रोम और विश्व को संत पापा का संदेश एवं आशीर्वाद रोम और विश्व को संत पापा का संदेश एवं आशीर्वाद 

ईश्वर बुराई को भलाई मेें बदले हैं, संत पापा

संत पापा फ्रांसिस ने शुक्रवार को संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में रोम और पूरे विश्व को अपना संदेश देते हुए प्रार्थना की और पूरी मानवता को आशीर्वाद प्रदान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

शनिवार, 28 मार्च 2020 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने कोरोना की कहर झेल रहे विश्व के सभी लोगों ने नाम शुक्रवार को संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण से अपने ऊरबी एत ओरबी संदेश प्रेषित करते हुए सारी मानवता पर ईश्वरीय आशीष की कामना की।

“संध्या हो जाने पर”।(मरकुस 4.35) संत पापा फ्रांसिस ने संत मरकुस रचित सुसमाचार के आधार पर, समुद्र में चेलों के भयभीत संदर्भ को प्रस्तुत करते हुए कहा कि सप्ताहों से हमारे बीच अंधकार छाया हुआ है। हमारे चौराहों, गलियों और शहरों में घना अंधेरा व्याप्त है जिसके कारण हमारा जन जीवन प्रभावित हो रहा है। हम अपने चारों ओर घोर शांति और दुखदायी खालीपन को पाते हैं जो सारी चीजों को रोक देती है। हम पूरे मानव समाज में इसका अनुभव करते हैं जिसे लोगों की निगाहें व्यक्त करती हैं। हम अपने को भयभीय और खोया हुआ पाते हैं। सुसमाचार में, जैसे चेले अपने को अचानक समुद्री तूफान से घिरा हुआ पाया, हम भी अपने को तूफान में फंसा हुआ पाते हैं। हम अपने को उसी नाव में पाते हैं जहाँ हमारी स्थिति टूटी हुई है और हम अपने में अस्त-व्यस्त हैं, लेकिन ऐसी परिस्थिति में भी हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम एक-दूसरे को सांत्वना और मदद करते हुए जीवन में आगे बढ़ने हेतु बुलाये जाते हैं। जीवन की इस नाव... में हम सभी एक साथ हैं। जिस तरह शिष्यों ने भय और चिंता में एक साथ चिल्लाया, “हम डूब रहें हैं” (38) उसी भांति हम अपने में यह अनुभव करते हैं कि हम अकेले नहीं चल सकते वरन हमें एक साथ चलने की जरुरत है।

येसु के मनोभाव क्या हैं

इस घटना में हम सहज ही अपने को देख सकते हैं। हमारे लिए यहाँ येसु के मनोभावों को समझने में कठिनाई होती है। स्वाभाविक रुप में चेले समुद्री तूफान में विचलित और निराश हैं तो वहीं येसु डूबते हुए नाव में चुपचाप पड़े रहते हैं। वे क्या करते हैंॽ समुद्री तूफान के बावजूद, पिता में विश्वास करते हुए येसु गहरी नींद में सो रहे होते हैं। सुसमाचार में केवल इसी दृश्य में हम येसु को सोता हुआ पाते हैं। नींद से जागते हुए वे समुद्र और वायु को शांत करते, चेलों की ओर मुढ़ते और उन्हें फटकारते हैं, “तुम क्यों डरते होॽ क्या तुम विश्वास नहीं करतेॽ” (40)

हमारे हृदयों में चोट 

हम इसे समझने की कोशिश करें। येसु के भरोसे की तुलना में चेलों के विश्वास में किसी बात की कमी हैॽ उन्होंने उन पर विश्वास करना नहीं छोड़ा था बल्कि वे उन्हें पुकारते हैं। लेकिन हम उनकी पुकार को देखें, “गुरूवर, हम डूब रहे हैं, क्या आपको इसकी कोई चिंता नहींॽ” आपको कोई नहीं- उन्हें लगता है कि येसु उनकी परवाह, उनकी कोई चिंता नहीं करते हैं। संत पापा ने कहा कि परिवार में हमें सबसे अधिक चोट तब लगती है जब हम यह सुनते हैं, “तुम्हें मेरी कोई चिंता नहींॽ” यह वह वाक्य है जो हमारे हृदयों में घाव और तूफानों का सैलाब उत्पन्न कर देता है। येसु भी अपने में विचलित हो गये होंगे, क्योंकि किसी व्यक्ति से अधिक वे हमारी चिंता करते हैं। वास्तव में, चेलों की पुकार सुन कर वे उनकी निराशा से, उन्हें बचाते हैं।

