पास्का जागरण मिस्सा का अनुष्ठान करते संत पापा फ्राँसिस पास्का जागरण मिस्सा का अनुष्ठान करते संत पापा फ्राँसिस 

पास्का संदेश, एक आशा का संदेश, संत पापा फ्राँसिस

संत पापा फ्राँसिस ने 11 अप्रैल को स्थानीय समय अनुसार रात 9 बजे संत पेत्रुस महागिरजाघर में पास्का जागरण मिस्सा का अनुष्ठान किया तथा येसु के जी उठने का शुभसंदेश दिया।

उषा मनोरमा तरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शनिवार, 11 अप्रैल 2020 (रेई)- संत पापा फ्राँसिस ने 11 अप्रैल को पास्का जागरण मिस्सा का अनुष्ठान किया तथा येसु के जी उठने का शुभसंदेश दिया।

उन्होंने उपदेश में कहा,विश्राम दिवस के बाद... (मती. 28.1) महिलाएँ कब्र देखने गयीं। इस तरह पावन जागरण के सुसमाचार पाठ की शुरूआत, विश्राम दिवस से होती है। यह पास्का त्रिदियुम का एक दिन है जिसको हम अक्सर पास्का रविवार के अल्लेलूया के इंतजार में यों ही पार करने की कोशिश करते हैं। इस साल हम दूसरे सालों की अपेक्षा शनिवार की नीरवता को अधिक महसूस कर रहे हैं। इस दिन हम महिलाओं के स्थान पर अपने आप की कल्पना कर सकते हैं। हमारे ही समान उनकी आखों के सामने भी दुःख का अम्बार था, एक अनापेक्षित त्रासदी जो अचानक उन पर आ पड़ा था। उन्होंने मौत देखी थी और उनका हृदय भारी था। दर्द के साथ भय था कि क्या उनका भाग्य भी स्वामी के समान ही होने वाला है? उन्हें भविष्य का भी डर था और सब कुछ को पुनःनिर्मित करने की जरूरत थी। एक दर्द भरी याद थी, आशा कम हो गयी थी। हमारे ही समान उनके लिए भी सबसे अंधकारमय समय था।

करुणा की ज्योति  जलाती महिलाएँ

किन्तु इस परिस्थिति में भी महिलाओं ने अपने आपको विकलांग होने नहीं दिया। उन्होंने दुःख और खेद की उदासी को हावी होने नहीं दिया, वे मलिनता में अपने आप में बंद नहीं हो गये और न ही सच्चाई से दूर होने की कोशिश की। वे कुछ साधारण कार्य कर रही थीं किन्तु यह असाधारण था, वे अपने घर में येसु के शरीर पर लेप लगाने की तैयारी कर रही थीं। उन्होंने अपने हृदय के अंधेरे में भी प्यार करना नहीं छोड़ा और करुणा की ज्योति जलायी।

माता मरियम ने शनिवार के दिन को व्यतीत किया, यह दिन उसके लिए प्रार्थना और आशा में समर्पित होना चाहिए। उन्होंने दुःख का सामना प्रभु पर भरोसा रखते हुए किया। उन महिलाओं से अनजान जो विश्राम दिवस के अंधेरे में सप्ताह के प्रथम दिन की तैयारी कर रही थीं, एक ऐसे दिन की जो उनके इतिहास को बदलने वाला था। येसु, जमीन पर बोये गये बीज की तरह, दुनिया में नये जीवन को प्रस्फूटित करने वाले थे। और ये महिलाएँ प्रार्थना एवं स्नेह से उस आशा के फूल को खिलने में मदद कर रही थीं।

इन दुःखद दिनों में, कितने लोगों ने उन महिलाओं के समान काम किया और कर रहे हैं। अपनी छोटी सेवा, स्नेह और प्रार्थना द्वारा वे आशा के बीज बो रहे हैं। बड़े सबेरे महिलाएँ कब्र के पास गयीं। वहाँ स्वर्गदूत ने उनसे कहा, डरो मत। वे यहाँ नहीं हैं, वे जी उठे हैं।” (5-6) कब्र के सामने खड़े होकर भी वे जीवन के शब्दों को सुनते हैं ...और येसु से मुलाकात करते हैं जो हर प्रकार की आशा प्रदान करने वाले हैं जो कहते हैं, डरो मत” (पद सं. 10) यही आशा का संदेश है जिसके द्वारा आज हमें सम्बोधित किया जा रहा है। आज रात ईश्वर हमारे लिए यही वाक्य दुहरा रहे हैं।

