अमाजोन के जंगल अमाजोन के जंगल  संपादकीय

अमाजोन प्रांत संबंधित संत पापा के “वृहृद सपने”

अमाजोन प्रांत के प्रति फ्रांसिस के सपने: मानव पारिस्थितिकी की दिशा में ठोस कदम जो गरीबों का ध्यान रखता हो, स्थानीय संस्कृतियों की सराहना और प्रेरितिक कलीसिया का अमाजोनी प्रतिरूप।

आद्रेया तोरनेल्ली

“सपने सच्चाई की खोज हेतु महत्वपूर्ण स्थल होते हैं...बहुत बार ईश्वर सपनों के माध्यम से हमसे बातें करते हैं”। उक्त बातें संत पापा फ्रांसिस ने सन् 2018 के दिसम्बर महीने में संत मार्था के प्रार्थनालय में मिस्सा बलिदान के दौरान अपने प्रवचन में कही। उनके ये शब्द संत योसेफ के संदर्भ में थे जो शांतभाव और ठोस रुप में अमाजोन के संदर्भ में संत पापा फ्रांसिस के विचारों को समझने में हमारी मदद कर सकते हैं जिसे उन्होंने अमाजोन की धर्मसभा के उपरांत प्रकाशित प्रेरितिक प्रबोधन में घोषित किया है। यह एक प्रेम पत्र के रुप में लिखा गया है जिसमें न केवल गद्य प्ररुप हैं बल्कि इस प्रांत से जुड़े कुछ दैनिक पद्य भाग भी हैं। रोम के धर्माध्यक्ष ने क्यों अमाजोन भौगोलिक, विशेष प्रांत को धर्मसभा का एक अन्तरराष्ट्रीय मूल्य स्वरुप प्रस्तुत कियाॽ अमाजोन और उसके भाग्य का हमारे साथ क्या संबंध है?

इसका उत्तर हम प्रेरितिक प्रबोधन के पन्नों में पाते हैं। इसका सबसे प्रत्यक्ष उत्तर हमारे लिए यही है कि सभी चीजों एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं, इस ब्रह्माण्ड का संतुलन वास्तव में, अमाजोन प्रांत के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। चूँकि वहाँ रहने वाले लोगों और पारिस्थितिकी तंत्र को अलग नहीं किया जा सकता है, हम न तो वहाँ के निवासियों की सम्पति का विनाश कर सकते, न आदिवासियों की संस्कृति और न ही जंगलों को नष्ट करने वाले उद्योगों या राजनीति का ही विनाश कर सकते हैं क्योंकि वे हमें अपने से अलग कर देंगे।

फिर भी यदि देखा जाये तो अमाजोन प्रांत के संबंध में एक अलग वैश्विक मुद्दा है। हमारे सामने कई चुनौतियां हैं जो हमारे दरवाजों पर दस्तक दे रही हैं- एक वैश्विक अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणाली का प्रभाव जो इतनी वृहृद जनसंख्या हेतु सतत नहीं है; लोगों और संस्कृतियों का सह-अस्तित्व जो अपने में एकदम भिन्न हैं; आप्रवासन; सृष्टि की देखभाल करने की आवश्यकता है जो अपूरणीय रूप से घायल होने की जोखिम में है।

क्वीरिदा अमाजोनिया अर्थात प्रिय अमाजोन जिसके बारे में संत पापा एक प्रेम पत्र लिखते हैं कलीसिया के लिए एक चुनौती पेश करती है जो सुसमाचार प्रचार हेतु एक नये मार्ग का चुनाव करती, जहां हम ख्रीस्तीय सुसमाचार के संदेश, उस ईश्वर को पाते हैं जो दुनिया के प्रेम हेतु अपने निज पुत्र को क्रूस पर बलि अर्पित कर दिया, घोषित करने की मांग करती है। अमाजोन प्रांत की मानवता अपने में बीमार नहीं जो प्रार्यवरण की देख-रेख हेतु हमसे एक कड़ा कदम उठाने की मांग करता हो। हमें अमाजोन के आदिवासियों, उनकी संस्कृति और रीति-रिवाजों की रक्षा करने की जरुरत है। उन्हें भी सुसमचार के वचनों को सुनने का अधिकार है जहाँ वे कलीसियाई प्रेरितिक कार्य से अलग नहीं रखे जा सकते हैं। 

संत पापा फ्रांसिस का प्रेरितिक प्रबोधन एक विचार को प्रदर्शित करता है जो अभियोगात्मक भाषण को विराम देता है जिसके फलस्वरुप धर्मसभा में विवाहित पुरुषों के याजकीय अभिषेक की चर्चा की गई थी। इस मुद्दे पर पर एक लम्बी चर्चा हुई और आने वाले दिनों में भी इस पर बहस जारी रहेंगे क्योंकि “सम्पूर्ण और स्थायी संयम” जैसे कि वाटिकन द्वितीय अन्तरधार्मिक धर्मसभा कहती है, “पुरोहिताई स्वाभाविकता की मांग नहीं है।” ऐसे मुद्दों पर संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी प्रार्थना और विचारमंथन करते हुए इसका उत्तर, परिवर्तनों या अपवादों के पूर्वाभास की संभावना के आधार पर नहीं जो वर्तमान कलीसियाई नियमों द्वारा पहले ही दिये गये हैं वरन शुरूआती आधार पर प्रश्न करते हुए देते हैं।  बल्कि वे हमें एक जीवंत और अवतरित विश्वास के साथ फिर से शुरू करने को कहते जो एक नए प्रेरितिक जोश से संलग्न हैं जिसकी जड़ें कृपा में निहित हैं जो धार्मिकता के प्रभावकर्ताओं व्यावसायिक साधन या संचार प्रौद्योगिकियों में आधारित नहीं बल्कि ईश्वर को एक निश्चित स्थान प्रदान करता है।  

“प्रिय अमाजोन” हमें स्थानीय कलीसिया और प्रेरिताई कार्यों हेतु एक “विशेष और साहसिक” खोज की मांग करती है। यह हमसे इस बात की मांग करती है कि कलीसिया अपने उत्तरायित्वों का वहन करे जिससे वह अमाजोन लोगों के घावों और उनकी मुसीबतों को अपने ऊपर ले सके जो रविवारीय समारोहों से अपने को वंचित पाते हैं। वह अपनी उदारता में उनके लिए नये प्रेरितों को प्रेषित करे जो पवित्र आत्मा के वरदानों की प्रंशसा करते हैं और अयाजकीय वर्ग के कार्यों को एक कलीसियाई पहचान प्रदान करते हुए, लोकधर्मियों को सुसमाचार प्रचार के कार्य हेतु एक पहचान प्रदान करते हैं। संत पापा फ्रांसिस अमाजोन प्रांत के संबंध में इस विशेष बात की याद दिलाते हैं कि विश्वास को प्रसारित किया गया है जो अपने में पुख्ता है, हम उन “ताकतवर और उदार नारियों” की उपस्थिति हेतु कृतज्ञ हैं जो पुरोहितों की अनुपस्थिति के बावजूद अपनी राह में आगे बढ़ते गये।

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13 February 2020, 10:10