संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  

महामारी के दौरान जीवन के मुख्य बिन्दुओं पर संत पापा के विचार

संत पापा फ्राँसिस ने स्पानी मासिक पत्रिका "इल मियो पापा" (मेरे संत पापा) को दिए एक साक्षात्कार में उन मुख्य मुद्दों पर प्रकाश डाला है जो महामारी के समय उत्पन्न हुए हैं तथा उन्होंने वर्तमान चुनौतियों से निपटने के लिए कई उपाय बताये हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 8 अक्टूबर 2020 (वीएन)- संत पापा फ्राँसिस ने स्पानी मासिक पत्रिका "इल मियो पापा" (मेरे संत पापा) को दिए एक साक्षात्कार में उन मुख्य  मुद्दों पर प्रकाश डाला है जो महामारी के समय उत्पन्न हुए हैं तथा उन्होंने वर्तमान चुनौतियों से निपटने के लिए कई उपाय बताये हैं। 

"इल मियो पापा" पत्रिका के स्पानी संस्करण के निदेशक कार्मेन मगाल्लोन ने संत पापा फ्राँसिस के साक्षात्कार पर बुधवार को एक लेख प्रकाशित किया। संत पापा ने भावी पीढ़ी एवं हाशिये पर जीवनयापन करनेवालों पर कोविड-19 महामारी का प्रभाव तथा आप्रवासी एवं कलीसिया के सेवकों के मिशन आदि विषयों पर प्रकाश डाला है।

भावी पीढ़ी के लिए चिंता

संत पापा ने कहा है कि महामारी दुनिया को बदल रही है तथा हमें संकट में डाल रही है। फिर भी, यह असंभव है कि संकट से उबरकर पहले की स्थिति में वापस लौटा जाए। या तो हम बेहतर रूप में बाहर आ सकते हैं अथवा पहले से अधिक बुरी स्थिति में पड़ सकते हैं और हम किस तरह आगे बढ़ेंगे, वह निर्भर करेगा कि हमने संकट के समय में क्या निर्णय लिया। 

संत पापा ने कहा है कि मामला सारी मानव जाति का है और उन्होंने प्रश्न किया है कि हम भावी पीढ़ी के लिए किस तरह की जीवन शैली छोड़नेवाले हैं। हमें सिर्फ अपने आपके लिए अथवा वर्तमान के लिए चिंता करने की आदत को छोड़ना होगा तथा भावी पाढ़ी को उस मानवता के परिपेक्ष्य से देखना होगा जो सृष्टि के साथ जुड़ा रहना चाहता है। हमें भविष्य के लिए जिम्मेदारी लेनी होगी, एक पृष्टभूमि तैयार करनी होगी ताकि दूसरे वहाँ काम कर सकें। महामारी में हमें इसी मानसिकता को बढ़ाना होगा, उस महान सिद्धान्त के रूप में कि व्यक्ति संकट के बाद पहले की तरह वापस नहीं लौट सकता। हम या तो बेहतर बन सकते हैं अथवा बदतर किन्तु पहले की स्थिति में नहीं आ सकते।    

पीड़ा का सामना हम किस तरह करते हैं?

मगाल्लोन के प्रश्न कि जिन्होंने महामारी में अपने प्रियजनों को खो दिया है वे अपने दुःख का सामना किस तरह करें, इसके उत्तर में संत पापा ने शोकित लोगों से अपील की है कि वे उन छोटे बड़े सभी कार्यों की याद करें और उनकी सराहना करें जिनको अनेक लोगों ने दूसरों के लिए किया है। "उस पीड़ा से कैसे निपटें? नजदीक रहकर ...चुपचाप, निकटता, जितना संभव हो नजदीक रहने के द्वारा।"

लगातार प्रतिबद्धता

संत पापा ने उन लोगों की याद करते हुए जो दूसरों की सेवा, उनकी जरूरत में करने के लिए समर्पित किया है कहा कि कई संत हें जो हमारे ही बगल में रहते हैं। उन्होंने कहा, "इन लोगों ने भागना नहीं चाहा, बल्कि समस्याओं का सामना किया एवं उनके लिए व्यवहारिक समाधान की खोज की। ईश्वर इस भाषा को समझते हैं और वे इसे अपनी भाषा बनाते हैं।"

संत पापा ने इस बात की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया कि जीवन के लिए हमारे समर्पण को स्वास्थ्य तक ही सीमित नहीं होना चाहिए बल्कि हमें उन लोगों की ओर भी ध्यान दे सकना चाहिए जो बहिष्कृत एवं बेरोजगार हैं। हम एक बड़ी सामाजिक चुनौती झेल रहे हैं जो प्रकट करता है कि किस तरह फेंकने की संस्कृति ने हमारे संबंधों को बाधित कर दिया है, यही कारण है कि हम उसी आर्थिक प्रणाली के साथ आगे नहीं बढ़ सकते जिसकी नींव में अन्याय है।   

