खोज

संत पापा,  वाटिकन संत पेत्रुस महागिरजाघर में खजूर पर्व के समारोही मिस्सा बलिदान में संत पापा, वाटिकन संत पेत्रुस महागिरजाघर में खजूर पर्व के समारोही मिस्सा बलिदान में  

संत पापाः हम विस्मित होने की कृपा मांगें

खजूर रविवार को पुण्य सप्ताह की शुरूआत करते हुए, संत पेत्रुस महागिरजाघर में सीमित विश्वासियों के साथ समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए संत पापा फ्राँसिस ने प्रभु के प्रेम से विस्मित होने पर प्रकाश डाला।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, रविवार 27 मार्च 2021 (रेई)- संत पापा फ्राँसिस ने खजूर रविवार 28 मार्च को संत पेत्रुस महागिरजाघर में सीमित विश्वासियों के साथ समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए पुण्य सप्ताह की शुरूआत की।

उन्होंने प्रवचन में कहा, "हर साल यह धर्मविधि हमें विस्मित करती है : हम येसु के येरूसालेम में आनन्दमय प्रवेश से पार होकर, उन्हें मृत्यु दण्ड एवं क्रूस पर ठोंके जाने को देखते हैं। वह आंतरिक विस्मय पूरा पुण्य सप्ताह बना रहेगा। आइये हम इसपर अधिक गहराई से चिंतन करें। 

येसु में हमारा विस्मय 

शुरू से ही येसु हमें विस्मित करते हैं। लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया, फिर भी वे एक छोटे गदहे पर सवार होकर येरूसालेम में प्रवेश करते हैं। लोग पास्का के समय एक शक्तिशाली मुक्तिदाता की उम्मीद कर रहे थे जबकि वे अपनी ही बलि चढ़ाकर पास्का मनाने आते हैं। लोग हथियार द्वारा रोमियों पर विजय पाना चाहते थे किन्तु येसु क्रूस द्वारा ईश्वर की विजय मनाने आते हैं। उन लोगों को क्या हुआ जो कुछ दिनों पहले उनका जय जयकार कर रहे थे, अब क्रूस दीजिए का नारा लगा रहे हैं? वे लोग मसीह की विचारधारा का अनुसरण कर रहे थे न कि मसीह का। वे येसु की प्रशंसा कर रहे थे किन्तु अपने आपको उनसे विस्मित होने नहीं दे रहे थे। प्रशंसा करना और विस्मित होना अलग है। प्रशंसा करना दुनियावी हो सकता है चूँकि यह अपनी पसंद एवं आकांक्षा के अनुसार होता है। दूसरी ओर, विस्मय दूसरों के लिए एवं वे जो नयापन लाते हैं उनके लिए खुला होता है। आज भी बहुत सारे लोग हैं जो येसु की प्रशंसा करते हैं, कहते हैं कि वे अच्छी चीजें बतलाते हैं; वे प्रेम और क्षमाशीलता से भरपूर हैं; उनके उदाहरण इतिहास बदल देते हैं। वे प्रशंसा करते हैं लेकिन उनका जीवन बदलता नहीं। संत पापा ने कहा, "येसु की प्रशंसा करना काफी नहीं है। हमें उनके पदचिन्हों पर चलना है।" उनके द्वारा चुनौती दिया जाना, प्रशंसा से विस्मय की ओर बढ़ना है।

नम्रता और आज्ञाकारिता

प्रभु और उनके पास्का में सबसे विस्मयकारी क्या है? वास्तव में, वे विनीत बनकर महिमा प्राप्त करते हैं। उन्होंने पीड़ा और मृत्यु को स्वीकार कर विजय पायी। चीजें जिनसे हम मोहित होते एवं पाना चाहते हैं उनसे इंकार करना चाहिए। जैसा कि संत पौलुस कहते हैं येसु ने अपने आपको खाली कर दिया...अपने आपको आज्ञाकारी बनाया।   (फिल. 2:7.8) यह विस्मयकारी है : यह देखना कि सर्वशक्तिमान पूरी तरह खाली हो गये। शब्द जो सब कुछ जानते हैं क्रूस पर से चुपचाप शिक्षा देते हैं। हम राजाओं के राजा को सूली पर सिहांसन ग्रहण करते देखते हैं। ब्रह्माण्ड के ईश्वर का सब कुछ छिना जाना एवं महिमा के बदले काँटों का ताज धारण करना। एक अच्छे व्यक्ति को अपमानित एवं पीटे जाते देखना। संत पापा ने कहा, "क्यों ये अपमान?" "क्यों, प्रभु ने इन सबको झेलना स्वीकार किया?  

