खोज

संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  

देवदूत प्रार्थना में पोप, रोगियों की देखभाल करना वैकल्पिक नहीं

संत पापा ने रविवार को देवदूत प्रार्थना के पूर्व अपने संदेश में कहा, "हर तरह के रोगियों की देखभाल करना, कलीसिया के लिए वैकल्पिक नहीं हैं। यह अतिरिक्त भी नहीं है। हर तरह के रोगियों की सेवा करना कलीसिया के मिशन का अभिन्न हिस्सा है, जैसा कि येसु के लिए था। और यह मिशन पीड़ित मानवता के लिए ईश्वर की कोमलता को लाना है।"

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 8 फरवरी 2021 (रेई)- संत पापा फ्राँसिस ने रविवार 7 फरवरी को पुनः संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में विश्वासियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ करना शुरू किया। देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित करते हुए कहा, "प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।" पुनः एक बार प्राँगण में!

रोगियों और पीड़ितों की चंगाई

आज का सुसमाचार पाठ (मार.1,29-39) येसु द्वारा पेत्रुस की सास एवं उसके बाद कई अन्य रोगियों और पीड़ित लोगों की चंगाई को प्रस्तुत करता है जो उनके पास आते थे। पेत्रुस की सास की चंगाई संत मारकुस द्वारा वर्णित पहली शारीरिक चंगाई की घटना है। वह महिला बुखार में पड़ी थी। येसु के मनोभाव एवं हावभाव चिन्ह थे जिनको सुसमाचार लेखक गौर करते हैं, "ईसा उसके पास आये और हाथ पकड़ कर, उसे उठाया।"(31) इस साधारण कार्य में बहुत अधिक कोमलता है जो स्वभाविक प्रतीत होता है। इससे उसका बुखार चला जाता है और वह उनकी सेवा करती है। येसु की चंगाई शक्ति, बिना किसी प्रतिरोध के मिलती है; और व्यक्ति अपने सामान्य जीवन को फिर से शुरू करता है, वह तुरंत दूसरों के बारे सोचता है, अपने बारे नहीं- यह महत्वपूर्ण है; यह सच्चे "स्वस्थ" का संकेत है!

पीड़ितों के प्रति येसु का खास स्नेह

वह विश्राम दिवस था। गाँव के लोग सूर्यास्त होने का इंतजार कर रहे थे और उसके बाद जब विश्राम दिवस का दायित्व समाप्त हुआ तब वे बाहर निकले एवं येसु के पास ऐसे लोगों को लाये जो बीमार और अपदूतग्रस्त थे। उन्होंने उन्हें चंगा किया किन्तु अशुद्ध आत्माओं को प्रकट करने से रोका कि वे ख्रीस्त हैं। (32-34) इस तरह, येसु शुरू से ही उन लोगों के प्रति रूचि दिखाते हैं जो शारीरिक और आत्मिक रूप से पीड़ित हैं। वे पिता के एकलौते पुत्र हैं जिन्होंने शरीरधारण किया एवं अपने शब्दों और कार्यों से उनका साक्ष्य दिया। उनके शिष्यों ने इसे अपनी आखों से देखा था। उन्होंने इसे देखा और इसका साक्ष्य दिया।

कलीसिया के मिशन का अभिन्न हिस्सा

येसु नहीं चाहते थे कि वे उनके मिशन के मूकदर्शक बने, अतः उन्हें शामिल किया। उन्हें भेजा, रोगियों को चंगा करने और अशुद्ध आत्माओं को निकालने की शक्ति दी (मती. 10.1 मार. 6,7) और यह कलीसिया के जीवन में बिना किसी रूकावट के आज भी जारी है। संत पापा ने कहा, "यह महत्वपूर्ण है, हर तरह के रोगियों की देखभाल करना, कलीसिया के लिए वैकल्पिक नहीं हैं। यह अतिरिक्त भी नहीं है। हर तरह के रोगियों की सेवा करना कलीसिया के मिशन का अभिन्न हिस्सा है, जैसा कि येसु के लिए था। यह मिशन पीड़ित मानवता के लिए ईश्वर की कोमलता को लाना है।" हम कुछ ही दिनों में 11 फरवरी को रोगियों के लिए विश्व दिवस में इसकी याद करेंगे। इसकी स्थापना संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने की है जिसमें उन्होंने मानव पीड़ा के ख्रीस्तीय अर्थ पर सालविफिक दोलोरिसएक शीर्षक प्रेरितिक पत्र भी प्रकाशित किया था। (11 फरवरी 1984)

