बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा  

हम आशीर्वाद दें शाप नहीं, संत पापा

संत पापा फ्रांसिस ने अपने आमदर्शन समारोह में प्रार्थना के एक महत्वपूर्ण आयाम आशीर्वाद की चर्चा की।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 02 दिसम्बर 2020 (रेई)- संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन प्रेरितिक निवास की पुस्तकालय से सभी का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।

आज हम प्रार्थना के एक महत्वपूर्ण आयाम आशीष पर चिंतन करेंगे। उत्पति ग्रंथ(1-2) में हम ईश्वर को निरंतर आशीर्वाद देते हुए पाते हैं। उन्होंने जीव-जन्तुओं को आशीष प्रदान किया (1.22)। उन्होंने नर और नारी को आशीर्वाद दिया (1.28) और अंत में उन्होंने विश्राम दिन को आशीर्वाद देते हुए सारी सृष्टि को पवित्र किया (2.3)। हम धर्मग्रंथ बाईबल के पहले अध्याय में आशीषों की निरंतरता को पाते हैं। ईश्वर हमें आशीष देते हैं, लेकिन हम मनुष्य भी अपने जीवन में दूसरों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं, हम इसे एक विशेष प्रकार की शक्ति के रुप में अनुभव करते हैं जो हमारे पूरे जीवन में व्याप्त रहती है जिसके फलस्वरुप मानव अपने हृदय को ईश्वर द्वारा परिवर्तित होने हेतु छोड़ देता है। (द्वितीय वाटिकन महासभा, साक्रोस्तुंम कोंसियुम, 61)

ईश्वरीय अच्छाई अनश्वर है

संसार के शुरू में, इस भांति हम ईश्वर को “अच्छी बातें”, आशीष देते हुए पाते हैं। वे अपने द्वारा किये गये सभी कार्यं को अच्छा और सुन्दर पाते हैं और जब वे मानव को बनाते, जो सृष्टि के कार्य को परिपूर्ण करता है, उन्हें अपने कार्य “बहुत अच्छे” लगे (उत्प.1.31)। इसके तुरंत बाद ईश्वर कि सुन्दर कृति बदल जाती है और हम बुराई को फैलता हुआ पाते हैं और मृत्यु दुनिया में आती है। लेकिन ईश्वर द्वारा बनाई गई अच्छी चीजें जो दुनिया में, सृष्टि में और हम सभी मानव में हैं, जिनमें आशीर्वाद देने और आशीष का माध्यम बनाने की क्षमता है, कोई भी नष्ट नहीं कर सकता है। ईश्वर ने सृष्टि और मानव के निर्माण में कोई भी गलती नहीं की। दुनिया की आशा, ईश्वर की आशीष में पूर्णरूपेण निहित है, जैसे कि कवि पेगाई कहते हैं वे निरंतर हमारी भलाई चाहते हैं, वे सर्वप्रथम हैं जो आशा में बने रहते हुए हमारी भलाई चाहते हैं।

येसु, सबसे बड़े उपहार

संत पापा ने कहा कि ईश्वर की सबसे बड़ी आशीष हमारे लिए येसु ख्रीस्त हैं जिन्होंने हमें अपने पुत्र को दिया है। वे सारी मानव जाति हेतु एक आशीष हैं जिन्होंने हम सभों को बचाया है। वे हमारे लिए आदि शब्द हैं जिनके द्वारा ईश्वर ने “पापी रहने के बावजूद” हमें अपनी आशीष से भर दिया है। (रोमि.5.8) संत पौलुस कहते हैं कि शब्द शरीर बना और अपने को क्रूस पर अर्पित कर दिया।

संत पौलुस अभिभूत होकर ईश्वरीय योजना के बारे में कहते हैं, “धन्य है हमारे प्रभु ईसा मसीह का ईश्वर और पिता। उसने मसीह द्वारा हम लोगों को स्वर्ग के हर प्रकार के आध्यात्मिक वरदान प्रदान किये हैं। उसने संसार की सृष्टि से पहले मसीह में हम को चुना, जिससे हम मसीह से संयुक्त होकर उसकी दृष्टि में पवित्र और निष्कलंक बनें। उसने प्रेम से प्रेरित होकर आदि में ही निर्धारित किया कि हम ईसा मसीह द्वारा उसके दत्तक पुत्र बनेंगे। इस प्रकार, उसने अपनी मंगलमय इच्छा के अनुसार अपने अनुग्रह की महिमा प्रकट की है। वह अनुग्रह हमें उसके प्रिय पुत्र द्वारा मिल है।” कोई भी ऐसा पाप नहीं जो येसु ख्रीस्त की छवि को हममें पूरी तरह मिटा सकता है। पाप इसे कुरूप कर सकता है लेकिन हमें ईश्वर की दया से वंचित नहीं कर सकता। एक पापी लम्बें समय तक अपनी गलतियों में बना रह सकता है लेकिन ईश्वर अंत तक धैर्यवान बने रहते हैं कि वह अपना हृदय खोल, अपने में परिवर्तन लायेगा। ईश्वर एक अच्छे पिता और माता की तरह  हैं जो अपनी संतान को प्रेम करना नहीं छोड़ते इससे कोई फर्क नहीं होता कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती की है। वे सैदव हमारे साथ ऐसा ही करते हैं।

