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आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा फ्राँसिस आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा फ्राँसिस 

क्रोध की स्थिति में भी प्रार्थना करें, संत पापा

बुधवारीय आमदर्शन समारोह की धर्मशिक्षा में संत पापा फ्रांसिस ने नबी मूसा की प्रार्थना पर चिंता करते हुए हमारे क्रोध की स्थिति में भी हमें दूसरों के लिए प्रार्थना करने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 17 जून 2020 (रेई)- संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन के प्रेरितिक पुस्तकालय से सभी का अभिवादन करते हुए कहा, “प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।”

प्रार्थना की विषयवस्तु में हम इस बात को पाते हैं कि ईश्वर प्रार्थना को “सहज” रुप में लेनेवालों से खुश नहीं होते हैं। मूसा अपनी बुलाहट के प्रथम दिन से ही ईश्वर के साथ “कमजोर” वार्ता में नहीं रहा। ईश्वर ने जब उसे बुलाया तो वह मानवीय दृष्टिकोण से एक “असफल” व्यक्ति था। निर्गमन ग्रंथ उसे हमारे लिए मिदयान में एक पनाह प्राप्त व्यक्ति स्वरूप प्रस्तुत करता है। एक युवा के रुप में उसने अपने लोगों के दुःखों का अनुभव किया और उन्हें उत्पीड़न से बचाने की सोची। अपनी भली इच्छाओं के बावजूद उसने इस को बात समझ पाया कि उसके हाथों से हिंसा हुई है जो कि न्यायसंगत नहीं है। उसके सपने इस भांति टूट गये, वह अपने में एक आदर्श व्यक्ति नहीं रह गया। इस प्रकार वह अपने अवसरों को खो देता और भेड़ों की देख-रेख करता है लेकिन वे भी उसकी अपनी नहीं होती हैं। मिदयान की मरूभूमि, उस एकांत में ईश्वर उसे जलती हुई झाड़ी में प्रकट होते और उसे बुलाते हैं, “मैं तुम्हारे पिता का ईश्वर हूँ, इब्राहीम, इसहाक तथा याकूब का ईश्वर। इस पर मूसा ने अपना मुख ढ़क लिया, कहीं ऐसा न हो कि वह ईश्वर को देख ले” (निर्ग.3.6)।

ईश्वर और मूसा

संत पापा ने कहा कि मूसा ईश्वर की बातों का विरोध करता है किन्तु वे उसी को अपने लोगों की देख-रेख हेतु बुलाते हैं जो अपने में भयभीत है। वह अपने में अयोग्य है, वह उस ईश्वर के नाम को नहीं जानता, इस्रराएली जनता उसकी बातों पर विश्वास नहीं करेगी, वह अपने में हकलाता है, इस तरह हम उसमें बहुत से विरोध को पाते हैं। मूसा के मुख से निकलने वाली हर प्रार्थना में हम सवाल “क्यों” को पाते हैं। आप क्यों मुझे भेजते हैंॽ आप उन लोगों को क्यों मुक्त करना चाहते हैंॽ प्राचीन विधान की पांच पुस्तकें (पेन्टाटुक) हमें मूसा को ईश्वर द्वारा फटकारे जाने का हाल प्रस्तुत करता है क्योंकि उसने ईश्वर पर विश्वास नहीं किया, यह उसके लिए प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने हेतु बाधक बनता है (गण. 20.12)। ये सारे भय जो उसके हृदय को विचलित कर देतीं, हम मूसा को हमारी तरह एक मानव के रुप में पाते हैं।

हम उसकी कमजोरियों के साथ-साथ उसमें अच्छाइयों को भी देखते हैं जो हमें प्रभावित करती हैं। हमारे साथ भी ऐसा ही होता है जब हम अपने जीवन में संदेह करते हैं लेकिन हम किस तरह अपने जीवन में प्रार्थना करते हैं। ईश्वर मूसा को अपने लोगों के लिए नियमों को निर्धारित करने, अपनी सेवा-पूजा करने और गहरे रहस्यों के उद्भेदन हेतु एक माध्यम बनाते हैं जो इस्रराएलियों के जीवन में, विशेषकर, उनकी परीक्षा और पापों की घड़ी में उनके अति निकट रहते हैं। मूसा सदा अपने लोगों के निकट रहते हैं। वह अपने लोगों की यादों को नहीं खोते। एक महान चरवाहे का यह एक बड़ा गुण है जो अपने लोगों को नहीं भूलता है। वह अपनी जड़ों से अलग नहीं होता है। इस बात को संत पौलुस अपने युवा शिष्य तिमथी से कहते हैं,“अपने माता और नानी की याद करो, अपनी जड़ों, अपने लोगों से संयुक्त रहो।” मूसा का ईश्वर के संग मित्रता इस कदर है कि वह उनके साथ आमने-सामने बातें कर सकता है (निर्ग.33.11) वह अपने लोगों से भी इस भांति जुड़ा हुआ है कि वह उनके पापों और परीक्षाओं हेतु ईश्वर से क्षमा की याचना करता है।

मूसा ने अपने लोगों हेतु निवेदन

मूसा न तो ईश्वर को इंकार करता है, और न ही अपने लोगों को। यह उसके खून में है, वह ईश्वर की पुकार के अनुरूप आचरण करता है। संत पापा ने कहा कि मूसा को हम एक सत्तावादी और निरंकुश नेता के रुप में नहीं पाते हैं। गणऩा ग्रंथ हमें इसके व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए कहता है, “मूसा अत्यन्त विन्रम था। वह पृथ्वी के सब मनुष्यों में सब से अधिक विनम्र था” (गण.12.3)। अपनी विशेषाधिकार की स्थिति के बावजूद, मूसा कभी भी दीन-हीन इस्रराएली जनता को अपने को तस्टथ नहीं करता जो ईश्वर में भरोसा रखते हुए अपनी यात्रा करते हैं।

