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आमदर्शन समारोह में धर्मशिक्षा देते संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में धर्मशिक्षा देते संत पापा फ्रांसिस 

मौखिक प्रार्थना ईश्वर के साथ वार्ता करने का सटीक रास्ता, पोप

संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के दौरान मौखिक प्रार्थना के महत्व पर चिंतन किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 21 अप्रैल 2021 (रेई)- संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन प्रेरितिक निवास की पुस्तकालय से सबों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

प्रार्थना ईश्वर से वार्ता करना है और हर प्राणी, किसी न किसी रूप में ईश्वर से “वार्ता” करता है। मानव में प्रार्थना शब्द, पुकार, गीत और कविता के रुप बनते हैं... दिव्य शब्द ने शरीरधारण किया और हर मानव शरीर में शब्द प्रार्थना के रुप में ईश्वर के पास लौटता है।

शब्दों का महत्व

शब्दों को हम हमारी कृतियों के रुप में पाते हैं जो हमारे लिए माताओं की तरह भी हैं जो कुछ हद तक हमें आकार प्रदान करती हैं। प्रार्थना के शब्द हमें अंधेरी घाटी से सुरक्षित पार होने में मदद करते हैं, हमें जलाशय से भरी हरिलायी भरे मैदानों में ले चलती है, और हमें शत्रुओं की आंखों के सामने भी आनंदमय बनती है, जैसे की स्तोत्र 23 में हम पाते हैं। शब्दों की उत्पत्ति भावनाओं से होती है, साथ ही, इसके विपरीत शब्दों के कारण भावनाएं उत्पन्न होती हैं। धर्मग्रंथ हमें यह शिक्षा देती है कि शब्दों के माध्यम से सारी चीजें प्रकाश में आती हैं, कोई भी चीज मानव से छिपी और गुप्त नहीं रह सकती। इससे भी बढ़कर दर्द को यदि अपने में छिपाकर रखा जाता है तो यह हमारे लिए खतरनाक बन जाता है। एक दर्द जिसे हम अपने भीतर छिपाकर रखते, जो अभिव्यक्त नहीं होता, हमारी आत्मा के लिए जहर के समान होता है। यह घातक है।

यही कारण है धर्मग्रंथ हमें प्रार्थना करने हेतु शिक्षा देती है यहाँ तक कि कभी-कभी साहसिक शब्दों में भी। दिव्य शब्दों के लेखक हमें मानवता के बारे में झूठी चीजों को नहीं बतलाते हैं, वे जानते हैं हमारा हृदय अशोभनीय बातों यहाँ तक की घृणा से भरा है। हममें से किसी का जन्म पवित्र नहीं हुआ है और जब ये सारी बुरी भावनाएं हमारे हृदय के द्वार को खटखटाने लगती हैं तो हमें उनका सामना प्रार्थना और ईशवचन से करने की जरुरत है। हम स्तोत्र में शत्रु और अपने पापों के विरूध बहुत ही कठोर अभिव्यक्ति को पाते हैं जिसे आध्यात्मिक गुरूओं ने हमारे लिए व्यक्त किया है- लेकिन वे शब्द मानव की सच्चाई से जुड़ी हैं जिन्हें हम पवित्र धर्मग्रंथ में अंकित पाते हैं। वे हिंसा की उपस्थिति में हमारे लिए साक्ष्य देते हैं कि बुरी भावनाओं को अहानिकर बनाने हेतु हमारे बीच कोई शब्द नहीं थे, उन्हें किसी रूप में सही दिशा दिया जाये जिससे वे हमें हानि न पहुँचायें, ऐसा नहीं होता तो पूरी दुनिया बुराई से भर जाती।

ईश्वर से प्रार्थना करने का सटीक रास्ता

मानव की पहली प्रार्थना सदैव शब्दों में उच्चरित होती है। हम उसमें होठों को हिलते हुए पाते हैं। यद्यपि हम सभी वाकिफ हैं कि प्रार्थना करना शब्दों को सदैव दुहराना मात्र नहीं है, इसके बावजूद मौखिक प्रार्थना को हम सबसे सटीक मानते हैं जो सदा की जाती है। अनूभूतियाँ, वहीं दूसरी ओर हमारे लिए चाहे कितनी भी नेक क्यों न हों सदा ही अनिश्चित होती हैं, वे हममें आती और जाती हैं। इतना ही नहीं, प्रार्थना में हम कृपाओं को भी अप्रत्याशित पाते हैं, कभी हम सांत्वना का अनुभव करते तो वहीं अंधेरे दिनों में यह हमसे पूरी तरह नदारद प्रतीत होती है। हृदय की प्रार्थना अपने में रहस्यात्मक है और कई बार हम इसकी कमी को पाते हैं। होठों की प्रार्थना जिसे हम फुसफुसाते या समूह में करते हैं हमारे लिए सदैव हाजिर रहती है जो हमारे लिए दैनिक कार्य की भांति आवश्यक है। काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा कहती है, “मौखिक प्रार्थना ख्रीस्तीय जीवन का एक अति महत्वपूर्ण अंग है। स्वामी की शांतिमय प्रार्थना को देख आकर्षित शिष्यों को येसु ने एक मौखिक प्रार्थना, हे पिता हमारे सिखलाया” (2701)। शिष्यों ने येसु से निवेदन किया कि वे उन्हें प्रार्थना करना सिखलायें और उन्होंने उन्हें हे पिता हमारे प्रार्थना करना सिखया।

