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अभिन्न पारिस्थितिकी के लिए चिंतन व करुणा अपरिहार्य

संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 12 सितम्बर को "लौदातो सी" समुदाय के प्रतिनिधियों से वाटिकन में मुलाकात की, जो लौदातो सी के मूल्यों का प्रचार करने हेतु ठोस रूप से कार्य करते हैं। उन्होंने बतलाया कि चिंतन एवं करुणा किस तरह अभिन्न पारिस्थितिकी को प्राप्त करने में मदद देते हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी शनिवार, 12 सितम्बर 2020 (रेई)- संत पापा ने "लौदातो सी" समुदाय के कुल 250 प्रतिनिधियों को सम्बोधित कर कहा कि चिंतन एवं करुणा, अभिन्न पारिस्थितिकी के लिए अपरिहार्य सामग्री हैं जैसा कि लौदातो सी प्रेरितिक विश्व पत्र में बतलाया गया है। यह सृष्टि जगत एवं मानव प्राणी दोनों के लिए न्याय की मांग करती है।

अभिन्न पारिस्थितिकी

संत पापा ने दल से कहा कि "अभिन्न पारिस्थितिकी की जरूरत है क्योंकि हम सभी सृष्टि हैं और सब कुछ की सृष्टि एक-दूसरे से जुड़ी हुई है।"  

"महामारी ने भी इसे दिखलाया है, मानव का स्वास्थ्य, पर्यावरण जिसमें हम जीते हैं उससे अलग नहीं किया जा सकता।"

जलवायु परिवर्तन न केवल प्रकृति के संतुलन को परेशान कर रहा है बल्कि गरीबी और भूखमरी बढ़ा रहा है, सबसे कमजोर लोगों को प्रभावित कर रहा है एवं कुछ लोगों को अपनी भूमि छोड़ने के लिए भी मजबूर कर रहा है।

संत पापा ने कहा, "सृष्टि की अवहेलना और सामाजिक अन्याय एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।" उन्होंने जोर दिया कि समानता के बिना पारिस्थितिकी नहीं है और पारिस्थितिकी के बिना समानता नहीं है।

इस संबंध में संत पापा ने लौदातो सी समुदाय को दो सामग्रियाँ प्रदान कीं जिनके द्वारा वे अभिन्न पारिस्थितिकी को बढ़ावा दे सकते हैं ˸ चिंतन एवं करुणा।

चिंतन

चिंतन के बारे बोलते हुए संत पापा ने खेद प्रकट किया कि हम अपने आसपास की प्रकृति की सुन्दरता नहीं देखते बल्कि उसे नष्ट कर देते हैं क्योंकि हम पेटू बन गये हैं तथा हर कीमत पर तत्काल लाभ पाना चाहते हैं। उपभोक्तावाद से ग्रसित और भटके हुए, हम नवीनतम फोन ऐप का बेसब्री से इंतजार करते हैं, जबकि जंगल तेज गति से जल जाते और हम अपने पड़ोसियों के नाम तक नहीं जानते और पेड़ों की पहचान भी  नहीं कर सकते हैं।

नहीं भूलने और हजारों चीजों में भटके हुए नहीं रहने के लिए संत पापा ने कहा कि हमें रूकना, मौन के लिए समय खोजना एवं चिंतन हेतु लौटना चाहिए। उदाहरण के लिए, हमें सेल फोन के कैद से मुक्त करने की जरूरत है ताकि हम हमारे पड़ोसी एवं प्रकृति की आँखों में नजर डाल सकें।  

चिंतन के लिए मौन एवं प्रार्थना की आवश्यकता है जिससे कि सौहार्द जो सिर, दिल हाथ के बीच सच्चा संतुलन है अथवा विचार, अनुभूति एवं कार्य के बीच सामंजस्य है उसके द्वारा आत्मा की ओर लौटे। जो लोग चिंतन करते हैं वे ईश्वर की कोमलता को देख पाते हैं और महसूस करते हैं कि हरेक व्यक्ति ईश्वर की नजर में मूल्यवान है। हरेक व्यक्ति थोड़ी मात्रा में दूषित विश्व को बदल सकता है जिसको मानव ने अपने लालच से दूषित किया है जबकि ईश्वर ने अपनी भली इच्छा से इसकी सृष्टि की है। संत पापा ने कहा कि जो लोग चिंतन करते हैं वे अपने हाथ पॉकेट में डालकर नहीं रहते बल्कि कुछ ठोस कार्य करने की कोशिश करते हैं।

करुणा

संत पापा ने कहा कि चिंतन का फल करुणा है। हम दयालु तब बनते हैं जब ईश्वर की नजर से देखते हैं और एक घर में रहते हुए, एक-दूसरे को भाई और बहन समझते हैं। करुणा हमारी उदासीनता के ठीक विपरीत है।   

संत पापा ने कहा, "हमारी करुणा, उदासीनता की महामारी से चंगाई पाने के लिए अच्छी दवाई है। जिनमें दया की भावना है वे "मैं इसकी चिंता नहीं करता" से "आप मेरे लिए मूल्य हैं" की ओर बढ़ते हैं। करुणा एक नया संबंध स्थापित करती है जैसा कि भला समारी ने किया, वह दया से द्रवित हो गया एवं घायल व्यक्ति की सेवा की जिसको वह जानता तक नहीं था।  

कार्य के द्वारा हाथ गंदा करना

संत पापा ने कहा कि विश्व को रचनात्मक एवं सक्रिय उदारता की जरूरत है जो स्कीन के सामने बैठकर कमेंट नहीं करता बल्कि अपना हाथ गंदा करना चाहते हैं ताकि पतन को दूर कर सकें एवं प्रतिष्ठा बहाल कर सकें। करुणा को अपनाने का अर्थ है कि किसी को शत्रु के रूप में नहीं बल्कि सबको पड़ोसियों के रूप में देखना।

बेकार

संत पापा ने कहा कि दयालु व्यक्ति चीजों को बर्बाद करने एवं लोगों का बहिष्कार के खिलाफ संघर्ष करता है। उन्होंने खेद प्रकट किया कि कई लोगों को बेरहम अलग कर दिया जाता है, खासकर, बुजूर्ग, बच्चे, श्रमिक, दिव्यांग आदि।

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) का हवाला देते हुए, पोप ने कहा कि यह निंदनीय है कि औद्योगिक देशों में एक वर्ष में एक अरब टन से अधिक खाद्य पदार्थ फेंके जाते हैं। अतः उन्होंने सभी लोगों से अपील की कि बर्बादी को रोका जाए और एक ऐसी राजनीति की मांग की जो विकास और समानता, प्रगति और स्थिरता को एक साथ लेकर चलता है ताकि कोई भी इस धरती की शुद्ध हवा को सांस लेने एवं जल को पीने और भोजन को खाने के अधिकार से वंचित न रहे। 

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12 September 2020, 16:09