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संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  

जब हम प्रार्थना करते हैं, दुःख में ईश्वर हमारे साथ होते हैं

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन के अवसर पर विश्वासियों को संबोधित करते हुए स्रोत्र ग्रंथ पर चिंतन किया जो प्रार्थनाओं से भरी है, जो हमारे लिए मातृभूमि बनती है, वह घर जहाँ असंख्य लोग अपने लिए एक आश्रय को पाते हैं। यह स्त्रोत ग्रंथ है जहां हम 150 स्त्रोतों को प्रार्थना के रुप में पाते हैं।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 14 अक्टूबर 2020 (रेई)- संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन के अवसर पर वाटिकन के संत पौल षष्टम सभागार में जमा हुए विश्वासियों और सभी तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

धर्मग्रंथ का पाठ करते हुए हम निरंतर विभिन्न तरह की प्रार्थनाओं को पाते हैं। लेकिन उनमें एक ऐसी भी पुस्तिका है जो सिर्फ प्रार्थनाओं से भरी है, एक ऐसी पुस्तिका जो हमारे लिए मातृभूमि बनती है, वह घर जहाँ असंख्य लोग अपने लिए एक आश्रय को पाते हैं। यह स्तोत्र ग्रंथ है जहां हम 150 स्तोत्रों को प्रार्थना के रुप में पाते हैं।

किस तरह प्रार्थना करें?

यह प्रज्ञा ग्रंथ का अंश है, क्योंकि यह हमें “प्रार्थना करने की शिक्षा” देती है, जिसके फलस्वरुप हम अपने अनुभवों के द्वारा ईश्वर से वार्ता करते हैं। स्तोत्र ग्रंथ में हम मानव के सभी मनोभावनाओं को पाते हैं, खुशी, दुःख, संदेह, आशा, कड़वापन जिनसे हमारा जीवन रंगा हुआ है। कलीसियाई धर्मशिक्षा इस बात की पुष्टि करती  है कि हर स्तोत्र “अपने में उस सरलता को वहन करता है जिसके फलस्वरुप मानव सच्चे रुप में अपने जीवन की हर परिस्थिति और समय में प्रार्थना कर सकता है” (सीसीसी 2588)। भजन संहिता के पठन-पाठन द्वारा हम प्रार्थना की भाषा को सीखते हैं। ईश्वर पिता, पवित्र आत्मा के द्वारा राजा दाऊद और अन्य व्यक्तियों के हृदय को अपनी प्रेरणा से भरते हैं जिन्होंने अपने जीवन में प्रार्थना की। वे हर नर-नारी को इस बात की शिक्षा देते हैं कि ईश्वर की स्तुति, उनका धन्यवाद, उनसे निवेदन कैसे करना है। हमें अपने जीवन के दुःख और खुशी के क्षणों में, उनके आश्चर्यजनक कार्यों और उनके नियमों के लिए उन्हें कैसे पुकारना है। संक्षेप में, स्तोत्र ईश्वर के वे वचन हैं जिनका उपयोग हम उनसे वार्ता हेतु करते हैं।

इस पुस्तक में हम पारलौकिक व्यक्ति से नहीं मिलते जो हमें प्रार्थना को लेकर भ्रमित, अपने अनुभवों से तटस्थ करता हो। स्तोत्र कागजों में लिखित लेख नहीं हैं बल्कि वे पुकारें हैं जो बहुधा जीवन के नटकीय क्षणों, दैनिक जीवन की एक परिस्थिति से उत्पन्न हुई हैं। संत पापा ने कहा कि अतः एक अच्छी प्रार्थना अपने को उसी रुप में ईश्वर के सामने प्रस्तुत करना है जैसे कि हम हैं न की अपने को नकाब में प्रस्तुत करना। हमें अपनी अच्छाइयों के साथ-साथ अपनी कमजोरियों को भी जिन्हें केवल हम जानते हैं ईश्वर के पास लाने की जरूरत है। स्तोत्र में हम लोगों को हांड़ और मांस अर्थात् अपने जीवन के असल परिस्थितियों, मुसीबतों, कठिनाइयों और अनिश्चिताओं में प्रार्थना करते हुए पाते हैं। स्तोत्र लेखक जीवन की पीड़ाओं से लड़ाई नहीं करता, वह जानता है कि वे उसके जीवन के अंग हैं। स्तोत्रों में हम दुःखों को सवालों में परिणत पाते हैं। दुःखों के कारण हमारे जीवन में सवाल उत्पन्न होते हैं।  