फुसफुसाकर की गई प्रार्थना

संत पापा ने कहा कि हम सभी को चाहिए कि हम कुछ बुजूर्गों के संबंध में अपने को नम्र बनाये रखें, जो अपने सुनने की कमी के कारण गिरजाघर में धीरे से फुसफुसाते हुए उन प्रार्थनाओं को करते हैं जिन्हें उन्होंने अपने बचपन के दिनों में सीखा है। वह प्रार्थना हमारी शांति भंग नहीं करती है बल्कि यह प्रार्थना के प्रति उनकी निष्ठा का साक्ष्य हमारे लिए प्रस्तुत करता है जिसे उन्होंने अपने में चूके बिना जीवन भर किया है। ये नम्रतापूर्ण प्रार्थना करनेवाले बहुधा पल्लियों के लिए बड़े मध्यस्थगण होते हैं। वे सभी उस बलूत के वृक्ष की भांति होते हैं जिनकी टहनियाँ सालों से विस्तृत होती हैं जो असंख्य लोगों को छाया प्रदान करती हैं। केवल ईश्वर जानते हैं कि कब, कैसे और कितना अधिक उनका हृदय प्रार्थनाओं से संयुक्त रहा है, निश्चय ही, इन लोगों ने भी अपने जीवन में अंधेरे और खालीपन का अनुभव किया है। लेकिन अपनी मौखिक प्रार्थना के प्रति वे सदैव निष्ठावान बने रहे। यह एक लंगर की भांति है जहाँ हम रस्सी से जुड़े हुए विश्वासी बने रहते हैं, चाहे हमें कुछ भी क्यों न होता हो।

हम सभी रूस के तीर्थयात्रियों से धैर्य के बारे में सीख सकते हैं जिसकी चर्चा आध्यात्मिकता के एक बड़े कार्य में जिक्र किया गया है, जिन्होंने बारंबार प्रार्थना के इस रूप को दुहराया, “येसु ख्रीस्त, ईश्वर के पुत्र, प्रभु, हम पापियों पर दया कर” (सीसीसी.2616)। यदि हम ईश्वर की कृपा को अनुभव करना चाहते हैं, यदि प्रार्थना हमारे रोज दिन के जीवन को उदीप्त करता जिसके फलस्वरुप हम यह अनुभव करते कि ईश्वर का राज्य हमारे बीच है, यदि हम कृपा से अपने में परिवर्तन लाने की चाह रखते तो हमें एक छोटे बच्चे की भांति अपने साधारण ख्रीस्तीय पुकार में बने रहने की जरुरत है। अतंतः यह हमारी सांसों का अंग बन जाती है।

मौखिक प्रार्थना की सलाह

संत पापा ने कहा कि अतः हम मौखिक प्रार्थना न छोडें। उन्होंने कहा कि कोई कहता है यह तो  बच्चों की प्रार्थना है, अनपढ़ लोगों के लिए है। मैं तो मानसिक प्रार्थना, चिंतन, ईश्वर के लिए आंतरिक खालीपन खोजता हूँ जिससे वे मेरे जीवन में आ सकें...। आप ऐसे अहम के शिकार होते हुए मौखिक प्रार्थना का तिरस्कार न करें। यह साधारण लोगों की प्रार्थना है जिसे ईश्वर ने अपने शिष्यों को हे पिता हमारे के रुप में सिखाया। हम जिन शब्दों को उच्चरित करते हैं वे हमारे हाथों को पकड़ कर ले चलते हैं कभी-कभी हमारे निरस जीवन में स्वाद लाते, हमारे सोते हृदय को जागृत करते, वे हमारी भूली अनुभूतियों को पुनः याद दिलाते हैं। वे हमारा हाथ पकड़कर ईश्वर को अनुभव करने हेतु ले चलते हैं। इससे भी बढ़कर, यही केवल वह प्रार्थना है जो एक निश्चित रुप में हमारे उन सवालों को ईश्वर के पास ले चलती है जिन्हें वे सुनना चाहते हैं। येसु हमें धुंध में नहीं छोड़ते हैं। वे कहते हैं,“तुम इस तरह प्रार्थना करो”। और वे हमें प्रार्थना करना सिखलाते हैं। (मत्ती.6.9)

आमदर्शन समारोह पर संत पापा की धर्मशिक्षा

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21 April 2021, 14:14

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