संत पापा फ्राँसिस धर्मशिक्षा देते हुए संत पापा फ्राँसिस धर्मशिक्षा देते हुए 

ईश्वर हमारे जीवन में परिवर्तन लाते हैं, संत पापा

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह को यथावत जारी रखते हुए वाटिकन के प्रेरितिक पुस्तकालय से सभी का अभिवादन किया। उन्होंने कहा कि हम प्रार्थना पर अपनी धर्मशिक्षा माला को जारी रखें। बाईबिल का उत्पत्ति ग्रंथ हमारे लिए इतिहास के लोगों की घटनाओं का जिक्र करता है जिसके माध्यम से हम अपने जीवन पर चिंतन कर सकते हैं।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह को यथावत जारी रखते हुए वाटिकन के प्रेरितिक पुस्तकालय से सभी का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात।

हम प्रार्थना पर अपनी धर्मशिक्षा माला को जारी रखते हैं। बाईबिल का उत्पत्ति ग्रंथ हमारे लिए इतिहास के लोगों की घटनाओं का जिक्र करता है जिसके माध्यम से हम अपने जीवन पर चिंतन कर सकते हैं। हमारे पुरखों की श्रृखला में हम एक व्यक्ति को पाते हैं जो अपने गुणों का विकास श्रेष्टतम रुप में करता है। धर्मग्रंथ बाईबल हमें याकूब का अपने भाई एसाव के साथ एक कठिन संबंध के वृतांत को प्रस्तुत करता है। बचपन से ही उन दोनों के बीच एक तरह की प्रतिद्वंद्विता थी जो बाद तक खत्म नहीं होती है। वे दोनों जुड़वे भाई थे लेकिन याकूब अपने पिता की दूसरी संतान के रुप में चालाकी से अपने पिता इसाहक द्वारा पहलौठा होने के अधिकार और आशीर्वाद को प्राप्त कर लेता है (उत्पत्ति.25.19-34)। यह जीवन में प्रतिस्पर्धा की घटनाओं में से एक थी जिससे वह अपनी चालाकी में अन्जाम देता है। “याकूब” नाम का अर्थ हमारे लिए यहां उचित जान पड़ता है जो आगे बढ़ने हेतु धूर्तता की चाल चलता है।

आत्म निर्मित व्यक्ति

अपने भाई से दूर रहने हेतु बाध्य याकूब अपने जीवन की हर पहल में उन्नति करता जाता है। वह एक व्यापार शुरू करता और बड़े झुड़ का मालिक, एक धनवान व्यक्ति बन जाता है। वह अपनी तप और धैर्य के कारण लाबान की सबसे खूबसूरत बेटी से शादी करने में कामयाब हो जाता है, जिसके साथ वह सच्चा प्यार करता है। याकूब, यदि हम वर्तमान संदर्भ में कहें तो अपने में स्वयं निर्मित व्यक्ति था, वह अपने चातुर्य में उन सारी चीजों को प्राप्त कर लेता है जिनकी चाह वह रखता है। लेकिन उसके जीवन में कुछ कमी थी। संत पापा ने कहा कि वह अपने मूल से अलग है।

एक दिन उसे अपने बपौती घर से बुलावा आया, जहाँ वह अपने भाई एसाव से सदैव कठिन परिस्थिति में जीवन व्यतीत किया, जो अब जक जीवित था। वह अपनी धन संपति, जानवरों और लोगों के साथ यात्रा में निकल पड़ता है और जाबोक नदी के पास पहुंचता है। उत्पति ग्रंथ का यह स्थान हमारे लिए एक स्मृति के पन्ने का जिक्र करता है। (उत्प.32.23-33) याकूब अपने पशुधन को नदी के पार भेज कर उस विरान प्रदेश में अकेला रहा। इस भांति वह अपने भाई एसाव के साथ अपने मनोभावों को लेकर चिंतन कर रहा होता है। उसके मन-दिल में विचारों का उथल-पुथल होता है। जैसे-जैसे सांझ होने लगती है आचनक कोई अनजान व्यक्ति से उसकी कुश्ती शुरू हो जाती है। कलीसियाई धर्मशिक्षा हमें इसे कहती है कि “आध्यात्मिक परंपरा ने प्रार्थना को विश्वास की लड़ाई और दृढ़ता की विजय के रूप में निरूपित किया है” (सीसीसी. 2573)।