ईश्वर हमारे माता-पिता

संत पापा ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए उस दृश्य़ का जिक्र किया जहाँ लोग, माताएँ कैदखानों में अपने पुत्रों से मिलने हेतु एक लम्बी कतार में खड़ी रहती हैं। वे कैदी पुत्र की माता होने के शर्म की परवाह नहीं करती हैं। उन्हें लज्जा का अनुभव होता लेकिन वे आगे बढ़ती हैं। ईश्वर हमारे साथ ऐसे ही पेश आते हैं हमारे पापों से अधिक हम उनके लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे हमें एक पिता, एक माता की तरह प्रेम करते हैं। वे हमें अपनी आशीष देना जारी रखते हैं।

ईश्वर की आशीष को एक कैदखाने या सुधारगृह में देखना और पढ़ना कितना प्रेरणापूर्ण अनुभव है। अपनी बड़ी गलतियों के बावजूद उनका यह सुनना कि वे ईश्वरीय आशीष के प्रात्र हैं, ईश्वर उनके प्रति आशावान हैं कि वे अपने को खुला रखते हुए अच्छाई की ओर लौट आयेंगे, उन्हें सुकून प्रदान करती है। उनके निकटवर्ती संबंधियों ने उनका परित्याग कर भी दिया हो क्योंकि वे अपने में सुधार से परे जान पड़ते हैं लेकिन ऐसी परिस्थिति में भी वे सदैव ईश्वर की संतान हैं। ईश्वर हममें अपने प्रतिरूप का परित्याग कभी नहीं करते हैं। बहुत बार ईश्वरीय कृपा में चमत्कार होता है, नर और नारी अपने में परिवर्तन लाते हैं लेकिन ईश्वर हमें नहीं छोड़ते हैं।

येसु की निगाहें हमें बदलती हैं

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि हम जकेयुस के बारे में सोचें येसु ने उसके साथ क्या किया (लूका. 19.1-10। सभी उसे बुरे व्यक्ति के रुप में देखते हैं लेकिन येसु उसमें छोटी-सी चमकती बात को पाते- जो उन्हें देखने की चाह में स्वरूप होती है, यह उसके लिए मुक्ति की राह बनती है। इस तरह येसु उसके हृदय को परिवर्तित करते और उसके जीवन में परिवर्तन लाते हैं। येसु लोगों के जीवन में पिता की असीम कृपा को देखते हैं जिन्हें समाज ने दुत्कार और परित्याग दिया है। वे अपनी करूणा से लोगों के हृदयों में परिवर्तन लाते हैं। वे अपने को उन लोगों के साथ संयुक्त करते हैं जिन्हें उनकी जरुरत है। (मत्ती.25.31-46)। संत पापा ने अंतिम न्याय के बारे में जिक्र करते हुए कहा कि येसु हमें कहते हैं, “मैं वहां भूखा था, मैं नंगा था, मैं कैदी था और वहाँ अस्पताल में था।”

आशीष के स्रोत बनें

ईश्वर जो हमें अपनी आशीष प्रदान करते हैं, हम अपनी स्तुति पूर्ण प्रार्थना, आराधना और कृतज्ञता की प्रार्थना में आशीषों का प्रतित्युर देते हैं। ईश्वर ने हमें आशीर्वाद देने और आशीष का माध्यम होने की शिक्षा दी है। कथलिक कलीसिया धर्मशिक्षा में हम पाते हैं, “आशीष की प्रार्थना, मानव द्वारा ईश्वर से मिले उपहारों का उत्तर है, क्योंकि ईश्वर हमें आशीष देते हैं, उसके बदले में मानव हृदय दूसरों को आशीष प्रदान करता है जो आशीष का स्रोत है (सीसीसी.2626)। प्रार्थना आनंद और चेतना है। ईश्वर ने हमें प्रेम करने के लिए परिवर्तन की प्रतीक्षा नहीं की लेकिन उन्होंने हमें पहले से ही प्रेम किया, जब हम पापों में पड़े हुए ही थे।

दुनिया को आशीष की जरुरत है

हम ईश्वर का सिर्फ धन्यवाद अदा कर सकते हैं जिन्होंने हमें अपनी आशीष कृपादानों से भर दिया है। हम सभी चीजों में उनका धन्यवाद करते हैं। हम अपने भाइयों को आशीष देने में, विश्व के प्रति अपनी कृतज्ञता में ईश्वर का धन्यवाद अदा करते हैं, क्योंकि अपने में ईश्वरीय कृपाओं का एहसास करना और दूसरों के लिए आशीष का स्रोत बनना ही ख्रीस्तीय दीनहीनता के मनोभाव हैं। संत पापा ने कहा कि यदि हम सभी ऐसा करते तो युद्धें नहीं होतीं। दुनिया को आज आशीष की जरुरत है और हम इसे दूसरों को देते हुए अपने लिए प्राप्त करते हैं। पिता हमें प्रेम करते हैं। हम उन्हें अपनी खुशी और कृतज्ञता के भाव में हृदय उदगार स्वरुप व्यक्त करते हैं। हम उनसे दूसरों को आशीष देना सीखें न कि शाप। उन्होंने उन लोगों से कहा जो अपने मुँह और हृदय में बुरी बातें लाते और जो अभिशाप देते हैं क्या मैं दूसरों को शाप देता हूँॽ यदि ऐसा है तो हम ईश्वर से अपने में परिवर्तन हेतु कृपा की मांग करें क्योंकि हमें आशीष से भरा हृदय मिला है जिससे शाप नहीं निकल सकता है। ईश्वर हमें अभिशाप देने हेतु नहीं वरन आशीष देने की शिक्षा दें।

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02 December 2020, 14:44