दुःखों में सवाल उठना

स्तोत्र में हम बहुत सारे सवालों को पाते हैं लेकिन उनमें एक सवाल मुख्यतः शुरू से लेकर अंत तक उभर कर आता है जिसे हम भी अपने जीवन में बहुत बार पूछते हैं, “कब तकॽ, प्रभु, कब तकॽ”। हम अपने जीवन की हर दुःख तकलीफ से निजात, हर आंसू में सांत्वना, हर घाव से चंगाई, हर निंदा से मुक्ति की आशा करते हैं। “मुझे और कितना दुःख उठाना है प्रभुॽ, मेरी पुकार सुन”। संत पापा ने कहा कि हमने कितनी बार इस तरह की प्रार्थना की है। “कब तक, प्रभु, और कब तक, इसे दूर कर”।

इस तरह के सवालों को निरंतर करते हुए, स्तोत्र हमें बतलाता है कि हम अपने दुःखों से आदी न हों, हमें इस बात की याद दिलाती है कि जीवन अपने में तबतक सुरक्षित नहीं जबतक इसमें चंगाई नहीं है। मानव का जीवन अपने में केवल एक सांस मात्र है, उसकी कहानी क्षणभंगुर है, लेकिन प्रार्थना करने वाले जानते हैं कि उनका जीवन ईश्वर की नजरों में मूल्यवान है अतः उनकी रूदन अर्थपूर्ण होती है।

संत पापा ने कहा कि जब हम प्रार्थना करने जाते हैं तो हम यह जानते हैं कि हम ईश्वर की नजरों में मूल्यवान हैं और इसी कारण हम प्रार्थना करते हैं। उन्होंने कहा कि यह पवित्र आत्मा हैं जो हममें इस प्रज्ञा को प्रेषित करते हैं कि हम सभी ईश्वर की नजरों में कीमती है।

स्तोत्र की प्रार्थना रूदन, बहुत सारी आहों का साक्ष्य है क्योंकि जीवन में बहुत सारी कठिनाइयाँ हैं और यदि हम उनको नामित करें तो बीमारी, घृणा, युद्ध, सतावट, अविश्वास... उससे भी बढ़कर एक “कांड” जो मौत है। मौत स्तोत्रकर्ता के जीवन का सबसे वृहृद अतर्कपूर्ण शत्रु प्रतीत होता है, किस अपराध की सजा इतनी क्रूर है जहाँ हम सर्वनाश और अंत को पाते हैंॽ स्तोत्र लेखक की प्रार्थना ईश्वरीय हस्ताक्षेप की बात कहती है जब मानव के सारे प्रयास व्यर्थ दिखाई देते हैं। यही कारण है कि प्रार्थना, अपने में मुक्ति का मार्ग और मुक्ति की शुरूआत है।

प्रार्थना : ईश्वर से एक पुकार

सभी इस दुनिया में दुःख सहते हैं चाहे वे ईश्वर में विश्वास करते हों या नहीं। लेकिन स्तोत्र लेखक के लिए दुःख एक संबंध बनता है जहाँ वे सहायता हेतु पुकारते हैं। यह पुकार अपने में अर्थहीन, बिना उद्देश्य के नहीं हो सकती है। यहाँ तक कि हम जो दुःख सहते हैं विशिष्ट रुप में दुनिया के नियम मात्र नहीं होते, वे सदैव “मेरे” आंसू होते हैं। संत पापा ने इस बात पर विचार करने को कहा कि आँसू विश्व के नहीं “मेरे” होते हैं। ये हर किसी के हैं। “मेरे” आँसू और “मेरे” दुःख मुझे प्रार्थना हेतु ढ़केलते हैं। वे “मेरे” आंसू हैं जिन्हें किसी ने मेरे सामने नहीं बहाया है। बहुतों ने रोया है, लेकिन “मेरे” आंसू मेरे अपने हैं, “मेरे” दुःख-दर्द “मेरे अपने हैं।

