संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस 

येसु के साथ हम सभी चुनौतियों का सामना कर सकते हैं, संत पापा

संत पापा फ्राँसिस ने पास्का पर्व के तीसरे रविवार को, वाटिकन की लाईब्रेरी में लाईव प्रसारण के माध्यम से स्वर्ग की रानी प्रार्थना का पाठ किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 27 अप्रैल 20 (रेई)- संत पापा फ्राँसिस ने पास्का पर्व के तीसरे रविवार 26 अप्रैल को, वाटिकन की लाईब्रेरी में लाईव प्रसारण के माध्यम से स्वर्ग की रानी प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

संत पापा ने देवदूत प्रार्थना के पूर्व विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, "अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।"

आज का सुसमाचार पाठ पास्का दिन के माहौल में है, जो एम्माउस के दो चेलों की कहानी बतलाता है, (लूक. 24: 13-35) एक ऐसी कहानी है जो रास्ते पर शुरू होती और रास्ते पर ही समाप्त हो जाती है। वास्तव में, यह शिष्यों के बाहर निकलने की यात्रा है जो येसु की घटना के कारण उदास, येरूसालेम छोड़कर, 11 किलोमीटर की दूरी तय कर एम्माउस होते हुए घर लौट रहे थे, यह यात्रा दिन के समय की है जो एक अच्छे ढलान पर की गई।

बाद में वापसी की यात्रा भी तय की गई, जिसमें 11 किलोमीटर की दूरी, रात में तय की गई और चढ़ान पार किया गया। दो यात्राएँ – जिनमें एक आसान एवं दिन के समय, तथा दूसरी थकान के साथ रात में की गई, फिर भी, पहली यात्रा उदासी के साथ किन्तु दूसरी यात्रा आनन्द के साथ तय की गई। पहली यात्रा में प्रभु उनकी बगल में चल रहे थे किन्तु उन्होंने उन्हें नहीं पहचाना। दूसरी यात्रा में उन्होंने उन्हें नहीं देखा फिर भी उसकी नजदीकी का एहसास किया। पहली यात्रा में वे हताश और निराश थे, दूसरी यात्रा में वे पुनर्जीवित येसु से मुलाकात के सुसमाचार को सुनाने के लिए शीघ्रता चल पड़े।

दो अलग-अलग यात्राएँ

संत पापा ने कहा, "उन प्रथम शिष्यों की दो अलग-अलग यात्राएँ, हमें जो आज येसु के शिष्य हैं बतलाते हैं कि जीवन में दो अलग-अलग दिशाएँ हैं, कुछ लोग उन दो शिष्यों के जाने के रास्ते को पसंद करते हैं, जो हताशी के कारण व्यक्ति को लकवाग्रस्त कर देता है और वे उदास होकर आगे बढ़ते हैं। दूसरा रास्ता उन लोगों का है जो अपने आपको एवं अपनी समस्याओं को पहले स्थान पर नहीं रखते बल्कि येसु और उन भाई बहनों को रखते हैं जो उनसे मुलकात करने आते, अर्थात् उन भाई-बहनों की चिंता करते हैं जो हमारी चिंता की उम्मीद करते। संत पापा ने कहा कि यही मोड़ है: जहाँ हम अपने अतीत की निराशाओं, अधूरे सपनों, अपने जीवन में होने वाली कई बुरी चीजों को रोक देते हैं। कई बार हम अपनी ही परिक्रमा करते रहते हैं... जिसको छोड़ना और जीवन की अधिक बड़ी एवं सच्ची वास्तविकताओं को देखते हुए आगे बढ़ना है। येसु जीवन हैं वे मुझे प्यार करते हैं और मैं दूसरों के लिए कुछ कर सकता हूँ यह सच्चाई अधिक बड़ी है। यह सुन्दर सच्चाई है सकारात्मक है सुनहरी धूप की तरह सुखद है।

