इराक के ऊर में प्रेरितिक यात्रा के दौरान संत पापा फ्रांसिस इराक के ऊर में प्रेरितिक यात्रा के दौरान संत पापा फ्रांसिस  संपादकीय

पोप फ्रांसिस और इस्लाम ˸ एक धर्मशिक्षा की तीन आधारशिलाएँ

बाकू, काहिरा और ऊर में दिए गये संत पापा फ्राँसिस के भाषण उन्हें एक ही धागे से जोड़ते हैं जो संकेत देता है कि ईश्वर की पूजा करने के लिए एक सच्ची धार्मिकता, और भाई-बहनों तथा न्याय एवं शांति के प्रति एक ठोस समर्पण की जरूरत है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 11 मार्च 21 (रेई)- यह एक धर्मशिक्षा है जो संदर्भ के तीन मूलभूत बिंदुओं द्वारा दिशानिर्देश देती है ˸ हमारे समाज में धर्म की भूमिका, सच्ची धार्मिकता की कसौटी और शांति निर्माण हेतु भाई तथा बहन के रूप में ठोस रास्ते पर चलना। हम इन्हें 2016 में अजरबैजान में, 2017 में मिस्र और अब इराक की ऐतिहासिक यात्रा में, अब्राहम के शहर ऊर में दिये संत पापा के भाषण में पाते हैं।

संत पापा का भाषण सुननेवालों में अजरबैजान में शिया थे किन्तु उनके साथ देश के अन्य धार्मिक समुदायों के लोग भी उपस्थित थे। दूसरे भाषण में मुख्य रूप से मिस्र के सुन्नी मुसलमानों को सम्बोधित किया गया था और तीसरे भाषण में मुसलमानों की बहुलता थी किन्तु ख्रीस्तीय एवं प्राचीन मेसोपोटेमियाई धर्मों के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।  

संत पापा किस चीज का प्रस्ताव रख रहे हैं और लागू कर रहे हैं, वह एक ऐसा दृष्टिकोण नहीं है जो सभी को एक समान करने के लिए विविधताओं एवं पहचानों को भूलता बल्कि यह एक बुलाहट है अपने धार्मिक पहचान के प्रति वफादार रहने की, ताकि धर्म को घृणा, विभाजन, आतंकवाद, भेदभाव का यंत्र न बनाया जाए और साथ ही, दुनियादारी की ओर बढ़ते समाज में साक्ष्य दिया जा सके कि हमें ईश्वर की आवश्यकता है।

बाकू में, काकेशस के मुसलमानों के शेख और देश के अन्य धार्मिक समुदायों के प्रतिनिधियों के सामने संत पापा ने धर्मों की महान जिम्मेदारियों की याद की, कि यह जीवन की सार्थकता की खोज करने में लोगों का साथ देने के लिए है, उन्हें यह समझने में मदद देना है कि मानव प्राणी में सीमित क्षमताएं हैं और दुनिया के संसाधनों को कभी भी पूर्ण नहीं होना चाहिए।  

काहिरा में, अल अजहर के ग्रैंड इमाम अल ताय्येब द्वारा समर्थित, शांति के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि सिनाई पर्वत सबसे बढ़कर हमें स्मरण दिलाता है कि पृथ्वी पर सच्चे अनुबंध, स्वर्ग को दरकिनार नहीं कर सकते क्योंकि मानव प्राणी ईश्वर को अलग कर शांति से एक दूसरे के साथ नहीं रह सकते हैं। और न ही खुद ईश्वर तक पहुँचने के लिए पर्वत पर चढ़ सकते हैं। यह एक समयानुकूल संदेश है जिसको उन्होंने खतरनाक विरोधाभास कहा, अर्थात् एक ओर धर्म को सिर्फ निजी क्षेत्र तक सीमित कर देने की प्रवृति है, मानो कि यह मानव व्यक्ति एवं समाज का आवश्यक आयाम न हो और दूसरी ओर है, धर्म और राजनीति के क्षेत्रों के बीच अनुचित भ्रम।

ऊर में शनिवार 6 मार्च को संत पापा फ्राँसिस ने याद दिलाया कि यदि मानव ईश्वर को दरकिनार करता है तब वह पृथ्वी की चीजों की पूजा करने लगता है अतः उन्होंने स्वर्ग की ओर नजर उठाने का निमंत्रण दिया। "सच्ची धार्मिकता" की परिभाषा देते हुए उन्होंने कहा कि वह ईश्वर की पूजा एवं पड़ोतियों से प्रेम करती है।