जीवन में तूफान का प्रभाव

झंझावात हमारी संवेदनशीलता को बयाँ करती और हमारी उन झूठी निश्चिताओं को उभाड़ देती है जिन पर हम अपने रोज दिन के दिनचर्यों, परियोजनाओं, आदतों और प्राथमिकताओं का निर्माण करते हैं। यह हमें यही दिखाता है कि किस तरह जीवन को पोषित करने वाली सुविधा की चीजें हमें और हमारे समुदायों को सुस्त तथा कमजोर कर देती हैं। तूफान हमारे जीवन की पूर्वनियोजित चीजों को तर-बतर कर देती है जिससे फलस्वरुप हम उन बातों को भूल जाते हैं जो हमारे लोगों की हृदयों को प्रोषित करती हैं।

इस तूफान में, अपने जीवन की अहं जिसे लेकर हम सदा चिंतित रहते, सारी चीजें ध्वस्त हो जाती हैं और हम अपने को एक-दूसरे के लिए भाई-बहनों के रुप में पाते हैं जिससे हम अपने को वंचित नहीं रख सकते हैं।

हमारा बेफ्रिक जीवन

“तुम क्यों भयभीत होते होॽ” क्या तुम विश्वास नहीं करतेॽ” हे प्रभु, ये वचन इस संध्या बेला में हमारे हृदयों को स्पर्श करते और हम सभों को प्रभावित करते हैं। इस संसार को जिससे तू हम से अधिक प्रेम करता है, हम अपने में बहुत तेजी से आगे बढ़ गये हैं जहाँ हम अपने में यही सोचते हैं कि हम शक्तिशाली हैं और कुछ भी कर सकते हैं। लाभ कमाने के लोभ में हम बुहत जल्द चीजों में फंस जाते हैं। हम आप की चेतावनी पर भी नहीं रुके, हम दुनिया में हो रहे युद्ध और अन्याय से विचलित नहीं हुए और न ही हमने गरीबों की रूदन या पृथ्वी के विनाश की ओर ध्यान दिया। हम बेपरवाह, यह सोचते हुए चलते गये कि एक अस्वस्थ विश्व में हम स्वस्थ्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं। अब हम अपने को एक समुद्री तूफान में फंसा पाते औऱ तुझे पुकारते है, “प्रभु, उठिये”।  