आशा का अधिकार

आज रात हमें एक मौलिक अधिकार प्राप्त हो रहा है जो हमसे कभी नहीं लिया जाएगा : आशा का अधिकार। यह नई और जीवित आशा है जो ईश्वर से आती है। यह केवल आशावादी होना नहीं है, न ही पीठ थपथपाना या प्रोत्साहन के खाली शब्द मात्र। यह स्वर्ग से एक वरदान है, जिसको हम अपने आपसे प्राप्त नहीं कर सकते। हमने इन सप्ताहों में लगातार दुहराया है, “सब कुछ ठीक हो जायेगा।” अपनी मानवता की सुन्दरता पर दृढ़ रहकर हमने हृदयों से प्रोत्साहन के शब्द कहे हैं। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते हैं और डर बढ़ता है, यहां तक ​​कि सबसे निर्भीक आशा भी भंग हो सकती है।

येसु की आशा अलग है। वे हमारे हृदय में दृढ़ता डाल देते हैं कि ईश्वर सब कुछ में अच्छाई ला सकते हैं क्योंकि वे कब्र से भी जीवित कर सकते हैं। कब्र वह स्थान है जहाँ से कोई कभी नहीं लौटता किन्तु येसु उसमें प्रवेश किये और हमारे लिए जी उठे ताकि जहाँ मृत्यु थी वहाँ जीवन ला सकें। जहाँ एक पत्थर से ढंक दिया गया था वहाँ से एक नई कहानी की शुरूआत कर सकें। उन्होंने उस पत्थर को हटा दिया है जो कब्र के द्वार पर सील किया गया था, वे हमारे हृदय के पत्थर को भी हटा सकते हैं। अतः आइये हम न त्याग दें, आशा के सामने पत्थर न रखें। हम आशा कर सकते हैं क्योंकि ईश्वर निष्ठावान हैं। उन्होंने हमें नहीं त्यागा है। उन्होंने हमारी भेंट की है और हमारे दुखद, परेशानी और मौत की परिस्थितियों में प्रवेश किया है। उनके प्रकाश ने हमारी कब्रों का अंधकार दूर किया है। आज वे चाहते हैं कि उनका प्रकाश हमारे जीवन के सबसे अंधेरे कोने में भी प्रवेश करे।

प्यारे भाइयो एवं बहनों, आपने यदि अपने हृदय में आशा का दफन कर दिया हो, तो भी न छोड़ें, क्योंकि ईश्वर महान हैं। अंधकार और मौत अंतिम शब्द नहीं हैं। हम मजबूत बनें क्योंकि ईश्वर के साथ कुछ भी नहीं खो सकता!

प्रेम में दृढ़ बने रहो

“ढाढ़स रखो”, यही शब्द येसु ने सुसमाचार में बार बार कहा है। येसु के अलावा एक दूसरे व्यक्ति ने प्रोत्साहन देने के लिए इन शब्दों का उच्चारण किया था। ढाढ़स रखो, उठो, वे (येसु) बुला रहे हैं!” (Mk 10:49) पुनर्जीवित प्रभु ही हमें हमारी आवश्यकता में उठाते हैं। यदि आप अपनी यात्रा में कमजोर और दुर्बल महसूस करते हैं या गिर जाते हैं तो नहीं डरें, ईश्वर हमारी मदद करने के लिए अपना हाथ बढ़ाते और कहते हैं, ढाढ़स रखो। आप कह सकते हैं जैसा कि डॉन अब्बोनदिनो ने कहा था (मैनज़ोन के नोवेल में), “साहस एक ऐसा चीज नहीं है जिसको आप खुद को दे सकते हैं।” (ई प्रोमेस्सी स्पोसी, XXV) निश्चय ही आप इसे खुद को नहीं दे सकते बल्कि एक उपहार के रूप में इसे ग्रहण कर सकते हैं। आपको सिर्फ इतना करना है कि आप अपना हृदय प्रार्थना में खोलें और उस पत्थर को धीरे से लुढ़कायें जो आपके हृदय के द्वार पर लगा हुआ है ताकि येसु का प्रकाश उसमें प्रवेश कर सके। आपको सिर्फ इतना कहना है, येसु मेरे भय के बीच आइये और मुझसे कहिए, ढाढ़स रखो। प्रभु आपके साथ हम परीक्षा में पड़ सकते हैं किन्तु हिलाये नहीं जा सकते। उदासी हमारे अंदर आ सकती है किन्तु हमें आशा से बल प्राप्त होगा क्योंकि आपके साथ क्रूस हमें पुनरूत्थान की ओर ले जाती है, क्योंकि आप हमारी रात के अंधेरे में भी हमारे साथ हैं, हमारी अनिश्चितताओं के बीच उस शब्द के रूप में जो हमारे मौन में बोलते हैं और आपने जो प्रेम हमें प्रदान किया है उसे कोई नहीं छीन सकता।

