इच्छामृत्यु इच्छामृत्यु 

इच्छामृत्यु मानव जीवन के खिलाफ अपराध है

"समारितानुस बोनुस" (भला समारी) एक नया प्रेरितिक पत्र है जिसको संत पापा के अनुमोदन पर, विश्वास के सिद्धांत पर गठित परमधर्मपीठीय धर्मसंघ ने प्रकाशित किया है। यह किसी भी प्रकार की इच्छामृत्यु एवं आत्महत्या में मदद की निंदा करता है तथा परिवारों एवं स्वास्थ्यकर्मियों को समर्थन देता है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 22 सितम्बर 2020 (रेई) – मंगलवार को विश्वास के सिद्धांत के लिए गठित परमधर्मपीठीय धर्मसंघ ने 25 जून को संत पपा फ्राँसिस द्वारा अनुमोदन प्राप्त पत्र के प्रकाशन की घोषणा की जिसका शीर्षक है समारितानुस बोनुस (भला समारी)। पत्र में "विकट समय में एवं जीवन के अंतिम चरण में व्यक्ति की देखभाल" विषय पर प्रकाश डाला गया है।  

"लाइलाज का मतलब यह नहीं हो सकता कि देखभाल समाप्त कर दी जाए।" जो लोग असाध्य बीमारी से पीड़ित हैं उनका भी स्वागत, देखभाल एवं उनसे प्रेम किया जाना चाहिए। समारितानुस बोनुस का पहला भाग इसी बात पर जोर देता है। पत्र का उद्देश्य भले सामरी के दृष्टांत को व्यवहार में लाने के लिए ठोस तरीका प्रदान करना है जो हमें सिखलाता है कि जब इलाज संभावना न भी हो, चिकित्सा देखभाल, नर्सिंग देखभाल, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक देखभाल” को कभी नहीं छोड़ना चाहिए।  

लाइलाज, कभी देखभाल के बिना नहीं

"यदि संभव हो तो चंगा करें, देखभाल हमेशा करें।" संत पापा जॉन पौल द्वितीय के ये शब्द बतलाते हैं कि लाइलाज का दूसरा नाम देखभाल नहीं करना नहीं है। अंत तक देखभाल करने, बीमार व्यक्ति के साथ रहने, उनका साथ देने, सुनने और प्यार किये गये महसूस कराने के द्वारा उन्हें अकेलापन, दुःख और मृत्यु के भय से बचाया जा सकता है। पूरा दस्तावेज सुसमाचार एवं येसु के बलिदान के प्रकाश में दुःख और पीड़ा के अर्थ पर प्रकाश डालता है।   

जीवन की अतुलनीय गरिमा

पत्र में कहा गया है कि "जीवन का अपरिवर्तनीय मूल्य, प्राकृतिक नैतिक कानून और कानूनी व्यवस्था के एक अनिवार्य आधार का मूलभूत सिद्धांत है।" "हम दूसरों के जीवन को सीधे समाप्त करने की बात नहीं सोच सकते, चाहे, वे हमसे आग्रह ही क्यों न करें। गौदियुम एत स्पेस का हवाला देते हुए दस्तावेज ने जोर दिया है कि गर्भपात, इच्छामृत्यु और जानबूझकर आत्महत्या समाज को विषाक्त करता है और ये सृष्टिकर्ता का बहुत बड़ा अपमान है।” (गौदियुम एत स्पेस . 27)

बाधाएँ जो मानव जीवन के पवित्र मूल्य को अस्पष्ट करती हैं

दस्तावेज़ कई कारकों का हवाला देता है जो जीवन के मूल्य को समझने की क्षमता को सीमित करते हैं उदाहरण के लिए जीवन को "सार्थक" तभी माना जाता है, जब मानसिक और शारीरिक परिस्थितियाँ सही हों। इन बाधाओं में से एक है सहानुभूति को गलत तरीके से समझना। सच्ची सहानुभूति मृत्यु में नहीं होती बल्कि बीमार व्यक्ति को स्वीकार करने, सहायता देने एवं उसकी पीड़ा दूर करनेवाली चीजें प्रदान करने में है। दूसरी बाधा है व्यक्तिवाद का विकास जिससे एकाकीपन बढ़ती है।  

कलीसिया की धर्मशिक्षा

यह एक निश्चित शिक्षा है कि इच्छामृत्यु "मानव जीवन के खिलाफ एक अपराध है अतः हर परिस्थिति में यह एक आंतरिक बुराई है। कोई भी "औपचारिक या तत्काल सामग्री सहयोग" जो मानव जीवन के खिलाफ एक गंभीर पाप कराता है उसे कोई भी अधिकारी "वैध रूप से अनुमति नहीं दे सकता है।" जो लोग इच्छामृत्यु के समर्थन में कानून को मंजूरी देते हैं वे अपराध के दोषी हैं क्योंकि वे कानून अंतरात्मा की विकृति में योगदान करते हैं। इच्छा मृत्यु के कार्य का हमेशा बहिष्कार किया जाना चाहिए। फिर भी, पत्र स्वीकार करता है कि इसकी मांग करनेवाले को राहत मिल सकती है अथवा उसकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी को समाप्त कर सकती है।  

आक्रामक उपचार नहीं

दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि मृत्यु की प्रतिष्ठा की रक्षा करने का अर्थ है आक्रामक चिकित्सा उपचारों को छोड़ना। इसलिए, जब मृत्यु निकट और अपरिहार्य है, यह वैध है कि चिकित्सा को त्यागा जा सकता है जो जीवन का केवल एक अनिश्चित या दर्दनाक आयाम प्रदान करता है।”

परिवारवालों का समर्थन

बीमार व्यक्ति की देखभाल करने में यह महत्वपूर्ण है कि उसे बोझ की तरह महसूस न किया जाए, बल्कि वे अपने प्रियजनों की निकटता और समर्थन का एहसास करें। इस मिशन को पूरा करने के लिए परिवार को मदद एवं पर्याप्त संसाधनों की जरूरत है। राज्य सरकारों को "परिवार के प्राथमिक, मौलिक और अपूरणीय सामाजिक कार्यों को पहचानने की आवश्यकता है।" इसका समर्थन करने के लिए आवश्यक संसाधन और संरचना प्रदान करने का कार्य करना चाहिए।”

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22 September 2020, 16:04