चुनाव करने का वक्त 

“तुम क्यों भयभीत होते होॽ” क्या तुम विश्वास नहीं करतेॽ” प्रभु, तू हमें बुलाता, अपने विश्वास में मजबूत होने को बुलाता है। यह तेरे अस्तित्व में विश्वास करने से वृहृद हमें तेरी ओर आने औऱ तुझ पर भरोसा रखने की मांग करता है। चालीसा की इस अवधि में तेरी पुकार, “पश्चाताप करो, सारे हृदय से मेरी ओर लौट आओ” गूंजित होती है। (जोएल, 2.12) तू हमें निमंत्रण देता है कि हम इस विप्पति को चुनाव करने का अवसर की तरह लें। यह हमारे लिए तेरा निर्णय नहीं वरन तेरे हेतु हमें निर्णय लेने का समय है- यह हमारे लिए उन चीजों का चुनाव करने का समय है जो  जीवन में बनी रहती और जो खत्म हो जाती हैं, यह उन चीजों को अपने लिए अलग करने का समय है जो हमारे लिए जरुर हैं और जो नहीं हैं। यह समय हमें अपने जीवन को तुझ से और दूसरों से संयुक्त करने की मांग करता है। हम अपने जीवन में बहुत से आदर्श साथियों को देख सकते हैं जिन्होंने भय के बीच भी अपने जीवन को समर्पित कर दिया। यह पवित्र आत्मा की शक्ति है जो हममें साहस और उदारता का संचार करती जिसके फलस्वरुप हम आत्मत्याग करने को प्रेरित होते हैं। यह पवित्र आत्मा में हमारे जीवन को व्यक्त करता है जो हमें मुक्ति प्रदान करते और जीवन के मूल्य को समझने में मदद करते हैं कि हमारा जीवन सधारण लोगों के साथ जुड़ा हुआ है, जिन्हें बहुधा भूला दिया जाता है, जो अखबारों में मुख्य समाचार नहीं बनते न ही चमकती दुनियावी रंगमंच का हिस्सा होते हैं। लेकिन वे वर्तमान परिस्थिति में निसंदेह अति महत्वपूर्ण कार्यों का निष्पादन कर रहे हैं- चिकित्सक, नर्से, सुरपमर्केट के कार्यकर्ता, सफाई कर्मी, सहायता प्रदान करने वाले,वाहन चालक,विधि व्यवस्था स्थापित करने वाले, स्वंयसेवी, पुरोहित, धर्मबन्धु और धर्मबहनें तथा बहुत सारे लोग जो इस बात को समझते हैं कि कोई भी अपने आप में मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता है। दुःखों के सैलाब में जहाँ हमारे लोगों का सही विकास रुक गया है हम येसु ख्रीस्त की पुरोहिताई प्रार्थना को अनुभव करते हैं “जिससे वे एक हो सके”। (यो.17.21) कितने ही लोग हैं जो रोज दिन अपने में धैर्य का अनुभव करते हुए आशा को प्रसारित करने का प्रयास कर रहे हैं, वे डर को प्रसारित करने के बदले अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाहन कर रहे हैं। कितने ही माता-पिता, दादा-दादी औऱ शिक्षकगण बच्चों को इस बात की शिक्षा दे रहे हैं कि विपत्ति की परिस्थिति में, दैनिक जीवन की गतिविधियों में तालमेल बैठाते हुए, अपनी प्रार्थनामय निगाहों को ऊपर उठाते हुए, जीवन का संचालन किस तरह करना चाहिए। कितने लोग हैं जो सभों की सलमती हेतु प्रार्थना, निवेदन और विनय कर रहे हैं। प्रार्थना और शांतिमय सेवा यही दो हमारे जीत के हथियार हैं।

मुक्ति की खोज, विश्वास की शुरुआत

“तुम क्यों भयभीत होते होॽ” क्या तुम विश्वास नहीं करतेॽ” विश्वास की शुरूआत तब होती है जब हम यह महसूस करते हैं कि हमें मुक्ति की जरुरत है। हम अपने में आत्म-निर्भर नहीं हैं हम अपने में लड़खड़ा जाते हैं, हमें ईश्वर की जरूरत है जैसे कि प्राचीन नाविकों को तारों की जरुरत थी। हम अपने जीवन रुपी नाव में येसु ख्रीस्त को निमंत्रण दें। हम अपने भय को उन्हें सौंप दें जिससे वे उन पर विजय प्राप्त करें। इस तरह हम शिष्यों की भांति अनुभव करेंगे कि उनके आने से हमारी नाव नहीं डुबेगी क्योंकि यह ईश्वर की शक्ति है जो हमारे जीवन में बुरी चीजों को भी अच्छी चीजों में बदल देती है। वे हमारे जीवन के तूफान में अपनी शांति लेकर आते क्योंकि ईश्वर के साथ जीवन खत्म नहीं होता है।

