वाटिकन निवास की लाईब्रेरी में आमदर्शन समारोह का नेतृत्व करते संत पापा फ्राँसिस और वाटिकन के सदस्य वाटिकन निवास की लाईब्रेरी में आमदर्शन समारोह का नेतृत्व करते संत पापा फ्राँसिस और वाटिकन के सदस्य  

आमदर्शन में पोप˸ प्रार्थना, हमारे जीवन के मार्गदर्शन हेतु रडार

संत पापा फ्रांसिस ने 4 नवम्बर को अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह को, इटली में कोविड-19 महामारी का संक्रमण बढ़ जाने के कारण, वाटिकन निवास के प्रेरितिक पुस्तकालय से लाईव प्रसारण के माध्यम से प्रसारित किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 4 नवम्बर 2020 (रेई) - संत पापा फ्रांसिस ने 4 नवम्बर को अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह को, इटली में कोविड-19 महामारी का संक्रमण बढ़ जाने के कारण, वाटिकन निवास के प्रेरितिक पुस्तकालय से लाईव प्रसारण के माध्यम से प्रसारित किया। अपनी धर्मशिक्षा माला शुरू करने के पूर्व उन्होंने विश्वासियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

"दुर्भाग्य से, हमें इस आमदर्शन समारोह के लिए लाईब्रेरी में लौटना पड़ा और यह कोविड के संक्रमण से बचने के लिए है। यह हमें यह भी सिखलाता है कि हमें इस महामारी से बचाव के लिए अधिकारियों के नुस्खों के प्रति बहुत चौकस रहना है, चाहे वे राजनीतिक अधिकारी हों अथवा स्वास्थ्य अधिकारी। हम आपस की इस दूरी को सभी की भलाई के लिए प्रभु को चढ़ायें। हम उन लोगों की याद करते है जो बीमार हैं, जो परित्यक्त रूप में अस्पतालों में भर्ती हैं, हम डॉक्टरों, नर्सों, स्वयंसेवकों और उन सभी लोगों की याद करते हैं जो इस समय बीमार लोगों की मदद कर रहे हैं। वे अपने जीवन को खतरे में डाल रहे हैं किन्तु वे एक बुलाहट की तरह, पड़ोसी प्रेम के लिए ऐसा कर रहे हैं। हम उनके लिए प्रार्थना करें।"

प्रार्थना पर धर्मशिक्षा

तत्पश्चात् अपनी धर्मशिक्षा माला में आगे बढ़ते हुए संत पापा ने कहा, "अपने जन सामान्य जीवन में येसु निरंतर प्रार्थना की शक्ति का उपयोग करते हैं। सुसमाचार इसे हमारे लिए येसु के एकांतवास में जाना निरूपित करता है जहाँ वे प्रार्थना करते हैं। यह हमारे लिए येसु की प्रार्थनामय वार्ताओं का जिक्र करता है। यह हमें स्पष्ट रुप में इस बात से रुबरु कराता है कि येसु अपनी प्रेरिताई की व्यस्तता, गरीबों और बीमारों के साथ समय व्यतीत करने के बावजूद पिता के संग अपनी वार्ता की अवहेलना नहीं करते थे। वे जितना अधिक जरुरमंदों के जीवन से जुड़े होते, उतनी ही अधिक तृत्वमय ईश्वर से अपनी एकता की जरुरत महसूस करते थे।

येसु की प्रार्थना एक रहस्यमय सच्चाई

संत पापा ने कहा कि इस तरह हम येसु के जीवन में एक रहस्य को पाते हैं जो मानवीय आंखों से छिपी हुई है, जो सभी चीजों का आधार है। येसु की प्रार्थना एक रहस्यमय सच्चाई है जिनका अंतर्ज्ञान हमें बहुत कम होता है, लेकिन यह हमें उनकी पूरी प्रेरिताई को सही निगाहों से देखने, जानने और समझने में मदद करती है। रात्रि पहर या प्रातःकालीन समय, जहाँ येसु एकांत में अपने पिता के संग व्यतीत करते हुए, अपने को उनके प्रेम से सराबोर करते है, जैसे कि हर आत्मा प्रेम की प्यासी होती है। इसे हम उनकी प्रेरिताई, जन सामान्य जीवन के प्रथम चरण में ही पाते हैं।

