बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा  

प्रार्थना हृदय की गहराई से निकलती है, संत पापा

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में प्रार्थना का मर्म समझाते हुए कहा कि यह हमारे हृदय की पुकार है जिसमें एक तीक्ष्ण अभिलाषा होती है।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन प्रेरितिक निवास की पुस्तकालय से सभों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो और बहनों, सुप्रभात।

आज हम, पिछले सप्ताह प्रार्थना पर शुरू की गई अपनी धर्मशिक्षा माला के दूसरे चरण पर आगे बढ़ते हैं।

प्रार्थना का उद्गम स्थल 

प्रार्थना हम सभों को अपने में सम्माहित करती है, सभी धर्म के लोगों को और संभवतः उन्हें भी जो किसी भी धर्म पर अपनी आस्था नहीं रखते हैं। प्रार्थना की उत्पति हमारे व्यक्तिगत आंतरिक रहस्य की गहराई से होती है जिसे आध्यात्मिक गुरू “हृदय” की संज्ञा देते हैं (सीसीसी 2562-2563)। अतः प्रार्थना कोई बाहर की बात नहीं है, यह अपने में कोई मामूली और अप्रधान बात नहीं बल्कि यह हम मानव के अंतरतम् गहराई का रहस्य है। हमारी भावनाएं प्रार्थना हैं लेकिन हम यह नहीं कह सकते कि केवल भावनाएं ही प्रार्थनाएं हैं। प्रार्थना करना अपने में बौद्धिक कार्य है यद्यपि प्रार्थना केवल दिमागी क्रिया-कलाप नहीं है। हम अपने शरीर से प्रार्थना करते हैं लेकिन शारीरिक गम्भीर अवस्था में भी एक व्यक्ति ईश्वर से बातें कर सकता है। इस भांति व्यक्ति जो प्रार्थना करता है वह अपने “हृदय” से प्रार्थना करता है।

प्रार्थना में अभिलाषा

संत पापा ने कहा कि प्रार्थना अपने में अन्तःप्रेरणा है, यह एक पुकार है जो हमसे परे जाती है। यह व्यक्ति के अंतःस्थल की गहराई से बाहर निकलती है क्योंकि इसमें मिलन की एक तीक्ष्ण अभिलाषा होती है। हृदय की यह चाह अपने में एक आवश्यकता से वृहद होती है, यह एक राह भी भांति है। प्रार्थना “मैं” की एक पुकार है जहाँ वह अपने में टटोलता, “तुम” को खोजने की कोशिश करता है। यहाँ हम “मैं” और “तुम” के मिलन का हिसाब नहीं कर सकते हैं।

प्रार्थना, संबंध में प्रवेश करना

ख्रीस्तीय की प्रार्थना अपने में एक रहस्याद्भेदन से शुरू होती है, जहाँ हम “तुम” (ईश्वर) को रहस्य में घिरा नहीं अपितु हमारे साथ एक संबंध में प्रवेश करता हुआ पाते हैं। ख्रीस्तीयता वह धर्म है जहाँ हम ईश्वर को सदा, अपने को “अभिव्यक्त” करता हुआ पाते हैं। साल के शुरू में कलीसियाई धर्मविधि के अनुरूप “प्रभु-प्रकाश” का त्योहार मनाना हमारा ध्यान इस ओर इंगित कराता है कि ईश्वर अपने को छिपा कर नहीं रखते वरन वे अपने लोगों के संग मित्रता में प्रवेश करते हैं। ईश्वर अपनी महिमा को बेतलेहम की दरिद्रता, मंजूषियों के चिंतन, यर्दन नदी में बपतिस्मा, काना के विवाह-भोज में प्रकट करते हैं। संत योहन रचित सुसमाचार की प्रस्तावना हमें एक संक्षिप्त विवरण लेकिन अपितु एक वृहृद भजन को प्रस्तुत करती है, “किसी ने कभी ईश्वर को नहीं देखा, पिता की गोद में रहने वाले एकलौते, पुत्र ने उसे प्रकट किया है” (यो.1.18) येसु ख्रीस्त पिता ईश्वर को हमारे लिए प्रकट करते हैं।

ख्रीस्तीय प्रार्थना भयहीन

ख्रीस्तियों की प्रार्थना, एक अति कोमल चेहरे के रुप में ईश्वर के साथ एक संबंध में प्रवेश करती है जहाँ हम मनुष्य में किस तरह के भय को पदस्थपित होता हुआ नहीं पाते हैं। यह ख्रीस्तीय प्रार्थना की प्रथम विशेषता है। यदि मनुष्य ईश्वर के सामने हमेशा एक डर, एक संकोच के साथ इस रहस्य में प्रवेश करे, यदि वह ईश्वर की आराधना करने में दास के मनोभावों को धारण करने का आदी जाये, उस व्यक्ति की भांति जिसमें अपने ईश्वर के प्रति सम्मान की कमी हो, तो ऐसी परिस्थिति में हम पिता ईश्वर को “अब्बा” कहा कर पुकारने की अपेक्षा, “पिता” कह कर बुलाते हैं।