ईश्वर के साथ कुश्ती

याकूब की कुश्ती रात-भर चलती है और वह अपने विरोधी को पछाड़ने नहीं देता है। अंत में विरोधी उसकी जांघ पर प्रहार करता जो उसे जीवन भर के लिए लंगड़ा बना देता है। वह रहस्यात्मक कुश्ती करनेवाला व्यक्ति याकूब से उसका नाम पूछता और तब उसका नाम याकूब से इस्रराएल रख देता है क्योंकि वह मानव और ईश्वर के साथ लड़कर विजयी हुआ (32.28)। इस तरह याकूब का नाम बदलने से साथ उसका जीवन और उसके मनोभाव बदल गये। वह भी उस व्यक्ति का नाम पूछता है, “मुझे अपना नाम बता दो”। वह उसे अपना नाम नहीं बतलाता वरन् उसे अपनी आशीष प्रदान करता है। याकूब अपने में यह समझ जाता है कि उसने ईश्वर को अपनी आंखों से देखा है।

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि ईश्वर से कुश्ती, प्रार्थना का एक रूपक है। दूसरी जगहों में हम याकूब को ईश्वर के साथ वार्ता करते हुए देखते हैं जहाँ वह एक मित्र की भांति पेश आता और अपने को ईश्वर के अति निकट अनुभव करता है। लेकिन उस रात की कुश्ती ने उसके पूरे जीवन को परिवर्तित कर दिया। वह अपने को सभी चीजों का स्वामी, चालबाज और तोल-मोल करने वाले व्यक्ति के रुप में नहीं देखता है। हम उसके नाम में परिवर्तन, जीवन में परिवर्तन और मनोभावाओं में बदलाव देखते हैं। ईश्वर उसे जीवन की सच्चाई से रुबरु कराते हैं जो उसमें भय और डर की अनुभूति लाती है।

ईश्वरीय दया और मुक्ति की जरुरत

वह अपने जीवन की क्षणभंगुरता और शक्तिहीनता के अलावे पापों के साथ ईश्वर के सामने पेश आता है। उस याकूब को ईश्वर अपनी आशीष से भर देते जो लंगड़ाते हुए प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करता है। वह अपने में अतिसंवेदनशील और घायल हुआ लेकिन वह एक नया हृदय प्राप्त करता है। पहले वह स्वयं में सीमित व्यक्ति था जो अपनी चतुराई पर विश्वास करता था। वह ईश्वर की कृपा और करूणा से प्रभावहीन व्यक्ति था। वह अपने जीवन में ईश्वर की करूणा का महत्व नहीं समझता था। लेकिन ईश्वर ने उसमें उन सारी चीजों को सुरक्षित रखा जिसे वह खो चुका था। ईश्वर उसे यह समझने में मदद करते हैं कि वह अपने में सीमित है, वह पापी है जिसे ईश्वरीय दया और मुक्ति की जरुरत है।

ईश्वर से मिलने का समय निर्धारित

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि हम सभी के लिए ईश्वर के संग मिलन हेतु एक समय निर्धारित है। हम अपने जीवन के अंधकार भरी रातों, पापों, अव्यवस्थाओं में भी ईश्वर से सदैव मिलते हैं। उस रात में ईश्वर हम सबों को आश्चर्यचकित करेंगे, जब हम आशा नहीं कर रहे होंगे, जब हम अपने में सचमुच अकेले होंगे। उस रात को अज्ञात व्यक्ति से साथ हमारी लड़ाई में हम यह अनुभव करेंगे की हम अपने में कितने गरीब हैं। लेकिन हम अपने जीवन की उस परिस्थिति में भयभीत न हों क्योंकि ईश्वर हमें एक नया नाम प्रदान करेंगे जो हमारे पूरे जीवन को एक नया अर्थ प्रदान करेगा। वे हमारे हृदयों को बदल देंगे और हम जो अपने को उनके द्वारा बदले जाने की आशा करते हैं उनकी आशीष के भागीदार होंगे। संत पापा ने कहा कि यह परिवर्तन का एक सुन्दर निमंत्रण है। वे जानते हैं कि इसे कैसे करना है क्योंकि वे हममें से प्रत्येक जन को जानते हैं। हम सभी अपने में यह कह सकते हैं, “प्रभु, आप मुझे जानते हैं, मुझमें परिवर्तन लाइए।”

इतना कहते के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और तब हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

 

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10 June 2020, 14:07