बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा 

महामारी से निजात उत्तरदायित्व की मांग, संत पापा

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर अपनी धर्मशिक्षा माला में महामारी से छुटकारा हेतु उत्तरदायी होने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 23 सितम्बर 2020 (रेई)- संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन के संत दमासो प्रांगण में उपस्थित विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।

वर्तमान संकट से बाहर निकलने हेतु जो हमारे लिए स्वास्थ्य का संकट है जिसे हम सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक संकट की संज्ञा दे सकते हैं हम प्रत्येक को अपने में उत्तरदायित्व लेने की मांग करता है। हम इसका प्रत्युत्तर केवल व्यक्तिगत रुप में नहीं वरन समुदाय के रुप में भी दें जहाँ से हम आते हैं और यदि हम ख्रीस्तीय हैं तो ईश्वर में अपने विश्वास के द्वारा। यद्यपि बहुत से लोग अपने में परित्यक्त होने के कारण सामान्य हित के कार्यो में सहभागी नहीं हो सकते हैं। कुछ समुदाय सामाजिक और आर्थिक रुप से दबे होने के कारण अपनी ओर से कुछ सहयोग नहीं दे पाते। कुछ समुदायों में लोगों को विश्वास और अपने मूल्यों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं मिलती है। वहीं खास कर पश्चिमी देशों में बहुत से लोग अपने नौतिक या धार्मिक मान्यताओं को दबा कर रखते हैं। ऐसा करने के द्वारा हम संकट से बेहतर रुप में बाहर नहीं निकल सकते हैं।

पर्याप्त संसाधन सभों के लिए

कलीसिया की सामाजिक शिक्षा (सीएसडीसी 186) को उद्धृत करते हुए संत पापा ने कहा कि हम लोगों की चंगाई और पुनर्निर्माण कार्य में सहभागी हो सकें, इसके लिए उचित यही है कि सभों को पर्याप्त संसाधन मिले। सन् 1929 की वृहद अर्थिक संकट के बाद संत पापा पियुस 9वें पूरकता के सिद्धांत की महत्ता का जिक्र किया था जिसके दो आयाम, ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर की ओर बढ़ना है (क्वदागेसिमो आन्नो,79)।

सामाजिक गतिशीलता

एक ओर जब व्यक्ति, परिवार, छोटे संघ और स्थानीय समुदाय जरूरत की चीजों का जुगाड़ करने में असक्षम होते तो ऐसे समय में समाज के उच्च स्तर जैसे कि राज्य को उनके जीवन में हस्ताक्षेप करते हुए उन्हें जरुरत की चीजें उपलब्ध करने की आवश्यकता है। संत पापा ने कहा कि हम कोरोना के कारण बंद की स्थिति में जनता के लिए संस्थानों की ओर से सेवा के कार्य को देखते हैं।

वहीं दूसरी ओर समाज के नेताओं को चाहिए कि वे लोगों के स्थानीय स्तरों का सम्मान करते हुए उनके विकास हेतु कार्य करें। वास्तव में, व्यक्ति, परिवारों, संघों, व्यपारों और कलीसिया का सहयोग अपने में निर्णयक है। ये सभी अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक संसाधनों के द्वारा समाज को सजीव और सशक्त बनाते हैं (सीएससीडी 185)। इस भांति हम ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर की ओर एक गतिशीलता को देखते हैं।

चंगाई, उत्तरदायित्व की मांग

संत पापा ने कहा कि हममें से हर एक को समाज की चंगाई हेतु अपनी ओर से उत्तरदायित्व लेने की जरुरत है। जब किसी परियोजना की शुरूआत की जाती जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप में किसी निश्चित समुदाय को प्रभावित करता है तो वहाँ के लोग अपने में तटस्थ नहीं रह सकते हैं, उनका विवेक और ज्ञान उन्हें अलग नहीं रख सकता है (प्रेरितिक प्रबोधन, केरीदा अमाजोनिया, 32, लौदातो सी, 63)। दुर्भाग्यवश यह अन्याय उन स्थानों में सदैव होता है जहाँ बड़ी आर्थिक और भौगोलिक लाभ की स्थिति होती है उदाहरण स्वरुप पृथ्वी के विभिन्न स्थानों में खुदाई के कार्य (केरीदा अमाजोनिया 9.14)। आदिवासियों की आवाज, उनकी संस्कृति और उनके जीवन-दर्शन का कोई ख्याल नहीं रखा जाता है। आज पूरकता के सिद्धांत का सम्मान नहीं करना एक विषाणु की तरह फैल रहा है। इस संबंध में हम लोगों की बातों के बजाय राज्यों को बड़ी कम्पनियों की बातों को सुनते हुए देखते हैं जो अर्थव्यवस्था को संचालित करती हैं। इस भांति हम लोगों को अपने विकास का साधन बनने नहीं देते हैं। येसु ख्रीस्त ने हमें ऐसे मार्ग में चलना नहीं सिखाया है,यह पूरकता का सिद्धांत नहीं है। राजनीतिज्ञों के चेतन या अचेतन मन में या कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं का नारा यह है, “सारी चीजें लोगों के लिए, लोगों के साथ कुछ भी नहीं”। ऊपर से नीचे की ओर गतिशील होना लेकिन लोगों के विवेक और ज्ञान को दरकिनार करना, समस्या का समाधान करने के बदले समस्या को बढ़ा देता है। कोरोना से चंगाई के संबंध में भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्यरत लोगों की अपेक्षा बहुत-सी दवाई उत्पादन कम्पनियों की बातें सुनी जा रही हैं जो अपने में अच्छा नहीं है।