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि इस भांति हम मूसा को विशिष्ट रुप में अपने लोगों के लिए ईश्वर से विनय करता हुआ पाते हैं (सीसीसी.2574)। ईश्वर के प्रति उसका विश्वास पूरी तरह से अपने लोगों के प्रति पितृत्व की भावना के सराबोर है। धर्मग्रंथ इसे हमें उसकी हाथों को ईश्वर की ओर फैलाये हुए निरूपित करता है मानो वह स्वर्ग और पृथ्वी के मध्य एक सेतु का निर्माण कर रहा हो। अपने जीवन के सबसे कठिनतम परिस्थिति में भी, जब हम इस्रराएलियों को ईश्वर से विमुख होकर अपने लिए सोने का बछड़ा तैयार करता हुआ पाते हैं, वह अपने लोगों को दरकिनार नहीं करता है। ये मेरे लोग हैं। ये आप के लोग हैं। वह न तो अपने लोगों का तिरस्कार करता और न ही ईश्वर का। वह ईश्वर से कहता है, “हाय, इन लोगों ने घोर पाप किया है। इन्होंने अपने लिए सोने का देवता बनाया है। ओह, यदि तू इन्हें क्षमा कर दे, नहीं तो, मेरा नाम अपनी लिखी हुई पुस्तक से निकाल दे” (निर्ग.32.31-32)।

मूसा एक मध्यस्थ

मूसा अपने लोगों से तोल-मोल नहीं कहता है। वह अपने लोगों और ईश्वर के बीच खड़ा सेतु का कार्य करता है। वह अपने ख्याति हेतु अपने लोगों को बिक्री नहीं करता है। वह ऊंचाई में पहुँचने वाला नहीं लेकिन अपने लोगों के लिए, अपने इतिहास हेतु एक मध्यस्थ है जिसे ईश्वर ने अपने कार्यों को पूरा करने हेतु निमंत्रण दिया है। एक सेतु की भांति वह चरवाहों के लिए एक अति सुन्दर उदहारण है जो “सेतुओं” के निर्माण हेतु बुलाये गये हैं और यही कारण है कि चरवाहें सेतु कहलाते हैं। वे ईश प्रजा और ईश्वर के बीच सेतु का निर्माण करने हेतु बुलाये गये हैं जैसा कि मूसा ने किया। संत पापा ने मूसा की निवेदन प्रार्थना को दुहराते हुए कहा, “हे प्रभु तू उनके पापों को क्षमा कर और यदि तू उन्हें क्षमा नहीं करता तो मेरा नाम अपनी पुस्तक से मिटा दे, जिसे तू ने अंकित किया है। मैं अपने लोगों की कीमत पर अपने को स्थापित नहीं करना चाहता।”

उन्होंने कहा कि यह वह प्रार्थना है जिसे सच्चे विश्वासी अपने आध्यात्मिक जीवन में करते हैं। यद्यपि वे अपने लोगों की गलतियों का एहसास जीवन में करते वे अपने प्रार्थनाओं में उन्हें दोषी करार नहीं देते, वे उनका परित्याग नहीं करते हैं।
इस मनोभाव को हम संतों के जीवन में पाते हैं जिन्होंने येसु ख्रीस्त का अनुसरण करते हुए विश्वासियों और ईश्वर के बीच “सेतुओं” का निर्माण किया। इस संदर्भ में मूसा येसु ख्रीस्त का एक महान नबी था जो हमारे लिए निवेदक औऱ मध्यस्थ है (सीसीसी 2577)।

एक मध्यस्थ का कर्तव्य

आज भी येसु ख्रीस्त पिता के बीच हमारे लिए सेतु की भांति हैं। वे हमारी मध्यस्थता करते हुए अपने घावों को पिता को दिखाते जो हमारी मुक्ति और मध्यस्थता की कीमत है। मूसा हमारे लिए वे रुप हैं जिसमें हम येसु ख्रीस्त को हमारे लिए पिता से विनय, प्रार्थना करते हुए देखते हैं।

संत पापा ने कहा कि मूसा हमें येसु की तरह उत्साह से प्रार्थना करने के लिए प्रेरित करते हैं, जहाँ हम विश्व के लिए प्रार्थना करने हेतु बुलाये जाते हैं। हम इस बात की याद करें कि अपनी सभी खम्मियों के बावजूद दुनिया ईश्वर के लिए प्रिय है। सभी चीजें ईश्वर की हैं चाहे वे पापी, दुष्ट, अति भ्रष्ट नेता ही क्यों न हों, येसु चाहते हैं कि हम सबों के लिए निवेदन करें। दुनिया अपने में बनी रहती और विकसित होती है क्योंकि धर्मी व्यक्ति, संतगण सारी मानवता हेतु प्रार्थना करते हैं जिसके लिए हम ईश्वर के अभारी हैं। संत पापा ने कहा कि जब हम किसी के प्रति क्रोधित होते और उसे दोषी ठहराने की सोचते तो हम मूसा की मध्यस्थता की याद करें। क्रोधित होना ठीक है लेकिन दोषी करार देना उचित नहीं है। जब हमें क्रोध आये तो हम उन व्यक्तियों के लिए निवेदन करें। यह हमारी सहायता करेगा। इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपने प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

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17 June 2020, 13:55