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माथे पर राख लगाते संत पापा फ्राँसिस माथे पर राख लगाते संत पापा फ्राँसिस 

चालीसा चंगाई प्राप्त करने का समय, संत पापा

संत पापा फ्राँसिस ने 26 फरवरी को राखबुध के दिन, रोम स्थित संत सबीना महागिरजाघर में ख्रीस्तयाग अर्पित किया तथा माथे पर राख लगाकर चालीसा काल की शुरूआत की।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

रोम, बुधवार, 26 फरवरी 2020 (रेई)˸ संत पापा फ्राँसिस ने 26 फरवरी को राखबुध के दिन, रोम स्थित संत सबीना महागिरजाघर में ख्रीस्तयाग अर्पित किया तथा माथे पर राख लगाकर चालीसा काल की शुरूआत की।

उन्होंने प्रवचन में कहा, "हम राख ग्रहण कर चालीसाकाल की शुरूआत करते हैं और याद करते हैं कि हम मिट्टी हैं और मिट्टी में मिल जायेंगे। (उत्पति 3:19) माथे पर राख लगाना हमारी क्षणभंगुरता की याद दिलाती है कि हम मिट्टी से बने हैं और मिट्टी में ही मिल जायेंगे, अर्थात् हम कमजोर, दुर्बल एवं मरणशील हैं। विशाल ब्रह्माण्ड में हम नगन्य हैं। हम संसार में धूल कण के समान हैं किन्तु इसी धूल कण से ईश्वर ने प्रेम किया। इस कण को प्रेम से अपने हाथों में लेकर आकार दी और प्राण वायु फूंका। (उत्पति 2:7) इस तरह हम बहुमूल्य मिट्टी बन गये हैं जिसका लक्ष्य है अनन्त जीवन प्राप्त करना। हम वो मिट्टी हैं जिसपर ईश्वर से आकाश से वर्षा प्रदान की है, इसमें उनका स्वप्न है। हम ईश्वर की आशा, उनके खजाने और उनका गौरव हैं।

राख हमें क्या याद दिलाती है

इस तरह राख हमारे अस्तित्व के मार्ग, धूल से जीवन का स्मरण दिलाती है। हम धूल और मिट्टी हैं किन्तु यदि हम उसे ईश्वर के हाथों में आकार बनाने के लिए छोड़ देते हैं तब हम संगमरमर बन जाते हैं। कई बार हम कठिनाइयों और एकाकी के क्षणों में केवल अपने धूल को देखते हैं किन्तु प्रभु हमें प्रोत्साहन देते हैं कि हम उनकी नजरों में मूल्यवान हैं। हम ईश्वर की संतान बनने के लिए पैदा हुए हैं।

माथे पर लगाया जाने के लिए तैयार राख
माथे पर लगाया जाने के लिए तैयार राख

संत पापा ने विश्वासियों का आह्वान करते हुए कहा कि चालीसा काल शुरू करते हुए हम इन बातों पर चिंतन करें क्योंकि चालीसा काल न केवल अपने कमजोरियों से ऊपर उठने का समय है बल्कि अपनी दुर्बलता में ईश्वर के प्रेम को पहचाने का भी अवसर है। यह कृपा का समय है, ईश्वर के प्रेमी दृष्टि का स्वागत करने एवं अपने जीवन में परिवर्तन लाने का समय है। हम दुनिया में इसलिए आये हैं ताकि राख से जीवन की ओर बढ़ें। अतः हम आशा न खोयें, उस स्वप्न को निरार्थक होने न दें जिसको ईश्वर हमारे लिए देखते हैं। हम किस तरह विश्वास कर सकते हैं? दुनिया की स्थिति बुरी हो गयी है, डर बढ़ गया है, बहुत अधिक द्वेष है और समाज को ख्रीस्तीयता रहित किया जा रहा है किन्तु क्या हम नहीं देख सकते कि ईश्वर किस तरह धूल कणों को प्रतिष्ठा में बदल सकते हैं?

जीवन का मकसद

माथे पर राख लगाने की क्रिया, हमारे मन के विचारों को झकझोर देती है। यह हमें स्मरण दिलाती है कि हम ईश्वर के बेटे-बेटियाँ हैं और मिट जाने वाले धूल के पीछे नहीं चल सकते। हमारे मन में एक सवाल उठ सकता है, मैं किस चीज के लिए जी रहा हूँ? यदि मैं दुनिया की चीजों के लिए जी रहा हूँ जो समाप्त हो जायेगा और ईश्वर के कार्यों से इन्कार करता हूँ तो मैं वापस मिट्टी में चला जाऊँगा। यदि मैं सिर्फ घर में कुछ पैसा और खुशी लाने के लिए जी रहा हूँ, ताकि सम्मान से जी सकूँ, अपना कैरियर बना सकूँ, तब भी मैं मिट्टी के लिए जी रहा हूँ। यदि मैं अपने जीवन को कोसता हूँ क्योंकि मुझे अधिक ध्यान नहीं दिया जाता अथवा मैं सोचता हूँ कि मुझे उतना सम्मान नहीं मिल रहा है जितना मिलना चाहिए, तब मेरी नजरें धूल की ओर हैं।  

संत पापा ने कहा कि हम इस दुनिया के लिए नहीं हैं। हमारा मूल्य बहुत अधिक है, हम अधिक महत्वपूर्ण कार्य, ईश्वर के प्रेम करने के स्वप्न को साकार करने के लिए जीते हैं।