महामारी ने दिखाया है कि हम इस फेंकने की संस्कृति के कितने आदी हो चुके हैं जो बुजूर्गों, गरीबों, बच्चों और अजन्म शिशुओं का बहिष्कार करता है। इस प्रकार के बहिष्कार को देखते हुए संत पापा ने सभी को यह याद रखने के लिए निमंत्रण दिया है कि "हर जीवन का मूल्य है और वह सुरक्षा एवं सम्मान के योग्य है।"

भविष्य का किस तरह निर्माण किया जाए? सार्वजनिक भलाई एक कसौटी

संत पापा ने इस बात पर भी जोर दिया कि संकट से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता नहीं है बल्कि हम अन्य रास्ते भी पा सकते है यदि हम आर्थिक रूपावली को बदलें। सुदूर क्षेत्रों से शुरू करें ... लोगों की प्रतिष्ठा के लाभ के लिए कार्य करें।  

उन्होंने कहा, "मैं सुदूर क्षेत्रों के बारे बोलता हूँ लेकिन हमें आम घर को भी शामिल करना है जो विश्व और ग्रह की देखभाल करना है।"

आप्रवासी

आप्रवासियों के मुद्दे पर सवाल किये जाने पर संत पापा ने कहा कि "आप्रवासियों के संबंध में हमें जिम्मेदारी लेने की जरूरत है। आप्रवासी अपना देश छोड़ते हैं क्योंकि वे अपने लिए एक नये क्षितिज की खोज कर रहे होते, क्योंकि वे भूखमरी और युद्ध से भागने का प्रयास करते हैं। सीरिया के बारे सोचना काफी है... यदि हम आप्रवासियों की चिंता नहीं करते हैं तो हम मानवता और संस्कृति के एक बड़े हिस्से को खो रहे हैं जिसकी वे प्रतिनिधित्व करते हैं।  

संत पापा ने आप्रवासयों के योगदान की याद करते हुए कहा, "लॉकडाऊन के दौरान कई आप्रवासी थे जिन्होंने खेतों पर काम करने की जोखिम उठायी, शहर को साफ रखा एवं कई प्रकार की सेवाओं को जारी रखा।" उन्होंने कहा कि यह देखना दुखद है कि उन्हें पहचाना नहीं जाता और न ही महत्व दिया जाता है, किसी दूर की घटना के लिए बहुत सारे लोगों पर संदेह किया जाता है जो अपने काम के द्वारा हमें सहयोग देते हैं। संत पापा ने आह्वान किया कि आप्रवासियों के मामलों पर ध्यान दिया जाए।

गरीबों की एक कलीसिया

संत पापा ने उस सच्चाई पर भी प्रकाश डाला है कि "कई पुरोहित, धर्मसमाजी, लोकधर्मी, धर्मबहनें और धर्माध्यक्ष इसे प्राप्त करने के लिए अपना जीवन अर्पित करते हैं। कई सुन्दर उदाहरण हैं जो हमें रास्ता दिखलाते हैं।"

इस पृष्टभूमि पर संत पापा पूरी मानव जाति से उम्मीद करते हैं। "मानव जाति प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकती है, विशेषकर, सुदूर क्षेत्रों में यदि यह व्यवस्थित हो। संस्कृति के बारे में, "मैं लोगों की आत्मा की चिंता करता हूँ, उस आध्यात्मिक शक्ति की जो उन्हें हमेशा आगे जाने की अनुमति देता है।”

संत पापा ने उन लोगों की भी याद की जो अत्याचार के शिकार हैं उदाहरण के लिए याजिदी और रोहिंग्या, "वे पीड़ित और सताये गये लोग हैं। जब तक सारी मानव जाति इसके लिए जिम्मेदारी न ले, कोई उम्मीद नहीं है।" 

अंततः संत इग्नासियुस लोयोला के मन परिवर्तन के 500 साल पूरा होने पर, संत पापा ने मनरेसा जाने की इच्छा व्यक्त की जहाँ संत इग्नासियुस ने मन-परिवर्तन की अपनी यात्रा शुरू की थी।

उन्होंने कहा, "मैं मानता हूँ कि संत इग्नासियुस का मन-परिवर्तन भी हृदय की एक मुठभेंड़ है और हमें अपने मन-परिवर्तन पर चिंतन करने का निमंत्रण देता है, मन परिवर्तन की कृपा मांगने के लिए ताकि हम येसु ख्रीस्त के समान अधिक से अधिक प्रेम और सेवा कर सकें।"

 

 

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08 October 2020, 16:14