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विश्वास में प्रेम प्रसारित करें, संत पापा विश्वास में प्रेम प्रसारित करें, संत पापा 

विश्वास में प्रेम प्रसारित करें, संत पापा

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के दौरान अपनी धर्मशिक्षा में विश्वास में बने रहते हुए आशा में प्रेम प्रसारित करने का आह्वान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 30 सितम्बर 2020 (रेई)- संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन के संत दमासो प्रांगण में उपस्थित विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।

सुसमाचार के प्रकाश में विगत सप्ताहों में हमने महामारी से विश्व की चंगाई के बारे में जिक्र किया जो अपने में बढ़ती ही गई है। हमने मानव सम्मान, एकात्मकता और पूरकता के मार्गों का जिक्र किया जो मानवीय सम्मान और सामान्य भलाई को बढ़ावा देने हेतु जरूरी है। येसु ख्रीस्त के शिष्यों की भांति हम उनकी राहों में चलने, गरीबों हेतु विकल्प, भौतिक वस्तुओं का उपयोग और हमारे सामान्य घर प्रकृति की देख-रेख के बारे में विचार किया। महामारी के मध्य जो हमें प्रभावित करती है हमने कलीसियाई सामाजिक धर्मशिक्षा के अनुरुप अपने को स्थिरता प्रदान करते हुए विश्वास, भरोसा और प्रेम में आगे बढ़ने पर विचार किया है। यहाँ हम अपने में एक ठोस सहायता का अनुभव करते हैं जो हमारी अयोग्यता जिसके द्वारा हम विभाजित और चोटिल होने का अनुभव करते हैं हमें अपने सपनों को हकीकत में बदलने को प्रोत्साहित करती है जिसके द्वारा हम नये विश्व का निर्माण करते हैं।

येसु की चंगाई

संत पापा ने कहा कि मैं आशा करता हूँ कि यह इस धर्मशिक्षा से इति न हो वरन हम एक साथ मिलकर आगे बढ़ना जारी रखें, अपनी आंखें येसु ख्रीस्त की ओर बनाये रखें (इब्रा. 12.2) जो हमें और दुनिया को बचाते हैं। सुसमाचार हमें दिखलाता है कि येसु ने सभी तरह की बीमारियों को चंगा किया (मत्ती.9.23) उन्होंने अंधों को दृष्टि दी, बहरों को सुनने और गूंगों को वचन की शक्ति दी। शारीरिक चंगाई के साथ-साथ उन्होंने पापों को क्षमा करते हुए आध्यात्मिक चंगाई द्वारा सामाजिक दुःख-दर्द से भी मुक्ति दिलाई। सभों से मेल-मिलाप कराते हुए येसु हमें प्रेम और चंगाई करने का आवश्यक उपहार प्रदान करते हैं जैसे की उन्होंने स्वयं किया, (लूका.10.1-9, योह. 15.9-17) जिससे हम बिना जाति, भाषा या देश का भेदभाव किये सभों की सेवा कर सकें।

मानव ईश्वर के हृदय में

यह सही रुप में हो सके इसके लिए हमें हर मानव और जीवों की सुन्दरता पर चिंतन करते हुए उनकी प्रंशसा करनी है। संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि हम सभी ईश्वऱ के हृदय में हैं (ऐफि. 1.3-5)। ईश्वर हममें से हर किसी की चिंता करते हैं, वे हम सभों को प्रेम करते हैं, हम उनकी जरुरत हैं। इससे भी बढ़कर हर जीव हमें ईश्वर, सृष्टिकर्ता के बारे में कुछ कहता है (लौदातो सी,69, 239)। इस सच्चाई को स्वीकारने और सभी जीवों से संयुक्त ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव हममें “सेवा की उदारता, कोमलता के भाव” उत्पन्न करता है। यह हमें येसु को गरीबों और अपने दीन-दुःखी भाई-बहनों में देखने को मदद करता है। हम उनसे मिलते और उनकी पुकार को सुनते हैं जो पृथ्वी पर गूंजती है।

