कार्डिनल दी दोनातिस पुरोहितों को प्रवचन देते हुए कार्डिनल दी दोनातिस पुरोहितों को प्रवचन देते हुए 

पुरोहितों से संत पापा: कड़वाहट को मीठास में बदलें

चालीसा काल शुरू करने हेतु, रोम धर्मप्रांत के पुरोहितों के लिए परमपरागत प्रायश्चित की धर्मविधि का आयोजन बृहस्पतिवार को रोम स्थित लातेरन महागिरजाघर में किया गया था।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

रोम, बृहस्पतिवार, 27 फरवरी 20 (रेई)˸ रोम के कार्डिनल विकर अंजेलो दी दोनातिस द्वारा चिंतन प्रस्तुत किये जाने के बाद, पुरोहितों ने पापस्वीकार संस्कार में भाग लिया। साधारणतः, इस अवसर पर संत पापा, रोम के धर्माध्यक्ष के रूप में वहाँ उपस्थित होते एवं पुरोहितों का पापस्वीकार सुनते हैं किन्तु वे उपस्थित नहीं हो पाये। वाटिकन प्रेस कार्यालय के निदेशक के अनुसार थोड़ी अस्वस्थता के कारण संत पापा इस समारोह में भाग लेने नहीं गये और संत मर्था में ही रहना चाहे।

पुरोहितों को दिये जाने वाले संत पापा के संदेश को कार्डिनल दी दोनातिस ने प्रस्तुत किया। अपने संदेश में संत पापा फ्राँसिस ने पुरोहितों द्वारा अनुभव किये जाने वाले कड़वाहट पर प्रकाश डाला और उम्मीद जतायी कि यह उन्हें पिता के अधिक निकट आने का मार्ग दिखला सकता है एवं उनकी करुणावान अभिषेक की शक्ति को पुनः महसूस करने में मदद दे सकता है।   

कड़वाहट का कारण

संत पापा फ्राँसिस ने पुरोहितों के लिए कड़वाहट के तीन मुख्य कारण – विश्वास में, धर्माध्यक्षों  संग एवं दूसरे पुरोहितों के साथ संबंध में कड़वाहट बतलाये।

विश्वास के संबंध में कड़वाहट का मूल कारण निराशा है जो ईश्वर से नहीं आती बल्कि हमारी खुद के गलत उम्मीदों से उत्पन्न होती है। निराशा से आशा की ओर बढ़ने के लिए हमें अपने आप से ऊपर उठना है और ईश्वर पर भरोसा करना है।  

धर्माध्यक्षों के द्वारा हुई "चूक" भी पुरोहितों के लिए कड़वाहट का कारण बन सकती है। धर्माध्यक्ष का निर्णय ही यद्यपि अंतिम निर्माण होता है तथापि संत पापा ने कहा कि अधिनायकवाद इसका जवाब नहीं है, धर्माध्यक्षों को सभी की आवश्यकताओं के लिए सलाह लेना एवं निर्णय लेने के लिए सभी को प्रोत्साहित करना चाहिए जिसमें सबकी भलाई हो।  

पुरोहितों के बीच आपसी संबंध पर प्रकाश डालते हुए संत पापा ने संदेश में कहा है कि वे बदनामी से ठोकर खाते हैं, विशेषकर, यौन दुराचार एवं वित्तीय मामलों में। संत पापा ने कहा कि हमें याद रखना चाहिए कि इस जीवन में "गेहूँ और भूसा, अच्छे और बुरे दोनों साथ रहते हैं और वे कलीसिया में भी पाये जायेंगे।  

एकाकीपन का खतरा

संत पापा ने कहा कि ये सभी चीजें संबंधों को अधिक कठिन बना सकते हैं और एकाकीपन महसूस करा सकते हैं। न केवल एक-दूसरे से दूर रहने में, बल्कि कृपा से वंचित, आध्यात्मिक दुनिया से अलग, इतिहास से कटे हुए, मुक्ति इतिहास के बृहद तस्वीर को देखने के बदले सिर्फ वर्तमान को देख पाने, अर्थपूर्ण और भरोसेमंद संबंध स्थापित नहीं कर पाने तथा सुसमाचार को एक-दूसरे के बीच आदान-प्रदान नहीं कर पाने के अकेलापन को भी महसूस करते हैं।  

संत पापा ने कहा कि इन सबका सामना करने के लिए पुरोहितों को चाहिए कि वे एक विवेकशील आध्यात्मिक पिता से सलाह लें, जिनके पास वे अपने बोझ को हल्का कर सकें, अन्यथा वे अपने आप में बंद हो जायेंगे।  

ईश्वर की प्रजा के साथ संबंध

संत पापा ने अपने संदेश में पुरोहितों को याद दिलाया है कि ईश्वर की प्रजा अपने चरवाहे को बेहतर तरीके से जानती है। वह उनका सम्मान करती, साथ देती और उनके लिए प्रार्थना करती है। हम उसके साथ अपनी प्रार्थना को एक करें और प्रभु से निवेदन करें कि वे हमारी कड़वाहट को अपने लोगों के लिए मीठे जल में परिवर्तित कर दें। हम प्रार्थना करें ताकि कड़वाहट के कारणों को जान सकें तथा मेल-मिलाप के व्यक्ति बन सकें जो शांति लाते एवं आशा जागृत करते हैं।  

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27 February 2020, 17:41