संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस 

अब्राहम की प्रार्थना पर चिंतन

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर अब्राहम के विश्वास भरी प्रार्थना पर चिंतन करते हुए धर्मशिक्षा दी।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 03 जून 2020 (रेई)- संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन के अवसर पर वाटिकन के प्रेरितिक निवास की पुस्तकालय से सभी लोगों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात। आज की धर्मशिक्षा में हम अब्राहम की प्रार्थना पर चिंतन करेंगे।

अब्राहम को अपने जीवन में अचानक एक आवाज सुनाई देती है। यह आवाज उसे एक अनजान यात्रा में आगे बढ़ने को पुकारती है। इस आवाज के निर्देशन में वह अपनी जन्मभूमि, अपने परिवार की जड़ों को छोड़ कर अलग ही एक नये भविष्य की ओर शीघ्रता से निकल पड़ता है। यह एक प्रतिज्ञा पर आधारित है जो अपने में केवल विश्वास की मांग करती है। प्रतिज्ञा पर भरोसा करना सहज नहीं है उसके लिए साहस की जरुरत है और अब्राहम विश्वास करता है।

अब्राहम हेतु प्रतिज्ञा

संत पापा ने कहा कि धर्मग्रंथ बाईबल हमारे लिए प्रथम पूर्वज के अतीत का जिक्र नहीं करता है। उसके जीवन की घटनाएँ हमें यह बतलाती हैं कि वह अन्य देवताओं की पूजा करता था, शायद एक ज्ञानी व्यक्ति की तरह वह आकाश और तारों को अवलोकन करता था। वास्तव में ईश्वर ने उनसे यह प्रतिज्ञा की कि उनकी संतति आकाश के तारों की भांति असंख्य होगी।

अब्राहम अपनी यात्रा में निकल पड़ता है। वह याहवे की वाणी सुनता और उसमें विश्वास करता है। संत पापा ने कहा कि हमारे लिए यहाँ गौर करने वाली बात है, वह याहवे के शब्दों में विश्वास करता है। इस यात्रा के दौरान, उनका याहवे के साथ एक नये संबंध की शुरूआत होती है और यही कारण हम अब्राहम को सभी बड़े धर्मों यहूदी, ख्रीस्तीय और इस्लामिक आध्यात्मिक रीतियों में एक महान हस्ती, एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व स्वरुप पाते हैं। वे अपने जीवन की अति कठिन परीक्षाओं में भी अपने को याहवे के आगे नतमस्तक कर देते हैं।

अब्राहम वचन का व्यक्ति

अब्राहम इस तरह अपने में ईश वचन का व्यक्ति है। जब ईश्वर बोलते हैं तो मनुष्य उनके वचनों का श्रोता बनता है और वचन उसके जीवन में फलहित होते हैं। यह एक धर्मी व्यक्ति के जीवन यात्रा की अद्भुत बात है, एक विश्वासी के रुप में इस भांति बुलाहट की शुरूआत होती है, जहाँ वह ईश्वर की एक प्रतिज्ञा का अनुभव जीवन में करता है। वह अपने जीवन को रहस्य की छांव में आगे नहीं बढ़ता वरन उस प्रतिज्ञा की शक्ति में आगे चलता है जो एक दिन पूरी होती है। अब्राहम ईश्वर की प्रतिज्ञा पर विश्वास करता है। वह आगे बढ़ता जाता यह नहीं जानते हुए भी कि वह कहाँ जा रहा है जैसे कि ईब्रानियों के नाम पत्र में हम सुनते हैं। परन्तु वह अपने विश्वास में बने रहता है।

हमारी ईश्वरीय अनुभूति कैसी हैॽ

उत्पत्ति ग्रंथ में हम पाते हैं कि अब्राहम कैसे ईश्वर के वचन को अपनी निष्ठामय प्रार्थना में जीता है। इसकी झलक हमें निरंतर उनके जीवन में मिलती है। संक्षेप में हम इसे कह सकते हैं कि उनका विश्वासमय जीवन एक इतिहास बन गया। संत पापा ने कहा कि विश्वास हमारे लिए इतिहास बन जाती है। हम कह सकते हैं कि अब्राहम का जीवन, उनके अदम्य कार्य हमें जीवन के राह की शिक्षा देती है, विश्वास की वह राह जो इतिहास में बदल जाती है। ईश्वर को हम प्रकृति के अजूबे में केवल नहीं पाते जो हम से दूर रहते, जो हममें भय उत्पन्न करते हों। अब्राहम के ईश्वर को हम “मेरे ईश्वर” के रुप में देखते हैं, वह ईश्वर जो मेरे व्यक्तिगत इतिहास का अंग बनते हैं, वह मेरे कदमों को निर्देंशित करते, जो मुझे नहीं छोड़ते, वे मेरे साथ रहते, मेरी मुसीबतों में विजयी होते वे मेरे शाश्वत ईश्वर हैं। संत पापा ईश्वर के इस आश्चर्यजनक अनुभूति से ओत-प्रोत यह सवाल किया, “क्या हमने अपने इस ईश्वर का अनुभव किया हैॽ “मेरे ईश्वर”, जो में मेरे साथ चलते, मेरे व्यक्तिगत जीवन के इतिहास में बन रहते, मुझे नहीं छोड़ते, मेरे जीवन की राह में मेरे मार्ग-दर्शक बनते, क्या आप ने इसका अनुभव किया हैॽ”

