संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  

देवदूत प्रार्थना ˸ ईश्वर को पाने का अर्थ है प्रेम को पाना

संत पापा फ्राँसिस ने रविवार 17 जनवरी को वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास की लाईब्रेरी से देवदूत प्रार्थना का पाठ किया जहाँ उन्होंने येसु का उनके प्रथम शिष्यों से मुलाकात पर चिंतन किया तथा येसु के प्रेम पूर्व बुलावे का प्रत्युत्तर प्रेम से देने हेतु प्रेरित किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 18 जनवरी 21 (रेई)- संत पापा फ्राँसिस ने रविवार 17 जनवरी को वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास की लाईब्रेरी से देवदूत प्रार्थना का पाठ किया जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

सामान्य काल के इस दूसरे रविवार का सुसमाचार पाठ (यो.1,35-42) येसु का उनके प्रथम शिष्यों से मुलाकात को प्रस्तुत करता है। दृष्य येसु के बपतिस्मा के एक दिन बाद यर्दन नदी का है। योहन बपतिस्ता ने स्वयं उन दोनों को यह कहते हुए मसीह की ओर इंगित किया,  "देखो ईश्वर का मेमना (36) और दोनों ने बपतिस्ता के साक्ष्य पर विश्वास करते हुए येसु के पीछे हो लिया। येसु ने मुड़कर उन्हें अपने पीछे आते देखा और कहा, क्या चाहते हो?" उन्होंने उत्तर दिया, "रब्बी, आप कहाँ रहते हैं?"(38)

येसु से मुलाकात

संत पापा ने कहा कि येसु ने नहीं कहा कि मैं कफरनाहूम में रहता हूँ अथवा नाजरेथ में बल्कि कहा, "आओ और देखो।"(39) उन्होंने देखने के लिए टिकट नहीं दिया बल्कि मुलाकात करने का निमंत्रण दिया। इन दोनों ने उनका अनुसरण किया और उस दोपहर वे उनके साथ ही रहे। यह कल्पना करना कठिन नहीं है कि वे उनके साथ बैठ गये, सवाल पूछे और उससे भी बढ़कर वे उन्हें सुने, यह महसूस करते हुए कि जितना वे प्रभु को सुन रहे थे उनका हृदय उतना ही उदीप्त होता जा रहा था। उन्होंने उन शब्दों की खुबसूरती को महसूस किया जो उनकी बड़ी आशा का जवाब दे रहा था और अचानक उन्होंने पाया कि जब शाम हो रही थी, उनके हृदय में एक ज्योति प्रज्वलित हो रही थी जिसको सिर्फ ईश्वर प्रदान कर सकते थे।

सच्ची मुलाकात

एक चीज हमारा ध्यान आकर्षित करता है: कि उनमें से एक 60 साल या उससे कुछ अधिक सालों बाद सुसमाचार में लिखता है, "उस समय शाम के लगभग चार बज रहे थे।" (यो.1, 39) उसने समय का जिक्र किया। यह एक चीज है जो सोचने के लिए प्रेरित करता है : येसु के साथ हर सच्ची मुलाकात की सजीव याद रह जाती है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। आप अनेक मुलाकातों को भूल सकते हैं किन्तु येसु के साथ सच्ची मुलाकात की याद सदा बनी रहती है। इन लोगों ने कई वर्षों बाद समय को भी याद रखा, इस सुखद मुलाकात को वे कभी नहीं भूल सके जिसने उनके जीवन को बदल दिया था।

उसके बाद, जब वे मुलाकात से बाहर आये एवं अपने भाइयो से मिले तो उनका हृदय इस आनन्द एवं प्रकाश से नदी की तरह भरा हुआ था। दोनों में से एक अंद्रेया ने सिमोन (पेत्रुस) से कहा, "हमें मसीह मिल गये हैं।"।(41) उन्हें पूरा विश्वास हो गया था कि येसु ही मसीह हैं।

ईश्वर का बुलावा

संत पापा ने कहा, "आइये, हम ख्रीस्त से मुलाकात के इस अनुभव में कुछ देर रूक जाएँ जो हमें अपने साथ रहने के लिए बुलाते हैं। ईश्वर का बुलावा उनके प्रेम की एक पहल है। वे ही हैं जो हमेशा पहला कदम उठाते हैं। वे आपको बुलाते हैं। ईश्वर जीवन के लिए बुलाते हैं, वे विश्वास के लिए बुलाते हैं और वे जीवन में एक विशेष स्थिति के लिए बुलाते हैं। वे आपको यहाँ चाहते हैं। ईश्वर की पहली बुलाहट जीवन के लिए है, जिसके द्वारा वे हमें व्यक्ति बनाते हैं।"

व्यक्तिगत बुलावा

यह एक व्यक्तिगत बुलावा है क्योंकि ईश्वर रिश्तों की श्रृंखला नहीं बनाते। ईश्वर हमें विश्वास के लिए बुलाते हैं और हमें ईश्वर के पुत्र-पत्रियों के समान अपने परिवार का हिस्सा बनाते हैं। अंत में, ईश्वर हमें एक खास स्थित के लिए बुलाते हैं : वैवाहिक जीवन, पुरोहिताई जीवन या समर्पित जीवन में अपने आपको देने के लिए बुलाते हैं। ईश्वर की योजना को पूरा करने के अलग अलग तरीके हैं जिसको उन्होंने हम प्रत्येक के लिए बनाया है, यह प्रेम की योजना है। ईश्वर हमेशा बुलाते हैं। यह हरेक विश्वासी के लिए एक बड़ा आनन्द है और इस बुलावे का प्रत्युत्तर ईश्वर की सेवा एवं भाई-बहनों की सेवा के लिए अपने आपको समर्पित कर देना है।