येसु ने इसे हमारे लिए किया, उन्होंने मौत के मानवीय अनुभव, हमारे पूरे अस्तित्व, हमारी सारी बुराइयों के भार को अपने ऊपर लिया। हमें अपने निकट आने और पीड़ा एवं मौत में हमें नहीं छोड़ने के लिए किया। हमें मुक्ति देने, हमें बचाने के लिए किया। येसु क्रूस पर उठाये गये ताकि हमारे दुःख की गहरी खाई में उतर सकें। उन्होंने हमारे सबसे गहरे दुःख, असफलता, सब कुछ खोने, मित्रों के विश्वासघात और ईश्वर के द्वारा त्याग दिये गये महसूस किया। अपनी शरीर में हमें गहरे संघर्ष एवं तनाव को महसूस कर हमें मुक्ति दी और उन्हें बदल दिया। उनके प्रेम ने उन्हें हमारी दुर्बलता में हमारे निकट लाया, उन्होंने उस चीज का स्पर्श किया जिसके लिए हम अत्यधिक शर्मिंदा थे। अब हम जानते हैं कि हम अकेले नहीं हैं, हर कठिनाई में, हर भय में ईश्वर हमारे साथ हैं; कोई भी बुराई, कोई भी पाप अंतिम शब्द नहीं हो सकता। ईश्वर की विजय खजूर द्वारा जय जयकार के बाद लकड़ी के क्रूस की ओर बढ़ता है। क्योंकि खजूर और क्रूस एक दूसरे से अलग नहीं हो सकते।  

संत पापा ने विश्वासियों से कहा, "आइये हम विस्मित होने की कृपा के लिए प्रार्थना करें। एक ख्रीस्तीय का जीवन विस्मय के बिना नीरस एवं सूखा हो जाता है। हम किस तरह येसु से मुलाकात की खुशी को बांट सकते हैं जब तक कि जो हमारे लिए क्षमा एवं नई शुरूआत लेकर आते हैं, उनके प्रेम से हम विस्मित एवं आश्चर्य चकित नहीं हो जाते। जब विश्वास किसी प्रकार का विस्मय महसूस नहीं करता तो वह शिथिल हो जाता है। वह ईश्वर की कृपा के अनोखेपन से अंधा हो जाता है। वह जीवन की रोटी का स्वाद नहीं पाता और न ही ईश वचन को सुन पाता है, यह हमारे भाई बहनों की सुन्दरता एवं सृष्टि के उपहार को भी नहीं देख पाता है।

क्रूस को निहारें 

इस पुण्य सप्ताह के बीच, हम अपनी नजर क्रूस की ओर उठायें ताकि विस्मय की कृपा को ग्रहण कर सकें। जब संत फ्राँसिस असीस ने क्रूसित प्रभु पर चिंतन किया, वे विस्मित हुए कि उनके भाई नहीं रोये। हमारी क्या स्थिति है? क्या हम अब भी ईश्वर के प्रेम से प्रेरित होते हैं? क्या हमने उनके द्वारा विस्मित होने की क्षमता खो दी है? शायद हमारा विश्वास आदत से शिथिल पड़ गया हो। शायद हम अपनी चिंता से घिरे हों और निराशा के शिकार बन चुके हों। शायद हमने अपना सारा भरोसा खो दिया है अथवा बेकार महसूस करते हों। किन्तु शायद इन "शायदों" के बीच एक सच्चाई है कि हम पवित्र आत्मा की कृपा के लिए खुले नहीं हैं जो हमें विस्मय की कृपा प्रदान करते हैं।

