26 दिसम्बर 2020  के देवदूत प्रार्थना में संत पापा 26 दिसम्बर 2020 के देवदूत प्रार्थना में संत पापा 

ख्रीस्तीय साक्षी बनने हेतु बुलाये गये हैं, संत पापा

संत पापा फ्रांसिस ने कलीसिया के प्रथम शहीद संत स्तीफन के पर्व दिवस पर देवदूत प्रार्थना के पूर्व ख्रीस्तियों को साक्षी बनने का निमंत्रण दिया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी-शनिवार, 26 दिसम्बर 2020 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने शहीद संत स्तीफन के पर्व दिवस पर ख्रीस्तियों को प्रभु येसु ख्रीस्त की ज्योति बनते हुए साक्ष्य देने का संदेश दिया।

कल के सुसमाचार ने येसु को एक सच्ची ज्योति के रुप में प्रकट किया, ज्योति जो अंधकार में चमकती है और अंधकार उस पर विजयी नहीं होता है।(यो.1.9,5) आज हम उस व्यक्ति के बारे में सुनते हैं जिसने ख्रीस्त का साक्ष्य दिया, संत स्तीफन जो अंधकार में चमकते हैं। साक्ष्य ईश्वर की ज्योति से चमकते हैं उनकी अपनी चमक नहीं होती है। कलीसिया की अपनी ज्योति नहीं है यही कारण है कि प्राचीन समय के धर्माचार्य कलीसिया को “सूर्य का रहस्य” कहा करते थे। सूर्य का अपना प्रकाश नहीं है वैसे ही साक्ष्य की अपनी ज्योति नहीं है, वह येसु की ज्योति को प्रतिबिंबित करता है। स्तीफन को अनुचित रुप में दोषी करार देते हुए पत्थरों से मारा गया, लेकिन पत्थर मारे जाने के वेदना में वे ख्रीस्त की ज्योति को प्रज्ज्वलित करते हैं। उन्होंने अपने हत्यारों के लिए प्रार्थना की और उन्हें माफ कर दिया जैसे कि येसु ने क्रूस पर से किया। वे पहले शहीद अर्थात पहले साक्षी हैं, उन भाई-बहनों की कड़ी में प्रथम जो अंधकार में ख्रीस्त की ज्योति को लाते हैं- वे ख्रीस्तजन जो बुराइयों का प्रत्युउत्तर अच्छाई से देते हैं- वे आज भी हिंसा और झूठों के आगे नतमस्तक नहीं होते लेकिन घृणा की परिधि को नम्रता और प्रेम से तोड़ते हैं। दुनिया की अंधेरी रातों में वे प्रभु के उजाले दिन को लेकर आते हैं।

ख्रीस्त का अनुसरण करना

संत पापा ने कहा कि लेकिन वे कैसे साक्षी बनाते हैंॽ येसु ख्रीस्त का अनुसरण करते हुए, वे येसु की ज्योति को वहन करते हैं। हर ख्रीस्तीय के जीवन की राह यही है येसु ख्रीस्त का अनुसारण करना। संत स्तीफन हमें इसका उदाहरण प्रस्तुत करते हैं- येसु ख्रीस्त सेवा करने आये सेवा कराने नहीं (मत्ती.10.45)। संत स्तीफन ने सेवा का जीवन जीया, वे उपयाजक चुने गये, उपयाजक बनें अर्थात एक सेवक जिसने गरीबों की सेवा की (प्रेरि.6.2)। उन्होंने प्रतिदिन ईश्वर का अनुसरण करने की कोशिश की और अंत तक ऐसा ही किया, येसु ख्रीस्त की तरह ही उन्हें गिरफ्तार किया गया, दोषारोपण किया गया और शहर के बाहर ले जाकर मार डाला गया। वह येसु की तरह प्रार्थना करते और अपने दोषियों के पापों को क्षमा करते हैं। जब उन्हें पत्थर मारा जा रहा था उन्होंने कहा, “हे प्रभु उनके पापों का दोष उन पर मत लगा” (7.60)। येसु का अनुसरण करने के कारण स्तीफन यह साक्ष्य देते हैं।

संत पापा ने कहा कि लेकिन वे कैसे साक्षी बनाते हैंॽ येसु ख्रीस्त का अनुसरण करते हुए, वे येसु की ज्योति को वहन करते हैं। हर ख्रीस्तीय के जीवन की राह यही है येसु ख्रीस्त का अनुसारण करना। संत स्तीफन हमें इसका उदाहरण प्रस्तुत करते हैं- येसु ख्रीस्त सेवा करने आये सेवा कराने नहीं (मत्ती.10.45)। संत स्तीफन ने सेवा का जीवन जीया, वे उपयाजक चुने गये, उपयाजक बनें अर्थात एक सेवक जिसने गरीबों की सेवा की (प्रेरि.6.2)। उन्होंने प्रतिदिन ईश्वर का अनुसरण करने की कोशिश की और अंत तक ऐसा ही किया, येसु ख्रीस्त की तरह ही उन्हें गिरफ्तार किया गया, दोषारोपण किया गया और शहर के बाहर ले जाकर मार डाला गया। वह येसु की तरह प्रार्थना करते और अपने दोषियों के पापों को क्षमा करते हैं। जब उन्हें पत्थर मारा जा रहा था उन्होंने कहा, “हे प्रभु उनके पापों का दोष उन पर मत लगा” (7.60)। येसु का अनुसरण करने के कारण स्तीफन यह साक्ष्य देते हैं।