 ईश्वर से हमारा रिश्ता

ख्रीस्तीयता में हम ईश्वर के साथ अपने “सामंती” रिश्ते को नहीं पाते हैं। अपने  विश्वास की विचार-अभिव्यक्ति में हम “गुलामी”, “दासता”, या उत्पीड़न का एहसास नहीं करते बल्कि हम उन संबोधनों जैसे कि “विधान”, “मित्रता”, “प्रतिज्ञा”, “एकता” और “निकटता” जैसे शब्दों को देखते हैं। संत पापा ने कहा कि अपने शिष्यों से विदाई के पूर्व उन्हें दिये गये लम्बें संबोधन में येसु कहते हैं, “अब से मैं तुम्हें सेवक नहीं कहूँगा। सेवक नहीं जानता कि उसका स्वामी क्या करने वाला है मैंने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैंने अपने पिता से जो कुछ सुना, वह सब तुम्हें बता दिया है। तुमने मुझे नहीं चुना, बल्कि मैंने तुम्हें इसलिए चुना और नियुक्त किया कि तुम जाकर फल उत्पन्न करो, तुम्हारा फल बना रहें और तुम मेरा नाम लेकर पिता से जो कुछ मांगो, वह तुम्हें वही प्रदान करे (यो.15.15-16)।” यह खाली चेक के समान है, “तुम लोग मेरा नाम लेकर पिता से जो कुछ मांगो, वह तुम्हें वही प्रदान करेंगे”।

ईश्वर खटखटाते, हस्तक्षेप नहीं करते

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि ईश्वर हमारे मित्र, सहयोगी, और दुल्हे हैं। प्रार्थना में उसके साथ विश्वास का एक संबंध स्थापित किया जा सकता है। इतना ही नहीं “हे पिता हमारे” की प्रार्थना में उन्होंने हमें बहुत सारी चीजों को मांग हेतु सिखलाता है। हम ईश्वर से सब कुछ मांग सकते हैं, सभी चीजों का वर्णन करते हुए सारी बातों को  बता सकते हैं। उनके साथ अपने संबंध को लेकर यदि हम गलती करते तो कोई बात नहीं, हम अच्छे मित्र नहीं हैं, हम कृतज्ञहीन संतान हैं, हम अपने में वफादार दंपति नहीं हैं। इन सारी बातों के बावजूद वे हमें प्रेम करना जारी रखते हैं। इसे वे अंतिम व्यारी के भोज में यह कहते हुए व्यक्त करते हैं, “यह मेरे नये विधान का रक्त है जो तुम्हारे लिए बहाया जायेगा” (लूका.22.20)। अपनी इस अभिव्यक्ति में वे क्रूस बलिदान के रहस्य को व्यक्त करते हैं। ईश्वर हमारे विश्वासी सहयोगी हैं, यदि हम उन्हें प्रेम करना छोड़ भी दें तो भी वे हमें प्रेम करना जारी रखते हैं यद्यपि यह प्रेम उन्हें कलवारी की ओर ले चलता है। संत पापा ने कहा कि ईश्वर सदा हमारे हृदय द्वार के निकट रहते और हमारी प्रतीक्षा करते हैं कि हम उसे खोलें। वे कभी-कभी हमारे हृदय को खटखटाते लेकिन हस्ताक्षेप नहीं करते, वे प्रतीक्षा करते हैं। उनका धैर्य हमारे लिए पिता का धैर्य है जो हमें अत्यधिक प्रेम करते हैं। उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए माता-पिता का धैर्य है जो हमारे हृदय के निकट रहते और वे जब कभी हमें दस्तक देते अपनी करूणा और प्रेम में ऐसा करते हैं।

ईश्वर केवल प्रेम करना जानते

संत पापा ने कहा कि हम विधान के रहस्य में प्रवेश करते हुए प्रार्थना करने की कोशिश करें। प्रार्थना के द्वारा हम अपने को ईश्वर की करूणामयी बाहों में रखें। हम अपने को उस तृत्वमय जीवन के आनंदमय रहस्य में लिपटा हुआ अनुभव करें, हमें अपने को अतित्थियों की तरह देखें जो इस सम्मान के योग्य नहीं हैं। हम अपने आश्चर्य में ईश्वर से यह सवाल करें, क्या यह संभंव है कि आप केवल प्रेम करना जानते हैंॽ उन्हें घृणा के बारे में पता नहीं है। उनसे घृणा की गई लेकिन वे घृणा को नहीं जानते हैं। ईश्वर ऐसे हैं जिनके पास हम प्रार्थना करते हैं। यह ख्रीस्तीय प्रार्थना का उद्दीप्त सार है। ईश्वर का प्रेम, हमारे पिता हमारी प्रतीक्षा करते जिससे वे हमारे साथ चल सकें।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपने प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

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13 May 2020, 14:26