उदाहरण स्वरुप, शनिवार का दिन कफरनाहूम का शहर एक तरह के “खुले अस्पताल” में तब्दील हो जाता है। सूर्यास्त के बाद लोग बीमारों को येसु के पास चंगाई हेतु ले कर आते हैं, और वे उन्हें चंगा करते हैं। तथापि प्रातःकाल से पहले, येसु गुप्त स्थान पर जाते, वे एकांत में प्रार्थना करने चले जाते हैं। सिमोन और अन्य दूसरे उनकी खोज करते हुए आते और उन्हें पाने पर कहते हैं, “हर कोई आपको खोज रहा है।” वे कहते हैं, “हम दूसरे शहरों में भी चलें जिससे मैं वहाँ भी सुसमाचार का प्रचार कर सकूँ, क्योंकि मैं इसी कार्य के लिए आया हूँ।”(मरकुस 1.35-38)

प्रार्थना की शिक्षा

संत पापा ने कहा कि प्रार्थना एक रडार की भांति है जो येसु का पथदर्शक है। येसु की प्रेरिताई की रुप-रेखा, उनके कार्यों की सफलता पर नहीं, न लोगों की सहमति और न ही उत्प्रेरित करने वाले वाक्य “हर कोई आप को खोज रहा है” पर निर्भर करती है। परन्तु यह पिता की प्रेरणा पर आधारित है जिसे येसु एकांतवास में प्रार्थना के माध्यम से अपने लिए सुनते और ग्रहण करते हैं। 

काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा हमें इस बात को सुस्पष्ट करती है, “जब येसु प्रार्थना करते हैं तो वे अपनी प्रार्थना के द्वारा प्रार्थना करने की शिक्षा देते हैं।” (सीसीसी. 2607) इस तरह हम येसु के प्रार्थनामय उदाहरण में ख्रीस्तीय प्रार्थना के कुछ गुणों को देख सकते हैं।

प्रार्थना दिन की पहली चाह

संत पापा ने कहा कि प्रार्थना सर्वप्रथम हमारे लिए दिन की पहली चाह है, जिसका अभ्यास हम भोर को, दुनिया के जागने से पहले करते हैं। यह हमारी आत्मा को पुनर्स्थापित करती है जिसके बिना हम सांसविहीन हो जायेंगे। प्रार्थना के बिना एक दिन को जीना हमारे जीवन को थकान भरा या ऊबाऊ बना देता है, हमारे जीवन में घटित होने वाली सारी घटनाएँ इसके बिना बुरी तरह प्रभावित होतीं और हम उन्हें फूटे भाग्य की भांति देखते हैं। अतः येसु हमें इस बात की शिक्षा देते हैं कि आज्ञाकारिता और सच्चाई में हमें सुनने की आवश्यकता है। प्रार्थना सर्वप्रथम अपने में सुनना और ईश्वर से मुलाकात करना है। ऐसे करने से हमारे दैनिक जीवन की मुसीबतें हमारे लिए बाधाएं नहीं बनती हैं, वरन् येसु की ओर से एक पुकार बनतीं, जहाँ हमें उन लोगों को सुनते और उनसे मिलते हैं जो हमारे सामने होते हैं। हमारे जीवन की चुनौतियाँ हमारे लिए अवसर में बदल जाती हैं जिनके द्वारा हम विश्वास और करूणा में बढ़ते हैं। रोज दिन की हमारी जीवन की यात्रा अपनी मुसीबतों में भी हमारे लिए एक “बुलाहट” बनती है। प्रार्थना में वह शक्ति होती है जो जीवन की बुराइयों को अच्छाइयों में परिवर्तित कर देती है। इसमें वह शक्ति है जो एक बृहृद मानसिक क्षितिज को खोलती और हमारे हृदय को विस्तृत बनाती है।  

