संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में 

संत पापाः ज्योति जलाना ख्रीस्तीय प्रथम कार्य

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में पवित्र आत्मा को ख्रीस्तीय जीवन का अस्तित्व बतलाता जो हमारा मेल ईश्वर से कराते हैं।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 17 मार्च 2021 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन प्रेरितिक निवास की पुस्तकालय से सभों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात। 

आज हम तृत्वमय ईश्वर, विशेष रुप से पवित्र आत्मा के संग प्रार्थनामय संबंध पर अपनी  धर्मशिक्षा माला का समापन करेंगे।

पवित्र आत्मा मूलभूत उपहार

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि हर ख्रीस्तीय अस्तित्व में हम पवित्र आत्मा के उपहार को पाते हैं। यह बहुतायत उपहारों में एक नहीं अपितु एक मूलभूत उपहार है। येसु ख्रीस्त ने हमें उसी पवित्र आत्मा को प्रदान करने की प्रतिज्ञा की थी। पवित्र आत्मा से बिना हम येसु ख्रीस्त और पिता के संग अपने संबंध की परिकल्पना नहीं कर सकते हैं क्योंकि पवित्र आत्मा हमारे हृदय को ख्रीस्त की उपस्थिति हेतु खोलता और हमें प्रेम का “भँवर” बनाता है। इस धरती पर अपनी जीवन यात्रा करते हुए हम केवल मेहमान और तीर्थयात्री नहीं हैं बल्कि हम तृत्वमय ईश्वर में अतिथि और तीर्थयात्रीगण हैं। हम सभी अब्रहाम की तरह हैं जिन्होंने एक दिन, तीन पथिकों का अपने तम्बू में स्वागत करते हुए ईश्वर से मुलाकात की। यदि हम सचमुच में पिता को “अब्बा” पिता कह पुकारते तो यह पवित्र आत्मा के कारण ही संभव होता है जो हममें निवास करते हैं। ये पवित्र आत्मा हैं जो हमें पूरी तरह परिवर्तित करते और हमें ईश्वरीय सच्ची संतान की भांति उनके भावविहल प्रेम की खुशी को अनुभव करने में मदद करते हैं।

प्रार्थना आत्मा की प्रेरणा

काथलीक कलीसिया की धर्मशिक्षा इस संदर्भ में कहती है, “हम जब कभी येसु के पास प्रार्थना करना शुरू करते हैं तो यह पवित्र आत्मा हैं जो हमें अपनी कृपा के माध्यम प्रार्थना हेतु प्रेरित करते हैं। चूंकि वे हमें येसु का नाम लेकर प्रार्थना करने की शिक्षा देते हैं, तो हम कैसे पवित्र आत्मा के संग भी प्रार्थना नहीं कर सकते हैं? यही कारण है कि कलीसिया हमें निमंत्रण देती है कि हम रोजदिन पवित्र आत्मा से प्रार्थना करें विशेष कर अपने महत्वपूर्ण कार्य के शुरू और अंत में” (2670)। यह पवित्र आत्मा का कार्य है जो हमें य़ेसु की “याद” दिलाते और उन्हें हमारे बीच उपस्थित रखते हैं जिससे वे आतीत के व्यक्तित्व बन कर न रह जायें। यदि ख्रीस्त समय से परे होते तो हम दुनिया में अकेले होते और खो जाते। लेकिन पवित्र आत्मा में सारी चीजें सजीव हो जाती हैं, हम ख्रीस्तीय येसु ख्रीस्त से हर समय और हर जगह भेंट कर सकते हैं। वे हमसे दूर नहीं बल्कि हममें हैं, वे अपने शिष्यों के हृदय परिवर्तन द्वारा उन्हें अपनी शिक्षा देते रहते हैं जैसा कि उन्होंने पेत्रुस, पौलुस और मरियम मगदलेना के साथ किया।

