूक.1˸28) अब मरियम का आनन्द परिपूर्ण हो चुका है ˸ येसु जीवित हैं, प्रेम की जीत हुई है। संत पापा ने कामना की कि यही आनन्द हमें भी प्राप्त हो।  

पुनर्जीवित प्रभु के आनन्द एवं शांति को प्रकट करें

स्वर्ग की रानी प्रार्थना के उपरांत संत पापा ने विश्वासियों का अभिवादन किया। उन्होंने कहा, "इस पास्का के माहौल में मैं आप सभी का सस्नेह अभिवादन करता हूँ जो इस प्रार्थना के समय में सामाजिक संचार माध्यमों से जुड़े हैं।" संत पापा ने खासकर, बुजूर्ग एवं बीमार लोगों की याद की जो अपने घरों में अथवा नर्सिंग होम में हैं। उन्होंने कहा, "मैं उन्हें प्रोत्साहन देता हूँ और उनके साक्ष्य के लिए कृतज्ञता अर्पित करता हूँ। मैं उनके करीब हूँ।" इसके बाद संत पापा ने सभी विश्वासियों को सलाह दी कि वे पास्का के इस अठवारे को विश्वास के साथ व्यतीत करें जिसमें ख्रीस्त के पुनरुत्थान की स्मृति लम्बी हुई है। पुनर्जीवित प्रभु के आनन्द एवं शांति को प्रकट करने के हर अवसर का लाभ उठायें।

अंत में, संत पापा ने सभी को आनन्दमय, शांतिमय और पवित्र पास्का की शुभकामनाएँ दीं।

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05 April 2021, 16:07

दूत-संवाद की प्रार्थना एक ऐसी प्रार्थना है जिसको शरीरधारण के रहस्य की स्मृति में दिन में तीन बार की जाती है : सुबह 6.00 बजे, मध्याह्न एवं संध्या 6.00 बजे, और इस समय देवदूत प्रार्थना की घंटी बजायी जाती है। दूत-संवाद शब्द "प्रभु के दूत ने मरियम को संदेश दिया" से आता है जिसमें तीन छोटे पाठ होते हैं जो प्रभु येसु के शरीरधारण पर प्रकाश डालते हैं और साथ ही साथ तीन प्रणाम मरियम की विन्ती दुहरायी जाती है।

यह प्रार्थना संत पापा द्वारा रविवारों एवं महापर्वों के अवसरों पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में किया जाता है। देवदूत प्रार्थना के पूर्व संत पापा एक छोटा संदेश प्रस्तुत करते हैं जो उस दिन के पाठ पर आधारित होता है, जिसके बाद वे तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हैं। पास्का से लेकर पेंतेकोस्त तक देवदूत प्रार्थना के स्थान पर "स्वर्ग की रानी" प्रार्थना की जाती है जो येसु ख्रीस्त के पुनरूत्थान की यादगारी में की जाने वाली प्रार्थना है। इसके अंत में "पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा की महिमा हो..." तीन बार की जाती है।

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