आमदर्शन समारोह में लोगों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस आमदर्शन समारोह में लोगों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस 

कलीसिया चाहे सतायी अथवा कैद की जाए, स्वागत करना नहीं छोड़ती

संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर, वाटिकन के पौल षष्ठम सभागार में "प्रेरित चरित" पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ाते हुए, हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को सम्बोधित किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 15 जनवरी 2020 (रेई)˸ संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर, वाटिकन के पौल षष्ठम सभागार में "प्रेरित चरित" पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ाते हुए, हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को सम्बोधित कर कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

आज प्रेरित चरित पर धर्मशिक्षा को, रोम में मिशनरी संत पौलुस के अंतिम पड़ाव के साथ समाप्त करते हैं। (प्रे.च. 28,14)  

पौलुस की यात्रा जो एक सुसमाचार की यात्रा थी, एक प्रमाण है कि मनुष्यों का रास्ता, यदि विश्वास से तय किया जाए, तो ईश्वर की मुक्ति के लिए पारगमन स्थल बन जाती है। वचन पर विश्वास के द्वारा जो इतिहास में सक्रिय है, परिस्थिति को बदला और नया रास्ता खोला जा सकता है।

साम्राज्य के केंद्र में पौलुस के आगमन के साथ, प्रेरित चरित की कहानी समाप्त होती है जो पौलुस की शहादत के साथ समाप्त नहीं होती बल्कि उसमें वचन का बीज प्रचुर मात्रा में बोया जाता है। संत लूकस की कहानी जो दुनिया में सुसमाचार की यात्रा पर केंद्रित है, उसका अंत ईश्वर के वचन की गतिशीलता का सार है। एक नहीं रूकने वाला वचन जो सभी को मुक्ति का संदेश देना चाहती है।

ईश्वर के वचन को कैद कर नहीं रखा जा सकता 

रोम में पौलुस सबसे पहले ख्रीस्त में अपने भाइयों से मुलाकात करते हैं जो उनका स्वागत करते और हिम्मत बंधाते हैं। (प्रे.च. 28:15) उनका गर्मजोशी से स्वागत दिखलाता है कि उन्होंने उनके आने की प्रतीक्षा कितनी बेसब्री से की थी। उन्हें वहाँ सैन्य हिरासत में रखा गया जहाँ सैनिक उनपर निगरानी रखते थे अर्थात् उन्हें घर पर ही कैद कर रखा गया।  

कैदी की स्थिति में होते हुए भी पौलुस यहूदी कुलीन लोगों से मुलाकात करते हैं ताकि उन्हें बतला सकें कि वे किस प्रकार कैसर से अपील करने के लिए मजबूर थे और उनसे ईश्वर के राज्य के बारे बात करना चाहते थे। वे उन्हें येसु के बारे यकीन दिलाना चाहते थे अतः धर्मग्रंथ से शुरू कर, आगे बढ़ते हुए ख्रीस्त के सुसमाचार जो इस्राएल की आशा के रूप में बतलाते हैं। (प्रे.च. 28,20) पौलुस अपने आपको एक पक्का यहूदी मानते थे और सुसमाचार में ख्रीस्त की मृत्यु और पुनरूत्थान की घोषणा को, चुने हुए के द्वारा प्रतिज्ञा को पूर्ण करना मानते थे।

इसके बाद पहली अनौपचारिक मुलाकात में पौलुस यहूदियों को अनुकूल पाकर, एक दिन के औपचारिक सभा का आयोजन किया जिसमें वे सुबह से शाम तक उन्हें समझाते तथा ईश्वर के राज्य के विषय में साक्ष्य देते रहे और मूसा-संहिता तथा नबियों के आधार पर उन में ईसा के प्रति विश्वास उत्पन्न करने का प्रयत्न करते रहे।"(प्रे.च. 28,23) जैसा कि वे कहते हैं। चूँकि सभी सहमत नहीं होते हैं अतः वे ईश्वर की प्रजा के हृदय की कठोरता का आरोप लगाते हैं (इसा. 6,9-10), और कहते हैं कि ईश्वर का यह मुक्ति-विधान गैर-यहूदियों को सुनाया जा रहा है। (प्रे.च. 28,28)

ईश्वर के राज्य का संदेश 

कहानी के इस बिन्दु पर संत लूकस अपने लेख को विराम देते हैं, पौलुस की मृत्यु को दिखलाते हुए नहीं बल्कि उनके उपदेश और ईश वचन की गतिशीलता को दिखलाते हुए जो कैदी नहीं है। (2 तिम 2,9) पौलुस घूमने के लिए आजाद नहीं है किन्तु बोल सकते है क्योंकि ईश वचन को कैद नहीं किया जा सकता। यह ईश वचन है जो प्रेरित के हाथों बोये जाने के लिए तैयार है। पौलुस आत्मविश्वास के साथ ईश्वर के राज्य का सन्देश सुनाते और प्रभु ईसा मसीह के विषय में शिक्षा देते हैं। ( प्रे.च.28,31)

एक घर जिसमें उन सभी लोगों का स्वागत किया जाता है जो ईश्वर के राज्य की घोषणा को ग्रहण करना एवं ख्रीस्त को जानना चाहते हैं। यह घर स्वागत करने के लिए सभी के दिलों को खोल देता है यह कलीसिया की छवि है। यद्यपि यह प्रताड़ित है, गलत तरीके से समझी गयी है और कैद की गयी है पर सभी का स्वागत ममतामय हृदय से करने से कभी नहीं थकती। वह उनके लिए पिता के प्रेम की घोषणा करती है जिन्होंने येसु में अपने आपको प्रकट किया है।

पवित्र आत्मा से प्रार्थना

संत पापा ने पवित्र आत्मा से प्रार्थना करते हुए कहा, "इस यात्रा के अंत में, दुनिया में सुसमाचार की दौड़ के साथ जीते हुए, पवित्र आत्मा हम सभी के एक उत्साही एवं प्रसन्नचित सुसमाचार प्रचारक बनने के बुलावे को नवीकृत कर दे। पौलुस के समान हमारे घरों को सुसमाचार से भर दें, उसे भाईचारा का माध्यम बना दें जहाँ हम जीवित ख्रीस्त का स्वागत कर सकें जो हरेक व्यक्ति और हरेक क्षण में हमसे मिलने आते हैं।"         

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और विश्व के विभिन्न देशों से आये सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया, खासकर, उन्होंने फिनलैंड और अमरीका के तीर्थयात्रियों का अभिवादन किया।

अंत में संत पापा ने सभी विश्वासियों और उनके परिवारों पर प्रभु येसु ख्रीस्त के आनन्द एवं शांति की कामना की तथा उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

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15 January 2020, 15:38