देवदूत प्रार्थना के लिए संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में एकत्रित विश्वासी देवदूत प्रार्थना के लिए संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में एकत्रित विश्वासी 

ईश्वर प्रत्येक को बुलाते हैं और सभी समय बुलाते हैं, संत पापा

संत पापा फ्राँसिस ने रविवार को देवदूत प्रार्थना का पाठ किया, देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित करते हुए सुसमाचार पाठ पर चिंतन किया जिसमें मजदूरों के दृष्टांत का वर्णन है जिन्हें भूमिधर ने अपनी दाखबारी में एक दिन काम करने के लिए बुलाया था।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 21 सितम्बर 2020 (रेई)- वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 21 सितम्बर को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया, देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आज का सुसमाचार पाठ (मती. 20, 1-16) मजदूरों के दृष्टांत का वर्णन करता है जिन्हें भूमिधर ने अपनी दाखबारी में एक दिन काम करने के लिए बुलाया था। येसु इस कहानी के द्वारा ईश्वर के कार्य करने के अनोखे तरीके को दिखलाते हैं जिसको मालिक अपने दो मनोभावों के द्वारा प्रकट करता है- निमंत्रण और उदारता।

ईश्वर का पहला मनोभाव

सबसे पहले, बुलावा। एक दाखबारी का मालिक पाँच बार बाहर निकलता एवं मजदूरों को अपने लिए काम करने हेतु बुलाता है। सुबह 6 बजे, 9 बजे,12 बजे, 3 बजे और 5 बजे। इस मालिक की छवि प्रेरणादायक है जो अपनी दाखबारी में काम करने के लिए रोजाना मजदूरों को बुलाने हेतु कई बार बाहर जाता है। वह भूमिधर ईश्वर का प्रतीक है जो अपने राज्य के लिए कार्य करने हेतु सभी को बुलाता और हमेशा, किसी भी समय बुलाता है। आज भी ईश्वर इसी तरह कार्य करते हैं, वे सभी लोगों को बुलाते हैं और किसी भी समय बुलाते हैं। वे उन्हें अपने राज्य के लिए कार्य करने हेतु बुलाते हैं। यह ईश्वर के कार्य करने का तरीका है जिसको स्वीकार करने एवं अनुसरण करने के लिए हम सभी बुलाये गये हैं। वे अपनी दुनिया में बंद नहीं रहते बल्कि बाहर निकलते हैं। हमारी खोज में वे हमेशा बाहर जाते हैं। वे लगातार लोगों को खोजते रहते हैं क्योंकि वे नहीं चाहते हैं कि कोई उनके प्रेम की योजना से वंचित हो।

कलीसिया को बाहर निकलना है

हमारे समुदायों को भी विभिन्न घेरों से बाहर निकलने की आवश्यकता है ताकि सभी लोगों को मुक्ति का संदेश दिया जा सके जिसको प्रदान करने के लिए येसु आये। इसका अर्थ है जीवन की क्षितिज के लिए खुला होना जो उन लोगों को आशा प्रदान करता है जो सुदूर गाँवों में रहते हैं जिन्होंने अभी तक इसे प्राप्त नहीं किया है अथवा ख्रीस्त से मिलने वाली शक्ति और प्रकाश को खो दिया है। कलीसिया ईश्वर के समान हमेशा बाहर जाना चाहती है। संत पापा ने कहा कि जब कलीसिया बाहर नहीं जाती है तब वह कलीसिया के अंदर की कई बुराइयों से बीमार हो जाती है। कलीसिया में क्यों इस प्रकार की बीमारियाँ होती हैं? क्योंकि वह बाहर नहीं जाती है। यह सच है कि जब कोई व्यक्ति बाहर निकलता है तो दुर्घटना का खतरा होता है किन्तु कलीसिया के लिए अंदर रहकर बीमार होने की अपेक्षा बेहतर यही है कि वह सुसमाचार सुनाने बाहर निकले। ईश्वर हमेशा बाहर जाते हैं क्योंकि वे पिता है और हमें प्यार करते हैं। कलीसिया को ऐसा ही करना चाहिए, उसे हमेशा बाहर निकलना चाहिए।