तूफान में जीवन हेतु निमंत्रण

अपने जीवन के तूफान में, येसु हमें बुलाते और जागने का निमंत्रण देते हैं। वे हमें अपने जीवन के उन क्षणों में जब सारी चीजें टूटती नजर आती, हमें एकता और आशा में बने रहने का आह्वान करते हैं क्योंकि यह हमें जीवन के अर्थ को समझने की शक्ति और सहायता प्रदान करती है। येसु हमें जगाते हैं जिससे वे हममें पास्का के विश्वास में पुनर्जीवित कर सकें। हमारा एक नारा हैः क्रूस के द्वारा हम सभी बचाये गये हैं। हमारा एक रडार हैः क्रूस के द्वारा हमें मुक्ति मिली है। हमारी एक आशा है हम उनके क्रूस द्वारा चंगे और आलिंगन किये गये हैं जिसे कुछ भी और कोई भी, हमें उस मुक्तिदायी प्रेम से अलग नहीं कर सकता है। अपने जीवन के एकांकी भरे क्षण में जब हम दुःख सहते, करूणा की कमी का एहसास करते, बहुत-सी चीजों को खोने का अऩुभव करते तो वैसे परिस्थिति में हम पुनः उस पुकार को सुनें जो हमें मुक्ति प्रदान करती है, वह जी उठे हैं औऱ हमारी बगल में रहते हैं। येसु अपने क्रूस से हमें अपने जीवन की पुनः खोज करने को कहते हैं जो हमारे लिए आनेवाला है, वे हमें उनकी ओर देखने को कहते जो हमारी ओर देखते हैं, हमें अपने जीवन में उस शक्ति को मजबूत करने, पहचाने और उस कृपा को सजीव करने को कहते जो हममें व्याप्त है। हम अपने में लड़खड़ते लौ को न बुझने दें, हम अपने में आशा को पुनर्जीवित करें।

क्रूस के आलिंगन का अर्थ

क्रूस को आलिंगन करने का अर्थ वर्तमान समय की सभी तकलीफों को अपने में गले लाने हेतु साहस की खोज करना है। कुछ समय के लिए अपनी शक्ति की चाह और संपति का परित्याग करना हममें सृजनात्मकता हेतु एक मंच तैयार करने में मदद करता है जो केवल पवित्र आत्मा द्वारा प्रेरित होता है। इसका अर्थ साहस में एक मंच की खोज करना है जहाँ सभी अपने में बुलाये जाने का अऩुभव करते हैं जो नये आतिथ्य, भ्रातृत्व और एकता के प्ररुप को तैयार करता है। हम येसु ख्रीस्त के क्रूस द्वारा बचाये गये हैं जिसे हम आशा का आलिंगन कर सकें जो हमारे जीवन को मजबूती प्रदान करती और हम अपने तथा दूसरों को सुरक्षित रखते हैं। हम येसु का आलिंगन करें जिसे हम आशा को गले लगा सकें- यह विश्वास की शक्ति है जो हमें भय से मुक्त करती औऱ हमें आशा से भर देती है।

माता मरियम की विचवाई

प्रिय भाइयो एवं बहनों, यह स्थल हमें संत पेत्रुस के अटल विश्वास की याद दिलाती है जहां मैं आज की शाम आप सभों को मरियम की मध्यस्थता, जो हमारी स्वास्थ्य और तूफानों में हमारी सहयिका हैं, ईश्वर के हाथों में सुपुर्द करना चाहूँगा। यह स्तंभवली जो रोम और सारी दुनिया का आलिंगन करती है आपको ईश्वरीय आशीष और  सांत्वना से भर दे। प्रभु, तू विश्व को अपनी आशीष प्रदान कर। हमारे शरीर के स्वास्थ्य और आत्मा को सहारा प्रदान कर। तूने हमें भयभीत नहीं होने को कहा है। फिर भी, हमारा विश्वास कमजोर है और हम डर जाते हैं। लेकिन तू, हे प्रभु हमें तूफानों में यूं ही नहीं छोडेगा। हमें पुनः याद दिला,“डरो मत”। (मती.28.5) और हम संत पेत्रुस के संग, “अपनी सारी चिंताओं को तुझ पर अर्पित कर सकेंगे क्योंकि तू हमारी चिंता करता है”। (1 पेत्रु.5.7)

 

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

28 March 2020, 14:05