हम स्वर्ग के नागरिक हैं

हमारे माथे पर राख लगाया जाता है ताकि हमारे हृदय में प्रेम की आग सुलगे क्योंकि हम स्वर्ग के नागरिक हैं तथा ईश्वर के प्रति प्रेम एवं पड़ोसी के प्रति प्रेम स्वर्ग जाने के लिए हमारा पासपोर्ट है। पृथ्वी पर जो धन हम अर्जित करते हैं वह हमारे लिए कोई काम नहीं देगा, वह नश्वर है और समाप्त हो जाएगा किन्तु परिवार, कार्य क्षेत्र, कलीसिया और दुनिया में हम जो प्रेम प्रदान करते हैं, वही हमारी रक्षा करेगा और हमेशा बना रहेगा।

प्रायश्चित जुलूस
प्रायश्चित जुलूस

माथे पर लगाया गया राख हमें दूसरे रास्ते की याद दिलाती है, जो जीवन से धूल कण बन जाता है। हम चारों ओर नजर दौड़ाते और मौत को देखते हैं जो जीवन से राख बना डालती है। मलबे, विनाश और युद्ध द्वारा निर्दोष बच्चों के जीवन को अस्वीकार कर, गरीबों के जीवन का तिरस्कार कर, बूढ़े लोगों को बेकार समझकर, हम अपने आपको नष्ट करते और मिट्टी में वापस लौटने के योग्य बनाते हैं।  

संत पापा ने कहा कि हमारे संबंधों में भी बहुत अधिक धूल पड़ गये हैं। हम अपने परिवार में देखें, कितने झगड़े और विवाद होते हैं। हम उनका हल करने की कितनी कोशिश करते हैं, हम कितनी बार माफी मांगते हैं और क्षमा देते हैं ताकि पुनः संबंध स्थापित हो सकें। इसके बदले कई बार हम अपने स्थान और अधिकार का दावा करते हैं। बहुत सारे धूल हैं जो प्रेम को मैला करते एवं जीवन को बदतर बना देते हैं। कलीसिया जो ईश्वर का घर है उसमें भी हम धूल बैठने देते हैं, जो दुनियादारी की धूल है।  

पाखंड के धूल को साफ करें

संत पापा ने चिंतन करने हेतु प्रेरित करते हुए कहा, "हम अपने हृदय में झांककर देखें, कितनी बार हम पाखंड के राख से ईश्वर की आग को बुझाने की कोशिश करते हैं। पाखंड वह राख है जिसे येसु आज के सुसमाचार में घटाने के लिए कहते हैं। वास्तव में प्रभु हमसे न केवल दान देने तथा प्रार्थना एवं उपवास करने का आह्वान करते हैं बल्कि इन कार्यों को बिना दिखावे के, बिना दोहरी चाल और बिना पाखंड के करने के लिए कहते हैं। (मती. 6,2.5.16) कितनी बार हम अपने अहम के कारण, अपने आपको ख्रीस्तीय बतलाने की कोशिश करते हैं और अपनी आकांक्षाओं को प्रबल होने देते हैं जो हमें गुलाम बना देते। कई बार हम उपदेश देते किन्तु उसके अनुसार नहीं जीते। कई बार हम बाहर अच्छा दिखलाते और अंदर घृणा से भरे होते हैं। हमारे हृदय में कितना अधिक दोहरापन होता है ...ये सब धूल है जो मैला करता, राख है जो प्रेम की आग को जलने नहीं देता है।

पापस्वीकार करते संत पापा फ्राँसिस
पापस्वीकार करते संत पापा फ्राँसिस

संत पापा ने कहा, हमें अपने हृदय में जमे धूल को साफ करने की जरूरत है। कैसे साफ करें? संत पौलुस अनुरोध करते हुए कहते हैं, "हम मसीह के नाम पर आप से यह विनती करते हैं कि आप लोग ईश्वर से मेल कर लें।" संत पापा ने कहा कि शुद्ध होना कृपा से संभव है क्योंकि हम अपने आपसे हृदय के उस मैल को साफ नहीं कर सकते। येसु जो हमारे हृदय को जानते और उसे प्यार करते हैं वे ही उसे चंगा कर सकते हैं। अतः चालीसा चंगाई प्राप्त करने का समय है।

चालीसा काल के दो कदम

संत पापा ने चालीसा काल में पास्का की ओर यात्रा करते हुए दो कदम लेने की सलाह दी- पहला, धूल से जीवन की ओर बढ़ने एवं कमजोर मानव से येसु की मनुष्यता की ओर बढ़ने के लिए। इसके लिए हम येसु के क्रूस के सामने खड़े होकर कुछ देर रूकें, उस पर नजर डालें और इस प्रार्थना को दुहरायें, "येसु आप मुझे प्यार करते हैं, मेरा मन-परिवर्तन कीजिए।" उनके प्रेम को स्वीकार करने के बाद दूसरा कदम है, जीवन से धूल में नहीं गिरना। हम ईश्वर की क्षमा प्राप्त करने के लिए पापस्वीकार करने जाएँ क्योंकि वहाँ ईश्वर के प्रेम की आग हमारे पाप की राख को साफ कर देता है। पापस्वीकार संस्कार में पिता का आलिंगन हमें अंदर से बदल देता है और हमारे हृदय को साफ कर देता है। हम अपने आपको एक प्रेमी बेटा या बेटी, क्षमा किया गया पापी, चंगाई प्राप्त रोगी और साथ-साथ चलने वाले यात्री की तरह  उनसे मेल-मिलाप करने दें। हम प्रेम किया गया महसूस करें ताकि हम भी प्रेम कर सकें। हम उठें ताकि अपने लक्ष्य, पास्का पर्व की ओर बढ़ सकें। जहाँ हम उस आनन्द को प्राप्त करेंगे कि ईश्वर ने राख में से हमें ऊपर उठाया है।

 

क्रूस के नीचे खड़ा एक विश्वासी
क्रूस के नीचे खड़ा एक विश्वासी

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26 February 2020, 16:37