संत पापा फ्राँसिस धर्मशिक्षा देते हुए संत पापा फ्राँसिस धर्मशिक्षा देते हुए 

विनयपूर्ण प्रार्थना में लज्जा अनुभव न करें, संत पापा

अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा ने प्रार्थना पर अपनी धर्मशिक्षा माला देते हुए, मांगने में लज्जा की अनुभूति से दूर रहने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन प्रेरितिक निवास की पुस्तकालय से सभों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

हम प्रार्थना पर अपनी धर्मशिक्षा माला जारी रखते हैं। ख्रीस्तीय प्रार्थना पूर्णरूपेण मानवीय है जहाँ हम स्तुति और विनय को पाते हैं। येसु ख्रीस्त ने अपने शिष्यों को “हे पिता हमारे” प्रार्थना द्वारा इन्हीं बातों की शिक्षा दी, जिससे हम विश्वास में ईश्वर पिता के पुत्रों स्वरुप एक संबंध में बने रहते हुए उन्हें अपनी बातों को बता सकें। हे पिता की प्रार्थना में हम ईश्वर से बड़े उपहारों की मांग करते हैं, मानव के बीच उनके नाम की पवित्रता, उनके राज्य आने की मांग, दुनिया में उनकी इच्छा पूरी होने की चाह। काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा हमें याद दिलाती है, “इस प्रार्थना में निवेदनों का अनुक्रम है, हम पहले उनके राज्य हेतु प्रार्थना करते हैं, और तब उनके स्वागत हेतु जरुरी बातें और उसके लिए हमारा सहयोग (सीसीसी.2632)। हे पिता की प्रार्थना में हम दैनिक जीवन की सबसे साधारण उपहारों के लिए भी निवेदन करते हैं जैसे कि “दैनिक आहार” जिसका तत्पर्य स्वास्थ्य, निवास, कार्य और ख्रीस्तीयाग से भी है, जो ख्रीस्त से संयुक्त रहने हेतु हमारे लिए जरुरी है। इसके साथ हम इसमें पापों की क्षमा को पाते हैं जो हमारे बीच शांतिमय संबंध की स्थापना करता है और अंत में परीक्षा और बुराइयों से बचे रहने हेतु सहायता की मांग करता है।  

विनय करना मानवीय निशानी

संत पापा ने कहा कि मांग करना, विनय करना यह मानवीय होने की निशानी है। धर्मशिक्षा इसके बारे में कहती है, “विनय प्रार्थना ईश्वर के संग हमारे संबंध की बातों को व्यक्त करते हैं। सृष्ट प्राणियों स्वरुप स्वयं में हमारे जीवन का अस्तित्व नहीं है, हम विपत्तियों में बने नहीं रह सकते हैं। ख्रीस्तियों के रुप में हम इस बात को जानते हैं कि हम पापी हैं जो पिता से दूर चले गये हैं। हमारा निवदेन उनकी ओर लौटने की निशानी है (2629)।

प्रार्थना, अंधरे बदलों में चमकती लकीरें

संत पापा ने कहा कि अपने जीवन में कभी-कभी हमें लगाता है कि हमें किसी चीज की आवश्यकता नहीं, हम अपने में प्रार्याप्त हैं, हम आत्म-निर्भरता में जीवनयापन करते हैं। लेकिन यह मोह तुरंत ही भंग हो जाता है। मानव अपने में एक पुकार है जो रुदन बन जाती है जिसे हम रोकते हैं। आत्मा अपने में सूखी भूमि-सी लगती है (स्त्रो. 63.2)। हम अपने जीवन के किसी न किसी मोड़ पर अपने में अकेलपन का अनुभव करते हैं। धर्मग्रंथ हमारी मानवीय स्थिति को व्यक्त करने में शर्मिदगी का अनुभव नहीं करती है जहाँ हम बीमारी, अन्याय, मित्रों से धोखा या शत्रुओं से धमकियों को पाते हैं। कभी-कभी हमें ऐसा लगता है कि सारी चीजें खत्म हो गई हैं, अब तक का जीवन हमारा बेकार रहा है। ऐसी निराशा भरी परिस्थिति में हमारे लिए केवल ही रास्ता रहता है, हम ईश्वर से मदद की गुहार करते हैं, “प्रभु मेरी सहायता कीजिए”। प्रार्थना इस भांति अंधेरे बदलों के बीच चमकती लकीरें होती हैं।

सृष्टि में कराह

हम मानव सहायता हेतु अपनी पुकार को सृष्टि के संग साझा करते हैं। यह केवल हम नहीं तो जो इस अनंत विश्व में प्रार्थना करते हैं, बल्कि सृष्टि की हर टूटी चीज ईश्वरीय मदद की मांग करती है। प्रेरित संत पौलुस इसे व्यक्त करते हुए कहते हैं, “हम जानते हैं कि समस्त सृष्टि अब तक मानो प्रसव-पीड़ा में कराहती रही है और सृष्टि ही नहीं, हम बी भीतर-ही भीतर कराहते हैं (रोमि. 8. 22-24)। हम अपने में सारी चीजों को, पेड़ों, पहाड़ों, जीव-जन्तुओं को कराहते हुए पाते हैं जो अपने में पूर्ण होने की मांग करते हैं। तेरतूल्लियन ने लिखा है, “हरएक प्राणी प्रार्थना करता है, जीव-जन्तु और वन प्राणी झुककर प्रार्थना करते हैं, वे खाली मुंह आकाश की ओर नहीं देखते हैं। पंछी अपने नीड़ से बाहर निकल कर आकाश की ओर निहारते, हाथों के बदले वे अपने पंखों को फैलाते, जो प्रार्थना का रुप प्रतीत होता है” (दे ओरासियोने 29)। यह काव्यात्मक अभिव्यक्ति हमें संत पौलुस के विचारों से रुबरु कराती है, “सारी पृथ्वी कराहती, प्रार्थना करती है”। लेकिन केवल हम मानव चेतनमय प्रार्थना में पिता की ओर अभिमुख होते और पिता के संग एक वार्ता में प्रवेश करते हैं।