ईश्वरीय सामान्यतः स्वार्थ से परे

इन पुकारों से प्रेरित हम अपने उपहारों और क्षमताओं का उपयोग संबंधों को व्यवस्थित करने हेतु करते हैं। हम अपने में नये समाज की स्थापना करने के योग्य बनते हैं जो हमें “सामान्यतः” की ओर नहीं लौटाता है, क्योंकि सामान्यतः की स्थिति को हम अन्याय से ग्रस्ति पाते हैं, जहाँ हम असमानता और पर्यावरण की क्षति देखते हैं। महामारी ने हमारे लिए इस “सामान्यतः” रूपी रोग का खुलासा किया है। हम जिस सामान्यतः हेतु बुलाये गये हैं वह ईश्वर का राज्य है जहाँ अंधे पुनः देखते, लंगडे चलते, चर्मरोगी अपने में शुद्ध किये जाते, बहरे सुनते, मुर्दे जिलाये जाते और गरीबों में सुसमाचार का प्रचार होता है (मत्ती.11.5)। ईश्वरीय राज्य की सामान्यतः में सभों के लिए जरूर से ज्यादा रोटी है, जहाँ सामाजिक संस्थानों का आधार जमाखोरी, इकट्ठा और अलगाव नहीं वरन अपने को बांटने, देने और साझा करना है। (मत्ती. 14.13-21)  संत पापा ने कहा कि हम यहाँ उस मनोभावों को पाते हैं जो एक समाज, पड़ोसी, शहर के रुप में हमें एक साथ आगे ले चलता है। यह दान देने के समान नहीं है वरन यह स्वयं अपने को हृदय से देना है। यह हमें अपने में स्वार्थी बने रहने नहीं देता है। यह तकनीकी स्वरुप नहीं वरन कार्य करने का मानवीय रुप है। हम तकनीकी कार्यों द्वारा महामारी से बाहर नहीं निकल सकते हैं क्योंकि इसमें कोमलता का अभाव है। यह कोमलता है जहाँ हम येसु ख्रीस्त की उपस्थिति को पाते हैं। अपनी कोमलता के कारण हम अपने त्याग में दूसरों की सेवा, सहायता और चंगाई को आगे आते हैं। हम इस बात को न भूलें। इस पापा ने इस बात को दुहराते हुए कहा ईश्वरीय सामान्यतः में सभों के लिए रोटी है, सामाजिक संस्थान अपने को कोमलता में साझा करते और बांटते हैं, न कि वे अपने लिए जमा और अलग करते हैं।

सामाजिक वायरस का प्रभाव

एक छोटा वायरस हमें जख्मी करना जारी रखता और हमारी शारीरिक, सामाजिक और आध्यात्मिक संवेदशीलताओं को उजागर करता है। इसके द्वारा हम दुनिया में व्याप्त असमानताओं को पाते हैं, अवसर की असमानता, जरुरी वस्तुओं की असमानता, स्वास्थ्य की विषमता, तकनीकी असमानता, शिक्षा की असमानता जिसके के कारण लाखों बच्चे शिक्षा से वंचित हैं इत्यादि। ये सारे अन्याय न तो प्राकृतिक और न ही अपरिहार्य हैं। ये सारी चीजें मानव निर्मित हैं जो हमारे विकास के प्ररुपों से उत्पन्न होते हैं जिन में मूलभूत गुणों का अभाव है। संत पापा ने कहा कि भोजन की बर्बादी, भोजन का बचा हुआ कचरा जिसके द्वारा सभों को खिलाया जा सकता है। यह बहुतों की आशा खत्म कर देती है और हम उन्हें अनिश्चितता और दुःखद परिस्थिति में पाते हैं। यही कारण है हमें न केवल कोरोना से चंगाई पाने की जरूरत है वरन हमें सारे मानव सामाजिक-आर्थिक वायरसों से बाहर निकलने की जरूरत है। हमें इसे छिपाने हेतु लीपा-पोती नहीं करना है। निश्चित रुप में आर्थिक प्ररूप जो विकास हेतु अपने में अनुचित और अपरिवर्तनीय हैं समस्याओं का निदान नहीं कर सकते हैं। संत पापा ने कहा कि इसके द्वारा समस्याओं का समाधान नहीं हुआ है और न होगा चाहे कुछ झूठे नबी इसे “ऊपर से नीचे बहना” (ट्रिक्ल-डाऊन) सिद्धांत की संज्ञा सदैव क्यों न देते हों। उन्होंने ग्लास प्रमेय की बात कही: कि ग्लास भरता और यह गरीबों और दूसरों पर गिरता है और वे धन प्राप्त करते हैं। लेकिन अजीबोगरीब बात यह है कि ग्लास भरना शुरू करता है और जब यह लगभग भर जाता, तो इसका आकार बढ़ता, बढ़ता और बढ़ता ही जाता है और यह कभी नहीं बहता है।

नीति निर्धारण की आवश्यकता

हमें उदासीनता, शोषण और विशेष हितों के बजाय भागीदारी, देखभाल और उदारता की नीतियों को सामाजिक संगठन हेतु तत्काल निर्धारित करने की जरूरत है। हमें कोमलता में आगे बढ़ने की जरुरत है। एक निष्पक्ष और न्यायसंगत समाज एक स्वस्थ समाज है। एक सहभागिता रूपी समाज, जहां “पिछले” को भी पहले की तरह ध्यान में रखा जाता है एकता को मजबूत करता है। विविधता को सम्मान देने वाला समाज किसी भी वायरस के प्रति प्रतिऱोधी होता है।

माता मरियम की विचवाई 

संत पापा ने स्वास्थ्य की माता मरियम की मध्यस्था में चंगाई की यात्रा को सुपूर्द करते हुए कहा कि उन्होंने येसु के अपनी कोख में धारण किया वे हमें विश्वासी बन रहने में मदद करें। पवित्र आत्मा की प्रेरणा से हम एक साथ मिलकर ईश्वरीय राज्य हेतु कार्य कर सकें जिसे येसु ने हमारे बीच आकर शुरू किया। इस भांति हम अंधकार में ज्योति, पुकारों के मध्य न्याय, दुःखों में खुशी, बीमारी तथा मृत्यु के बीच चंगाई और मुक्ति ला सकें। ईश्वर प्रेम को प्रसारित करने और विश्वास में आशा को सारी दुनिया में फैलाने हेतु हमारी मदद करें।

  

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30 September 2020, 15:18