खोज

वाटिकन प्रेरितिक निवास की पुस्तकालय से संत पापा की धर्मशिक्षा वाटिकन प्रेरितिक निवास की पुस्तकालय से संत पापा की धर्मशिक्षा 

धार्मिकता हेतु मानवीय प्यास

संत पापा फ्रांसिस ने वाटिकन प्रेरितिक निवास की पुस्तकालय से अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह को जारी रखते हुए धार्मिकता हेतु भूख और प्यास जगाने की धर्मशिक्षा दी।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 11 मार्च 2020 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने इटली में कोरोना वायरस के कहर के बावजूद अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह को यथावत जारी रखते हुए वीडियो संचार माध्यम के जरिये विश्वासियों को अपनी धर्मशिक्षा माला दी। इस उपलक्ष्य में उन्होंने वाटिकन प्रेरितिक निवास की पुस्तकालय से सभों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात।

आज की धर्मशिक्षा माला में हम ईश्वरीय धन्य वचनों के माध्यम से दिव्य ज्योति में मिलने वाली खुशी के मार्ग में आगे बढ़ते हुए चौथे धन्य वचन पर चिंतन करते हैं, “धन्य हैं वे जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं वे तृप्त किये जायेंगे”(मत्ती 5.6)।

हमने पहले ही दरिद्रता और शोक के बारे में चिंतन किया है आज हम एक दूसरी दुर्बलता पर मनन करेंगे जो हमें भूख और प्यास से संयुक्त करती है। भूख और प्यास जीवन की अति आवश्यक जरूरतों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित कराता है। हम यहाँ गौर करें कि यह हमारे जीवन की सामान्य जरुरतें नहीं वरन जीवन की प्रमुख जरूरतें हैं, जिसकी आवश्यकता हमें रोज दिन के जीवन में अपनी जीविका हेतु होती हैं।

धार्मिकता हेतु हमारी प्यास

धार्मिकता के लिए भूखे और प्यासे होने का अर्थ क्या हैॽ संत पापा ने कहा कि इसका तत्पर्य निश्चित रुप से बदला लेना नहीं है बल्कि इसके विपरीत नम्रता को धारण करना है। अन्याय सारी मानवता के लिए दुःख का कारण बनती है, मानव समाज को समानता, सच्चाई औऱ सामाजिक न्याय की जरुरत है। हम इस बात को याद करें कि मानव समाज में नर और नारियों का दुःख सहना पिता ईश्वर के हृदय को स्पर्श करता है। वह कौन-सा पिता है जो अपनी संतानों के दुःखों से व्यथित नहीं होगाॽ

धर्मग्रंथ में हम गरीबों और पीड़ितों के दुःखों के बारे में सुनते हैं जिन्हें ईश्वर जानते और उनकी सुधि लेते हैं। निर्गमण ग्रंथ इस्रराएली जनता के दुःख और विप्पतियों की चर्चा करता है जो ईश्वर के कानों में पहुँचती है, (3.7-10) और ईश्वर अपने लोगों को बचाने आते हैं। लेकिन धार्मिकता की भूख और प्यास, जिसकी चर्चा ईश्वर करते हैं वह मानव के लिए दैनिक जीवन की नैतिक आवश्यकताओं से भी बढ़कर है जिसे हर मानव अपने हृदय में संजोकर रखता है।

“पर्वत प्रवचन” के अगले भाग में येसु धार्मिकता की चर्चा करते हुए कहते हैं, “यदि तुम्हारी धार्मिकता सदूकियों और फरीसियों की धार्मिकता से अधिक गहरी नहीं हुई तो तुम स्वर्गराज में प्रवेश नहीं करोगे”(मत्ती. 5.20)। यह धार्मिकता हमारे लिए ईश्वर की ओर से आती है। (1 कुरि.1.30)