ईश्वरीय अनुभूति का साक्ष्य

अब्राहम के ईश्वरीय अनुभूति का साक्ष्य हमें आध्यात्मिकता के इतिहास के एक अति मूलभूत लेखों में प्रमाणित किया गया है जो ब्लेज पास्कल की यादगारी में मिलती है। इसकी शुरूआत कुछ ऐसे होती है, “अब्राहम के ईश्वर, इसाहक के ईश्वर, याकूब के ईश्वर, दार्शनिकों और विद्वानों के ईश्वर नहीं। हम निश्चित रुप में इसे खुशी, शांति अनुभूतियों के रूप में पाते हैं, जो येसु ख्रीस्त के ईश्वर पिता है।” यह यादगारी एक छोटी चर्मपत्र में लिखी गई है जिसे दार्शनिक की मृत्यु के उपरांत उनके कपड़ों के अंदर पाया गया। यह कोई बैद्धिक चिंतन नहीं जो एक ज्ञानी व्यक्ति के द्वारा ईश्वर के ज्ञान का जिक्र हो वरन यह ईश्वर की सजीव उपस्थिति है जिसे उन्होंने अपनी इंद्रियों के द्वारा अनुभव किया। अपने अनुभवों की विशिष्ट हेतु पास्कल उन अनुभूतियों की तिथि इंगित करते हैं जो 23 नवम्बर 1654 की संध्या बेला है। संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि यह कोई अमूर्त या ब्रह्मांडीय ईश्वर नहीं हैं। ये जीवित ईश्वर हैं जो हमें बुलाते हैं, वे अब्राहम, इसाहक और याकूब के ईश्वर हैं जो हमें विभिन्न तरह की अनुभूतियों से रुबरू कराते हैं।

विश्वास में ईश्वर के कार्य

“अब्राहम की प्रार्थना कार्यों में व्यक्त होती है, वे एक शांतिमय पुरूष हैं जो हर कदम पर ईश्वर के लिए एक बलि वेदी तैयार करते हैं।” (सीसीसी 2570)। अब्राहम कोई मंदिर का निर्माण नहीं करते लेकिन राह में पत्थरों को बिखेरते हैं जो ईश्वरीय परिभ्रमण की याद दिलाती है। ईश्वर आश्चर्यजनक कार्य करते हैं वे तीन व्यक्तियों के रुप में अब्राहम के पास अतिथि बनकर आते जिनका स्वागत वे सारा के साथ करते, जो उन्हें इसाहक के जन्म का संदेश देते हैं।(उत्पि. 18.1-15) उस समय अब्राहम की आयु 100 वर्ष की हो चुकी थी जबकि सारा करीब 90 वर्ष की थी। वे उनकी बातों पर विश्वास करते हैं। वे ईश्वर पर भरोसा करते हैं और इस तरह सारा उस उम्र में भी गर्भवती होती है। हम अब्राहम के ईश्वर, हमारे ईश्वर को इस तरह पाते हैं जो हम सभों के साथ चलते हैं।

विश्वास की परख होती है

संत पापा ने कहा कि अब्राहम का संबंध ईश्वर के साथ इस तरह स्थापित हो गया कि वे उनके साथ निष्ठापूर्वक विचार-विमार्श करते थे। हम ईश्वर के साथ बातें और विचार मंथन करें। ईश्वर अंत में अब्राहम की परीक्षा लेते और अपने एकलौठे पुत्र इसाहक का बलिदान करने को कहते हैं जो बुढ़ापे में उनका एकमात्र उत्तराधिकारी था। यहाँ हम अब्राहम को विश्वास की अंधेरी रात में, जहाँ आकाश में तारे नहीं थे, टटोलता हुआ पाते हैं। संत पापा फांसिस ने कहा कि हमारे साथ भी बहुधा ऐसा ही होता है, विश्वास के कारण हमें अंधकार में चलना पड़ता है। ईश्वर स्वयं बलि हेतु उठे अब्राहम के हाथों को रोकते हैं क्योंकि उन्होंने उनकी सच्ची निष्ठा को देखी (उत्पि.22.1-19)।

अब्राहम का विश्वास हमारी राह

हमें अब्राहम से सीखने की जरुरत है। संत पापा ने कहा कि हमें विश्वास में प्रार्थना करने, ईश्वर के साथ चलने, बातें करने और यहाँ तक कि विचार-मंथन करने भी सीखना है। हमें ईश्वर से तर्क-वितर्क करने हेतु नहीं डरना है चाहे वे बातें धर्मसिद्धांत के विपरीत ही क्यों न हों। संत पापा ने कहा कि बहुत बार मैंने लोगों को यह कहते हुए सुना है, “मैं ईश्वर से क्रोधित हो गया”। उन्होंने कहा कि यह भी एक तरह की प्रार्थना है क्योंकि संतान ही अपने माता-पिता से गुस्सा कर सकते हैं। हम अब्राहम के विश्वास में ईश्वर से प्रार्थना, वार्ता, तर्क-वितर्क करना सीखें लेकिन सदैव ईश्वर के वचनों को स्वीकार करें और उनका अपने जीवन में अमल करें। अब्राहम की प्रार्थना में हम खुले रुप में, ईश्वर के संग पिता और पुत्र स्वरुप बातें करना सीखते हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभों के संग हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

 

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03 June 2020, 14:24