दूसरा मनोभाव

ईश्वर का प्रतिनिधित्व करते हुए स्वामी का दूसरा मनोभाव है कि वे मजदूरों को उदारता पूर्वक दान करते हैं। ईश्वर किस तरह उदारता दिखलाते हैं? मालिक ने एक दीनार की मजदूरी निश्चित किया था। पहले मजदूर दल को उन्होंने सुबह काम पर लगाया था। बाद में उन्होंने दूसरे मजदूरों को भी लगाया और उनसे कहा कि जो उचित मजदूरी होगा वे उन्हें प्रदान करेंगे। दिन के अंत में दाखबारी के मालिक ने आदेश दिया कि सभी मजदूरों को एक ही मजदूरी दी जाए। इससे सुबह में काम शुरू करनेवाले मजदूर नाराज हो गये और मालिक से शिकायत करने लगे किन्तु उन्होंने उन्हें समझाया कि वे सभी को अधिकतम मजदूरी देना चाहते हैं चाहे वह अंत में ही क्यों न आया हो।  पद. 8-15).

संत पापा ने कहा, "ईश्वर हमेशा प्रचुरता से प्रदान करते हैं। वे आधा नहीं देते। वे पूरा देते हैं। इस तरह हम समझ सकते हैं कि येसु काम और उसकी सही मजदूरी के बारे बात नहीं कर रहे हैं। यह दूसरी बात है। वे ईश्वर के राज्य एवं स्वर्गीय पिता की अच्छाई के बारे बात कर रहे हैं जो निमंत्रण देने के लिए लगातार बाहर निकलते हैं और सभी को अधिकतम प्रदान करते हैं।

भला डाकू के समान

वास्तव में, ईश्वर इसी तरह व्यवहार करते हैं। वे समय और परिणाम नहीं देखते बल्कि तत्परता देखते हैं। वे उदारता देखते हैं जिसके साथ हम अपने आपको उनकी सेवा में समर्पित करते हैं। उनके कार्य करने के तरीके न्याय से बढ़कर हैं और यह कृपा में प्रकट होता है। सब कुछ कृपा है। हमारी मुक्ति एक कृपा है हमारी पवित्रता भी एक कृपा है। कृपा प्रदान करने के द्वारा वे हमें हमारी योग्यता से अधिक देते हैं और इसलिए, जो लोग मानवीय तर्क का उपयोग करते हैं, अर्थात्, किसी की महानता के माध्यम से अर्जित गुणों के तर्क में, वे पहले होने के बदले, खुद को अंतिम पाते हैं। वे कहते हैं, "परन्तु मैंने बहुत काम किया है, कलीसिया को बहुत योगदान दिया और दूसरों की काफी मदद की है किन्तु मुझे भी इस व्यक्ति की तरह देखा जा रहा है जो अंत में आया।" संत पापा ने कहा, "हम याद करे कि कलीसिया में सबसे पहले कौन संत बना? भला डाकू। उसने अपने जीवन के अंतिम क्षण में स्वर्ग राज्य प्राप्त कर लिया। यही कृपा है। ईश्वर ऐसा ही करते हैं, वे हमारे साथ भी ऐसा करते हैं। जो लोग अपनी योग्यता के अनुसार तर्क करते हैं वे असफल हो जाते हैं और जो पिता ईश्वर की करूणा पर भला डाकू के समान अपने आप को दीनतापूर्वक सौंप देते हैं वे अपने आपको पहले स्थान पर पाते हैं।"

संत पापा ने माता मरियम से प्रार्थना की कि अति पवित्र माता हमें ईश्वर द्वारा उनके लिए कार्य करने हेतु बुलाये जाने के आनन्द एवं विस्मय को महसूस करने में मदद दे, उनके खेत जो दुनिया है और उनकी दाखबारी जो कलीसिया है उसमें काम करने के लिए, और बदले में हम उनका प्रेम एवं येसु के साथ मित्रता प्राप्त कर सकें।  

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

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21 September 2020, 13:42