प्रार्थना में मांग हमें लज्जित न करें

संत पापा ने कहा कि अतः प्रार्थना की आवश्यकता हमें लज्जित न करे, विशेषकर जब हम जरुरत की परिस्थिति में हैं तो हम मांगें। उन्होंने धर्मग्रंथ में बेईमान व्यक्ति के बारे में जिक्र करते हुए कहा, “मुझे मांगने में लज्जा का अनुभव होता है”। हम सब ऐसा ही अनुभव करते हैं, हमें मांगने में, किसी से सहायता की मांग करने में लाज लगती है, हम ईश्वर से मांगने में भी शर्मते हैं। “ऐसा नहीं होना चाहिए। आप प्रार्थना करने में न शर्मायें”। “प्रभु मुझे इस चीज की जरुरत है, प्रभु, मैं इस कठिन परिस्थिति में हूँ, मेरी सहायता कीजिए”। हम अपने हृदय से पिता को पुकारें। हम अपनी खुशी के क्षणों में भी, अपने अच्छे समय में भी ईश्वर से प्रार्थना करें। हमें ईश्वर से मिले सभी चीजों के लिए उनका धन्यवाद करना है और किसी भी चीज को हल्के में नहीं लेना है, हमें सारी चीजें ईश्वर से कृपा के रुप में प्राप्त होती हैं। हमें इस बात को सीखने की जरुरत है कि ईश्वर हमें सदैव अपनी कृपाओं से भरते हैं। यद्यपि, हम अपनी पुकार जो स्वभाविक रुप में हमसे बाहर निकलती है उसे मरोड़ देते हैं, हम ऐसा न करें। विनय की पुकार सृष्ट प्राणी के रुप में हमारी अयोग्यता में बाहर निकलती है। कोई ईश्वर पर विश्वास नहीं करने के बावजूद कठिन परिस्थिति में उनके पास विनय करता है। प्रार्थना हमारी पुकार के रुप में निकलती है जो आंतरिक आवाज के रुप में लम्बें समय तक दबी रहती, लेकिन एक दिन रुदन बनकर बाहर निकलती है।  

प्रार्थना इंतजार की घड़ी है

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि भाइयो एवं बहनों हम जानते हैं कि ईश्वर हमें उत्तर देते हैं। स्त्रोत ग्रंथ में कोई भी ऐसी पुकार की प्रार्थना नहीं, जो अनसुनी रही है। ईश्वर सदैव हमारी पुकार को आज नहीं, तो कल सुनते हैं, एक तरह से नहीं तो दूसरी तरह से, वे सदैव हमें उत्तर देते हैं। बाईबल हमें इसका जिक्र असंख्य बार करती है, ईश्वर अपने पुकारने वालों की आवाज सुनते हैं। वे हमारे लड़खड़ाते सावलों को जो हमारे हृदय की गहराई में रहते जिसे हम उच्चारित करने में शर्म का अनुभव करते, सुनते हैं। वे हमें पवित्र आत्मा देने की चाह रखते हैं जो हर निवेदन और हर चीज को परिवर्तित करते हैं। प्रार्थना में हमें धैर्यवान बने रहते हुए प्रतीक्षा करने की जरुरत है। संत पापा ने कहा कि आगमन का वर्तमान समय हमारे लिए प्रतीक्षा की घड़ी है, हम जन्म पर्व का इंतजार करते हैं। हमारा पूरा जीवन इंतजार का समय है। प्रार्थना हमारे लिए प्रतीक्षा की घड़ी है क्योंकि हम जानते हैं ईश्वर हमें जवाब देंगे। यहाँ तक की प्रार्थना से मृत्यु भी कांपती हैं क्योंकि हर प्रार्थना करने वाला पुनर्जीवित प्रभु में मजबूत बना रहता है। येसु ने मौत पर पहले ही विजय पाई है और एक दिन आयेगा जब हमारा जीवन और हमारी खुशी को हमसे कोई भी छींन नहीं पायेगा।

ईश्वर के लिए द्वार खोलें

संत पापा ने अतः में पुनः इस बात पर जोर दिया कि हम प्रतीक्षा करना, ईश्वर का इंतजार करना सीखें। ईश्वर हमसे मिलने आते हैं, न केवल ख्रीस्त जयंती और पास्का के समय बल्कि वे हर रोज हमारे हृदय में मिलने आते हैं, बशर्तें हम उनकी बांट जोहते हों। हम बहुत बार इसका अनुभव नहीं करते हैं, वे हमारे द्वार खटखटाते और हम उन्हें यूं ही गुजर जाने देते हैं। संत अगुस्टीन कहते हैं, “ईश्वर का आना मुझे भयभीत करता है, क्योंकि वे आते और चले जाते हैं जिनका अनुभव मैं नहीं करता हूँ।” वे आते और दस्तक देते हैं लेकिन यदि आप के कानों में शोर-गुल है तो आप उनकी पुकार को नहीं सुन पायेंगे। संत पापा ने कहा कि इंतजार करना अपने में प्रार्थना करना है।

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09 December 2020, 15:28