ईश्वर का बुलावा प्रेमपूर्ण बुलावा है

संत पापा ने कहा, "प्यारे भाइयो एवं बहनो, प्रभु के बुलावे के सामने जो हजारों तरीके से हमारे पास आते हैं- हमारा मनोभाव अस्वीकार करने का हो सकता है- नहीं...मुझे डर लग रहा है...-, मैं अस्वीकार करता हूँ क्योंकि यह मेरी आकांक्षा के विपरीत है। मुझे इसलिए भी डर लगता है क्योंकि यह बहुत कुछ मांग करता है एवं अरामदायक नहीं है। मैं ऐसा नहीं कर पाउँगा, अच्छा होगा कि मैं ऐसा करुँगा ही नहीं, एक शांतिपूर्ण जीवन ही अच्छा है। ईश्वर वहाँ रहे, मैं यहाँ रहूँ।" किन्तु संत पापा ने कहा कि ईश्वर का बुलावा प्रेमपूर्ण बुलावा है, हमें प्रेम को पाने की कोशिश करना है जो हर बुलावे के पीछे है और इसका उत्तर प्रेम से ही दिया जाना चाहिए। यह एक भाषा है, एक बुलावे का प्रत्युत्तर है जो प्रेम से आता है, सिर्फ प्रेम से। शुरू में एक मुलाकात है येसु के साथ मुलाकात जो पिता के बारे हमसे बात करते हैं। वे हमें उनके प्रेम के बारे बतलाते हैं। उसके बाद हममें भी स्वतः वह इच्छा जागृत होगी कि हम जिन्हें प्यार करते हैं उन्हें बतलायें, "मैंने प्रेम से मुलाकात की है, मैंने मसीह से मुलाकात की है, मैंने ईश्वर से मुलाकात की है, येसु से मुलाकात की है, मैंने अपने जीवन के अर्थ को समझा है। एक शब्द में, मैंने ईश्वर को पाया है।"

कुँवारी मरियम से प्रार्थना

कुँवारी मरियम हमें अपने जीवन को ईश्वर की स्तुति के गीत बनाने में मदद करे, उनके बुलावे का प्रत्युत्तर देने एवं उनकी इच्छा को दीनता तथा आनन्द के साथ पूरा करने के लिए। किन्तु हम इस बात को याद रखें, हम प्रत्येक के लिए, जीवन में एक ऐसा पल रहा है जिसमें ईश्वर की उपस्थिति एक बुलावे के साथ स्पष्ट रूप से महसूस की गई है। हम उसे याद करें। उस पल में वापस जाएँ ताकि उस समय की याद येसु के साथ हमारी मुलाकात को हमेशा नवीकृत करे।    

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

देवदूत प्रार्थना के उपरांत संत पापा ने विभिन्न लोगों की याद की तथा उनका अभिवादन किया।

भुकम्प से पीड़ित लोगों की याद

उन्होंने इंडोनेशिया में भुकम्प से पीड़ित लोगों की याद करते हुए कहा, "मैं अपना सामीप्य इंडोनेशिया में सुलावेसी द्वीप के लोगों के प्रति व्यक्त करता हूँ जो भयंकर भुकम्प की मार झेल रहे हैं। मैं उन सभी के लिए प्रार्थना करता हूँ दो मौत के शिकार हुए हैं, घायल हैं एवं अपना घर एवं नौकरी खो दी है। प्रभु उन सभी को सांत्वना एवं शक्ति प्रदान करे जो राहत कार्यों में लगे हैं।" संत पापा ने इंडोनेशिया में भुकम्प पीड़ितों एवं विमान दुर्घटना के शिकार लोगों के लिए प्रार्थना करने का आह्वान करते हुए कहा, "आइये हम एक साथ सुलावेसी के भाई-बहनों एवं विमान दुर्घटना के शिकार लोगों के लिए प्रार्थना करें जो पिछले शनिवार को घटित हुई।" उन्होंने विश्वासियों के साथ प्रणाम मरियम की प्रार्थना की।

तत्पश्चात् संत पापा ने इटली में काथलिकों एवं यहूदियों के बीच वार्ता को बढ़ाने एवं मजबूत करने के लिए मनाये जाने वाले दिवस की याद की तथा कहा, "मैं खुश हूँ कि यह प्रयास 30 सालों से जारी है और आशा करता हूँ कि यह भ्रातृत्व एवं सहयोग का प्रचुर फल उत्पन्न करेगा।"

ख्रीस्तीय एकता हेतु प्रार्थना सप्ताह

उसके बाद संत पापा ने ख्रीस्तीय एकता प्रार्थना सप्ताह का स्मरण दिलाते हुए कहा, "कल एक महत्वपूर्ण दिन है ˸ ख्रीस्तीय एकता हेतु प्रार्थना सप्ताह शुरू हो रहा है। इस साल की विषयवस्तु में येसु कहते हैं, "मेरे प्रेम में दृढ़ बने रहो और तुम बहुत फल लाओगे।" (यो. 15,5-9) सोमवार 25 जनवरी को हम इस प्रार्थना का समापन संत पौल महागिरजाघर में रोम के ख्रीस्तीय एकता के प्रतिनिधियों के साथ संध्या प्रार्थना द्वारा करेंगे। हम एक साथ प्रार्थना करें ताकि येसु की इच्छा पूरी हो जाए, कि सब के सब एक हो जाएँ। एकता, हमेशा संघर्ष से बड़ी होती है।"

अंत में, संत पापा ने संचार माध्यमों द्वारा जुड़े सभी भाई-बहनों का अभिवादन किया तथा अपने लिए प्रार्थना का आग्रह करते हुए सभी को शुभ रविवार की मंगलकामनाएँ अर्पित कीं।

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18 January 2021, 14:55