प्रार्थना एक कला है

दूसरा, प्रार्थना एक कला है जिसे हमें निरंतर अभ्यास करना है। येसु हमें कहते हैं कि हमेशा खटखटाते रहो। हम सभी प्रासंगिक प्रार्थना करना जानते हैं जो हमारी क्षणिक मनोभावना से उत्पन्न होती है। लेकिन येसु हमें एक अलग तरह की प्रार्थना करना सीखलाते हैं जो एक अनुशासन, एक व्ययाम और हमारे जीवन के लिए एक नियम की तरह है। प्रार्थना की निरंतरता हमारे जीवन में प्रगतिशील परिवर्तन उत्पन्न करती है जो जीवन की कठिन परिस्थिति में हमें सुदृढ़ बनाती है, हमें कृपा से पोषित करती जो उनके द्वारा आता है जो हमें प्रेम करते औऱ सदैव हमारी रक्षा करते हैं।

प्रार्थना के लिए एकांत की जरूरत

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि येसु की प्रार्थना की एक दूसरी विशेषता एकांत में रहना है। वे जो प्रार्थना करते हैं, दुनिया से दूर नहीं भागते, वरन् एकांतवास को पसंद करते हैं। एकांतवास  हमारे हृदय की गरहाई में बहुत सारी आवाजें लातीं जिन्हें हम अपने में छुपा कर रखते हैं, हमारी इच्छाएं, वे सच्चाइयाँ जिन्हें हम अपने अंदर दबा कर रखते हैं, और इससे भी बढ़कर, शांति में ईश्वर हमसे बातें करते हैं। हर व्यक्ति के लिए एक स्थान की जरुरत है जिससे वह अपने आंतरिक जीवन की देख-रेख कर सके जहाँ कार्य अपने में अर्थपूर्ण होते हैं। आंतरिक जीवन के अभाव में हमारा जीवन छिछला, विचलित, चिंतामय हो जाता है, चिंता हमारे लिए बुराई उत्पन्न करती है। यही कारण है कि हमें प्रार्थना करने की जरुरत है। अपनी आंतरिक स्थिति से संलग्न हुए बिना हम सच्चाई से भागते, अपने आप से भागते हैं।

प्रार्थना, जीवन के सही आयाम को खोजने में मदद देती है

अंत में, येसु की प्रार्थना वह स्थल बनती है जिसके फलस्वरुप हम सारी चीजों को ईश्वर की ओर से आते और उनकी ओर लौटते हुए देखते हैं। संत पापा ने कहा कई बार हम मानव अपने को सारी चीजें के मालिक समझते हैं या इसके विपरीत हम अपनी सारी बातों को खो देते हैं। प्रार्थना में हम ईश्वर पिता से और सारी सृष्टि से अपने को संयुक्त पाते जो हमें जीवन के सही आयाम को खोजने में मदद करता है। येसु की प्रार्थना अपने को ईश्वर पिता के हाथों में छोड़ देना है जैसे कि हम गेस्तसेमानी बारी, उनके दुःखभोग में पाते हैं। “हे पिता यदि हो सके तो... लेकिन तेरी इच्छा पूरी हो।” संत पापा ने कहा कि हम अपने को पिता के हाथों में सौंप दें। जब हम अपने जीवन में विचलित और थोड़ा चिंतित हो जाते तो पवित्र आत्मा हमें आंतरिक रुप में परिवर्तित करते हुए अपने को ईश्वर पिता के हाथों में सौंपने हेतु मदद करें। “पिता तेरी इच्छा पूरी हो।”  

हम येसु ख्रीस्त को प्रार्थना के एक शिक्षक स्वरुप खोजे और अपने को उनके विद्यालय में लायें। इसके द्वारा हमें शांति और खुशी प्राप्त होगी।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सबों के संग हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

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04 November 2020, 14:43