"काश" से "हाँ" की ओर

बदलाव यह है कि हम अपने आप के बारे चिंता करना छोड़कर, ईश्वर की सच्चाई पर ध्यान केंद्रित करें। शब्दों में हम इस प्रकार कह सकते हैं "काश" से "हाँ" की ओर बढ़ें। इसका अर्थ क्या है? संत पापा ने कहा कि इसका अर्थ है "काश" को स्थान नहीं देना- काश, उसने मुझे मुक्त कर दिया होता, काश, ईश्वर ने मेरी सुन ली होती, काश, जीवन मेरे अनुसार चला होता, काश, ऐसा होता, वैसा होता इत्यादि...यह एक प्रकार की शिकायत है। संत पापा ने कहा कि यह "काश" मदद नहीं करता। यह न तो हमें और न ही दूसरों को मदद देता है।

यहां हम उन दो शिष्यों के समान हो जाते हैं परन्तु शिष्य "हाँ" की ओर बढ़े। उन्होंने कहा, "जी हाँ, प्रभु जी उठे हैं वे जीवित हैं और हमारे साथ चलते हैं। उसकी घोषणा करने के लिए उन्होंने दूसरे दिन का इंतजार नहीं किया बल्कि तत्काल वापस लौटे।" उन्होंने कहा, "जी हाँ, हम लोगों को खुश करने, उन्हें बेहतर बनाने और उनकी मदद करने के लिए ऐसा कर सकते हैं। वे "काश" से "हाँ", शिकायत से आनन्द और शांति की ओर बढ़े, क्योंकि जब हम शिकायत करते हैं जब हम खुश नहीं होते, धूमिल स्थित में होते हैं जो उदासी की हवा है और यह हमें ठीक से बढ़ने नहीं देती। अतः हम काश से हाँ की ओर, शिकायत से सेवा के आनन्द की ओर बढें।"

किस तरह प्रार्थना करें?

शांति का यही परिवर्तन, जो "मैं" से "ईश्वर" की ओर, "काश" से "हाँ" की ओर था शिष्यों के साथ हुआ। येसु से मुलाकात में एम्माउस के दो शिष्यों ने सबसे पहले उनके लिए अपना हृदय खोला, फिर धर्मग्रंथ की उनकी व्याख्या सुनी और अततः उन्हें अपने घर में निमंत्रण दिया। संत पापा ने परिवार में प्रार्थना करने का तरीका बतलाते हुए कहा, "इन तीन चरणों को हम भी अपना घर ले सकते हैं- पहला, येसु के लिए हृदय खोलना, अपने जीवन के भार, परिश्रम और निराशा को "काश" के साथ उन्हें सौंप देना। दूसरा चरण, येसु को सुनना, अपने हाथ में सुसमाचार लेना, संत लूकस रचित इस  सुसमाचार पाठ को पढ़ना और तीसरा चरण है, येसु के प्रार्थना करना, उन्हीं शब्दों में जिन शब्दों में शिष्यों ने प्रार्थना की, "प्रभु हमारे साथ रह जाइये" (29) प्रभु हम सभी के साथ रह जाइये क्योंकि हमें रास्ता पाने के लिए आपकी आवश्यकता है और आपके बिना सिर्फ रात है।

रास्ते का चुनाव

संत पापा ने कहा, "प्यारे भाइयो एवं बहनो, जीवन में हम हमेशा यात्रा पर हैं, और हम जिधर चलते, वैसा ही बन जाते हैं। हम ईश्वर का रास्ता चुनें, स्वयं का नहीं, हाँ का रास्ता अपनायें, काश का नहीं। तब हम महसूस करेंगे कि हमें किसी चीज की आकांक्षा नहीं रह जायेगी, कोई ऐसी रात नहीं होगी जिसको येसु के साथ मिलकर पार नहीं कर सकेंगे। माता मरियम यात्रा की माता जिन्होंने शब्द का स्वागत कर, अपने सम्पूर्ण जीवन को ईश्वर के लिए हाँ बनाया, हमें रास्ता दिखलाये।

इतना कहने के बाद संत पापा ने स्वर्ग की रानी प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

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27 April 2020, 14:12