हमारी मानव परिस्थिति का जवाब

जिस सच्चाई को हम दुनिया भर में महामारी के कारण अनुभव कर रहे है, इसने संदेश को विशेष रूप से प्रासंगिक बना दिया है, यह कलीसिया का महत्वपूर्ण मिशन है। जोब की आवाज जो आज की धर्मविधि में गूँजती है फिर से हमारी मानव परिस्थिति की व्याख्या कर रही है कि कितनी महान है इसकी प्रतिष्ठा – हमारी मानव परिस्थिति जिसकी प्रतिष्ठा इतनी महान है – दूसरी ओर उतना ही कमजोर भी है। इस सच्चाई के सामने, हृदय में हमेशा एक सवाल उठता, क्यों?    

इस सवाल का येसु, शब्द जिसने शरीरधारण किया, व्याख्या के द्वारा जवाब नहीं देते क्योंकि हम मानव प्रतिष्ठा में इतने महान और स्थित में इतने कमजोर हैं। यही कारण है कि येसु इस क्यों का उत्तर व्याख्या में नहीं बल्कि अपनी प्रेमी उपस्थिति से देते हैं जो झुकती, हाथ बढ़ाती एवं ऊपर उठाती है। जैसा कि उन्होंने पेत्रुस की सास के साथ किया। (मार.1,31) दूसरों को उठाने के लिए झुकना। संत पापा ने कहा कि हम इसे न भूलें क्योंकि यही एकमात्र उपयुक्त तरीका है जब हम ऊपर से नीचे देखते हैं, हम अपना हाथ बढ़ायें और उन्हें ऊपर आने में मदद दें। एकमात्र उपाय और यही मिशन है जिसको येसु ने कलीसिया को सौंपा है।

शक्ति का स्रोत पिता ईश्वर के साथ संबंध में

ईश्वर के पुत्र ने अपने प्रभुत्व को ऊपर से नहीं प्रकट किया, न ही दूर से बल्कि झुककर, हाथ बढ़ाकर, नजदीक आकर, कोमलता में, दयालुता में प्रकट किया, ये ही ईश्वर के तरीके हैं। ईश्वर नजदीक आते हैं और वे कोमलता एवं करुणा के साथ आते हैं। बाईबिल में हम कितनी बार पढ़ते हैं स्वास्थ्य संबंधी समस्या या किसी दूसरी समस्या के समय वे दया से द्रवित हो गये। येसु की दयालुता, येसु में ईश्वर का सामीप्य, यही ईश्वर का तरीका है। आज का सुसमाचार पाठ भी हमें स्मरण दिलाता है कि यह करुणा पिता के साथ अंतरंग संबंध में गहराई से निहित है, क्यों? सूर्योदय के पहले और सूर्यास्त के बाद येसु अकेले किसी एकांत में प्रार्थना करने चले जाते थे। (पद. 35) इसी से वे अपनी प्रेरिताई के लिए शक्ति प्राप्त करते थे, उपदेश देते एवं चंगा करते थे।

संत पापा ने प्रार्थना की कि कुँवारी मरियम हमें येसु से चंगाई पाने में मदद दे- इसकी हम सबको हमेशा जरूरत है –ताकि हम भी ईश्वर की चंगाई भरी कोमलता का साक्ष्य दे सकें।

इतना कहने के बाद, संत पाप ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

08 February 2021, 14:42