साक्ष्य क्या करता हैॽ

यहां हम एक सावल को उठता पाते हैं, क्या अच्छाई का साक्ष्य हमारे लिए जरुरी है जब हम दुनिया को बुराई से भरा पाते हैंॽ प्रार्थना करते हुए क्षमा देना से क्या अच्छाई होती हैॽ क्या यह केवल अच्छा उदहारण प्रस्तुत करना हैॽ नहीं, यह इससे भी बढ़कर है। हम इसे एक व्याख्या में पाते हैं। लेख हमें कहता है स्तीफन ने जिन लोग के प्रार्थना की और जिन्हें उन्होंने क्षमा प्रदान किया उनमें “एक युवा व्यक्ति था जिसका नाम सौल था (58)। वह उसकी मृत्यु से सहमत था (8.1) इसके कुछ समय बाद, उसे ईश्वर की ज्योति मिली, ईश्वर की कृपा से सौल का मनफिराव हुआ और वह पौलुस इतिहास का सबसे महान प्रेरित बन गया। पौलुस का जन्म ईश्वर की कृपा से हुआ लेकिन उसमें स्तीफन के क्षमादान के प्रभाव को पाते हैं। यह उसके मनपरिवर्तन का बीज था। हम इसका साक्ष्य पाते हैं कि प्रेमपूर्ण कार्यों के द्वारा इतिहास में बदलाव आते हैं यहां तक कि जो रोज दिन अपने में छोटे, गुप्त होते हैं। क्योंकि ईश्वर उनके द्वारा इतिहास का दिशा-निर्देशन करते हैं जो अपनी साहस भरी नम्रता में प्रार्थना, प्रेम और क्षमा करते हैं। हमारी बगल में बहुत से गुप्त संतगण हैं जो दैनिक जीवन में हमें इसका प्रमाण देते हैं वे अपने छोटे कार्यों के द्वारा इतिहास को बदल देते हैं।

हमारे छोटे कार्य साक्ष्य की निशानी

ईश्वर का साक्षी बनना हमारे लिए भी उचित है। ईश्वर हमसे चाहते हैं कि हम अपने जीवन के छोटे कार्यों के द्वारा जिसे हम अपने रोज दिन के जीवन में करते हैं, अपने सधारण कार्यों के द्वारा जीवन को असधारण बनायें। हम अपने जीवन के द्वारा ईश्वर का साक्ष्य देने हेतु बुलाये गये हैं चाहे हम जहाँ कभी भी रहते हैं, अपने परिवारों, कार्य स्थलों, हर जगह यहां तक की अपनी छोटी मुस्कान के द्वारा भी, जो ईश्वर की ज्योति बनती है। इस तरह जब हम उन चीजों को देखते जो अपने में सही नहीं हैं, उनकी टीका-टिप्पणी, आलोचना करने के बदले उस कठिन परिस्थिति हेतु और उनके लिए प्रार्थना करें जिन्होंने गलती की है। घऱ में जब एक तर्क-वितर्क की शुरूआत होती तो उसमें विजय होने के बदले हम उसे खत्म करने की कोशिश करें और उन्हें क्षमा करें जिन्होंने हमें विरूद्ध गलती की है। हमारे छोटे कार्य ईश्वर की ज्योति हेतु खिड़की बनते हैं। स्तीफन को जब घृणा के कारण पत्थरों से मारा जा रहा था उन्होंने इसका उत्तर क्षमा के द्वारा दिया। इस भांति उन्होंने इतिहास को बदल दिया। हम भी बुराई को हर समय अच्छाई मे बदल सकते हैं जैसे कि एक छोटी कहावत हमें कहती है,“खजूर के पेड़ की तरह बनों, उस पर पत्थर फेंका जाता और वह फल गिराता है”।

प्रताड़ितों के लिए प्रार्थना करें

संत पापा ने कहा कि हम आज उनके लिए प्रार्थना करें जो येसु ख्रीस्त के नाम पर प्रताड़ित किये जाते हैं। दर्भाग्यवश ऐसे बहुत सारे लोग हैं। उनकी संख्या पहले की अपेक्षा आज अधिक है। हम अपने उन भाइयों और बहनों को माता मरियम के हाथों में अर्पित करें जिससे वे अपनी सतावट का उत्तर नम्रता में, सच्चे ख्रीस्तियों की भांति दे सकें, वे बुराई को अपनी अच्छाई से जीत सकें।

इतना कहने के बाद संत पापा ने देवदूत प्रार्थना का पाठ किया और सभों को अपने प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

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26 December 2020, 14:46