काहिरा में, संत पापा ने बतलाया कि धार्मिक नेता हिंसा के मुखौटे को खोलने के लिए बुलाये गये हैं जो पवित्रता के मुखौटे के रूप में है और जो पूर्णता के प्रति यथार्थ खुलापन के बदले स्वार्थी पूर्णता पर आधारित है। उन्होंने मानव प्रतिष्ठा एवं मानव अधिकार के उलंघन, धर्म के नाम पर घृणा के हर प्रकार को न्यायसंगत ठहराने की कोशिशों की निंदा की और इन प्रयासों को मूर्तिपूजा कहा।  

बाकू में, संत पापा ने धर्मों के कर्तव्य को अच्छाई का चुनाव करने तथा उन्हें कार्यों, प्रार्थना और आंतरिक जीवन के चिंतनशील प्रयास में मदद देने के रूप में प्रकट किया था। उन्होंने कहा था कि वे मुलाकात एवं शांति की संस्कृति का निर्माण करने के लिए बुलाये गये हैं जो धीरज, समझदारी और विनम्रता के वास्तविक कदमों पर आधारित हों। उन्होंने कहा कि यह "शांति का सवेरा, मौत के विनाश के बीच पुनःजन्म का बीज, अनवरत गूंजती संवाद की गूँज, मुलाकात एवं मेल-मिलाप का रास्ता है जो उन स्थानों तक पहुँचती है जहाँ लगता है कि आधिकारिक मध्यस्थता के प्रयास फल नहीं ला पाये हैं।"

मिस्र में, उन्होंने व्याख्या की थी कि "कोई भी हिंसा की प्रेरणा शांति की गारांटी नहीं दे सकती और संघर्ष को दूर करने एवं शांति निर्माण हेतु यह आवश्यक है कि हम गरीबी और शोषण की स्थितियों को समाप्त करने में कोई कसर न छोड़ें, जहाँ उग्रवाद आसानी से जड़ जमाते हैं। ये शब्द ऊर के भाषण में भी सुनाई दिये। "बांटने और स्वीकार करने के बिना तथा सबसे कमजोर लोगों से शुरू करते हुए उस न्याय के बिना जो सभी के लिए समानता एवं विकास सुनिश्चित करता, शांति नहीं आ सकती। शांति तब तक नहीं आ सकती जब तक लोग अपना हाथ दूसरों की ओर न बढायें।"

संत पापा के तीनों भाषण उस भूमिका की ओर इशारा करते हैं कि जो दुनिया में आज धार्मिकता की जरूरत है जहाँ उपभोकतावाद और पवित्रता का बहिष्कार प्रबल है तथा जहाँ विश्वास को निजी क्षेत्र तक सीमित करने की प्रवृति है, बल्कि आवश्यकता है एक सच्ची धार्मिकता की, जो ईश्वर की आराधना से हमारे भाई-बहनों के लिए प्रेम को अलग नहीं करती।

अंततः, संत पापा ने धर्मों को हमारे समाज की अच्छाई हेतु योगदान देने के लिए एक रास्ता दिखलाया है, उन्होंने उन्हें शांति के लिए उनकी प्रतिबद्धता की याद दिलायी है तथा सबसे कमजोर, करीब और असुरक्षित लोगों की आवश्यकताओं एवं समस्याओं का ठोस जवाब देने के लिए प्रेरित किया है। यह सभी के साथ भाइयों के रूप में एक साथ चलने का प्रस्ताव है, ताकि हम विविधताओं के परे शांति एवं न्याय के सच्चे शिल्पकार बन सकें तथा अपनी-अपनी पहचान को सम्मान दे सकें।  

संत पापा ने इस रास्ते के उदाहरण के रूप में याद कि किस तरह एक मुसलमान युवक ने बागदाद में ख्रीस्तीय गिरजाघरों की रक्षा करने में अपने ख्रीस्तीय भाइयों की सहायता की थी। एक और उदाहरण राफ हुसैन बाहेर के ऊर में गवाही द्वारा पेश किया गया था, जो कि सबियन-मंडन धर्म की एक इराकी महिला थी, जिसने अपने साक्ष्य में नजाय के बलिदान की याद की, जो बसरा के सबीन-मांडियन धर्म का एक व्यक्ति था, जिसने अपने मुस्लिम पड़ोसी को बचाने के लिए अपनी जान गंवा दी।

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11 March 2021, 16:03