हिरोशिमा के शांति स्मारक पर संत पापा फ्राँसिस हिरोशिमा के शांति स्मारक पर संत पापा फ्राँसिस  

परमाणु हथियार निषेध समझौता, संत पापाओं की राय

परमाणु हथियार निषेध समझौता शुक्रवार 22 जनवरी को प्रभावी होगा। हिरोसिमा में संत पापा फ्राँसिस ने परमाणु हथियार रखने को भी अनैतिक कहा था।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 21 जनवरी 2021 (रेई)- मानव इतिहास में दो तारीख हैं जो अमिट हैं : 6 और 9 अगस्त 1945, जब जापान में दो परमाणु बम गिराये गये थे। विस्फोटों के कुछ ही क्षण बाद, विषैले बादलों ने हिरोशिमा और नागासाकी शहरों को भयानक रूप से घेर लिया था, जिसमें से असंख्य पीड़ित और मलबों के ढेर निकले। वे दुखद दृश्य एवं अवशेष ही, हाल के दशकों में परमाणु निरास्त्रीकरण के लिए संत पापाओं द्वारा की गई हार्दिक अपील की दुखद पृष्ठभूमि हैं।

संत पापा फ्राँसिस ने इसके लिए अपने पूर्वाधिकारियों के साथ अपनी आवाज को जोड़ते हुए आग्रह किया है। जापान में 2019 में अपने प्रेरितिक यात्रा के बाद टोक्यो से रोम लौटते समय संत पापा ने कहा था कि "परमाणु हथियार का प्रयोग अनैतिक है।" अतः "इसे काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा में शामिल किया जाना चाहिए। न केवल उसका प्रयोग बल्कि इसे रखना भी अनैतिक है क्योंकि परमाणु हथियार रखने अथवा किसी एक सरकारी नेता के पागलपन से मानवता को नष्ट किया जा सकता है। संत पापा ने अपनी इस अपील को 20 जनवरी 2021 के आमदर्शन समारोह में भी दुहराया। परमाणु हथियार निषेध समझौता की ओर इशारा करते हुए उन्होंने व्याख्या की कि यह "पहला कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय साधन है जो इन हथियारों को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित करता है।"

संत पापा पीयुस 12वें : केवल मानवता की पुकार रह जायेगी

यह एक ऐसा समय था जब परमाणु बम के विस्फोट ने हिंसक रूप से हिला दिया था: द्वितीय विश्व युद्ध ने प्रकट किया कि अपने अंत से पहले, परमाणु ऊर्जा किस तरह सैन्य क्षेत्र में भयंकर शक्ति प्राप्त कर सकती है। 8 फरवरी 1948 को संत पापा पीयुस 12वें ने कहा था कि परमाणु बम सबसे खतरनाक हथियार है जिसकी कल्पना मानव दिमाग ने कभी नहीं की थी। 24 दिसम्बर 1955 में विश्व को दिये अपने रेडियो संदेश में उन्होंने विश्वासियों के सामने जबरदस्त व्याख्या की थी, "परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के बाद भयावह आंख के सामने वह तमाशा पेश किया गया, “पूरा शहर, जिसमें इतिहास और कला में सबसे विकसित और समृद्ध भाग था, उसका सर्वनाश किया गया; अनगिनत पीड़ितों के जलाए गए, मुड़े, बिखरे अंगों के साथ चूर्ण पदार्थों के ऊपर मौत का एक काला कंबल ढका था, जबकि कुछ लोग पीड़ा के ऐंठन में कराह रहे थे।”

जॉन 23वें एवं युद्ध के कगार पर दुनिया

25 अक्टूबर 1962 को द्वितीय वाटिकन महासभा शुरू होने के कुछ ही दिनों बाद, तीसरा विश्व युद्ध शुरू होने की स्थिति में थी। मोस्को और वॉशिंगटन परमाणु हथियार प्रयोग करने के एक कदम पीछे थे। वाटिकन रेडियो के माईक्रो फोन से संत पापा जॉन 23वें ने क्यूबा मिसाइल संकट से उत्पन्न संघर्ष के खतरे को रोकने के लिए अपील की थी, "अपने अंतरात्मा में हाथ रखकर हरेक व्यक्ति उस दुःखभरी पुकार, शांति, शांति को सुने, जो पृथ्वी के हर छोर के निर्दोष बच्चों से लेकर बुजूर्गों, लोगों के समुदायों से आकाश की ओर उठ रही है।" उसके बाद संत पापा जॉन 23वें ने 1963 में प्रेरितिक पत्र "पाचेम इन तेर्रिस" में कहा था, "लोग लगातार भय के साये में जी रहे हैं। वे भयभीत हैं कि किसी भी समय भयानक हिंसा के साथ उनके ऊपर लटकता तूफान टूट सकता है।"  