आइये हम विस्मित होना शुरू करें। हम क्रूस पर टंगे येसु पर नजर डालें और उनसे कहें : "प्रभु, आप मुझे कितना प्यार करते हैं। मैं आपके लिए कितना मूल्यवान हूँ।" आइये हम येसु से विस्मित हों ताकि फिर जीने लगें क्योंकि जीवन की शान सम्पति और पदोन्नति में नहीं होती बल्कि यह महसूस करने में कि हम प्रेम किकये गये हैं और दूसरों को प्यार करने की सुन्दरता को महसूस करन के द्वारा। क्रूसित येसु में हम ईश्वर की दीनता को देखते हैं कि सर्वशक्तिमान तिरस्कृत एवं बहिष्कृत हुए और विस्मय की कृपा के द्वारा हम महसूस करेंगे कि बहिष्कृत एवं तिरस्कृत लोगों के स्वागत करने, जीवन में दुर्व्यवहार सहनेवालों के निकट रहने में हम येसु को प्यार कर रहे हैं। क्योंकि वे उन्हीं में उपस्थित हैं, हमारे सबसे निम्न भाई बहनों में, बहिष्कृत एवं तिरस्कृत लोगों में।

आज का सुसमाचार हमें येसु की मृत्यु के तुरन्त बाद एक शानदार दृश्य को दिखाता है। यह शतपति का विस्मय है जो येसु को प्राण त्यागते देखकर कहता है, "निश्चय ही यह मनुष्य ईश्वर का पुत्र था।" (मार. 15:39) येसु को उसने किस तरह मरते देखा? उन्हें प्रेम से मरते देखा। येसु ने बहुत अधिक दुःख सहा किन्तु प्रेम करना कभी नहीं छोड़ा। यही ईश्वर के सामने विस्मित होना है जो मौत को भी प्रेम से भर सकते हैं। उस मुफ्त और अभूतपूर्व प्रेम में अविश्वासी शतपति ने ईश्वर को पाया। उसके शब्द कि यह मनुष्य सचमुच ईश्वर का पुत्र था – दुखभोग के वृतांत पर मुहर लगाता है। सुसमाचार हमें बतलाता है कि उनके पहले कई अन्य लोगों ने येसु पर, उनके चमत्कार पर और महान कार्यों पर विस्मय किया था तथा स्वीकार किया था कि वे ईश्वर के पुत्र थे किन्तु ईश्वर ने उन्हें चुप किया था क्योंकि वे उस दुनियावी विचारधारा के स्तर तक सीमित रहने के खतरे में थे कि ईश्वर की आराधना किया जाना एवं उनकी शक्ति एवं सामर्थ्य से डरना चाहिए। अब ऐसा नहीं रह गया था क्योंकि क्रूस के नीचे कोई भी गलती नहीं हो सकती, ईश्वर ने अपने आपको प्रकट किया है और बिना हथियार एवं प्रेम की शक्ति से राज करते हैं।

आज ईश्वर हमारे मन और हृदय को विस्मय से भरते रहते हैं। हम उस विस्मय से भरें जो हमें क्रूसित प्रभु विस्मत करते हैं जब हम उनपर नजर डालते। हम भी कह सकें : "आप सचमुच ईश्वर के पुत्र हैं। आप मेरे ईश्वर हैं।"

खजूर रविवार को संत पापा ने येसु के प्रेम से विस्मित होने के लिए प्रेरित किया।

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

28 March 2021, 13:21

दूत-संवाद की प्रार्थना एक ऐसी प्रार्थना है जिसको शरीरधारण के रहस्य की स्मृति में दिन में तीन बार की जाती है : सुबह 6.00 बजे, मध्याह्न एवं संध्या 6.00 बजे, और इस समय देवदूत प्रार्थना की घंटी बजायी जाती है। दूत-संवाद शब्द "प्रभु के दूत ने मरियम को संदेश दिया" से आता है जिसमें तीन छोटे पाठ होते हैं जो प्रभु येसु के शरीरधारण पर प्रकाश डालते हैं और साथ ही साथ तीन प्रणाम मरियम की विन्ती दुहरायी जाती है।

यह प्रार्थना संत पापा द्वारा रविवारों एवं महापर्वों के अवसरों पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में किया जाता है। देवदूत प्रार्थना के पूर्व संत पापा एक छोटा संदेश प्रस्तुत करते हैं जो उस दिन के पाठ पर आधारित होता है, जिसके बाद वे तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हैं। पास्का से लेकर पेंतेकोस्त तक देवदूत प्रार्थना के स्थान पर "स्वर्ग की रानी" प्रार्थना की जाती है जो येसु ख्रीस्त के पुनरूत्थान की यादगारी में की जाने वाली प्रार्थना है। इसके अंत में "पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा की महिमा हो..." तीन बार की जाती है।

ताजा देवदूत प्रार्थना/स्वर्ग की रानी

सभी को पढ़ें >