पूरकता के सिद्धांत का पालन

इस महामारी से निजात पाने हेतु हमें पूरकता के सिद्धांत को अमल करने की आवश्यकता है जहाँ हम दूसरों की स्वतंत्रता का सम्मान करते, कमजोरों के पहल करने की क्षमता को ध्यान में रखते हैं। संत पौलुस कहते हैं कि शरीर के सभी अंग अपने में जरूरी हैं, वे अंग भी जो अपने में सबसे कमजोर और कम महत्व के प्रतीत होते हैं, वास्तव में, वे ही हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं (1 कुरू.12. 22)। इस प्रतीक के प्रकाश में हम कह सकते हैं कि पूरकता का सिद्धांत हर किसी के प्रयास का सम्मान करती है जो समाज की चंगाई और दिशा हेतु अपनी भूमिका अदा करती है। इसका अनुपालन करना हमें एक स्वस्थ्य और न्यायपूर्ण भविष्य की आशा देती है, हम मिलकर उस भविष्य का निर्माण करें, बड़ी चीजों को अपने लिए देखें, अपनी क्षितिज्ञ और आदर्शों को विस्तृत करें। हम एक साथ मिलकर कार्य करें अन्यथा यह कारगर सिद्ध नहीं होगा। हम इस महामारी से बाहर निकलने हेतु मिलकर कार्य करें नहीं तो हम इससे कभी बाहर नहीं निकल पायेंगे। महामारी से निजात पाने का अर्थ वास्ताविक स्थिति की लीपा-पोती करना नहीं जिससे यह अच्छा दिखें, यह ठीक नहीं है। महामारी पर विजयी होना हमें अपने में परिवर्तन लाने की मांग करती है एक सच्चा बदलाव, जिसे हमें एक साथ मिलकर करना है।

एकात्मकता रूपी औषधि

संत पापा ने कहा कि एक धर्मशिक्षा में हमने एकात्मकता का जिक्र किया जो हमें महामारी से बाहर लाती है, यह हमें एकता में बने रहते हुए स्वस्थ विश्व के लिए ठोस उपायों की खोज करने का आह्वान करती है। लेकिन एकात्मकता का मार्ग पूरकता की मांग करता है। वास्तव में सच्ची एकता सामाजिक सहभागिता के बिना नहीं हो सकती है जहाँ व्यक्ति, परिवार, संघ, सहकारिता, छोटे व्यापार और समाज की दूसरी इकाई अपनी ओर से योगदान न दें। सभों को अपनी ओर से सहयोग करने की जरुरत है। यह सहभागिता हमें वैश्विकता और देशों के नकारात्मक कार्यों को रोकने में मदद करती है जैसा की इस महामारी के समय में स्वास्थ्य के संबंध में हो रहा है। हमें “नीचे से ऊपर” सहभागिता को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। इस महामारी के समय में, धनी-गरीब परिवरों से स्वयंसेवकों को देखना कितना सुन्दर लगता है जो भिन्न समुदायों से आते हैं। यह एकता और पूरकता के सिद्धांत को व्यक्त करता है।

सेवा कार्यों हेतु सराहना

इस महामारी के समय में चिकित्सकों और नर्सों की सेवा स्वाभाविक सेवा प्रोत्साहन और आशा की एक निशानी है। बहुतों ने अपने जीवन को खतरे में डाल कर जीवन दे दिया। संत पापा ने हर तबके के लोगों द्वारा दी गई छोटे-बड़े सभी कीमती सहायताओं की सराहना की। बच्चे, बुजूर्गों, असक्षम, कार्यकर्ताओं सभों की सेवा और सहयोग की सराहना करते हुए संत पापा ने सभों को आशा में बने रहते हुए बड़े सपने देखने को प्रोत्साहित किया।

आशा में भविष्य

उन्होंने कहा कि हम बड़े सपने देखें। बड़े सपने देखने से हम न डरें, न्याय और सामाजिक प्रेम की उत्पत्ति आशा में बने रहने से होती है। हम अतीत को न देखें क्योंकि वह बीत गया है हम नयी चीजों की ओर देखें। येसु हमें प्रतिज्ञा करते हैं,“वे सभी चीजों को नया बना देंगे”। हम अपने को प्रोत्साहित करते हुए नये सपनों, नये आदर्शों को देखें, हम बीती बातों का पुनर्निर्माण न करें जो अन्यायपूर्ण और रोगग्रस्त थी। हम भविष्य का निर्माण करें जहाँ स्थानीय और वैश्विक आयाम हमें परस्पर धनी बनाते हैं- जहाँ सभी कोई संस्कृति, दर्शन और विचारों को एक दूसरे से साझा करते हैं- जहाँ सुन्दरता और छोटे समुदाय के धन, यहाँ तक की वे जो परित्यक्त हैं विकास कर सकें, क्योंकि उनमें भी सुन्दरता है- जहाँ जिनके पास अधिक है वे अपनी ओर से उनकी सेवा कर सकें जिनके पास कम है। 

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23 September 2020, 15:29