संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  

दूसरों की चिंता करने हेतु बल प्रदान करता है यूखरिस्त, संत पापा

देवदूत प्रार्थना के पूर्व संत पापा ने विश्वासियों को सम्बोधित कर इस रविवार के सुसमाचार पाठ (मती.14.13-21) पर चिंतन किया जो रोटी के चमत्कार को प्रस्तुत करता है। घटना एक निर्जन स्थान पर घटती है जहाँ येसु अपने शिष्यों के साथ विश्राम करने गये हुए थे किन्तु लोग उन्हें सुनने और चंगाई पाने के लिए उनके पास आ गये।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शनिवार, 3 अगस्त 2020 (रेई)- वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में उपस्थित विश्वासियों के साथ, संत पापा फ्राँसिस ने रविवार 2 अगस्त को, देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, "अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।"

इस रविवार का सुसमाचार पाठ (मती.14.13-21) रोटी के चमत्कार को प्रस्तुत करता है। घटना एक निर्जन स्थान पर घटती है जहाँ येसु अपने शिष्यों के साथ विश्राम करने गये हुए थे किन्तु लोग उन्हें सुनने और चंगाई पाने के लिए उनके पास आ गये। संत पापा ने कहा, "वास्तव में उनके शब्द और उनके हावभाव चंगा करते एवं आशा प्रदान करते हैं।"

रोटी का चमत्कार

संध्या होने पर भी भीड़ वहीं थी, तब "शिष्य येसु के पास आकर बोले, यह स्थान निर्जन है और दिन ढल चुका है लोगों को विदा कीजिए जिससे वे गाँवों में जाकर अपने लिये खाना खरीद लें। पर येसु ने उनसे कहा, "उन्हें जाने की जरूरत नहीं तुम लोग ही उन्हें खाना दे दो।"(पद.15-16)

ईश्वर का तर्क

संत पापा ने शिष्यों की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा, "शिष्यों के चेहरे की कल्पना करें। येसु यह अच्छी तरह जाने थे कि वे क्या करनेवाले हैं परन्तु वे उनके मनोभाव को बदलना चाहते थे कि वे यह न कहें "विदा कीजिए जिससे कि वे गाँव जाकर अपने लिए खाना खरीद सकें", बल्कि ईश्वर से मिले वरदान को उनसे साझा करें। ये दो विपरीत मनोभाव हैं। येसु चाहते है कि वे दूसरे मनोभाव को अपनायें क्योंकि पहला प्रस्ताव किसी उदार व्यक्ति का नहीं बल्कि व्यवहारिक व्यक्ति का है ˸ "विदा कीजिए जिससे कि वे गाँव जाकर अपने लिए खाना खरीद सकें।" येसु दूसरे तरह से सोचते हैं। इस परिस्थिति से येसु कल और आज के अपने मित्रों को ईश्वर का तर्क सिखाना चाहते हैं। ईश्वर का तर्क क्या है जिसको हम यहाँ देखते हैं? दूसरों के लिए जिम्मेदारी लेने का तर्क, अपना हाथ नहीं धो लेने का तर्क, उनसे मुँह नहीं फेर लेने का तर्क। दूसरों के लिए पहल करने का तर्क, जो उनसे अपने को अलग करने की कोशिश करते हैं वे ख्रीस्तीय शब्दकोष में प्रवेश नहीं पा सकते।

संत पापा ने गौर किया कि बारहों में से एक ने तुरन्त सच्चाई से जवाब दिया, "पाँच रोटियों एवं दो मच्छलियों के अलावा यहाँ हमारे पास कुछ नहीं है। तब येसु ने कहा, "उन्हें यहाँ मेरे पास ले आओ।" (17-18)

येसु की शक्ति उदारता के रूप में

उन्होंने भोजन को अपने हाथों में लिया, स्वर्ग की ओर नजर उठायी, आशीष की प्रार्थना पढ़ी तथा रोटी तोड़ते हुए शिष्यों को दिया कि वे उसे लोगों के बीच बांटें। सबों को बांटने के बाद भी रोटी एवं मच्छली समाप्त नहीं हुई बल्कि हजारों लोगों के लिए बच गई।