यह बहुत से नर और नारियों का अनुभव है जिन्होंने प्रार्थना की और पवित्र आत्मा ने उन्हें अपने अनुरूप ख्रीस्त के लिए दया, सेवा, प्रार्थना... हेतु तैयार किया। ऐसे लोगों से मिलना हमारे लिए अपने में एक कृपा होती है जिनमें एक अलग ही जीवन धड़कता है जिनकी निगाहें अपने से “परे” जाती हैं। इस संदर्भ में हम केवल मठवासी और साधुओं के बारे में नहीं सोच सकते, हम जनसामान्य लोगों के बीच भी ऐसे लोगों को पाते हैं जिन्होंने ईश्वर से एक लम्बी वार्ता में अपने जीवन इतिहास को बुन लिया है, कई बार हम उन्हें जीवन में आंतरिक संघर्ष करता हुआ पाते हैं जो उनके विश्वास को परिशुद्ध करता है। इन नम्र साक्ष्यों ने सुसमाचार में ईश्वर को पाया, यूखारिस्तीय बलिदान में उन्हें ग्रहण किया और उनकी उपासना की, किसी भाई या बहन को मुसीबतों में देखा कर उन्होंने सेवा का हाथ बढ़ाते हुए ईश्वरीय उपस्थिति के जलते दीप को पवित्र बनाये रखा।

ज्योति जलाये रखना, हमारा प्रथम कर्तव्य

ख्रीस्तियों का पहला कर्तव्य येसु ख्रीस्त की ज्योति को जलाये रखना है जिसे उन्होंने इस धरती पर लाया (लूका.12.49) अर्थात जो हमारे लिए ईश्वर का प्रेम, पवित्र आत्मा हैं। पवित्र आत्मा के आग बिना भविष्यवाणी अपने में धूमिल हो जाती है, दुःख आनन्द को दबा देता है, आदत प्यार को बदल देती है और सेवा गुलामी में बदल जाती है। हमारे मन में संदूक के पास जलती ज्योति एक प्रतीक स्वरुप उभर कर आता है जहाँ हम पवित्र परमप्रसाद को संरक्षित पाते हैं।  गिरजाघर के खाली होने और अंधकार छाने पर भी, यद्यपि गिरजाघर बंद होता फिर भी ज्योति जलती रहती है, किसी के नहीं देखने पर भी वह ईश्वर के सामने निरंतर जलती रहती है।

हम कलीसियाई धर्मशिक्षा में इसे पुनः पाते हैं,“पवित्र आत्मा, जो हमारे सम्पूर्ण जीवन का विलेपन करते हैं, ख्रीस्तीय प्रार्थना के आंतरिक स्वामी हैं। वे सजीव रूप में रीतिवत प्रार्थना के शिल्पकार हैं। निश्चित रुप में प्रार्थना के कई रुप हैं जैसे कि लोग विभिन्न रुपों में प्रार्थना करते हैं, लेकिन उन सारी प्रार्थनाओं में वही पवित्र आत्मा क्रियाशील हैं। पवित्र आत्मा के मेल में ख्रीस्तीय प्रार्थना कलीसिया की प्रार्थना बनती है” (2672)।

पवित्र आत्मा के कार्य, मौलिक

संत पापा ने कहा कि अतः यह पवित्र आत्मा हैं जो कलीसिया और विश्व का इतिहास लिखते हैं। हम उनके लिए खुले पन्ने हैं जो उनकी हस्तलिपि को ग्रहण करते हैं। हम प्रत्येक में पवित्र आत्मा मौलिक कार्यों को करते हैं क्योंकि कोई भी ऐसा ख्रीस्तीय नहीं जो पूरी तरह दूसरे से मेल खाता हो। पवित्रता की अंतहीन भूमि में, एक ईश्वर, तृत्वमय प्रेम असंख्य साक्ष्यों को फलहित होने देते हैं, जो अपने सम्मान में बराबर हैं, लेकिन सुन्दरता में वे अनोखे भी हैं जिसे पवित्र आत्मा हम सभों में व्यक्त करते हैं क्योंकि ईश्वर ने अपनी करूणा में हमें अपनी संतान बनाया है।   

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपने प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। 

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17 March 2021, 14:20

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