युवा पुरोहित जोर्ज मारियो बेर्गोलियो युवा पुरोहित जोर्ज मारियो बेर्गोलियो 

संत पापा ने अपनी पुरोहिताई का 51वां वर्ष मनाया

संत पापा का पुरोहिताभिषेक 13 दिसंबर 1969 को हुआ। उन्होंने सोलह साल पहले, 21 सितंबर 1953 को, संत मत्ती के पर्व दिवस पर अपनी बुलाहट को पहचाना।

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार14 दिसम्बर 2020 (वाटिकन न्यूज) : आज से ठीक एकावन साल पहले, 13 दिसंबर 1969 को और अपने तैंतीसवें जन्मदिन से कुछ दिन पहले, जोर्ज मारियो बेर्गोलियो का पुरोहिताभिषेक हुआ था।

ग्यारह साल पहले, 11 मार्च 1958 को, उन्होंने येसु समाज धर्मसंघ के नोविशियेट में प्रवेश किया था। अपने पुरोहिताभिषेक के बाद  चार साल से भी कम समय में उन्होंने 22 अप्रैल 1973 को येसु समाजी के रुप में आजीवन व्रत लिया।

मुलाकात का एक अनुभव

भावी संत पापा ने 21 सितंबर 1953 को संत मत्ती के पर्व के दिन अपनी बुलाहट को पहचाना। उस दिन, 17 वर्षीय जोर्ज बेर्गोलियो को ब्यूनस आयर्स के एक पल्ली से होकर गुजर रहे थी तभी उसे पापस्वीकार करने की आवश्यकता महसूस हुई। उसे पल्ली में एक पुरोहित मिला, जिसे वह नहीं जानता था। उनके पास पापस्वीकार करने के बाद उसका जीवन बदल गया।

संत पापा फ्राँसिस ने बाद में बताया, "मेरे लिए यह मुलाकात का एक अनुभव था।" 18 मई 2013 को पेंतेकोस्त विजिल में संत पापा ने उस पल्ली के दौरे के बारे में कहा, “मैंने पाया कि लंबे समय से कोई मेरा इंतजार कर रहा था। फिर भी मुझे नहीं पता कि क्या हुआ, मैं याद नहीं रख सकता, मुझे नहीं पता कि वह विशेष पुरोहित क्यों था, जिसे मैं नहीं जानता था या मुझे यह पापस्वीकार करने की इच्छा क्यों महसूस हुई, लेकिन सच्चाई यह है कि कोई मेरा इंतजार कर रहा था। वह कुछ समय से मेरा इंतजार कर रहा था। पापस्वीकार करने के बाद मुझे लगा कि कुछ बदल गया है। मैं वही नहीं था। मुझे किसी के पुकारने की आवाज सुनाई पड़ी।  मुझे यकीन हो गया कि मुझे एक पुजारी बनना चाहिए।”

गत वर्ष संत पापा फ्राँसिस के पुरोहिताभिषेक की 50 वीं वर्षगांठ के लिए डाक टिकट जारी किए गए।

जोर्ज बेर्गोलियो ने अपने जीवन में ईश्वर की प्रेममय उपस्थिति का अनुभव किया। ईश्वर ने उनके हृदय को स्पर्श किया कोमल प्रेम की झलक के साथ, लोयोला के संत इग्नासियुस को अपना आदर्श मानते हुए धर्मसंघी जीवन शुरु किया। यह उनके जीवन का यह एपिसोड था जिसने उनके धर्माध्यक्षीय आदर्श वाक्य के चुनाव को प्रेरित किया और बाद में परमाध्यक्ष के आदर्श वाक्य "दया और चुनाव," को संत बेडेन द वीनरेबल के प्रवचन से लिया (होम. 21; सीसीएल 122, 149-151), वे संत मत्ती के बुलाहट पर टिप्पणी करते हुए लिखते हैं: "यीशु ने कर चुंगी जमाकरने वाले नाकेदार को देखा और क्योंकि उसने उसे दया की आँखों से देखा और उसे चुना, उसने उससे कहा: मेरे पीछे आओ।"

संत पापा के दिल में हैं पुरोहित

संत पापा फ्राँसिस अक्सर अपने प्रवचनों और भाषणों में पुरोहितों को संबोधित करते हैं। इस वर्ष, विशेष रूप से, उन्होंने वर्तमान महामारी के संदर्भ में और स्वास्थ्य आपातकाल के समय विश्वासियों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के बारे कई बार उल्लेख किया।

जब इस साल कोविद -19 प्रतिबंध के कारण क्रिस्मा मिस्सा को स्थगित कर दिया गया था, तो संत पापा ने रोम के पुरोहितों को एक पत्र लिखा। उन्होंने पुरोहितों को "लोगों के दर्द और कठिनाईयों में उनके करीब रहने उन्हें हर तरह से साथ देने हेतु प्रेरित किया। संत पापा फ्राँसिस ने लिखा, "हम इन स्थितियों के लिए कोई अजनबी नहीं थे; हमने उन्हें एक खिड़की से बाहर नहीं देखा। तूफान का सामना करते हुए, आपको अपने समुदायों के साथ मौजूद रहने और साथ रहने के तरीके मिले, जब आपने भेड़िया को आते देखा, तो आप भाग नहीं गए या झुंड को छोड़ नहीं दिया।” संत पापा ने याजकों से विवेकशील, दूरदर्शी और सुनने की क्षमता विकसित करने और समर्पित होने का आग्रह किया।

पुरोहितों की प्रेरितिक भावना

इटली के लोम्बार्डी क्षेत्र के डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के साथ बात करते हुए, संत पापा फ्राँसिस ने पुरोहितों के "प्रेरितिक उत्साह और रचनात्मक देखभाल" को याद किया, जिन्होंने लोगों को विश्वास की यात्रा जारी रखने और दर्द एवं भय में उन्हें अकेले नहीं रहने में मदद की।

संत पापा ने कहा,"मैं इतने सारे पुरोहितों की प्रेरितिक भावना की प्रशंसा करता हूँ, जो टेलीफोन द्वारा लोगों तक पहुँचे, या घरों के दरवाज़े खटखटा कर पूछने लगे:  क्या आपको कुछ चाहिए? मैं आपकी खरीदारी करूंगा ...'बहुत सारी बातें।” "ये पुरोहित जो अपने लोगों की देखभाल कर रहे थे: वे ईश्वर की सांत्वना की उपस्थिति के संकेत थे।" इसके बाद उन्होंने कहा: "अफसोस है कि उनमें से कुछ की मृत्यु हो गई है, जैसा कि डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ भी हैं" और उन्होंने याद किया, बहुत से पुरोहित जो बीमार थे, लेकिन, "ईश्वर का शुक्र है", कि बाद में ठीक हो गए। संत पापा ने सभी इतालवी पुरोहितों को धन्यवाद दिया, "जिन्होंने अपने लोगों के सामने साहस और प्रेम का प्रमाण दिया है।"

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14 December 2020, 14:52