धर्मग्रंथ में जिक्र प्यास

धर्मग्रंथ में हम शारीरिक प्यास की अपेक्षा एक गहरी प्यास को पाते हैं जो हमारे हृदय की गहराई में उत्पन्न होती है। स्तोत्र हमें कहता है, “ईश्वर, तू ही मेरा ईश्वर है। मैं तुझे ढ़ूढ़ता रहता हूँ, मेरी आत्मा तेरे लिए प्यासी है। जल के लिए सूखी संतप्त भूमि की तरह, मैं तेरे दर्शनों के लिए तरसता हूँ। (63.2) कलीसिया के आचार्यों ने मानव हृदय में व्याप्त इस बेचैनी की चर्चा की है। संत अगुस्टीन कहते हैं, “तूने हमें अपने लिए बनाया है, हे ईश्वर, हमारी आत्मा तब तक तरसती है जब तक हम तुझमें आराम नहीं पाते।” यह हम सभों में एक आतंरिक प्यासी, एक आत्मिक भूख, एक अशांति को व्यक्त करती है...।

ईश्वरीय मिलन की चाह

हर हृदय में चाहे वह अपने में कितना भी भ्रष्ट और अच्छाई के अति दूर क्यों न हो, हम उसमें ज्योति हेतु एक तीव्र लालसा को पाते हैं, मानव का हृदय अपने में झूठ और गलतियों से भरा हुआ क्यों न हो लेकिन वह सदैव सच्चाई और अच्छाई हेतु तरसता है, जो हमें ईश्वर से मिलन की चाह को दिखलाता है। संत पापा ने कहा कि यह पवित्र आत्मा हैं जो हम सभों में इस प्यास को जगाते हैं, वे हमारे लिए जीवन जल हैं जो मिट्टी के मूर्त मानव को अपनी सजीव सांसों द्वारा जीवन प्रदान करते हैं।

यही कारण है कि कलीसिया पवित्र आत्मा से प्रेरित सभों के लिए ईश्वर के वचनों को घोषित करने हेतु भेजी जाती है। क्योंकि येसु ख्रीस्त का सुसमाचार ही वह सर्वोतम धार्मिकता है जो मानवता हेतु दिया जा सकता है जो उसके लिए अति आवश्यक है यद्यपि वह अपने में इस सच्चाई का अनुभव नहीं करती है।

हमारी भूख

उदाहरण के लिए जब एक नर और नारी विवाह के सूत्र में बंधते हैं तो वे अपने में कुछ सुन्दर और महान कार्य करने का विचार करते हैं और यदि वे अपने में इस अभिलाषा को सजीव बनाये रखते तो वे इसकी प्राप्ति हेतु सदा अपने में सबल बने रहते हैं, मुसीबतों के बीच भी ईश्वर की कृपा से वे हमेशा आगे बढ़ते जाते हैं। युवागण भी अपने में भूखे हैं और उन्हें इस भूख को नहीं खोना है। हमें अपने बच्चों के हृदय में प्रेम पाने की चाह, करूणा को बचाये रखने और उसे पोषित करने की जरुरत है जिसे वे निष्ठापूर्ण ढ़ंग से अपने जोश में व्यक्त करते हैं।

मानवीय बुलावा सच्चाई की खोज हेतु

संत पापा ने कहा कि हर मनुष्य का बुलावा अपने जीवन में सच्चाई की खोज हेतु हुआ है जिसकी आवश्यकता उसे है, जो उसके जीवन का निर्माण करता है, वहीं उसे इस तथ्य पर चिंतन करने की जरुरत है कि कौन-सी बातें उसके लिए गौण हैं जिसके बिना भी वह शांति में जीवन व्यतीत कर सकता है।

येसु ख्रीस्त अपने धन्य वचन- धार्मिकता हेतु भूख और प्यास की घोषणा करते हैं, जो हमें अपने में कभी निराश होने नहीं देगा। एक प्यास जो सदैव हमारे लिए सफलता के रुप में, एक तृप्ति लेकर आयेगी क्योंकि यह हमें ईश्वर के हृदय से संयुक्त करता है, उस पवित्र आत्मा से जो प्रेम का स्रोत है, उस बीज से जिसे हमारे हृदयों में बोया है। ईश्वर हमें यह कृपा प्रदान करें कि हम सदैव धार्मिकता की खोज हेतु भूखे और प्यासे रहें, यह ईश्वर की खोज हेतु हमारा ध्यान आकृर्षित कराता है जिससे हम अपने जीवन में दूसरों के लिए अच्छे कार्य कर सकें।  

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सबों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

11 March 2020, 16:09