इस भावना के द्वारा येसु अपना सामर्थ्य प्रदर्शित करते हैं, एक प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में नहीं बल्कि पिता ईश्वर का अपने थके एवं जरूरतमंद बच्चों के प्रति उदारता के चिन्ह के रूप में। वे लोगों के जीवन में प्रवेश कर चुके हैं उनकी थकान को समझते हैं उनकी दुर्बलताओं को भी समझते हैं किन्तु नहीं चाहते हैं कि उनमें से कोई खो जाए। वे उन्हें अपने वचनों से पोषित करते एवं जीने के लिए पर्याप्त भोजन प्रदान करते हैं।

रोटी के चमत्कार में यूखरिस्त

सुसमाचार की इस कहानी में यूखरिस्त का भी संदर्भ है, विशेषकर, जब आशीष की प्रार्थना की जाती है, रोटी तोड़ी जाती और शिष्यों को दी जाती है कि वे उन्हें लोगों के बीच बांटे। (19) इस बात पर गौर किया जा सकता है कि यूखरिस्तीय रोटी, अनन्त जीवन के पोषण एवं पृथ्वी पर हमारे जीवन के लिए आवश्यक दैनिक आहार के बीच क्या संबंध है। मुक्ति की रोटी के रूप में अपने आपको पिता को सौंपने के पूर्व, येसु उन लोगों के भोजन की चिंता करते हैं जो उनके साथ रहने के कारण अपना भोजन तैयार नहीं कर पाये। कभी-कभी आत्मा और शरीर एक-दूसरे के विपरीत लगते हैं किन्तु सच्चाई यह है कि भौतिकतावाद के समान, अध्यात्मवाद भी बाईबल के लिए अपरिचित शब्द प्रतीत होते हैं, जो बाईबिल भाषा नहीं है।

करुणा और कोमलता

संत पापा ने कहा, "करुणा और कोमलता जिसको येसु भीड़ के प्रति दिखाते हैं वह भावुकता नहीं है बल्कि प्रेम का ठोस प्रदर्शन है जो लोगों की आवश्यकताओं पर ध्यान देता है। हम युखरिस्तीय की मेज पर येसु के इसी मनोभाव के साथ आने के लिए बुलाये जाते हैं। सबसे बढ़कर दूसरों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील होकर। इस शब्द को बाईबल में बारम्बार दुहराया गया है, जब येसु ने कोई समस्या देखी, बीमार अथवा भूखे लोगों को देखा तब उन्होंने उनके प्रति हमदर्दी दिखायी। संत पापा ने कहा कि सहानुभूति पूरी तरह भौतिक भावना नहीं है, सच्ची सहानुभूति हमें दूसरों के दुःखों को अपने ऊपर लेने के लिए प्रेरित करती है।"

सहानुभूति का अर्थ

संत पापा ने चिंतन हेतु प्रेरित करते हुए कहा, "आज यह हमारे लिए अच्छा होगा कि हम अपने आप से पूछें, क्या मुझमें सहानुभूति की भावना है? क्या मैं दूसरों के दुःखों में दुःखी होता हूँ अथवा क्या मैं उनसे मुँह फेर लेता हूँ और और कहता हूँ जाने दो? हम सहानुभूति शब्द को न भूलें, जिसका अर्थ पिता के प्रेम पर भरोसा करना और साहसपूर्वक बांटना है।"

धन्य कुँवारी मरियम हमें उस रास्ते पर चलने में मदद दे जिसको प्रभु ने आज के समुसमाचार में दिखलाया है। यह भाईचारा का रास्ता है जो गरीबी एवं इस दुनिया की पीड़ाओं का सामना करने के लिए आवश्यक है, विशेषकर, इस गंभीर समय में और जो हमें दुनिया से परे ले चलता है क्योंकि यह एक यात्रा है जो ईश्वर से शुरू होती और ईश्वर में ही लौट जाती है।

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

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03 August 2020, 14:05