आशा का संदेश

  यही पास्का संदेश है, एक आशा का संदेश। इसका एक दूसरा भाग भी है, भेजा जाना- जाओ और गलीलिया के मेरे भाइयो को बतलाओ।” (Mt 28:10), स्वर्ग दूत ने कहा, वे आपसे पहले गलीलिया जायेंगे। (7) प्रभु हमसे पहले जाते हैं। यह जानना उत्साहजनक है कि हमारे जीवन और मृत्यु में वे हमारे आगे चलते हैं। वे हमसे पहले गलीलिया जाते हैं। यही वह स्थान था जहाँ वे और उनके शिष्यों ने अपनी दिनचर्या, परिवार एवं कार्यों को सम्पन्न किया था। येसु हमें अपने दैनिक जीवन में आशा प्रदान करना चाहते हैं।

शिष्यों के लिए गलीलिया एक स्मरणीय स्थल था क्योंकि यही वह स्थान था जहाँ से वे पहली बार बुलाये गये थे। गलीलिया लौटने का अर्थ है, याद करना कि हम प्यार किये गये हैं और ईश्वर द्वारा बुलाये गये हैं। हमें अपनी यात्रा को पुनः शुरू करना है, यह याद करते हुए कि प्रेम के मुफ्त वरदान द्वारा हमें जन्म लेने और पुनः जन्म लेने का निमंत्रण मिला है। यही वह विन्दु है जहाँ से हम नई शुरूआत कर सकते हैं, विशेषकर, संकट एवं कठिनाई की घड़ी में।

जीवन का संदेशवाहक बनें

इसके अलावा, येरूसालेम जहाँ वे थे गलिलीया सबसे दूर वाला प्रांत था। न केवल भौतिक रूप से बल्कि पवित्र शहर की पवित्रता से भी दूर था। यह वह स्थान था जिसमें विभिन्न धर्मों के लोग रहते थे, गैर यहूदियों की गलीलिया।” (Mt 4:15) येसु उन्हें वहाँ भेजते और वहीं से पुनः शुरू करने का आदेश देते हैं। यह हमें क्या बतलाता है? कि आशा का संदेश सिर्फ हमारे पवित्र स्थलों तक सीमित नहीं हो सकता बल्कि उसे सभी लोगों के लिए बांटा जाना है क्योंकि सभी को पुनर्जन्म की आवश्यकता है और हमने यदि जीवन के शब्द का स्पर्श किया है ” (1 Jn 1:1) तो यदि हम उन्हें प्रदान नहीं करेंगे, तो कौन प्रदान करेगा? ख्रीस्तीय होना कितना सुन्दर है जो सांत्वना प्रदान करते, जो दूसरों का बोझ उठाते और जो ढाढ़स प्रदान करते हैं, मृत्यु के समय में जीवन का संदेशवाहक बनते हैं। समस्त गलीलिया में और मानव परिवार के उन सभी क्षेत्रों में, जहाँ हम निवास करते हैं हम जीवन के संगीत को लायें क्योंकि हम सभी भाई बहन हैं। आइये, हम मृत्यु की आवाज को शांत करें, युद्ध फिर कभी न हो। हम हथियारों के निर्माण एवं व्यापार को रोकें क्योंकि हमें रोटी की जरूरत है बंदूक की नहीं। गर्भपात एवं निर्दोष लोगों की हत्या का अंत हो। जिनके पास पर्याप्त संसाधन हैं उनका हृदय उदार हो ताकि वे खाली हाथों को भर सकें जिनके पास आवश्यक वस्तुएँ भी नहीं हैं।

वे महिलाएँ अंत में येसु के पाँव पकड़ीं। (Mt 28:9); वे पैर जो हमसे मुलाकात करने के लिए बहुत यात्राएँ कीं, इतना तक कि कब्र में भी प्रवेश किया और बाहर निकले। महिलाओं ने उन पैरों का आलिंगन किया जिसने मृत्यु को पलट दिया था और आशा के नये रास्ते को खोल दिया था।

हे पुनर्जीवित येसु, आज आशा की खोज में हम एक यात्री के रूप में आपको दृढ़ता से पकड़ना चाहते हैं। हम मौत को पीठ दिखाना और अपने हृदय को आपके लिए खोल देते हैं क्योंकि आप ही जीवन हैं।   

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12 April 2020, 11:30