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देवदूत प्रार्थना के उपरांत आशीष देते संत पापा देवदूत प्रार्थना के उपरांत आशीष देते संत पापा 

हम न भटकें बल्कि येसु के आनन्द के लिए जगह बनायें, संत पापा

वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 15 दिसम्बर को, संत पापा फ्राँसिस ने आगमन काल के "आनन्द रविवार" के शुभावसर पर, भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 16 दिसम्बर 2019 (रेई)˸ आगमन काल के इस तीसरे रविवार में, जिसको "आनन्द का रविवार" कहा जाता है, ईश वचन हमें, एक ओर आनन्द का निमंत्रण देता है और दूसरी ओर यह जानने के लिए प्रेरित करता है कि इसके अस्तित्व में संदेह के क्षण भी हैं, जिसपर विश्वास करना कठिन है। खुशी एवं संदेह दोनों ही अनुभव हम अपने जीवन में करते हैं।

मन-परिवर्तन एवं मुक्ति

आनन्द मनाने हेतु नबी इसायस के स्पष्ट निमंत्रण, "मरुस्थल और निर्जल प्रदेश आनन्द मनायें। उजाड़ भूमि हर्षित हो कर फले-फूले," (35,1) का, सुसमाचार में योहन बपतिस्ता के संदेह द्वारा विरोध किया गया है, ''क्या आप वही हैं, जो आने वाले हैं या हम किसी और की प्रतीक्षा करें?'' (मती. 11,3)

वास्तव में, नबी स्थिति के परे नजर डालते हैं, जिनके सामने घबराये हुए, थके-माँदे हाथों, निर्बल पैरों और खोये हृदयों के लोग हैं। (इसा. 35.3-4) यह वही सच्चाई है जो हर समय विश्वास की परीक्षा लेती है। किन्तु ईश्वर का व्यक्ति इसके परे देखता है क्योंकि पवित्र आत्मा उसके हृदय में, उनकी प्रतिज्ञा की शक्ति का एहसास दिलाता है और मुक्ति की घोषणा इस प्रकार करता है, 'ढारस रखों डरो मत! देखो, तुम्हारा ईश्वर आ रहा है। वह बदला चुकाने आता है, वह प्रतिशोध लेने आता है, वह स्वयं तुम्हें बचाने आ रहा है।'' (पद 4) इस तरह सब कुछ बदल जाता है, निर्जन प्रदेश खिल उठता है, घबराये हुए लोगों को सांत्वना एवं खुशी मिलती है, लंगड़ा, अंधा और गूंगा चंगे हो जाते हैं। (इसा. 5-6) येसु में यही बात पूरी होती है, "अंधे देखते हैं, लँगड़े चलते हैं, कोढ़ी शुद्ध किये जाते हैं, बहरे सुनते हैं, मुरदे जिलाये जाते हैं, दरिद्रों को सुसमाचार सुनाया जाता है।" (मती 11: 5)

ईश्वर के चेहरे को पहचानने के लिए बुलाये गये हैं

यह विवरण दिखलाता है कि मुक्ति पूरी मानव जाति को समेट लेती एवं उसका नवनिर्माण करती है। परन्तु इस नये जन्म में, खुशी के साथ-साथ, अपने आप से एवं हमारे अंदर के पाप से मृत्यु की भी पूर्व-कल्पना है। अतः योहन बपतिस्ता एवं येसु दोनों की शिक्षा में मन-परिवर्तन के लिए निमंत्रण है, विशेषकर, ईश्वर के विषय में हमारी धारणा से। आगमन काल इसे योहन के सवाल द्वारा अधिक अच्छी तरह से करने का प्रोत्साहन देता है, "'क्या आप वही हैं, जो आने वाले हैं या हम किसी और की प्रतीक्षा करें?'' (मती. 11: 3) हम जानते हैं कि योहन ने जीवन भर मसीह की प्रतीक्षा की, उनकी जीवनशैली, उनका पूरा शरीर उसके आगमन की तैयारी के अनुरूप था। यही कारण है कि येसु इन शब्दों से उनकी प्रशंसा करते हैं, "मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - मनुष्यों में योहन बपतिस्ता से बड़ा कोई पैदा नहीं हुआ। फिर भी, स्वर्ग राज्य में जो सबसे छोटा है, वह योहन से बड़ा है।" (मती. 11,11)

संत पापा ने कहा कि योहन के समान हम भी ईश्वर के चेहरे को पहचानने के लिए बुलाये गये हैं जो विनम्र और दयालु हैं।

आगमन काल कृपा का समय

आगमन काल कृपा का समय है। यह बतलाता है कि ईश्वर पर विश्वास करना काफी नहीं है, आवश्यक है कि हम हर दिन अपने विश्वास को शुद्ध करें। यह हमारे लिए किसी परी-कथा के पात्र का स्वागत करने की तैयारी नहीं है बल्कि ईश्वर के स्वागत की तैयारी है जो हमें बुलाते, शामिल करते और हमारे सामने एक प्रस्ताव रखते हैं। बालक जो चरनी में लेता है उसमें हमारे उन भाई-बहनों का चेहरा है जो जरूरतमंद हैं, गरीब हैं। इस रहस्य में, वे ही अधिक सौभाग्यशाली हैं और बहुधा उनकी उपस्थिति को पहचान पाते हैं।  

संत पापा ने प्रार्थना की कि कुँवारी मरियम हमें सहायता दे ताकि जब हम ख्रीस्त जयन्ती के अधिक नजदीक आ रहे हैं, हम बाह्य चीजों में न भटक जायें बल्कि हृदय में उनके लिए जगह तैयार कर सकें, जो आ चुके हैं और हमारे रोगों से हमें चंगा करने के लिए फिर से आना एवं हमें अपना आनन्द प्रदान करना चाहते हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।  

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16 December 2019, 14:48