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संत पापा रविवार को कोरपुस ख्रीस्ती का पर्व मनायेंगे

संत पापा फ्राँसिस अगले रविवार को कोरपुस ख्रीस्ती (ख्रीस्त के पावन शरीर और रक्त) महापर्व के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर में समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित करेंगे। ख्रीस्तयाग के अंत में पावन संस्कार की आराधना एवं आशीष भी होगी।

उषा मनोरमा तरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 9 जून 2020 (रेई)- कोरपुस ख्रीस्ती महापर्व जिसको ख्रीस्त के पावन शरीर और रक्त का महापर्व भी कहा जाता है इस अवसर पर 14 जून को संत पापा फ्राँसिस संत पेत्रुस महागिरजाघर के संत पेत्रुस के आसन की वेदी पर ख्रीस्तयाग अर्पित करेंगे। ख्रीस्तयाग के अंत में पावन संस्कार का प्रस्तुतिकरण किया जाएगा उसके बाद उसकी आशीष (बेनेडिक्शन) भी होगी।

ख्रीस्तयाग में करीब 50 की संख्या में विश्वासी भाग लेंगे जिसको वाटिकन मीडिया द्वारा सीधे प्रसारित किया जाएगा। ख्रीस्तयाग रोम समयानुसार प्रातः 9.45 शुरू होगा।

संत पापा के साथ कोरपुस ख्रीस्ती

पिछले साल संत पापा ने कोरपुस ख्रीस्ती महापर्व के अवसर पर रोम के संत मरिया दुखियों की दिलासा गिरजाघर में ख्रीस्तयाग अर्पित किया था और उसके पहले साल में उन्होंने रोम के बाहर ओस्तिया में संत मोनिका पल्ली गिरजाघर के प्रांगण में ख्रीस्तयाग अर्पित किया था।

कोरपुस ख्रीस्ती पर संत पापा का ख्रीस्तयाग

अपने प्रशासन के पहले सालों 2013 से लेकर 2017 तक संत पापा ने कोरपुस ख्रीस्ती महापर्व को रोम के संत जॉन लातेरन महागिरजाघर में मनाया था, जिसमें मिस्सा के अंत में संत मरियम मेजर महागिरजाघर की ओर यूखरिस्तीय शोभा यात्रा भी की गई थी।

महापर्व का उदगम

कोरपुस ख्रीस्ती महापर्व को 13वीं शताब्दी से ही मनाया जा रहा है। बेल्जियम में, संत जुलियाना डी कॉर्निलन के रहस्यमय अनुभवों के बाद, 1247 में लीज में परमपावन  यूखरिस्त को समर्पित एक स्थानीय पर्व की स्थापना की गई थी।

कई सालों बाद सन् 1263 में बोहेमिया के एक पुरोहित जो परमपावन संस्कार में येसु की सच्ची उपस्थिति पर संदेह कर रहा था, इटली की तीर्थयात्रा में, जब वह बोलसेना शहर में ख्रीस्तयाग अर्पित कर रहा था, तब उसने यूखरिस्त के चमत्कार को महसूस किया जिसमें यूखरिस्त की प्रार्थना के बाद जब तोड़ी गयी तब होस्तिया से रक्त की बूंदें टपकें लगीं। उसके दूसरे साल 1264 में संत पापा अर्बन चौथे ने कोरपुस ख्रीस्ती के पर्व को पूरी कलीसिया के लिए घोषित किया।

कलीसिया का डोगमा

ख्रीस्त के पावन शरीर एवं रक्त के महापर्व द्वारा परमपावन संस्कार में येसु की जीवित उपस्थिति को सम्मानित किया जाता है। सच्ची उपस्थिति की पुष्टि 1215 में चौथी लातेरन महासभा में की गई थी। बाद में 1551 में ट्रेन्ट की महासभा में काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा के इस वाक्यांश का हवाला देते हुए इस सिद्धांत को पक्के तौर पर पुष्ट किया गया-

"क्योंकि ख्रीस्त हमारे मुक्तिदाता ने कहा है कि यह सचमुच उनका शरीर है जिसको उन्होंने रोटी के रूप में अर्पित किया है, यह हमेशा से ईश्वर की कलीसिया का दृढ़ विश्वास रहा है और यह पवित्र महासभा पुनः घोषित करता है कि रोटी और दाखरस के कॉन्सेक्रेशन में रोटी का सम्पूर्ण तत्व प्रभु हमारे ख्रीस्त के शरीर में बदल जाता है और दाखरस ख्रीस्त के रक्त में बदल जाता है।"

काथलिक कलीसिया में इस परिवर्तन को मूल तत्व परिवर्तन (ट्रांससबस्टंसियेशन) कहा जाता है। ( CCC 1376)

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09 June 2020, 16:21