संत पापा फ्रांसिस ने आमदर्शन समारोह में प्रवेश करते समय उस पुरोहित के माता-पिता से अपनी मुलाकात की बात साझा की जिन्हें सेवा करने के कारण कोमो में मार डाला गया। उन माता-पिताओं के आंसू उनके “आँसू” हैं जिन्होंने अपने बेटे को गरीबों की सेवा में मरते देखा। उन्होंने कहा कि जब हम किसी को सांत्वना देना चाहते तो हमें शब्द नहीं मिलते हैं क्योंॽ क्योंकि हम उनके दुःख की थाह नहीं ले सकते क्योंकि उनके दुःख “उनके” दुःख हैं, उनके आँसू “उनके” आँसू हैं। हमारे साथ भी ऐसा ही है, हम अपनी आँसुओं, अपने दुःखों के साथ प्रभु के पास आते हैं। मानव के सभी दुःख ईश्वर के लिए पवित्र हैं। स्तोत्र 56 हमें कहता है, “मेरी विपत्तियों का विवरण और मेरे आँसुओं का लेखा तेरे पास है” (9)। हम ईश्वर के सम्मुख अपरिचित या संख्या नहीं हैं। हम उनके हृदय में निवास करते हैं वे हममें से हर किसी को हमारे नामों से जानते हैं।

ईश्वर का द्वार हमेशा खुला

स्तोत्र में विश्वासी अपने लिए एक जवाब पाता है। वह जानता है कि चाहे मानव के सारे दरवाजे बंद हो जायें, ईश्वर का द्वार हमेशा खुला रहता है। यद्यपि सारी दुनिया न्याय में एक सजा सुनाये लेकिन ईश्वर के यहाँ मुक्ति है।

संत पापा ने कहा कि “ईश्वर हमारी सुनते हैं”, प्रार्थना में इसका एहसास करना काफी है। मुसीबतों का समाधान सदैव नहीं होता। वे जो प्रार्थना करते हैं विचलित नहीं होते हैं, वे जानते हैं कि इस दुनिया में बहुत सारे सवाल हैं जिनका उत्तर नहीं है, उनका हल नहीं है, दुःख तकलीफ सदैव हमारे जीवन में रहेंगी, एक लड़ाई खत्म होने पर दूसरी शुरू होगी, लेकिन जब हम सुने जाते हैं तो सारी चीजें हमारे लिए सहज हो जाती हैं।

ईश्वर हमारे साथ रोते हैं

हमारे लिए सबसे बुरी बात यह हो सकती है कि हम अकेले दुःख झेलने हेतु छोड़ दिये जाते हैं, हमें कोई याद नहीं करता है। प्रार्थना इस परिस्थिति में हमें बचाती है। ऐसा हो सकता है और ऐसा बहुत बार होता है और हम नहीं समझते कि ईश्वर की योजना हमारे लिए क्या है। लेकिन हमारी पुकार हमें यूँ ही नहीं छोड़ती है, वे ईश्वर के पास पहुँचती हैं, जिनका हृदय पिता का है, जो अपनी संतानों के लिए रोते हैं। संत पापा ने कहा कि मैं आप सभों से एक बात कहूँगा ऐसी परिस्थिति में आप येसु ख्रीस्त के बारे में सोचें जो येरुसलेम को देखकर आंसू बहाते हैं, वे लाजरूस की कब्र के पास रोते हैं। ईश्वर ने हमारे लिए रोया, वे हमारे लिए रोते हैं, वे हमारे दुःखों के कारण रोते हैं। वे हमारी तरह अपने को बनाते हैं- जिससे वे आंसू बहा सकें। यह सोचना कि येसु मेरे दुःख में रोते हैं हमारे लिए सांत्वना का कारण बनती है जो हमें आगे बढ़ने में मदद करती है। जब हम अपना संबंध उनके साथ बनाये रखते, जीवन में दुःखों का अंत नहीं होता वरन हम एक बड़ी क्षितिज की ओर अपने को खोलते और उसकी पूर्णतः हेतु बढ़ते हैं। हम साहस रखें और प्रार्थना में सुदृढ़ रहें। येसु सदैव हमारे साथ हैं। 

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14 October 2020, 14:37