संत पापा पौल छटवें : परमाणु भय सबसे अधिक भयावाह है

1 जुलाई 1968 को परमाणु अप्रसार समझौता किया गया था जो एक उत्साहवर्धक क्षण था, हालांकि निर्णायक नहीं रहा। उसके कुछ दिनों पूर्व 24 जून 1968 को संत पापा पौल छटवें ने जबदस्त अपील की थी कि परमाणु हथियार की होड़ को समाप्त किया जाए। उन्होंने कहा था, "हम जानते हैं कि इस समझौता में, कई लोगों के विचार अनुसार कई आंतरिक त्रुटियाँ हैं जो कुछ सरकारों को इसे बिना शर्त पालन करने से रोकती हैं लेकिन यह निरस्त्रीकरण के क्षेत्र में आगे के उपायों की दिशा में एक अपरिहार्य पहला कदम है।”

संत पापा जॉन पौल द्वितीय: नैतिक क्रांति की आवश्यकता

एक ही पल में, परमाणु हथियारों से दुनिया और इसके नाजुक संतुलन को हमेशा के लिए बिगाड़ा जा सकता है। 1980 में संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने यूनेस्को को सम्बोधित करते हुए कहा था कि "भू-राजनीतिक कारण, दुनिया भर में आर्थिक समस्याओं, भयानक गलतफहमी, घायल राष्ट्रीय अहंकार, भौतिकवाद और नैतिक मूल्यों की गिरावट ने हमारी दुनिया को अस्थिरता, एक नाजुक संतुलन की स्थिति में पहुंचा दिया है।" एक साल बाद 25 फरवरी 1981 को संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने गौर किया कि "परमाणु विनाश के रूप में उजागर, इस ग्रह पर हमारा अस्तित्व,  एक एकल कारक पर निर्भर करता है: मानवता को एक नैतिक-चेहरा बनाना है।”

संत पापा बेनेडिक्ट 16वें : शांति भरोसा पर आधारित है

उन सरकारों का नजरिया जो परमाणु हथियारों पर अपनी ताकत और सुरक्षा को मापते हैं, वे “पतनकारी”… और घातक हैं। जबकि विश्व को परमाणु निरस्त्रीकरण की ओर बढ़ना है। संत पापा बेनेडिक्ट 16वें ने भी कई अवसरों पर मानवता के भविष्य पर परमाणु हथियार के प्रभाव पर प्रकाश डाला था। 5 मई 2010 के आमदर्शन समारोह में उन्होंने कहा था, "एक सहयोगी और सुरक्षित परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता पूर्ण और तेजी से पूर्ति के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है। शांति, वास्तव में, विश्वास और जिम्मेदारी के लिए सम्मान पर टिकी हुई है, न कि शक्ति के संतुलन पर।”

संत पापा फ्राँसिस: परमाणु हथियार के प्रयोग एवं रखने की अनैतिकता

अपने पूर्वाधिकारियों के पदचिन्हों पर चलते हुए संत पापा फ्राँसिस ने परमाणु हथियार के निषेध के रास्ते पर लगातार जोर दिया है। जापान में 24 नवम्बर 2019 को अपनी प्रेरितिक यात्रा के दौरान हिरोशिमा में शांति स्मारक पर उन्होंने लोगों को सम्बोधित करते हुए जोर दिया था कि "युद्ध के लिए परमाणु ऊर्जा का प्रयोग अनैतिक है उसी तरह उसे रखना भी अनैतिक है...।" उसके बाद उन्होंने सवाल किया था, "हम किस तरह शांति की बात कर सकते हैं जबकि युद्ध के लिए भयांकर नये हथियारों का निर्माण करते हैं? यह एक सवाल है जो आज भी, हिरोशिमा एवं नागासाकी में अत्यन्त दुखद घटना के बाद मानवता एवं मानवीय अंतरात्मा को चुनौती दे रहा है। यह उतना ही दुखद है जितना कि 1945 में ली गई एक तस्वीर, जिसे पोप फ्रांसिस ने एक कार्ड में पुन: पेश किया था: नागासाकी में परमाणु बम विस्फोट में मारे गए अपने छोटे भाई के शव को 10 वर्षीय लड़का ले जा रहा था।

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21 January 2021, 18:05